काफल खाने में लजीज सेहत में लाजवाब, आओ बताते हैं।

काफल खाने में लजीज सेहत में लाजवाब, आओ बताते हैं।

दीपक बिष्ट

काफल ( Kafal)  का वैज्ञानिक नाम : मिरिका एस्कुलेंटा है, उत्तरी भारत और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्र, मुख्यतः हिमालय के तलहटी क्षेत्र में पाया जाने वाला एक वृक्ष या विशाल झाड़ी है।

ग्रीष्मकाल में इस पर लगने वाले फल उत्तराखंड, हिमाचल जैसे पहाड़ी इलाकों में विशेष रूप से लोकप्रिय है। काफल फल गर्मी में शरीर को ठंडक प्रदान करता है।

गर्मी के मौसम में किसी भी बस स्टैंड से लेकर प्रमुख बाजारों तक में ग्रामीण काफल बेचते हुए दिखाई देते है साथ ही इस फल को खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

कहते है कि देवभूमि उत्तराखंड में आने वाले शख्स ने अगर यहाँ आकर फलों का स्वाद नहीं लिया तो क्या किया..

काफल एक जंगली फल है इससे कहीं नहीं उगाया जा सकता,बल्कि यह अपने-आप उगता है और हमें मीठे फल खाने का सौभाग्य देता है.

कुमाऊंनी भाषा में एक लोक गीत में काफल अपना दर्द बयां करते हुए कहता है- "खाणा लायक इंद्र का, हम छियां भूलोक आई पणां".

इसका अर्थ है कि हम स्वर्ग लोक में इंद्र देवता के खाने योग्य थे और अब भू लोक में आ गए।

यह फल पकने के बाद बेहद लाल हो जाता है तभी इससे खाया जाता है वहीं दूसरी ओर ये पेड़ अनेक प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर है।

दांतून बनाने और अन्य चिकित्सकीय कार्यां में इसकी छाल का उपयोग होता है। इसके अतिरिक्त इसके तेल और चूर्ण को भी कई तरह की दवाओं के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

आयुर्वेद में इसके अनेक चिकित्सकीय उपयोग बनाए गये हैं। आयुर्वेद में इसे कायफल के नाम से जाना जाता है।

इसकी छाल में मायरीसीटीन, माय्रीसीट्रिन एवं ग्लायकोसाईड पाया जाता है। इसमें विटामिन सी, खनिज लवण, प्रोटीन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन और मैग्निशीयम होता है।

काफल रसीला फल है लेकिन इसमें रस की मात्रा 40 प्रतिशत ही होती है । ये फल पेट की कई बीमारियों का निदान करता है और लू लगने से बचाता है।

यही नहीं काफल की छाल को उबालकर तैयार द्रव्य में अदरक और दालचीनी मिलाकर उससे अस्थमा, डायरिया, टाइफाइड जैसी बीमारियों का इलाज भी किया जाता है।