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रूपकुंड – हड्डियों वाली एक रहस्यमयी झील | Roopkund Lake

रूपकुंड

उत्तराखंड रहस्यों से भरा है यहां पाताल भुवनेश्वर जैसे रहस्यमय मंदिर हैं तो बिसरी ताल जैसे अद्भुत झील, उन्ही में शामिल है उत्तराखंड के चमोली जनपद में स्तिथ नर कंकालों से भरी एक झील रूपकुंड (Roopkund Lake)। रूपकुंड उत्तराखंड की सबसे पवित्र यात्रा नंदादेवी देवी यात्रा से ही विश्वपटल पर आयी है। उसी का परिणाम है कि आज हजारों ट्रेकर्स इस रहस्मय झील को देखने निकल पड़ते हैं। तो क्या है इस रहस्मय झील की कहानी और इसकी यात्रा का उत्तम समय आइये जानते हैं।


रूपकुंड झील| Roopkund Lake

उत्तराखंड के चमोली जिले के देवाल ब्लॉक में रूपकुंड स्थित है । एक ऐसी झील जो हिमालय के बीच बसी हुई है। यह झील 16,470 फीट ऊंचे हिमालय पर है। यह झील बहुत गहरी है। इस झील को रुपकुंड (Roopkund Lake) के नाम से जाना जाता है। यह घाटी हिमालय की दो चोटी त्रिशूल और नंदघुंगटी के पास स्थित है। चारों तरफ से यह झील बर्फ और ग्लेशियर से घिरी हुई है। यहां कुछ मंदिर और छोटी झीले भी है, जो इस जगह पर चार चांद लगा देती है। सोलो ट्रिप हो या समूह पर्यटकों के लिए यह जगह आकर्षण का केंद्र रहा है।



यह झील सर्दियों में बर्फ से ढ़की होती है और गर्मियों में धीरे-धीरे पिघलने लगती है। यहां दूर-दूर से लोग ट्रैकिंग के लिए आते है। सुना है कि यह झील काफी रहस्य भरी है, झील में कई सैकड़ों साल पहले के कंकाल आज भी जब झील गर्मियों में पिघलती है, तो कंकाल ऊपर दिखाई देने लगते है। यह बात कहा तक सच है ये तो तब ही पता चलेगा जब आप वहां जाकर प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेंगे। यहां आसपास के झरनों का संगीत पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।


क्यों पड़ा इस झील का नाम रूपकुंड

 

रूपकुंड - हड्डियों वाली एक रहस्यमयी झील | Roopkund Lakeकहा जाता है कि कैलाश जाते समय जब माँ नंदा को रूपकुंड के पास तेज़ प्यास लगी, उन्होंने भगवान शिव को इसके बारे में बताया जिसके बाद भगवान शिव ने अपने त्रिशूल को यहाँ पर फेंका, जिसके बाद यहाँ पर पानी निकल आया। पानी पीते हुए माँ पार्वती ने उस कुंड में अपना चेहरा देखा तो कुंड बहुत भा गया, उसके बाद से ही इस कुंड को *रूपकुंड* (Roopkund Lake) कहा जाने लगा।



लोककथाओं में ही नहीं यहाँ के गीतों और जागरों में भी इस रहस्यमयी रूपकुंड का ज़िक्र है। यहाँ के स्थानीय निवासी रूपकुंड की पूजा-अर्चना करते है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन यहाँ गाँव के लोग सुबह-सुबह नंगे पांव रूपकुंड के लिए निकल पड़ते है, यहाँ के लोग माँ नंदा देवी की पूजा करते है।


रूपकुंड झील को कंकाल झील भी कहा जाता है

 

रूपकुंड - हड्डियों वाली एक रहस्यमयी झील | Roopkund Lakeइसके अलावा भी रूपकुंड की एक और कथा है एक बार कन्नौज में भयंकर आकाल पड़ा। इससे डर के राजा यशधवल ने नंदा देवी की मन्नत की। राजा यशधवल अपने राज्य से नंदा देवी राजजात के लिए अधिक बल के साथ प्रस्थान किया। और साथ गढ़वाल हिमालय के इस पावन भूमि में धार्मिक यात्राओं के नियमों का उल्लंघन किया। राजा अपनी गर्भवती रानी और दास-दसियों के साथ त्रिशूली पर्वत होते हुए नंदा देवी मार्ग पर स्थित रूपकुंड में पहुंचे। नंदा देवी के नाराज़ होने से रास्ते में अचानक भयंकर बारिश होने लगी, राजा यशधवल उस तूफान में अपने परिवार सहित फंस गए और सभी वहीं दब कर मर गए। लोगों के अनुसार 7 दशकों तक यहाँ उन्हीं लोगों के नरकंकाल मिल रहे है।


झील के आसपास यूंही नरकंकाल पड़े रहते है। इसलिए इसे कंकालों वाली झील भी कहा जाता है। देश ही नहीं विदेशी पर्यटकों के बीच भी यह रहस्यमयी कुंड में मौजूद हजारों नरकंकालों का रहस्य एक पहली बना हुआ है। अभी तक हमें यहाँ के नरकंकालों की जानकारी केवल यहाँ के गीतों और जागरों से ही प्राप्त हुआ है। कई दशकों से वैज्ञानिक भी इसकी जांच कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक लोगों का मानना था कि ये कंकाल कश्मीर के जनरल जोरावरसिंह और उनके आदमियों की है। जो कि 1841 में तिब्बत के युद्ध से लौट रहे थे, और 1942 में पहली बार एक ब्रिटिश फॉरेस्ट गॉर्ड को यह कंकाल दिखे थे, उस समय कहा गया था कि यह जापानी सैनिकों के कंकाल है जो दूसरे विश्व युद्ध में इस रास्ते से होकर जा रहे थे और यहीं फंसे रहे गए।

रिसर्च के मुताबिक ऐसा माना गया है कि यह सभी कंकाल एक ही समय के नहीं बल्कि अलग-अलग समय के है और अलग-अलग नस्लों के है। रूपकुंड की यह रहस्यमयी कथा उत्तराखंड की लोककथाओं का हिस्सा बन चुकी है। कहानियाँ जो भी हो रूपकुंड का नरकंकालों वाली झील नाम अब तब तक नहीं बदलने वाला जब तक वैज्ञानिकों की रिसर्च इस रहस्यमयी झील का एक ठोस सबूत पेश नहीं कर देते।





कैसे पहुंचे रुपकुंड झील | How To Reach RoopKund Lake

 

सबसे पहले हरिद्वार जाना होगा, इसके बाद ऋषिकेश फिर श्रीनगर गढ़वाल। इसके बाद कर्णप्रयाग फिर थराली। वहां से देबाल और फिर वांण-बेदनी बुग्याल फिर आप बखुवाबासा पहुंच जाएंगे। जहां से आपको केलू विनायक जाना होगा। फिर आप पहुंच जाएंगे अपनी रोमांचित डेस्टिनेशन रूपकुंड (Roopkund Lake)।
इसके अलावा अगर काठगोदम से जाना चाहते हो तो पहले अल्मोड़ा फिर ग्वालदाम। वहां से मुंदोली गांव, फिर वांण गांव। इसके बाद बेदनी बुग्याल फिर केलु विनायक और फिर आप पहुंच जाएंगे रुपकुंड।

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