उत्तराखण्ड में यूं तो शिव के बहुत से मंदिर हैं। इन मंदिरों के बारे में हम आपको जानकारी देते रहते हैं। इन शिव मंदिरों का ज्यादातर संबंध पांडवों या महाभारत काल से जुड़ा मिलता है या फिर भगवान शिव और माता पार्वती के अटूट बंधन से। उन्हीं मंदिरों में शामिल है हरिद्वार में स्थित बिल्वकेश्वर मंदिर। जिसे बिल्केश्वर के नाम से जाना जाता है। इस पोस्ट में हम बिल्केश्वर मंदिर या बिल्वकेश्वर मंदिर (Bilkeshwar Mandir) के पौराणिक, एतिहासिक और पर्यटन महत्व को जानेंगे। तो पोस्ट को अंत तक पढ़ें।
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बिलकेश्वर मंदिर या बिल्वकेश्वर मंदिर | Bilkeshwar Mandir
बिलकेश्वर मंदिर उत्तराखण्ड के हरिद्वार में मौजूद है। जो हरिद्वार रेलवे स्टेशन और हरिद्वार बस स्टेशन के पास में ही है। बिल्व स्थल का मतलब होता है (धर्म, कर्म, अर्थ, मोक्ष काम) के रुप में फल देना वाला। इस मंदिर का नाम बिल्व पर्वत के नाम पड़ा है। इसे बिल्व तीर्थ के नाम से भी जानते हैं।
यहाँ नीम के वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित है जिसकी अराधना बिल्वकेश्वर महादेव या बिल्केश्वर महादेव के रुप में की जाती है। कहते हैं कि इस शिवलिंग के दक्षिण भाग में मणि धारक अश्वतर नाम का महानाग है जो कभी-कभी शिवलिंग के आसपास दिखाई देता है।
इस मंदिर में गौरी कुंड नाम का एक जल कुंड है। जिसके जल को गंगा की तरह पवित्र बताया जाता है। शिवरात्रि के दिन इस मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है। कहते हैं कि जो इस दिन बिल्केश्वर महादेव को बेलपत्र चढ़ाते हैं। उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। पर इस मंदिर से जुड़ी क्या पौराणिक कथा है आइए जानते हैं।
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बिलकेश्वर महादेव से जुड़ी पौराणिक कथा
बिल्केश्वर मंदिर का सबसे पहले जिक्र स्कंद पुराण के केदारखंड में आता है। यहि वजह है हरिद्वार के निकट स्थित बिल्वकेश्वर महादेव का संबंध आदिकाल से बताया जाता है। कहते हैं कि इस स्थान पर देवी पार्वती ने शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें एक वृक्ष की शाखा के रुप में दर्शन दिए। यही नहीं उन्होंने माता पार्वती को विवाह का वरदान भी दिया।
बिलकेश्वर मंदिर में स्थित गौरी कुण्ड की कथा
मंदिर से जुड़ी दूसरी कथा है कि शिव की उपासना के दौरान माता पार्वती ने बेल खाकर अपनी भूख को शांत किया। मगर जब उन्हें अति तीव्र प्यास लगी तो ब्रह्मा ने उन्हें अपने कमंडर से पानी दिया। जो कि एक कुण्ड के रुप में बिल्केश्वर मंदिर में मौजूद है।
इस कुण्ड से माता पार्वती के पानी पीने के कारण यह कुण्ड गौरी कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कहते हैं कि गौरी कुण्ड का जल गंगा की तरह पवित्र है। इस कुण्ड में स्नान करने से सब पापों से मुक्ति मिल जाती है।
इस मंदिर में क्या है खास?
बिल्वकेश्वर मंदिर में शिव और पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है। उनकी आरती को देखने अक्सर लोगों का आना जाना लगा रहता है। यह आरती सुबह और शाम दोनों वक्त की जाती है। इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती के अलावा छोटे-छोटे मंदिर में स्थित हैं। जिसमें गणेश, माता रानी और हनुमान की पूजा की जाती है। हरिद्वार रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित यह मंदिर अद्भुत शांति देता है।
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कब आए इस मंदिर में?
यह मंदिर वर्ष के बाराह महीने श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। मगर क्योंकि गर्मियों में हरिद्वार की गर्मी असहनीय होती है तो अक्टूबर नवंबर के वक्त इस मंदिर के दर्शन का समय उपयुक्त है। आप चाहें तो सावन के महीने इस मंदिर में बेलपत्र चढ़ाकर पूजा अर्चना कर सकते हैं।
कैसे पहुंचे बिल्केश्वर मंदिर?
आप बिल्वकेश्वर या बिलकेश्वर मंदिर आराम से पहुंच सकते हैं। इसके लिए आप हवाई मार्ग से देहरादून जौलीग्रांट पहुंचे या रेल तथा सड़क मार्ग से हरिद्वार पहुंचिए। यह मंदिर हरिद्वार रेल स्टेशन और बस स्टेशन के नजदीक ही स्थित है। नीचे मैप दिया गया है। जिससे आप दूरी का अंदाजा लगा सकते हैं।
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