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मयूर ध्वज या मोर ध्वज | Mayur Dhwaj or Mor Dhwaj

उत्तराखंड के पुरातात्विक स्थलों में से एक मयूर ध्वज या मोर ध्वज सबसे महत्वपूर्ण है। इसी पुरास्थल से कुषाण कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। चीनी यात्रा ह्वेनसांग की भारत यात्रा के दौरान उन्होंने अपने यात्रा वृतांत में इस नगर का वर्णन किया है। आइए जानते हैं।

मयूर ध्वज या मोर ध्वज | Mayur Dhwaj or Mor Dhwaj

मयूर ध्वज को मोर ध्वज भी कहा जाता है। यह एक प्राचीन पुरातत्व स्थल है। इस स्थल का संबंध मायापुर यानि वर्तमान हरिद्वार से जुड़ा है। माना जाता है कि यह स्थल पूर्वकाल में एक बहुत समृद्ध नगर था। जिसका जिक्र चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपनी यात्रावृतांत में किया है। इस स्थल से पांचवी सदी के अवशेष मिले हैं।

मयूर ध्वज या मोर ध्वज की खोज

ब्रिटिश पुरातत्व खोजकर्ता कनिंघम ने मयूर की पहचान मायापुर वर्तमान हरिद्वार से की है। भविष्य पुराण में भी मयूर ध्वज एंव मयूर पुराण नामों का उल्लेख है। मयूर कण्वाश्रम के निकट वर्तमान मोर ध्वज है।
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मोर ध्वज का उत्खन्न मरखाम ने 1887 में किया था। यहाँ से 23 अण्डाकार मृण्यफलकों की खोज की गई। इस मृण्यफलकों में योगासन मुद्रा में बुद्ध पार्श्व में अवलोकितेश्वर तथा ब्रजपाणि उत्कीर्ण है। इस स्थल से आठ मृण्यमुद्राएँ भी प्राप्त हुई हैं। इससे पता चलता है मयूर ध्वज में बौद्ध धर्म का अच्छा प्रचार-प्रसार था।

मयूरध्वज से मिले सिक्के व अवशेष

मयूरध्वज (Mayur Dhwaj or Mor Dhwaj) से प्राप्त अवशेषों में कुषाण कालीन मुद्राएँ, भवन रक्षा दीवार, कुएँ, मंदिर एंव स्तूप प्राप्त हुए हैं। इस स्थल से अनेक महत्वपूर्ण मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जिनमें बुद्ध की मूर्तियां भी महत्वपूर्ण हैं। वहीं पशुओं की मृण्यमूर्तियाँ भी इस स्थल से प्राप्त हुई हैं।

 


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