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डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल | हिन्दी निर्गुण साहित्य के प्रथम शोधकर्ता | Dr. Pitambar Dutt Barthwal

 डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल (Dr. Pitambar Dutt Barthwal)

 डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल (Dr. Pitambar Dutt Barthwal)

डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल (Dr. Pitambar Dutt Barthwal): हिन्दी साहित्य में रहस्यवाद और निर्गुण भक्ति धारा के प्रथम शोधकर्ता के रूप में डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। उन्होंने अपने गहन अध्ययन और अनुसंधान से हिन्दी संत साहित्य को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई। उनके प्रयासों से निर्गुण साहित्य गंगा की भांति प्रवाहमान हुआ और हिन्दी साहित्य को एक नई दिशा प्राप्त हुई।

डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल (Dr. Pitambar Dutt Barthwal)

प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा

डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल (Dr. Pitambar Dutt Barthwal) का जन्म 13 दिसंबर 1902 को उत्तराखंड के लैंसडौन के निकट कौड़िया पट्टी के पाली गाँव में हुआ था। उनके पिता पंडित गौरी दत्त बड़थ्वाल संस्कृत और ज्योतिष के विद्वान थे, जिनसे उन्हें साहित्यिक अभिरुचियाँ विरासत में मिलीं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर प्राप्त की और आगे की पढ़ाई श्रीनगर गढ़वाल, लखनऊ और कानपुर के डी.ए.वी. कॉलेज से की।

उनकी उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ उन्होंने 1926 में बी.एड और 1928 में एम.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।

साहित्यिक योगदान

डॉ. बड़थ्वाल का साहित्यिक जीवन बहुत समृद्ध और विविधतापूर्ण था। उन्होंने हिन्दी साहित्य में रहस्यवाद और निर्गुण भक्ति धारा पर गहरा शोध किया। उनका शोध-निबंध “दि निर्गुण स्कूल ऑफ हिन्दी पोएट्री” हिन्दी संत साहित्य के अध्ययन में मील का पत्थर साबित हुआ। यह शोध ग्रंथ हिन्दी रहस्यवाद और संत काव्य पर पहली गहन अध्ययनात्मक कृति थी।

उनके प्रमुख साहित्यिक योगदानों में शामिल हैं:

उन्होंने “प्राणायाम-विज्ञान और कला” तथा “ध्यान से आत्मा चिकित्सा” नामक ग्रंथ भी लिखे, जिन पर उन्हें बूंदी और ग्वालियर नरेशों द्वारा पुरस्कृत किया गया।

अकादमिक और शोध कार्य

डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल सन् 1929 में एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1930 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रवक्ता नियुक्त हुए। यहीं पर उन्होंने हिन्दी साहित्य के गहन अध्ययन और समीक्षा का अवसर प्राप्त किया। 1933 में डी.लिट उपाधि प्राप्त कर वे भारत के हिन्दी साहित्यान्वेषियों की अग्रणी पंक्ति में शामिल हुए। उनके शोध कार्य की प्रसिद्ध शिक्षाविदों और आलोचकों ने सराहना की:

संघर्षमय जीवन और अंतिम समय

डॉ. बड़थ्वाल (Dr. Pitambar Dutt Barthwal) का पारिवारिक जीवन संघर्षों से भरा रहा। अल्प वेतन और कमजोर स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने अपने साहित्यिक कार्यों को जारी रखा। 24 जुलाई 1944 को अपने पैतृक गाँव पाली में उन्होंने अंतिम साँस ली। उनके निधन पर डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. बनारसी दास चतुर्वेदी, और डॉ. राम कुमार वर्मा जैसे विद्वानों ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का साहित्यिक योगदान हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। आज भी उनके शोध और कृतियाँ साहित्य प्रेमियों के लिए मार्गदर्शक हैं। उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए उनके पैतृक गाँव पाली में शोध संस्थान की स्थापना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल कौन थे?

डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध शोधकर्ता थे, जिन्होंने निर्गुण संत साहित्य और रहस्यवाद पर महत्वपूर्ण शोध कार्य किया। वे हिन्दी के पहले विद्वान थे जिन्होंने “दि निर्गुण स्कूल ऑफ हिन्दी पोएट्री” पर डी. लिट की उपाधि प्राप्त की।

2. उनका जन्म कब और कहां हुआ था?

डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का जन्म 13 दिसम्बर 1902 को उत्तराखंड के लैंसडौन (गढ़वाल) के निकट कौड़िया पट्टी के पाली ग्राम में हुआ था।

3. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कहां से प्राप्त की?

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही प्राप्त की और बाद में श्रीनगर गढ़वाल के राजकीय हाई-स्कूल, फिर कालीचरण हाई-स्कूल लखनऊ से हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।

4. उच्च शिक्षा के लिए वे कहां गए?

उन्होंने डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर और फिर काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एमए और एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। बाद में उन्होंने वहीं पर शोध कार्य किया और प्रवक्ता के रूप में कार्यरत रहे।

5. उनकी प्रमुख साहित्यिक उपलब्धियां क्या थीं?

6. उनकी साहित्यिक यात्रा कैसे शुरू हुई?

बाल्यकाल से ही वे लेखन में रुचि रखते थे। उन्होंने “मनोरंजनी” नामक हस्तलिखित पत्रिका निकाली और “हिलमैन” पत्रिका का संपादन किया। 1920-24 के दौरान वे “अम्बर” उपनाम से कविताएं लिखते रहे।

7. उन्हें किन प्रमुख विद्वानों ने सराहा?

8. उनका व्यक्तिगत जीवन कैसा था?

उनका पारिवारिक जीवन संघर्षपूर्ण रहा। पिता की मृत्यु के बाद शिक्षा में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अध्यापन के दौरान कम वेतन और पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण भी उन्हें कठिनाइयां उठानी पड़ीं।

9. उनका निधन कब और कहां हुआ?

डॉ. बड़थ्वाल का निधन 24 जुलाई 1944 को उनके पैतृक गांव पाली में हुआ।

10. उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए क्या किया जा सकता है?

उनकी विरासत को संरक्षित करने के लिए उनके पैतृक ग्राम पाली में एक शोध संस्थान की स्थापना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, जिससे उनके दुर्लभ साहित्य को अगली पीढ़ी तक पहुंचाया जा सके।

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