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चंद वंश के उत्तराखंड शासन काल का सम्पूर्ण इतिहास | history of Chand Dynasty in Uttarakhand In Hindi

चंद वंश

चंद राजवंश | Chand Dynasty

 

Chand Dynasty in Uttarakhand: एटकिन्सन के अनुसार चंद वंश का संस्थापक सोमचंद था। वहीं “कुमाऊँ का इतिहास” पुस्तक के लेखक बद्रीदत्त पाण्डे ने भी सोमचंद को चंद वंश का शासक माना है।  जिसका शासन काल उन्होंने 700-721 ई० में माना है। मगर ब्रिटिश गढ़वाल के लेखकों एटकिन्सन, वाल्टन और नेविल ने सोमचंद का शासन 935 ई० कहा है।
वहीं इनसाइक्लोपीडिया आँफ उत्तराखण्ड के नाम से प्रसिद्ध शिव प्रसाद डबराल चारण के अनुसार सोमचंद का शासन काल 665 ई० और 700 ई० के मध्य का बताया गया है।

कन्नौज नरेश के भाई सोमचन्द को ब्रह्मदेव ने अपनी पुत्री से विवाह कराया तथा दहेज में चंपावत की छोटी सी जागीर दी वहीं सोमचंद ने अपने राज्य की नींव रखी। गुर्जर देव मन्दिर द्वाराहाट से प्राप्त प्रमाणों से प्रकट होता है कि चंदवंश के वंशजों का सम्बन्ध प्रतिहारों के वंशजों से था।

चंद वंश के शासन के समय नेपाल में स्थित मल्ल वंश (डोटी) का प्रथम राजा वामदेव था। जिसे सोमचन्द कर देता था। उसके बाद नेपाल के ही इसी वंश में पैदा हुए शासक वामदेव ने ही अपनी ईष्ट देवी चंपावती के नाम पर अपनी राजधानी का नाम चंपा रखा। जो बाद में चंपावत के नाम से पुकारा जाने लगा।

चंपावत के बालेश्वर मंदिर से प्राप्त चल्लदेव का 123 ई० पुराना एक लेख प्राप्त हुआ है। जिसमें दस मांडलिक राजाओं के नाम उत्कीर्ण हैं। वहीं बास्ते (पिथौरागढ) ताम्र पत्र में मोहन थाप जैसे मांडलिकों का भी उल्लेख मिला है।
गोपेश्वर – त्रिशूललेख से मिले प्रमाण के अनुसार 1191 ई० में इस क्षेत्र में अशोक चल्ल के आधिपत्य के संकेत मिले हैं। जिसे सहणपाल पुरुषोत्तमश्रिंह के बोध गया शिलालेखों में इसे खस देश का महाराजाधिराज कहा गया है।




चंद वंश के संस्थापक सोमचंद व थोहरचंद में संशय

 

कुमाऊँ के राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले हर्षदेव जोशी से मिली एक सूचना के आधार पर 1815 में विलियम फ्रेजर ने कंपनी सरकार को लिखा था कि कुमाऊँ का पहला राजा थोहरचंद नाम का एक राजपूत था, जिसे 16-17 वर्ष की आयु में झूँसी (इलाहाबाद) से लाया गया था। हालाँकि इतिहासकारों द्वारा इस पर अलग-अलग मत हैं। इसलिए इस वंश के एतिहासिक स्थापत्य का प्रमाण नहीं मिला है। वहीं थोहरचंद, नरचंद के बाद चंद राजवंश की गद्दी पर बैठा था।

अतः इसमें भी संदेह है कहीं हर्षदेव जोशी द्वारा इसी थोहरचंद का जिक्र तो नहीं है। खैर फिलाहल सोमचंद ही चंद वंश की स्थापना का श्रेय दिया जाता है।


चंद वंश का वंशानुगत क्रम

 

सोमचंद के बाद चंदवंश में कई राजाओं ने चंद वंश की गद्दी संभाली जो कि क्रमशः पूर्णचंद्र, इन्द्रचंद, संसारचंद, सुधाचंद्र, हरिचंद, वीणाचंद, वीरचंद, नरचंद, थोहरचंद, त्रिलोकचंद, उमरचंद, धर्मचंद, अभयचंद, कर्मचंद, ज्ञानचंद, हरिचंद, द्वान चंद, आत्म चंद, हरिचंद, विक्रमचंद, धर्मचंद, भारतीचंद, रत्नचंद, कीर्तिचंद, प्रतापचंद, ताराचंद, मानिकचंद, कल्याणचंद, पूर्णचंद, भीष्मचंद, रुद्रचंद, बालो कल्याण चंद, रुद्रचंद, लक्ष्मीचंद, त्रिमलचंद, दिलीपचंद, बाजबहादुर चंद, उद्योत चंद, ज्ञानचंद, जगतचंद, देवीचंद, अजीत चंद, कल्याण चंद, दीपचंद, मोहनचंद, शिवचंद, व महेन्द्रचंद ने शासन किया।



गढ़वाल के शासक प्रद्युम्न शाह ने दीपचंद के कुमाऊँ के सिंहासन को संभाला। प्रद्युम्न शाह परमार वंश के इकलौते ऐसे राजा थे जिन्होंने अपने सौतेले भाई गढ़वाल नरेश जयकृत शाह को पराजित कर गढ़वाल एंव कुमाऊँ दोनों राज्यों पर राज किया।
हाँलांकि प्रद्युम्न शाह के श्रीनगर पर राज करने के दौरान उन्होंने अपने मंत्री हर्षदेव जोशी को कुमाऊँ का राज पाठ संभालने को दिया मगर चंद वंश के शासक मोहनचंद ने पुनः अपनी सत्ता का दंभ भरकर हर्षदेव जोशी को कुमाऊँ से खदेड़ दिया।

चंद वंश के अंतिम शासक महेन्द्रचंद के बाद चंद वंश के शासकों के बारे में जानकारी नहीं है क्योंकि गोरखाओं के कुमाऊँ आक्रमण के बाद कभी चंद वंश कभी सत्ता में नहीं आ पाया। संभवतः गोरखाओं ने इसके उत्तराधिकारी को मार दिया था।


चंद वंश से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ

 

चंद वंश के दौरान बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारियाँ हैं जो नीचे दी गई हैं। जो चंदवंश के शासन के दौरान महत्वपूर्ण घटनाओं को उजागर करती हैं। ये जानकारियाँ चंद वंश के इतिहास और और उनके शासन काल में हुई प्रसिद्ध घटनाओं के लिहाज से राज्यस्तरीय परीक्षाओं के लिए उपयोगी हैं।

सोमचंद

 

• कन्नौज नरेश के भाई सोमचन्द को ब्रह्मदेव ने अपनी पुत्री से विवाह कराया तथा दहेज में चंपावत की छोटी सी जागीर दी वहीं सोमचन्द ने अपने राज्य की नींव रखी।

• गुर्जर देव का मन्दिर द्वारा हाथ में जो प्रकट करता है चन्द्रवंश के वंशजों का सम्बन्ध प्रतिहारों के वंशजों से था।

• मल्ल वंश डोटी का प्रथम राजा वामदेव था। सोमचन्द इन्हीं को कर देता था।

• वामदेव ने अपने ईष्ट देवी चंपावती के नाम पर अपनी राजधानी का नाम चंपा रखा जो बाद में चंपावत के नाम से पुकारा जाने लगा इसने जागेश्वर में कुछ मंदिरों का निर्माण भी कराया।

• सोमचंद ने राजबुंगा किले का निर्माण चंपावत में कराया।

• सोमचन्द के बाद आत्मचन्द गद्दी पर बैठा। उसके बाद पूर्णचन्द ने 1066 से 1084 तक राज किया।

• पूर्ण चंद के बाद इन्द्रचन्द गद्दी पर बैठा।

• एटकिन्स के अनुसार इन्द्रचन्द ने ही रेशम उत्पादन का कार्य शुरू किया था।

•  इन्द्रचंद के बाद वीणा चंद का जिक्र आता है जिसे इस वंश का विलासी राजा कहते थे।



 

नेपाल नरेश का अधिपत्य

 

• वीणा चंद के राज के बाद ही  डोटी (नेपाल) के चल्ल नामक राजाओं द्वारा इस क्षेत्र पर राज करने के पुरातात्विक प्रमाण इस मिले हैं।

• चंपावत के बालेश्वर मन्दिर से चल्ल देव के भाई द्वारा 1223 ईसवी में लिखा एक लेख प्राप्त हुआ है।  जिसमें 10 माण्डलिक राजाओं के नाम उत्कीर्ण है।

वास्ते पिथौरागढ़ ताम्रपत्र में मोहन थापा जैसे मांडलिकों का उल्लेख मिलता है।

गोपेश्वर त्रिशूल लेख से 1191 ई0 में यहां अशोकचल्ल के आधिपत्य के संकेत मिले हैं। सहणपाल व पुरुषोत्तम सिंह के बोध गया शिलालेखों में इन्हें खस देश का राजाधिराज कहा गया है।

ज्ञानचंद

 

ज्ञानचंद 1365 से 1420 ई० तक राज किया। यह पहला चंद शासक था जो दिल्ली सुल्तान फिरोजशाह तुगलक के दरबार में भेंट अर्पित करने गया।

फिरोजशाह ने ज्ञानचंद को गरुड़ की उपाधि दी।  शोर का विजेता भी ज्ञानचन्द था।

1418 ई० के गोपसा ताम्रपत्र में उसके द्वारा कुजोली पिथौरागढ़ के गांव को देवराज तिवाड़ी को देने का उल्लेख मिलता है ।

ज्ञानचन्द के बाद हरिहरण चन्द, द्वान चंद, आत्मचन्द, हरिचंद, विक्रम चंदधर्मचन्द ने राज किया।



भारती चंद

 

• कुमाऊं की प्रसिद्ध वीरांगना भाग ध्वनि ज्ञान के साथ भारतीचंद  के द्वंद्व युद्ध का भी पवार पवाड़ों व भड़के में गुणगान किया गया है

• यही नहीं भारती चंद ने ही डोटी राज्य (नेपाल) के ख़िलाफ़ संघर्ष किया। उस समय डोटी राज को रैंक का कहा जाता था।

मडुआ गुड़ौल में भारती चंद का कटकु से उसकी सेना बनाकर पिथौरागढ़ के मुख्यालय में देवसिंह मैदान के पास कटकू नौला व बडालू से गौडी़हाट तक के क्षेत्र में उसने डोटी (नेपाल) के खिलाफ सेना जमाई ।

• 12 वर्ष तक नेपाल का डेरा डालने के बाद अंत में मल्ल राजा (1451-52 ईसवी) पराजित हुआ और चंद राज्य को डोटी से मुक्ति मिली।

बालो कल्याण चंद

 

शोभा मल्ल ने चंदों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए अपनी पुत्री का विवाह बालो कल्याणचन्द से किया।

कलपानी भाड़-भेटा (पिथौरागढ़) से प्राप्त ताम्र पत्र में जिस महाराजा महाराजाधिराज का जिक्र आया है वो भीष्मचंद का उत्तराधिकारी था।

• भीष्मचंद के बाद रुद्रचन्द गद्दी पर बैठा।

भीष्मचंद ने अल्मोड़ा में स्थित खगमरा किले का निर्माण कराया था।



रुद्रचंद

 

•  रुद्रचन्द अकबर के समकालीन था जिसने 1587 में हुसैन खां से तराई के क्षेत्र जीतकर रुद्रपुर नगरी की स्थापना की।

• 84 माल परगना फरमान भी भी इसे दे दिया गया।

•  अल्मोड़ा का मल्ला महल भी इसी ने बनवाया।

• यही नहीं रुद्रचन्द ने धर्म निर्णय नाम की पुस्तक लिखवाई। जिसके आधार पर ब्राह्मणों के गोत्र व उनके पारिवारिक सम्बन्धों का अंकन किया गया।

• गढ़वाल के सरोला ब्राह्मणों रसोइयों की भांति कुमाऊं में चौथानी ब्राह्मणों की मण्डली बनाई ।

• वहीं अनाज का छठा भाग गांवों से वसूल कर राजधानी पहुंचाने के लिए “कैनी खसों” का कार्य निर्धारण किया ।

मल्ला महल किला का अल्मोड़ा में निर्माण रुद्रचंद ने ही कराया था।

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लक्ष्मीचंद

 

• रुद्रचन्द के बाद लक्ष्मीचंद ने राज किय।

• इसके राज्यकाल में ही न्योवाली नामक कचहरी समस्त जनता व बिष्टाली कचहरी केवल सैनिक मामलों के न्याय के लिए बनाई गई।

• इसने नरसिंह बाड़ी,  पाण्डे खोला, कबीना तथा लक्ष्मीश्वर आदि बगीचे भी लगवाए।

1602 में इसने बागेश्वर के बागनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया ।

बाजबहादुर चंद

 

• रुद्रचन्द के बाद बाज बहादुर चंद गद्दी पर बैठा। जो मुगल शहंशाह के दरबार में गया था।

मुरादाबाद के सूबेदार रुस्तम खां को बाज बहादुर चंद से माल तराई का प्रान्त मिला। जहाँ रुस्तमखां ने ही बाजपुर नगर की स्थापना की।

• बाज बहादुर चंद के समय में ही उन्होंने कत्यूरी राजकुंवरों को गढ़वाल की ओर खदेड़ा। इन्हीं कत्यूरियों द्वारा गढ़वाल में लूटपाट मचाना शुरू किया जिसके कारण गोला रावत भूप सिंह की पुत्री तीलू रौतेली को हथियार उठाने पड़े।

• ये युद्ध बरकिंडा में बारकिंडो देघाट व तामाढौन में हुआ फिर टकोलीखाल में भी।



उद्योत चंद

 

उद्योत चन्द, बाज बहादुर चंद के बाद गद्दी पर बैठा उद्योत चंद के समय गढ़वाल में मेदिनीशाह तथा नेपाल में देवपाल का राज था। इसने दोनों को पराजित कर अपने क्षेत्र वापास लिया वहीं डोटियों को युद्ध में हराकर उनपर कर भी लगाए।

• यह नेपाल पर आक्रमण करने वाला दूसरा चंद शासक था।

• बाज बहादुर के बाद उद्योत चंद के समय नेपाल के अजमेर गढ़ जीतने के बाद उसने गढ़वाल की ओर रुख किया तो गढ़वालियों को वीरौंखाल भागना पड़ा।

बाज बहादुर ने कैलाश मानसरोवर के तीर्थयात्रियों के लिए 1673 ईसवी में गूंठ भूमी दान की। गूंठ उस भूमि को कहते हैं जहां मंदिरों के पुजारी रहते हैं।

बाज बहादुर ने भोटियों व हुनियों पर “सिरती” नामक कर भी लगाए।

“एक हत्या देवाल” थल पिथौरागढ़ में ही बाज बहादुर चंद ने बनाया। इसकी बनावट एलोरा के कैलाश मंदिर जैसी है।

• पर जब डोटी ने पुनः आक्रमण किया तो उसने नेपाल पर चढ़ाई की और उसे नेपाल ने हराया। हारने के कारण व शांति की खोज में निकल पड़ा।

ज्ञानचंद

• इसके बाद ज्ञानचंद गद्दी पर बैठा तो उसने गढ़वाल पर युद्ध किया थराली के उपजाऊ प्रदेश को रौंद कर वो 1699 में बधान गढ़ को लूटा।

• इसने वीरेश्वर जोशी को ज़मीन भी दी बधानगण में।

• यहीं नहीं नंदादेवी कि स्वर्ण प्रतिमा को लूटकर वो ले गया और अल्मोड़ा में स्थित नंदा देवी मन्दिर में इस मूर्ति की स्थापना की।

1704 में इसने पिता की बदला लेने के लिए डोटी अभियान शुरू किया।

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जगतचंद

 

• ज्ञानचंद के बाद जगतचन्द राजा बना इसके ही काल को कुमाऊं का स्वर्णकाल कहा जाता है। उस समय कुमाऊं से 9 लाख रुपये की आय मिलती थी ।

जगतचंद ने फतेहशाह के समय श्रीनगर पर आक्रमण कर इसे लूटा। यही नहीं मुगल सम्राट बहादुरशाह को कीमती भेंट भी दी।



देवीचंद

• जगतचंद के बाद देवीचंद गद्दी पर बैठा देवीचन्द को कुमाऊं का मोहम्मद तुगलक कहते हैं क्योंकि इसने चाटुकारों पंडितों की सलाह पर कई धन लुटवाया था।

कल्याणचन्द  ने अल्मोड़ा में लालकंडी किला बनवाया था। इसे फोर्ट मोयरा भी कहा जाता है। इसकी राजधानी को राजबुंगा कहा गया।

• इनके शासनकाल में रुहेलों का आक्रमण भी हुआ। रुहेलखण्ड का सरदार अली मोहम्मद खाता और कल्याणचन्द की बहादुर सेना के बीच बीजपुर में आक्रमण हुआ।

गुरु गोरखनाथ के नाम पर ही गोरखपुर व नेपाल में गोरखा नामक पहाड़ी का नामांकरण हुआ अल्मोड़ा के घरों में पूजा जानेवाला गंगनाथ व चंद्रवंशी राजकुमार ही था जो साधु बनकर आया था।

लक्ष्मीचंद को लखोली विराली उपनाम दिया गया है।

चंदवंश का अंतिम शासक महेंन्द्र चंद था जिसे 1790 ई० में हवालाबाग युद्ध में गोरखाओं ने हराया था।

तो ये थी उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्रों पर राज करने वाली चंद वंश के विषय में जानकारी। उम्मीद करते हैं इसे पढ़ने के बाद आपको किसी अन्य साइट पर जाने की आवश्यकता ना हो।

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