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पिरान कलियर शरीफ दरगाह | Piran Kaliyar Hindi

पिरान कलियर शरीफ दरगाह | Piran Kaliyar Hindi

दोस्तों इस पोस्ट में हम रुड़की में स्तिथ पिरान कलियर शरीफ दरगाह (Piran Kaliyar) के बारे में जानकारी देंगे। यह जानकारी आपकी हरिद्वार यात्रा के समय काफी काम आएगी अतः इस पोस्ट को अंत तक पढ़ें और जानकारी को शेयर करें। 

पिरान कलियर शरीफ दरगाह | Piran Kaliyar

भारत में हिंदू मुस्लिम की एकता को दर्शाने वाले कई धार्मिक स्थल हैं। फिर चाहें वो ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह हो या फिर बाबा रामदेव जी का रुणिचा धाम। वहीं एक ऐसा ही धार्मिक स्थान देवभूमि उत्तराखंड में मौजूद है जिसे पिरान कलियर शरीफ या कलियर दरगाह साबीर पाक के नाम से जाना जाता है। ये उत्तराखंड के रुड़की शहर से करीब 8 किलोमीटर और हरिद्वार से 24 किलोमीटर पर स्थित है। आपको बता दें अलाउद्दीन अली अहमद साबिर कलियरी को समर्पित ये दरगाह मुसलमानों के लिए एक सम्मानित दरगाह मानी जाती है।




इस जगह पर मुस्लिम और हिंदू दोनों धर्म के लोग आकर मन्नतें मांगते हैं। ऐसी मान्यता है कि रूड़की के पास एक कलियारी नामक गांव में स्थित ये दरगाह एक चमत्कारी दरगाह है। साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि यहां पर आकर लोगों को भूत-प्रेत से भी छुटकारा मिलता है। ये दरगाह काफी प्राचीन और ऐतिहासिक है। यहां हिंदू मुस्लिम में कोई भेदभाव नहीं होता और दोनों ही धर्मों के लोग इस दरगाह पर चादर चढ़ाने और मन्नत मांगने आते हैं। ऐसे में ये स्थान देश की एकता और अखंडता का एक जीता जागता उदाहरण है।

कलियर शरीफ का इतिहास

आपको बता दें कि अलाउद्दीन साबिर पाक का जन्म 19 रबी, 592 हिजरी 1196 में मुल्तान जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम सैयद अब्दुल रहीम और माताजी का नाम जमीला खातून था, जोकि बाबा फरीद की बड़ी बहन थी।उसके बाद जब अलाउद्दीन साबिर के पिता की मौत हो गई, तब उनकी मां जमीला ने उन्हें 1204 में देख- रेख के लिए बड़े भाई बाबा फरीद के पास भेज दिया। साथ ही उन्होंने बाबा फरीद से अपने बेटे अलाउद्दीन साबिर का ध्यान रखने के लिए कहा लेकिन छोटी उम्र में ही फरीद ने अलाउद्दीन को लंगर का इंचार्ज नियुक्त कर दिया।
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ऐसा कहा जाता है कि कुछ समय बाद वो जंगल में रहने लगे और वही उन्हें साबिर नाम मिला। साथ ही इस्लाम धर्म का प्रचार करते हुए कुछ समय के पश्चात वो कलियर में आ गए।आपको बता दें कलियर आने के बाद उन्हें बाबा फरीद ने कलियर शरीफ कहा। जिससे उन्हें इस नाम से भी जाना जाने लगा। यही नहीं उन्होंने 1253 में कलियर शरीफ की रक्षा में अपने संपूर्ण जीवन को इस्लाम धर्म के प्रति समर्पित कर दिया और अपने आखिरी समय तक कलियर शरीफ में ही रहे। फिर इनका निधन 13वीं रबी 690 हिजरी 1291 में हुआ।

दरगाह से जुड़ी खास बातें

यहां की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस जगह ना सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोग आते हैं बल्कि सभी धर्मों के लोग यहां माथा टेकते हैं। साथ ही यह कई सूफी संत और मुस्लिम फकीरों की दरगाह भी है, जिनमें इमाम साहब की दरगाह, नमक वाला पीर, हजरत किल्की साहब, अब्दाल साहब व नौ गजा पीर कलियर जियारत का विशेष रुप से उल्लेख किया गया है। आपको बता दें यहां आने वाले जियारिन के लिए एक तरह के सामूहिक भोज का भी आयोजन किया जाता है।
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वही दो नहरों के बीच स्थित इस दरगाह की सुंदरता के विषय में जितना कहा जाए उतना कम है। इस जगह की शोभा देखते ही बनती है।गौरतलब है कि हजरत अलाउद्दीन साबिर पाक की जो दरगाह है वह यहां का सबसे आवश्यक धार्मिक पर्यटन स्थल है, वही दरगाह में अगर प्रवेश करना है तो मुख्य दरगाह में जायरीन के लिए दो मुख्य द्वार बने हैं।

दरगाह के दोनों द्वारों के बीच में साबिर पाक की मजार बनाई गई है। इस मजार में साबिर के मृत शरीर को दफनाया गया था। वहीं लोग यहां चादर और फूल चढ़ाने आते हैं। आपको बता दें कि लोग इस दरगाह में भूत-पिशाच, बुरी आत्मा और रूहों से छुटकारा पाने के लिए आते हैं। यही इस जगह की विशेष खासियत है। साथ ही ऐसा कहा जाता है कि इस दरगाह में एक ऐसी अलौकिक शक्ति है, जो प्रेत आत्माओं को फांसी पर लटका देती है और जो भी व्यक्ति पीड़ित होता है, उसे प्रेत से निजात मिल जाता है।

यहां ऐसी मान्यता भी है कि इस दरगाह में एक बड़ा सा गूलर का पेड़ है जिस पर लोग अपनी अधूरी इच्छाएं लिखकर पर्ची बांधते हैं। साथ ही दरगाह में एक मस्जिद है जिसे साबरी मस्जिद कहा जाता है। गुरुवार के अवसर पर यहां कव्वाली गायन होता है, जिसका सभी पर्यटक लुफ्त उठाते हैं।




कैसे जाएं पीरान कलियर शरीफ

अगर आप कलियर शरीफ की दरगाह जाना चाहते हैं तो आप सड़क मार्ग से बस, रेल या हवाई जहाज से भी पहुंच सकते हैं। वहीं अगर आप लंबी दूरी से आए हैं, तो निकट का हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है जोकि देहरादून में स्थित है। यहां से इस स्थान की दूरी करीब 61 किलोमीटर हैं।

अगर आप रेल मार्ग के जरिए इस दरगाह तक पहुंचना चाहते हैं, तो रेल मार्ग से यह स्थान प्रत्यक्ष रूप से नहीं जुड़ा है। आप नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार से इस जगह तक पहुंच सकते हैं। स्टेशन से कलियर शरीफ की दूरी करीबन 27 किलोमीटर है।

अगर आप बस के द्वारा यहां पहुंचना चाहते हैं तो देश की सभी जगहों से हरिद्वार या रुड़की पहुंच सकते हैं। उसके बाद आप बड़ी आसानी से दरगाह तक पहुंच सकते हैं।

आपको बता दें इस दरगाह के पास ही एक और दरगाह बनी हुई है, जो हजरत साबिर पाक के मामू दरगाह हजरत इमाम साहब की कही जाती है। साथ ही ये नहर की दूसरी ओर स्थित है। वही इस दूसरी दरगाह में प्रवेश करने के लिए एक सुंदर सा प्रवेशद्वार भी बना हुआ है, जिससे कुछ दूरी तक आगे बढ़ने पर इमाम साहब की दरगाह के दीदार होते हैं। यहां से दरगाह का कुछ अलग ही नजारा दिखाई देता है. दरगाह में प्रवेश द्वार पर हमेशा मंदिरों की तरह नगाड़े बचते ही रहते हैं। इस प्रकार, ये दरगाह राष्ट्रीय एकता में अनेकता का अनूठा उदाहरण है।

 


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Deepak Bisht

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