रुद्रप्रयाग– 16 सितंबर 1997 को पौड़ी तथा चमोली से निर्माण किया गया, उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल का एक जिला जो मंदाकिनी तथा अलकनंदा के संगम पर बसा है।
रुद्रप्रयाग का इतिहास बताता है की इसे पूर्व में पुनाड नाम से जाना जाता था ।
रुद्रप्रयाग का इतिहास | Rudrapraprayag Ancient History
रुद्रप्रयाग का पौराणिक इतिहास बहुत पुराना है। पौराणिक कथा के अनुसार नारद मुनि ने संगम के इसी तट पर एक टांग पर खड़े होकर कड़ी तपस्या की थी । जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नारद जी को रुद्र रुप में दर्शन दिये और उनकी तपस्या से खुश होकर उन्हें वीणा दी ।मंदाकनी और अलकनंदा दो बहनों के मिलन पर बसा यह शहर तभी से रुद्रप्रयाग के नाम से जाना जाता है । इतिहास में यह जिला टिहरी नरेश शासकों तथा सन 1804 में गोरखाओं व 1815 में अंग्रेजों के अधीन भी रहा है ।पर रुद्रप्रयाग के निर्माण और विकास में श्री 108 स्वामी सच्चीदानंद जी महाराज का विशेष योगदान है । उन्होंने ही रुद्रप्रयाग शहर के हाँस्पिटल और सरकारी इंटर काँलेज की नींव रखी थी । तभी शहर के अधिकांश इमारतों व सरकारी संस्थानों में 108 स्वामी सच्चीदानंद जी का नाम उल्लेखित मिलता है ।
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रुद्रप्रयाग चार धाम यात्रा में विशेष महत्व रखता है, यहीं से हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंदिरों केदारनाथ व बद्रीनाथ का रास्ता अलग अलग होता है ।
रुद्रप्रयाग से महज कुछ ही किमी दूर कोटेश्वर महादेव का मंदिर तथा उम्रनारायण जी का मंदिर स्थित है ।
इतिहास के अनुसार रुद्रप्रयाग को शिव की भूमि भी कहा जाता है । क्योंकि शिव के अधिकांश मंदिर रुद्रप्रयाग में हैं, जिनका समाज में विशेष महत्व है । जिनमें शामिल है तुंगनाथ, मदमहेश्वर , रुद्रनाथ, केदारनाथ का प्रमुख स्थान है । इसके अलावा ऊखीमठ में स्थित अोंकारेश्वर मंदिर भी बहुत धार्मिक महत्व रखता है । यहीं पर मदमहेश्वर की उत्सव डोली शीतकाल में रखी जाती है । इस डोली के आगमन पर बहुत सुन्दर मेला लगता है जिसे मदमहेश्वर मेले के नाम से भी जाना जाता है ।
रुद्रप्रयाग सांस्कृतिक रुप से भी मन को अभिभूत कर लेता है, शीतकाल में पुनाड में होने वाला पांडव नृत्य , महाभारत की कथा को सजीव कर लेता है ।यह नृत्य पांडवों के महाभारत से लेकर स्वर्गारोहण तक की कथा का ढोल दमोऊ तथा जागर (गायन विधा) में मंचन करता है । कहा जाता है कि जब पांडव स्वर्गरोहण के लिए जा रहे थे तो उन्होंने अपने विधवंशक हथियारों को उत्तराखंड के वासियों को सौंप दिया था, तभी मंदाकिनी व अलकनंदा के किनारे स्थित क्षेत्रों में पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है। पांडवों के कारण ही यहां चक्रव्यूह, गरुड़ व्यूह तथा कमल व्यूह का मंचन भी किया जाता है । रुद्रप्रयाग का इतिहास बताता है कि इस विधा का ज्ञान बस उत्तराखंड के लोगों को ही पांडवों ने दिया था ।
रुद्रप्रयाग में स्थित चौराबाडी ग्लेशियर व चौखंभा पर्वत श्रेणियाँ प्राकृतिक सौंदर्य से भी मन को मोह लेती हैं। यहाँ मौजूद विभिन्न पर्यटन स्थल शीतकाल में भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं तथा यहाँ मौजूद ताल भी रुद्रप्रयाग की खूबसूरती को चार चांद लगा देते हैं ।
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