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टिंचरी माई – उत्तराखंड में शराब मुक्ति की प्रेणता | Tinchari Mai

वो कहावत तो सुनी ही होगी सूरज अस्त पहाड़ी मस्त। नहीं सुनी है तो अब सुन लीजिये, क्योंकि पहाड़ों में शराब उस कडवी दवा की तरह है जिसे तो पसंद कोई नहीं करता लेकिन लेनी सबको होती है। ओर शराब के इसी करोबार को खत्म करने, शराब बंदी को लेकर न जाने पहाड़ में कितने ही आंदोलन हुए। उनमें से एक मुहिम वह भी है जिसने दिपा को टिंचरी माई बना दिया। कौन है दीपा नौटियाल ? कौन है टिंचरी माई (Tinchari Mai)

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कौन थी टिंचरी माई / ठगुली देवी ? | Who is Tinchari Mai / Thaguli Devi 

पहाड़ की वह बेटी जिसने 2 साल की उम्र में अपनी माँ को खो दिया। पांच साल की उम्र में पिता का देहांत हो गया। सात साल की उम्र में शादी हुई तो 19 साल की उम्र में विधवा हो गई। पहाड़ की तरह दिखाई देने वाली यह कहानी है दीपा नौटियाल की।  इनका एक अन्य नाम ठगुली देवी भी है जो अपने संघर्षो के बूते टिंचरी माई के नाम से उत्तराखण्ड में प्रसिद्व हुई।
दीपा नौटियाल या ठगुली देवी का जन्म 1917 में पौडी गढवाल के थलीसैण तहसील स्थित मंज्युर गांव में हुआ था। दीपा नौटियाल ने इन 19 सालों में जिंदगी के न जाने कितने थपेडे सहे। लेकिन कभी खुद को टुटने नहीं दिया। हमेशा पहाड़ की भांती खुद को अडिग ओर मजबूत रखा।
दीपा नौटियाल के पति आर्मी में थे ओर डयूटी के दौरान ही वीरगति को प्राप्त हुए। पति के जाने के बाद दीपा नौटियाल बिल्कुल अेकेली हो गई। ससुराल वालों के न अपनाने के कारण विधवा दीपा नौटियाल बंजारों की तरह अपना जीवन यापन करने लगी। इस बीच वे एक मंदिर में आश्रय लेकर रहने लगीं. यहाँ दीपा की मुलाकात एक सन्यासिन से होने के कारण उनकी कहानी ने नया मोड ले लिया।
सन्यासिन के सानिध्य में दीपा ने संन्यास लेने का फैसला किया.। ब्रहम जीवन में पहुचने के बाद दीपा को नया नाम दिया गया इच्छागिरी माई सन्यासन बनने के बाद इच्छागिरी माई यानि दीपा नौटियाल जगह-जगह घूम कर लोगों की समस्याओं, समाज सेवा का कार्य करने लगी। वहीं उन्होनें गाँव में विद्यालय का निर्माण भी करवाया. इसके लिए उन्होंने चंदा कर रुपया भी जमा किया। उनके द्वारा बनाया गया स्कूल आज इंटरमीडिएट स्कूल बन चुका है।




जब तत्कालीन प्रधान मंत्री नेहरू से जा मिली टिंचरी माई

सन्यासनी बनने के बाद टिंचरी माई (Tinchari Mai) का रहने का एक स्थान नियत नहीं था वो जब कोटद्वार के भाबर सिगड़ी गाँव में आई तो यही अपने हाथों से एक कुटिया बनाकर रहने लगी। मगर इस गांव को जल्द ही पानी की समस्या ने घेर लिया। पानी के अभाव में गांव की महिलाएं गांव से बहुत दूर पानी लाने के लिए बाध्य थी। इस जटिल समस्या को देखकर टिंचरी माई ने स्वयं शासन -प्रसासन के चक्कर लगाए। मगर जब किसी ने भी उनकी बात नहीं सुनी तो वो दिल्ली पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के आवास के बाहर बैठ गई। Tinchari Mai
जब नेहरू जी अपने आवास स्थल से जाने लगे तो टिंचरी माई उनके काफिले के सामने बैठ गयी। ये देखकर नेहरू जी के सुरक्षा कर्मी उन्हें भगाने लगे और जबरदस्ती उन्हें हटाने लगे। जब नेहरू जी ने एक सन्यासनी महिला को उनसे वार्ता करने की जिद्द देखि तो वे स्वयं टिंचरी माई के पास गए और उनका हाथ पकड़ कर उनकी समस्या जाननी चाही। उस समय टिंचरी माई तेज बुखार से तप रही थी। यह पाकर नेहरू जी उनसे हॉस्पिटल जाने का भी आग्रह किया मगर टिंचरी माई ने मना करके उनकी क्षेत्र की समस्या के समाधान करने को कहा। फिर नेहरू जी के अस्वाशन के बाद वो गांव लौट आयी। नेहरू जी ने टिंचरी माई से किया अपना वादा निभाया और जल्द ही उनके गांव में पानी की सुचारु व्यवस्था की गयी। Tinchari Mai




पहाड़ ओर पहाड सा संघर्ष टिंचरी माई का

उम्र के बढते पडाव के साथ उनकी चुनौतियाॅ भी बढने लगी। कुछ समय उन्होनें बद्रीनाथ, केदारनाथ में बीतायें। इसके चार साल बाद वे एक बार फिर पौड़ी चली आयीं। पौडी पहुॅचकर उन्होनें देखा कि लोग नशे की लत में किस तरह डूबे हुये हैं। नशे में पुरूष महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार करते और मार पिटाई करते। सोचने लगी की आखिर पहाड़ में ये नशे की बिमारी किस तरीके से खत्म होगी।
काफी सोच विचारने के बाद इच्छागिरी माई (दीपा नौटियाल) उन्होनें फैसला किया कि वह खुद ही इसके लिये आगे आयेंगी। इच्छागिरी माई (दीपा नौटियाल) नशे के कारोबारी की शिकायत करने अधिकारियों के पास पहुँच गयीं। बावजूद कोई भी कार्यवाही नशे का कारोबार करने वालों के खिलाफ नहीं हुई। जिसके बाद इच्छागिरी माई (दीपा नौटियाल) ने खुद ही कुछ करने का निर्णय ले लिया। Tinchari Mai
उन दिनों नशाबंदी के कारण रासायन न होने के चलते पहाड़ों में आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग किया जाता था। इन्हीं आयुर्वेदिक दवाओं में टिंचरी भी शामिल था। टिंचरी की अधिक मात्रा डालने से यह द्रव शराब सा नशा देता था। जब अधिकारियों ने इच्छागिरी माई (दीपा नौटियाल) की एक न सुनी तो वह खुद ही शराब बनाने वाले के यहाॅ आ धमकी। साथ में मिट्टी का तेल अपने साथ लेकर गई। और पूरी दुकान में छिड़क कर आग लगा दी।
इस घटना ने आस पास के क्षेत्र में इच्छागिरी माई (दीपा नौटियाल) की एक अलग छवी बना दी।  इसी घटना के बाद इच्छागिरी माई (दीपा नौटियाल) का नाम टिंचरी माई हो गया। फिर क्या था टिंचरी माई ने पीछे देखना छोड नशाबंदी के लिये प्रयास करती रही।  कोशिश करती रही की पहाड़ नशे की जद से बाहर निकले। उनके इस संघर्ष में कई लोगों से उनकी झड़प भी हो जाती थी। लेकिन उन्होनें अपने आखरी समय तक नशे के खिलाफ आवाज उठाई। Tinchari Mai




जुनून जिसने इतिहास के पन्नों में किया अमर
एक पांच साल की वह लडकी जिसने दुनियादारी सीखने से पहले ही उसे दुनिया में लाने वालों को खो दिया। वह एक दिन इतिहास में अमर हो जायेगी किसी ने सोचा नहीं होगा। टिंचरी माई (दीपा नौटियाल) की कहानी प्रेरणा देती है कि आप पर कितने ही परेशानियाॅ क्यूं न आ जाये अगर आत्मविश्वास और कुछ कर गुजरने की क्षमता आपके भीतर हैे तो आप कुछ भी कर सकते हो। जमाने के सामने एक मिशाल पेश कर सकते हो जरूरत है तो केवल व केवल कभी न हार मानने वाले जुनून की।

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Kamal Pimoli

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