धारी देवी मंदिर उत्तराखंड में स्थित एक पवित्र हिंदू मंदिर है। यह मंदिर देवी धारी को समर्पित है, जिन्हें देवी काली का अवतार माना जाता है।
यह मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है, जो पवित्र नदी गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है।
यह मंदिर हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित 108 शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर में देवी की एक स्वयंभू (स्वयं प्रकट) मूर्ति है, जो एक पत्थर से उभरी देवी के ऊपरी आधे हिस्से के रूप में है।
कहा जाता है कि माॅ धारी देवी का मन्दिर धारी देवी गाव मे द्वापर युग से है। इसी स्थान पर स्वर्ग की यात्रा करने निकले पांडवों ने अपने पित्रो के पिंण्ड रखे थे
वे इसी स्थान पर मा धारी की पूजा अर्चना कर कैलाश पर्वत की ओर निकल चले थे।
धारी देवी को एक संरक्षक देवता माना जाता है जो उत्तराखंड में चार धाम मंदिरों की रक्षा करती हैं।
चार धाम उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में चार तीर्थ स्थलों के एक समूह को संदर्भित करता है, जिन्हें हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र माना जाता है। ये चार मंदिर हैं यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ।
ऐसा माना जाता है कि धारी देवी चार धाम मंदिरों और पूरे क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं, विशेषकर बाढ़ से बचाती है।
2013 में उत्तराखंड में आई विनाशकारी बाढ़ के दौरान, एक जलविद्युत परियोजना के निर्माण के कारण धारी देवी की मूर्ति को अस्थायी रूप से उसके मूल स्थान से स्थानांतरित कर दिया गया था।
दरअसल अलकनंदा नदी पर बन रहे जीवीके जलविद्युत परियोजना के चलते मंदिर पानी के अंदर डूबने वाला था। तब पुजारियों व कम्पनी के लोगों ने मंदिर में से धारी देवी की मूर्ती को वहाॅ से अपलिफ्ट कर चार पिल्लरों पर बने मंदिर में स्थानांतरित कर दिया।
2013 में मूर्ती को मूल स्थान से हटाने के बाद कुछ ऐसा भयावह हुआ जिसका साक्षी हर कोई बना।
मूर्ति को मूल स्थान से हटाने के कुछ घण्टों बाद ही तेज बारिश शुरू हो गई, ओर केदारनाथ मे आई भयंकर आपदा। जिसने गढवाल क्षेत्र में तबाही, हाहाकार मचा दिया।
इस कृत्य के कारण व्यापक विरोध हुआ और मूर्ति की वापसी की मांग की गई, क्योंकि स्थानीय लोगों का मानना था कि पवित्र स्थान से अनुपस्थिति प्राकृतिक आपदा में योगदान दे सकती थी।
इस घटना ने लोगों के बीच धारी देवी के प्रति गहरी आस्था और श्रद्धा और चार धाम मंदिरों के लिए उनकी सुरक्षात्मक भूमिका में उनके दृढ़ विश्वास को उजागर किया।
ऐसा माना जाता है कि धारी देवी देवभूमी के सभी धामों व यहाॅ आने वाले श्रद्धालुओं की रक्षा करती हैं। इसलिए बद्रीकेदार के दर्शन से पूर्व या बाद में श्रद्वालु एक बार माॅ के दर्शन के लिए यहाॅ पर जरूर रूकते हैं।