गढ़वाल रानी कर्णावती की कहानी है जिसने मुगलों को बेइज्जत करके अपनी सीमा से बाहर खदेड़ा

दीपक बिष्ट

उत्तराखण्ड के इतिहास में ना सिर्फ इस क्षेत्र का धार्मिक व पौराणिक महत्व है बल्कि यहाँ रहने वाली वीरांगनाओं के कारण भी यह प्रदेश जाना जाता है।

फिर वो चाहे तीलू रौतेली हो या फिर जिया रानी। उन्हीं में एक शामिल है एक वीरांगना जो नक कट्टी रानी के नाम से प्रसिद्ध हैं।

उत्तराखण्ड के प्रमुख इतिहासकार शिव प्रसाद डबराल ने इन्हें गढ़वाल की रानी कर्णावती को नकटीरानी संबोधित किया है।

रानी कर्णावती गढ़वाल के राज महिपत शाह की पत्नी थी तथा पृथ्वी शाह की माँ थी।

महिपत शाह एक पराक्रमी और निडर राजा थे। इन्होंने ही अपने शासनकाल में तिब्बत पर तीन बार आक्रमण किया था। इन्हें गर्वभंजन के उप नाम जाना जाता था।

महिपत शाह की मृत्यु के बाद रानी कर्णावती के पुत्र पृथ्वी शाह गद्दी पर बैठे, मगर वे उस समय महज 7 साल के थे। यही कारण है उनकी अल्प आयु के कारण राज्य का संरक्षण रानी कर्णावती की देखरेख पर हुआ।

स्टूरियो डू भोगोर के लेखक निकोलस मनु ची लिखते हैं कि मुगलों की तरफ से एक लाख पैदल सैनिक और तीस हजार घुड़सवार थे। पर किसी को अंदेशा नहीं था कि गणराज्य की ये रानी दुर्गा का साक्षात रूप है।

युद्ध हुआ तो गढ़वाल के सैनिकों ने मुगल सेना के पांव उखाड़ दिए। और जो बचे उनकी गढ़राज्य पर हमला करने के दुस्साहस करने में रानी कर्णावती द्वारा इनकी नाक कटवा दी गई।

कहते हैं इस अपमान के बाद मुगल सेनापति निजावत खां ने आत्महत्या कर दी। और मुगलों ने भी इस शर्मसार करने वाली घटना को छुपा करके रखा

मगर सत्य कितना भी छुपाओ उजागर हो ही जाता है। यही वजह है कि इस शर्मसार करने वाली घटना की पुष्टि मुगल दरबार के राजकीय विवरण महारल उमरा में मिलता है।

रानी कर्णावती के हाथों शर्मसार और बेइज्जत होने का मुगलों को इस प्रकार धक्का लगा कि उन्होंने इस अपमान का बदला लेने के लिए 19 बरस तक प्रतीक्षा की।