
उत्तराखण्ड अपनी आध्यात्मिकता के लिये विश्वभर में अपनी अलग पहचान रखता है। कहा जाता है कि यहॉ के कण कण में भगवान शिव निवास करते हैं। यही कारण हैं कि भगवान भोलेनाथ को यहॉ विभिन्न स्वरूपों व विभिन्न मान्यताओं के साथ पूजा जाता है। और मेलों का आयोजन किया जाता है। ऐसा ही एक मेला है काण्डा मेला।
पौडी जनपद के श्रीनगर क्षेत्र मे दिवाली के अगले दिन से दो दिनों तक काण्डा मेला का आयोजन किया जाता है। इस मेले में पहले पशु बली दी जाती थी लेकिन वर्तमान समय मे पशुबली को समाप्त कर भगवान शिव को मंजुघोष यानी ध्वज वाले निशान अर्पित किये जाते है। आखिर क्या है मंजुघोष ओर क्या है काण्डा मेले के आयोजन के पीछे की कहानी पढ़िए इस पोस्ट में ।
मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर, काण्डा
गढ़वाल की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाले श्रीनगर से महज 13 की किमी की दूरी पर विकासखंड कोट के अंतर्गत काण्डा गांव आता है। काण्डा गांव में हर साल दीपावली के अगले दिन दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला पौड़ी गढ़वाल के प्रसिद्ध मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित किया जाता है। इस मंदिर की आस्था के अनुसार यहाँ भक्त मनोकामना पूर्ण होने पर भगवान शिव को मंजुघोष अर्पित करते हैं।
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दूर-दूर गावों से लोग यहाँ पहुंचते हैं। झुमते नाचते लोग अपने इष्ट देवता की पूजा अर्चना के लिए काण्डा में मंदिर तक पैदल यात्रा करते हैं। सैकडो लोग मंजुघोष यानी भगवान को चढाए जाने वाले ऐसे निसान जिनमे ध्वज लगाये जाते है उन्हें लेकर काण्डा मेला में जाते है। ये निशान उस गांव का प्रतीक होते है जो मन्दिर मे पूजा अर्चना करने आते है । साथ ही जिन लोगो की मनोकामना पूरी होती है वह भी मंजुघोष लेकर मेले में पहुॅचते हैं और गांव की तरफ से भगवान शिव को मंजुघोष प्रदान करते हैं। ताकि भगवान शिव उनपर हमेशा अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें।
क्या है मंजूघोषेश्वर महादेव और काण्डा मेले की पीछे की कहानी ?
मंजूघोष महादेव मंदिर कामदाह डांडा पर स्थित है। आदिग्रंथ शिव पुराण के अनुसार इस पर्वत पर भगवान शंकर ने घोर तपस्या की थी। कामदेव ने उनकी तपस्या को भंग करने के लिए फूलों के वाण चलाकर उनके अंदर कामशक्ति को जागृत किया था। भगवान शंकर ने क्रोधित होकर कामदेव को भष्म कर दिया। तबसे इस पर्वत को कामदाह पर्वत कहा जाता है। जो कालांतर में काण्डा हो गया।
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वहीं एक और अन्य कथा प्रचलित है कि मंजू नाम की एक अप्सरा ने शक्ति प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की तपस्या की थी। मंजू पर श्रीनगर का राजा कोलासुर मोहित हो गया। जब वह अपने मकसद में सफल नहीं हुआ, तो उसने भैंसे का रूप धरकर ग्रामीणों पर हमला कर दिया। मंजूदेवी को यह सहन नहीं हुआ। उन्होंने महाकाली का रूप धारण कर कोलासुर का वध कर दिया। तब से इस कांडा मेला मनाया जाता है। काण्डा में मंजूघोषेश्वर महादेव, महाकाली और मंजू देवी के भी मंदिर स्तिथ है।
माना ये भी जाता है कि जब आदि गुरू शंकराचार्य केदारनाथ भगवान के पूर्नउत्थान के लिए आए तो उन्होने इस क्षेत्र को शिव क्षेत्र कहा और ग्रामीणो को यहा भव्य आयोजन करने के आदेश दिया। कालान्तर मे यहा बली प्रथा थी लेकिन बाद मे इस प्रथा को रोक लगा दी गई कहा जाता है कि इस मेले 12 पार्टियों के लोग यहा अपनी मनो कामना पूर्ति के लिए यहाँ आते हैं।
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