दीपक बिष्ट
आपने अकसर कमल के पुष्पों के बारे में सुना होगा, और यह कमल पुष्प भारत के एक प्रसिद्ध राजनैतिक दल का चुनाव चिह्न भी है। कमल कीचड़ में खिलता है और बहुत सुंदर पुष्प है।
कमल की विवेचना हिन्दू (सनातन) धर्म के देवताओं से भी की जाती है। उदाहरणार्थ - कमल नयन यानि भगवान श्रीराम।
मगर क्या आपने उत्तराखंड और हिमालय की तलहटी में खिलने वाले बह्मकमल के बारे में जाना है।
उत्तराखंड के हर भरे जंगलों से उच्च स्तरीय हिमाच्छादित पर्वतों की तलहटी में एक खूबसूरत पुष्प मिलता है। जिसे ब्रह्मकमल के नाम से जाना जाता है।
बह्मकमल दिव्य सुगंध और सर्वाधिक सुंदर पुष्प है। यही नहीं पौराणिक भारतीय लेखों में भी बह्मकमल का जिक्र मिलता है।
उत्तराखंड के वासियों के लिए इसलिए भी यह पुष्प खास है क्योंकि भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा केदारनाथ के चरणों पर इस पुष्प को चढ़ाया जाता है चूंकि यह अत्यंत दुर्लभ है इसलिए इस पुष्प की महत्ता भी बढ़ जाती है।
ब्रह्मकमल में बैंगनी रंग के पुष्प गुच्छ होते हैं जो श्वेत पीत पत्रों (सफेद-सुनहरे पत्तों) के आवृत्त में घिरे रहते हैं ।
ब्रह्मकमल की खास बात यह है कि हर मौसम में पाया जाता है। ब्रह्मकमल का वैज्ञानिक नाम Saussurea Obvallata है।
ब्रह्मकमल के पौधे की सामन्य तो ऊंचाई 20 सेंटीमीटर होती है। जबकि पुष्प गुच्छ 1 से 3 सेंटीमीटर लंबा होता है।
विश्व भर में इस फूल की 24 से अधिक प्रजातियां पता लगाई गई है वहीं उत्तराखंड में इस फूल की 24 प्रजातियां पाई जाती हैं।
ब्रह्मकमल को स्थानीय भाषा में कौल पदम भी कहा जाता है।
वर्षा ऋतु में यह पुष्प अपने पूर्ण यौवन पर खेल कर समस्त वातावरण को अपनी दिव्य सुगंध से सुशोभित कर देता है।
अगस्त- सितम्बर के महीने में जब ब्रह्मकमल अपने पूरे यौवन पर होता है तभी नंदादेवी यानी नंदाष्टमी के पर्व पर इसे देवालयों में अर्पण किया जाता है
ब्रह्मकमल (Braham kamal) पुष्प का औषधीय महत्व भी कम नहीं है।
इसकी जड़ों को पीसकर उसके लेप का उपयोग हड्डी टूटने या कटे हुए भागों को ठीक करने आदि में होता है
साथ ही उदर रोगों तथा मूत्र विकार में भी यह पुष्प औषधि रूप में प्रयुक्त किया जाता है।