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Kafal Kya Hai? | What is Kafal ?

kafal fruit

pic source instagram - manisha negi

काफल क्या है? | What is Kafal?

काफल ( Kafal)  का वैज्ञानिक नाम : मिरिका एस्कुलेंटा है, उत्तरी भारत और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्र, मुख्यतः हिमालय के तलहटी क्षेत्र में पाया जाने वाला एक वृक्ष या विशाल झाड़ी है। ग्रीष्मकाल में इस पर लगने वाले फल उत्तराखंड, हिमाचल जैसे पहाड़ी इलाकों में विशेष रूप से लोकप्रिय है। काफल फल गर्मी में शरीर को ठंडक प्रदान करता है। गर्मी के मौसम में किसी भी बस स्टैंड से लेकर प्रमुख बाजारों तक में ग्रामीण काफल बेचते हुए दिखाई देते है साथ ही इस फल को खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।


काफल का इंग्लिश नाम क्या है ?| What is the English Name of Kafal?

काफल का अंग्रेजी नाम Bay-Barry है।




उत्तराखंड में काफल नही खाया तो क्या खाया | What did you eat if you did not eat kafal  fruit in Uttarakhand?

कहते है कि देवभूमि उत्तराखंड में आने वाले शख्स ने अगर यहाँ आकर फलों का स्वाद नहीं लिया तो क्या किया… उत्तराखंड में ऐसे ही फलों में एक बेहद लोकप्रिय नाम है काफल। काफल एक जंगली फल है इससे कहीं नहीं उगाया जा सकता,बल्कि यह अपने-आप उगता है और हमें मीठे फल खाने का सौभाग्य देता है..कुछ लोगों का कहना है कि काफल को अपने ऊपर बहुत नाज है और वह खुद को देवताओं के खाने योग्य समझता है, कुमाऊंनी भाषा में एक लोक गीत में काफल अपना दर्द बयां करते हुए कहता है- “खाणा लायक इंद्र का, हम छियां भूलोक आई पणां”…इसका अर्थ है कि हम स्वर्ग लोक में इंद्र देवता के खाने योग्य थे और अब भू लोक में आ गए।


काफल के पीछे एक मार्मिक कहानी है | Story behind Kafal

हालांकि ये कहानी बहुत कम लोगों को ही पता होगी, कहा जाता है कि उत्तराखंड के एक गांव में एक गरीब महिला और उसकी बेटी रहती थी उनके परिवार में वो दोनों ही एक दूसरे का सहारा थी, उस महिला के पास थोड़ी-सी जमीन के अलावा कुछ नहीं था जिससे बमुश्किल उनका गुजारा चलता था..गर्मियों में जैसे ही काफल पक जाते वह महिला ओर उसकी बेटी बेहद खुश हो जाया करते थे उससे घर चलाने के लिए एक आय का जरिया मिल जाता था इसलिए वह जंगल से काफल तोड़कर उन्हें बाजार में बेचा करती थी।



एक बार यूँही वह महिला जंगल से एक टोकरी भरकर काफल तोड़कर लाई..वह वक़्त सुबह का था उसे जानवरों के लिए चारा लेने जाना था इसलिए उसने काफल को शाम को बेचने का इरादा बनाया और अपनी मासूम बेटी को बुलाकर काफल की पहरेदारी करने को कहा, और हिदायत दी कि जब तक मैं जंगल से नहीं आती तब तक काफल मत खाना मैं खुद तुम्हें बाद में काफल खाने को दूंगी… माँ की बात मानकर बेटी काफलों की पहरेदारी करने करती रही, इसके बाद कई बार रसीले काफलों को देखकर उसके मन में लालच आया पर माँ की बात मानकर खुद पर काबू कर बैठे रही…दिन में जब माँ जंगल से वापस आयी तो देखा कि काफल का तिहाई भाग कम था और पास में ही उसकी बेटी सो रही थी।
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सुबह से काम पर लगी माँ को ये देखकर गुस्सा आ गया उसे लगा कि उसके मना करने के बावजूद भी उसकी बेटी ने काफल खा लिए है गुस्से में माँ ने घास का गट्ठर एक तरफ फेंका और सोती हुई अपनी बेटी की पीठ पर अपने हाथ से प्रहार किया बेटी सो रखी थी इसलिए वह सचेत अवस्था मे बेसुध हो गई.. बेटी की हालत देखकर माँ ने उससे खूब हिलाया लेकिन तक तक उसकी बेटी की मौत हो चुकी थी।

माँ अपनी बेटी की इस तरह मौत देखकर रोती रही..दूसरी तरफ शाम होते-होते काफल की टोकरी पूरी भर गई जब महिला की नजर टोकरी पर पड़ी तो उसे समझ में आया कि दिन की चटक धूप और गर्मी के कारण काफल मुरझा जाते हैं और शाम को ठंडी हवा लगते ही वह फिर ताजे हो जाते है अब मां को अपनी गलती पर बेहद पछतावा हुआ और वह भी उसी पल सदमें से गुजर गई।


चैत के महीने में चिड़िया कहती है- काफल पाको मैं नि चाख्यो | Kafal Pako Mai Nahi Chakhyo

कहा जाता है कि उस दिन के बाद से एक चिड़िया चैत के महीने में “काफल पाको मैं नि चाख्यो” कहती है जिसका अर्थ है कि ‘काफल पक गए,मैंने नहीं चखें’..और दूसरी तरफ चिड़िया गाते हुए उड़ती है ‘पूरे है बेटी पूरे है’..यह कहानी उत्तराखंड में काफल की अहमियत को बयां करती है आज भी गर्मी के मौसम में कई परिवार इसे जंगल से तोड़कर उसके बाद उसे बेचकर अपनी रोजी-रोटी की व्यवस्था करते है।


काफल से होता है कई चीजों का इलाज | Kafal Benifits for health

यह फल पकने के बाद बेहद लाल हो जाता है तभी इससे खाया जाता है वहीं दूसरी ओर ये पेड़ अनेक प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर है। दांतून बनाने और अन्य चिकित्सकीय कार्यां में इसकी छाल का उपयोग होता है। इसके अतिरिक्त इसके तेल और चूर्ण को भी कई तरह की दवाओं के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। आयुर्वेद में इसके अनेक चिकित्सकीय उपयोग बनाए गये हैं। आयुर्वेद में इसे कायफल के नाम से जाना जाता है। इसकी छाल में मायरीसीटीन,माय्रीसीट्रिन एवं ग्लायकोसाईड पाया जाता है।

इसके फलों में एंटी-आक्सीडेंट गुणों के होने का दावा किया जाता है जिनसे शरीर में आक्सीडेटिव तनाव कम होता तथा हृदय सहित कैंसर एवं स्ट्रोक के होने की संभावना कम हो जाती है। ये पेड़ अपने प्राकृतिक ढंग से ही उगता है। माना जाता है कि चिड़ियों और अन्य पशु-पक्षियों के आवागमन और बीजों के संचरण से ही इसकी पौधें तैयार होती है और सुरक्षित होने पर एक बड़े वृक्ष का रूप लेती है।



साथ ही ये फल पेट की कई बीमारियों का निदान करता है और लू लगने से बचाता है। काफल रसीला फल है लेकिन इसमें रस की मात्रा 40 प्रतिशत ही होती है। इसमें विटामिन सी, खनिज लवण, प्रोटीन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन और मैग्निशीयम होता है। यही नहीं काफल की छाल को उबालकर तैयार द्रव्य में अदरक और दालचीनी मिलाकर उससे अस्थमा, डायरिया, टाइफाइड जैसी बीमारियों का इलाज भी किया जाता है।

 


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