उत्तराखंड में स्थित बहुत से मन्दिरों और यहां स्थित पौराणिक स्थलों के बारे में हम आपको जानकारी देते रहते हैं लेकिन क्या आपको उत्तराखंड के चमोली जिले के गोपेश्वर में स्थित गोपीनाथ मंदिर के बारे में जानकारी है? आज हम इस पोस्ट के माध्यम से गोपीनाथ मंदिर से जुड़े पौराणिक महत्व, इतिहास और पर्यटन की बात करेंगे तो इस पोस्ट को अंत तक पढ़ें ।
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गोपीनाथ मंदिर | Gopinath Temple
उत्तराखंड को अगर शिवभूमि कहें तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहाँ मौजूद इन प्राचीन शिव मन्दिरों की कथा पुराणों से मिलती है। इन मन्दिरों महत्त्व ऐसा है कि यहां दर्शन करने वाले कभी खाली हाथ नहीं लौटे जिस कारण हर साल यहां यात्रियों का आना जाना लगा रहता है। उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित गोपेश्वर नगर में ऐसा ही शिव का एक पौराणिक मंदिर स्थित है। जो भगवान गोपीनाथ के नाम से जाने जाते हैं।
गोपीनाथ मन्दिर का नाम सुनते ही हमें भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण स्वरूप का ध्यान आता है लेकिन ऐसा नहीं है। गोपेश्वर में स्थित गोपीनाथ मंदिर का सम्बन्ध शिव से है। यह मन्दिर केदारनाथ मन्दिर के समकक्ष प्राचीन बताया जाता है। वहीं वास्तु कला की अगर बात करें तो इसके शीर्ष पर गुम्बद नुमा आकृति है। इस मंदिर का गर्भगृह 30 वर्ग फुट है जिसमें 24 से द्वारों से प्रवेश किया जाता है।
गोपेश्वर नगर के बीचों बीच स्थित गोपीनाथ मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। पंचकेदारों में मौजूद चतुर्थ केदार रुद्रनाथ के कपाट बंद होने पर चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ की चल विग्रह डोली को रुद्रनाथ मंदिर के कपाट बंद होने पर गोपीनाथ मन्दिर लाया जाता है। इसी मंदिर में शीतकाल में भगवान गोपीनाथ के साथ बाबा रुद्रनाथ की भी पूजा अर्चना की जाती है।
उत्तराखंड में हिन्दुओं के सबसे परमधाम चारधाम यात्रा के दौरान यात्री की बदरीनाथ की यात्रा के दौरान गोपेश्वर में स्थित गोपीनाथ मंदिर के भी दर्शन करते हैं। यह मन्दिर वर्ष भर खुला रहता है जिस कारण भक्तों का हमेशा इस मन्दिर में जमावड़ा लगा रहता है। तो इस मंदिर से जुड़ा क्या है इतिहास और पौराणिक महत्व आइए जानते हैं।
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गोपीनाथ मंदिर का इतिहास | History Of Gopinath Temple
गोपीनाथ मंदिर (Gopinath Temple) उत्तराखंड के चमोली क्षेत्र में स्थित गोपेश्वर नामक शहर में हिन्दुओं के एक प्राचीन मन्दिर के रूप में स्थित है। इस मन्दिर का निर्माण नौवीं व ग्यारहवीं शताब्दी के बीच कत्यूरी शासकों द्वारा किया गया था। इस मन्दिर में मौजूद तो अभिलेखों से कत्यूरी शासकों के इतिहास व नेपाली शासकों के इतिहास का भी सम्बन्ध बताया जाता है। नेपाल के राजा अनेक मल जो तेरहवीं शताब्दी में यहां शासन करता था उसका अभिलेख भी मन्दिर में मौजूद है। या मौजूद अभिलेखों में से देवनागरी में लिखी 4 अभिलेखों में से 3 की लिपि को पढ़ा जाना शेष है।
इस मन्दिर के आंगन में मौजूद टूटी हुई मूर्तियां यहां स्थापित अन्य छोटे मंदिरों के अस्तित्व को दर्शाती है। इस मन्दिर का निर्माण नागर शैली में किया गया है। वहीं मन्दिर निर्माण की कला को हिमाद्री शैली के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर के आस पास मां दुर्गा श्रीगणेश एवं श्री हनुमान जी के मन्दिर और अष्ट धातु से बना एक पौराणिक त्रिशूल भी स्थित है। इस त्रिशूल के बारे में बताया जाता है कि इस पर कभी जंग नहीं लगता।
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मन्दिर से जुड़ी पौराणिक कथा
गोपेश्वर में स्थित गोपीनाथ मन्दिर के बारे में धार्मिक एवं पौराणिक कथा बहुत पुरानी है। कहते हैं कि यह मंदिर भगवान शिव की तपस्थली थी इस स्थान पर भगवान शिव ने अनेक वर्षों तक तपस्या करें इसे कामदेव द्वारा व्यवधान ने किये जाने पर कामदेव को इसी स्थल पर भस्म किया था।
कथा के अनुसार देवी सती के शरीर त्यागने के बाद और ताड़कासुर नामक राक्षस के वध का सम्बन्ध भी स्थान से लगाया जाता है। जब देवी सती ने अपना शरीर त्याग का तो भगवान शिव इस स्थान पर ध्यान मुद्रा में बैठ गए। दूसरी तरफ ताड़कासुर के आतंक के कारण इन्द्र ने स्वर्ग या सिंहासन छोड़ भागे और ताड़कासुर ने तीनों लोकों पर युद्ध छेड़ दिया।
कथा के अनुसार ताड़कासुर को वरदान था कि उन्हें सिर्फ शिवपुत्र ही मार सकता है। यही कारण है कि देवों ने ब्रह्मा से इसका उपाय पूछा तुम ब्रह्मदेव ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने के लिए भेज दिया। जब कामदेव के तीरों के कारण शिव की तपस्या भंग हो गयी तो वे अधिक अत्यधिक क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से कामदेव को भस्म किया।
गोपीनाथ मंदिर में स्थित भूमि में गढ़े त्रिशूल के विषय में कहते हैं कि यह वही त्रिशूल है जिसे भगवान शिव द्वारा कामदेव पर फेंका गया था। इस त्रिशूल के बारे में जो भी मान्यता है कि इसे छूने पर कंपन होने लगता है।
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उत्तराखंड की लोक कथाओं में मौजूद इस मंदिर से जुड़ी एक अद्भुत कहानी
एक अन्य कथा के अनुसार इस क्षेत्र पर राजा सागर का शासन था। वर्तमान समय में गोपेश्वर के निकट स्थित सागर नामक गांव उन्हीं राजा सागर के नाम पर रखा गया है। स्थानीय लोगों के कारण के अनुसार एक समय एक अजीब घटना घटी यहां चढ़ने के लिए आने वाली गायों के तन का दूध अपने आप इस स्थान पर गिरने लगा तो राजा ने इस बात का पता करने के लिए सिपाहियों को गाय के पीछे भेजा। जब राजा ने यह देखा कि गाय के स्तनों से निकला दूध बह कर खुद शिवलिंग पर जा रहा है तो यह देकर वह आश्चर्यचकित हो गए और इस पवित्र स्थान पर एक मन्दिर का निर्माण किया ।
गोपीनाथ मंदिर से जुड़ी मान्यता
गोपीनाथ मंदिर का महत्त्व ऐसा है कि यहां हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर में परशुराम, भैरवजी की प्रतिमाएं भी मौजूद है। इस मंदिर से कुछ दूरी पर वैतरणी नामक कुंड स्थित है। जिसके बारे में कहते हैं कि इसके जल में स्नान करने पर समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। मन्दिर के आंगन में मौजूद त्रिशूल पर यदि ध्यान लगाकर तर्जनी उंगली से छुआ जाए पृष्ठशूल में कम्पन होने लगता है। यह मंदिर इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी स्थान पर भगवान केदारनाथ के मुख्य भाग यानी रूद्रनाथ जी की उत्सवमूर्ति शीतकाल में विराजमान होती है। भगवान रुद्रनाथ की मूर्ति इस मन्दिर में लाने पर भक्तों का यहां जमावड़ा लगा रहता है।
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कैसे पहुंचे गोपीनाथ मंदिर | How To Reach Gopinath Temple
गोपीनाथ मंदिर (Gopinath Temple) चमोली जिले के गोपेश्वर शहर में स्थित है। जो बद्रीनाथ यात्रा के मुख्य मार्ग पर पड़ता है। गोपेश्वर चमोली से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह ऋषिकेश से 220 किलोमीटर दूर है। वहीं अगर नजदीकी एयरपोर्ट की बात करें तो जौलीग्रांट देहरादून सबसे नजदीकी एयरपोर्ट मौजूद है। वहीं रेलमार्ग द्वारा ऋषिकेश तक ही पहुंचा जा सकता है। जिसके बाद चौपहिया वाहनों द्वारा ही यहां तक कि दूरी तय करनी होती है।
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