जिला हरिद्वार
भारत के उत्तराखंड राज्य का जिला जो कि एक जाना माना प्रसिद्ध देव स्थल है हरिद्वार। हरिद्वार का शाब्दिक अर्थ है “हरि तक पहुंचने का द्वार”। हरिद्वार गंगा नदी के किनारे स्थित होने के कारण यहाँ पर्याप्त जल संसाधन है। हरिद्वार की यात्रा और इतिहास का विशेस महत्त्व है। उत्तराखंड राज्य में शामिल होने से पहले सहारनपुर जिले का हिस्सा हुआ करता था। इस जिले का क्षेत्रफल 2,360 वर्ग किमी है। यह उत्तराखंड राज्य के पश्चिमी भाग में स्थित है। हरिद्वार के पश्चिम में सहारनपुर, उत्तर-पूर्व में देहरादून, पूर्व में पौड़ी गढ़वाल, दक्षिण में मुज़फ्फरनगर और बिजनौर है। इस जिले में 4 तहसील है हरिद्वार, रुड़की, लक्सर व भगवानपुर। और 6 विकासखंड है भगवानपुर, रुड़की, नारसन, बहादराबाद, खानपुर, लक्सर। हरिद्वार का जिला मुख्यालय रोशनाबाद में है जो कि हरिद्वार रेलवे स्टेशन से 12 किमी की दूरी पर स्थित है।
(Haridwar ki yatra or Itihas | हरिद्वार की यात्रा और इतिहास)
हरिद्वार में स्तिथ धार्मिक स्थल | Religious places in Haridwar
हरिद्वार में हर रोज़ देश के कोने से हजारों श्रद्धालु यहाँ गंगा दर्शन के लिए आते है और गंगा नदी में स्नान करके अपने पापों से मुक्त हो जाते है। यहाँ पूजा की सामग्री व हिन्दू धार्मिक किताबो की भी बहुत सी दुकाने है। देशभर के लोग यहाँ आकर गंगा जी का पवित्र जल बोलतों में भर कर अपने साथ ले जाते है। यहीं नही यहाँ देवभूमि हरिद्वार में ओर भी कई अति प्रभावित करने वाले धार्मिक मंदिर व पर्यटन स्थल भी है। यह जिला धार्मिकस्थल के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है।
हरिद्वार में भारत के सबसे प्राचीन मंदिर के रूप में मंसा देवी मंदिर, चंडी देवी मंदिर और भीमगोडा दर्शनीय स्थल है। यहाँ पर सतिकुण्ड, दक्ष मंदिर के दर्शन करना पवित्र माना जाता है, क्योंकि यह वहीं मंदिर है जहां पर दक्ष प्रजापति ने वह यज्ञ किया था जिसमें भगवान शिव को आमंत्रित नही किया था साथ ही यज्ञ स्थल पर महादेव का अपमान किया जिससे देवी सती ने अपने पिता पर क्रोधित होकर यज्ञ की अग्नि पर अपना देह त्याग दिया था।
यह जिला आयुर्वेद और योग के लिए भी पूरी दुनिया में एक मात्र सबसे पुराना केंद्र है यहाँ भारत का सबसे पुराना आयुर्वेदिक महाविधायल है जो *ऋषिकुल* के नाम से जाना जाता है। योग के लिए पतंजलि योगपीठ भी भारत का मुख्य योग केंद्र है। इसके अलावा शांतिकुंज भी है।
हरिद्वार से हर की पौड़ी का संबंध | Har ki Pauri’s relation with Haridwar
माना जाता है कि राजा स्वेत ने *हर की पौड़ी* में भगवान ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की थी। जिससे ब्रह्मा जी खुश हो गए और राजा स्वेत को वरदान मांगने को कहा, राजा ने वरदान में मांगा कि *हर की पौड़ी* को भगवान के रूप से जाना जाए। तब *हर की पौड़ी* की बहती नदी को *ब्रह्मकुंड* के नाम से जाना जाता था।
हरिद्वार में *हर की पौड़ी* नाम का एक घाट है। घाट का नाम *हर की पौड़ी* इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ भगवान श्री हरि आये थे और इस स्थान पर उनके चरण पड़े थे। इसलिए यहाँ सूर्योदय से लेकर शाम की आरती तक का हर पल एक त्यौहार से कम नही लगता है दूर से आये श्रद्धालु चारों ओर से माँ गंगा मइया का नाम पुकारते रहते है।
यहां शाम की आरती का दृश्य बड़ा ही खूबसूरत होता है। श्रद्धालु आरती देखने के लिए यहां *हर की पौड़ी* गंगा घाट पर बनी सीढ़ियों पर बैठ जाते है। गंगा जल में दिखती आरती की अग्नि की ज्वालायें यूँ लगती है जैसे सेंकडों दीपक गंगा जल में डुबकियां लगा रहे हो। यह दृश्य इतना सुंदर लगता है कि सीधा आंखों के द्वारा मन में उतर जाता है।
यहीं नही *हर की पौड़ी* पर महिलाओं के लिए अलग स्नान घाट भी बना हुआ है जो कि निशुल्क है और इसका रख-रखाव गंगा समिति की ओर से किया जाता है।
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हरिद्वार की यात्रा और इतिहास | Haridwar ki yatra or Itihas
कहा जाता है हरिद्वार की यात्रा और इतिहास (Haridwar ki yatra or Itihas) महत्त्व बहुत पुराना और रहस्यमयी है । इस पवित्र स्थान को भारत की संस्कृति और प्राचीन सभ्यता का खजाना भी माना जाता है। हरिद्वार धार्मिक पहाड़ियों की गोद में बसा हुआ शहर है। हरिद्वार को 4 प्रमुख धामों तक पहुंचने का प्रवेश द्वार भी माना जाता है, क्योंकि यहीं से होकर श्रद्धालु प्रसिद्ध तीर्थ स्थल “बद्रीनाथ” व “केदारनाथ” धाम तक पहुंच पाते है। “बद्रीनाथ” यानी भगवान “विष्णु” और “केदारनाथ” यानी भगवान “शिव”। इसलिए इस जिले को “हरिद्वार” नाम दिया गया है।
हरिद्वार का प्राचीन पौराणिक नाम “माया” एवं “मायापुरी” था। जिसकी गिनती सप्तमोक्षदायिनी पुरियों में की जाती है। जो कि आज भी हरिद्वार के एक भाग में “मायापुरी” नाम से प्रसिद्ध है।
यह भी कहा जाता है कि पौराणिक समय में समुन्द्र मंथन के समय अमृत की कुछ बूंदे हरिद्वार में भी गिर गयी थी, इसी कारण हरिद्वार में बारह वर्ष में मनाये जाने वाला *कुम्भ का मेला* आयोजित किया जाता है, इसके अलावा अर्धकुम्भ मेला भी हर 6 वर्ष पर लगता है। साथ ही यहाँ सावन के समय पर बहुत विशाल कावडियों का मेला भी लगता है जिसमें लाखों संख्या में श्रद्धालु आते है और हरिद्वार में स्नान करके नीलकंठ महादेव के दर्शन करते है जो कि हरिद्वार से कुछ दूरी पर ऋषिकेश शहर में स्थित है।
कैसे पहुंचे | How to reach
हरिद्वार देश के सभी मुख्य शहरों के बस व रेलवे स्टेशनों द्वारा जुड़ा हुआ है।
हरिद्वार के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा *जॉली ग्रांट हवाई अड्डा* देहरादून है।
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