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Jeetu Bagdwal Love Story: जीतू बग्डवाल और भरणा की अमर प्रेम कहानी

Jeetu Bagdwal Love Story: जीतू बग्डवाल और भरणा की अमर प्रेम कहानी

Jeetu Bagdwal Love Story: जीतू बग्डवाल और भरणा की अमर प्रेम कहानी

Jeetu Bagdwal Love Story: उत्तराखंड के हरे-भरे पहाड़ों के बीच बसी एक अनोखी प्रेमकथा, जो रहस्य और षड्यंत्र के धागों से बुनी गई थी—जीतू बग्डवाल और भरणा की कहानी।

जीतू, अपनी बांसुरी की मधुर धुन से पहाड़ों की घाटियों को संगीतमय कर देने वाला एक आकर्षक युवक था। उसकी बांसुरी की तानें न केवल लोगों के हृदय को छूती थीं, बल्कि स्वर्गीय आछरियों (परियों) को भी सम्मोहित कर लेती थीं। परंतु, उसकी सबसे प्रिय धुन केवल एक ही हृदय को समर्पित थी—भरणा। भरणा, जिसकी आँखों में कुमाऊं के झीलों की गहराई थी और जिसकी मुस्कान किसी खिलते बुरांश जैसी। दोनों का प्रेम निश्छल था, लेकिन नियति ने उनके प्रेम पर काले बादल ला दिए थे।

“इस बार तुम्हारे परिवार में रोपाई के लिए कोई शुभ दिन नहीं है शोभनू। जीतू को कहना इस साल तो फसल नहीं बुत पाएगी”
जीतू बग्डवाल का छोटा भाई रोपाई का दिन निकलवाने के लिए पंडित जी के पास गया है. दरअसल, राजा मानशाह ने अपने चहीते जीतू बगड्वाल को कई खेत दिए थे और अब इनमें फसल लगाने का समय हो चला था लेकिन पंडित जी ने साफ कह दिया था कि उनके लिए इस बार रोपाई का कोई दिन शुभ नहीं है. 

लेकिन कहते हैं न हर रुकावट का एक समाधान होता है और यही समाधान देते हुए पंडित जी बोल पड़े,
“अरे, तुम नहीं कर सकते लेकिन तुम्हारी भुली कर सकती है. जाओ 6 गति अषाढ़ तक सोबनी को ले आओ और उसी दिन उसके हाथ से रोपाई शुरु कराओ”

शोभनू इस अच्छी खबर के साथ घर पहुंचा और जैसे ही उसने बताया कि भुली सोबनी को लेने उसके ससुराल जाना है, तो जीतू का दिल बैठ सा गया. क्योंकि रैंथल में ब्याही उसकी भुली से मिलने का मतलब था भरणा से भी मिलना, जो जीतू के मन में बसी थी.

पहाड़ों में प्रेम, जगंल में उगे किसी फूल की तरह होता है, जो उगता चुपके से है, लेकिन महका देता है पूरा जंगल. इसी महक से सराबोर जीतू बोल पड़ा की रैंथल वही जाएगा.

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कहते हैं, जब जीतू बगड्वाल ने ठानी की अपनी बहन को लेने वह जाएगा, तब बहुत सारे अपशकुन हुए. तैयारी के वक्त, उसकी बकरी तीलू ने छींक मारी. जिसे देखकर जीतू की माँ बोली, “यह अपशकुन है. रहने दे मत जा”. 

लेकिन जीतू पर भरणा से मिलने का ख्याल गोते खा रहा था और उसने माँ की बात को अनसुना किया. लेकिन माँ का मन बेचैन था और वह जीतू को बार-बार जाने से रोकती रही.. पर जीतू न रुका और चेहरे पर अपनी छबीली मुस्कान सजाए, हाथों में नौसुरी बांसुरी थामे निकल पड़ा रैंथल

यूं तो सफर का मकसद बहन को लाना था, लेकिन जीतू ही जानता था कि भरणा को देखना उसके लिए किसी लंबी यात्रा की मंज़िल तक पहुंचने जैसा है और इन्हीं ख्यालों में डूबा हुआ जीतू पहुंच जाता है आंछरियों के देश, खैट. 

प्रेम में डूबे हुए इंसान को हर चीज़ खूबसूरत लगती है और ऐसे में खैट की सुंदरता से वह कैसे दूर रहता. खैट की सुकून देती हवा, थके हुए जीतू को जैसे थपका रही हो. जीतू ने उस मीठी हवा की सांस भरी और एक पेड़ के नीचे बैठकर नौसुरी बांसुरी की तान छेड़ी. 

जीतू की बांसुरी की धुन पर पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा और मानो पत्थर-पत्थर भी नीच उठे. मौसम गुलाबी हो गया और आसमान सुनहरा. इसी बीच जीतू ने सुनी, घुंघरुओं की आवाज़ और आंखें खोली तो देखीं 9 सुंदर काया जो उसके चारों ओर झूम रही थीं. 

जीतू समझ गया कि उसकी बांसुरी की तान, आछरियों को उनके लोक से खींच लाई है. यह 9 वनदेवियां दिखने में बेहद खूबसूरत थी, इतनी खूबसूरत की वे हर खूबसूरत चीज़ को अपने साथ ले जाती थी, ताकि वह बचा रह सके. अक्सर कुछ बचाने के लिए, उसे सबसे दूर ले जाना पड़ता है.क्योंकि, जहां कोई दुनिया की धूरी में आया, वह मैला हो गया.

जीतू इस बात को बहुत अच्छे से जानता था. इस पल उसे माँ की टोक याद आईं और वह अपने कुल देवता को याद करने लगा.

आछरियों पर किसी देवता का बस नहीं था, क्योंकि यह जीतू ही था जिसने उन्हें बुलाया था. जीतू जान चुका था आछरियां उसके बिना नहीं लौटेंगी, वह उनसे मिन्नते करता है कि वे उसे छोड़ दें. लेकिन आछरी नहीं मानीं. हठ और निवेदन के बीच, निवेदन अक्सर हार जाता है, लेकिन वह  वह सबको इंतज़ार में छोड़कर इस तरह नहीं जा सकता था. 

पीछे बहुत सारे इंतज़ार थे…बंजर धरती फसल के इंतज़ार में थी, माँ अपशकुन के झूठ होने के इंतज़ार में, उसका खुद का मन भरणा के इंतज़ार में और भरणा की आँखें जीतू को देखने के इंतज़ार में.. इसलिए, वह उनसे निवेदन करना छोड़, मोहलत मांगता है. वह आछरियों से कहता है कि उसे 6 गति अषाढ के दिन ले जाएं, ताकि वह तब तक अपनी सारी ज़िम्मेदारियों को पूरा कर सके.

आछरियां मान जाती हैं और जीतू अपनी मृत्यु का समय तय कर, बड़े भारी मन से अपनी बहन सोबनी के घर पहुंच जाता है. वहां अपनी भरणा को देखकर जीतू के मन में दुख और खुशी दोनों का ज्वार उठने लगता है. वह जानता है कि भरणा से यह उसकी आखिरी मुलाकात है और इसलिए वह उसे बताने से नहीं चूकता कि वह उससे कितना प्रेम करता है. 

तेरा खातिर छोडि स्याळी बांकी बगूड़ी

बांकी बगूड़ी छोड़े, छोड़ी राणियों कि दगूड़ी

छतीस कुटुंब छोड़े बतीस परिवार

दिन को खाणो छोड़ी. छोड़ी रात की सेणी।

जीतू के अंदर सब कुछ बदल जाता है. बदले भी क्यों न, हम सब जानते हैं कि मृत्यु  सबसे बड़ा सच है, लेकिन फिर भी रोज़ ज़िंदगी का हर एक लमहा जीते हैं, लेकिन गर पता चल जाए कि मौत का दिन कौनसा है, तो सारे एल्गोरिदम बदल जाएंगे. ऐसा ही कुछ जीतू के साथ हो रहा था.

फिर दिन आया जब जीतू को अपनी बहन सोबनी को लेकर बागुड़ी लौटना था. वह भरणा से आखिरी मुलाकात करता है और कहता है-

डाळीयूँ मा तेरा फूल फुलला

खिलली बुरांसे की डाळी

ऋतू बोडि बोडी औली दगड्या

मी ऑन्दू नी ऑन्दू

कू जाणी.

जीतू बागुड़ी लौट आया है और देखते ही देखते 6 गति आषाढ का वह दिन आ जाता है, जब बंजर धरती में बीज डलने थे. 

गाँव, घर और खेतों में मानों जलसा था. बैल तैयार थे, हल तैयार था और छबीला जीतू, तैयार होकर भी तैयार न था। जीतू खेतों में हल लगाना शुरू करता है और तभी नौ बैणी आछरियां, वादे के मुताबिक उसे लेने आ जाती हैं और जीतू धरती के अंदर समा जाता है. 

कहते हैं उसके जाने के बाद परिवार पर बहुत मुश्किलें आईं, लेकिन जीतू ने मर कर भी उनका साथ न छोड़ा. वह न होकर भी अपने परिवार के साथ था. उस दौरान राजा ने जीतू की अदृश्य शक्ति को भांपा और ऐलान किया कि आज से जीतू को पूरे गढ़वाल में देवता के रूप में पूजा जाएगा. तब से जीतू बगड्वाल की याद में गाँव-गाँव में गीत गाए जाते हैं और उनकी कहानी का मंचन किया जाता है.

 

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