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Gairsain: गैरसैंण, गढ़वाल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर

गैरसैंण (Gairsain)

Gairsain: गैरसैंण, गढ़वाल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर

Gairsain (गैरसैंण): हिमालय की गोद में बसा एक खूबसूरत स्थान है, जो अपने अद्भुत प्राकृतिक दृश्य और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है । लेकिन, क्या आपको पता है कि इस नाम का असली मतलब क्या है? और कैसी रही गैरसैण की राजनैतिक यात्रा चलिए, इसे जानने के लिए एक यात्रा पर चलते हैं।

गैरसैंण | Gairsain

गैरसैंण नाम का अर्थ है “गहरे समतल मैदान,” जो गढ़वाली भाषा के दो शब्दों, “गैर” और “सैंण,” से मिलकर बना है। यह स्थान अपने खूबसूरत दृश्य और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)

गैरसैंण का इलाका प्राचीन कथाओं में केदार क्षेत्र या केदारखण्ड के नाम से प्रसिद्ध है। यहां तक कि चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने सातवीं शताब्दी में इस जगह को ब्रह्मपुर राज्य के रूप में वर्णित किया। इस क्षेत्र का पहला शासक था यक्षराज कुबेर। इसके बाद, यहां असुरों का शासन रहा, जिनकी राजधानी आज के उखीमठ में थी।

महाभारत के युद्ध के बाद, इस क्षेत्र में नाग, कुनिन्दा, किरात और खस जातियों के राजाओं का भी प्रभाव रहा। लगभग 2500 साल पहले से लेकर सातवीं शताब्दी तक यह क्षेत्र कत्यूरियों के अधीन रहा, और फिर तेरहवीं शताब्दी से 1803 तक गढ़वाल के परमार राजवंश के नियंत्रण में रहा।

1803 में आए एक भयंकर भूकंप के कारण इस क्षेत्र का जन-जीवन और भौगोलिक-सम्पदा बुरी तरह तहस-नहस हो गया था। इसके कुछ समय बाद ही गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा के नेतृत्व में गोरखाओं ने इस क्षेत्र पर आक्रमण कर कब्ज़ा कर लिया और 1803 से 1815 तक यहां गोरखा राज रहा।

1815 के गोरखा युद्ध के बाद 1815 से 14 अगस्त, 1947 तक ब्रिटिश शासनकाल रहा। इसी ब्रिटिश शासनकाल के अंतर्गत 1839 में गढ़वाल जिले का गठन हुआ, और 20 फरवरी 1960 को इसे चमोली जिला बना दिया गया।




 गैरसैण का उत्तराखण्ड की प्रस्तावित राजधानी के रूप में सफर (Gairsain’s journey as the proposed capital of Uttarakhand)

गैरसैंण (Gairsain) , जिसे उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया था, का इतिहास बहुत ही दिलचस्प और संघर्षों से भरा हुआ है। यहाँ हम गैरसैंण के विकास और राजधानी बनने की प्रक्रिया को एक टेबल के माध्यम से समझते

उत्तराखण्ड की प्रस्तावित राजधानी के रूप में सफर

तारीख घटना महत्व
1960 के दशक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने गैरसैंण को राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया। गैरसैंण का नाम पहली बार राजकीय चर्चाओं में आया।
1989 डीडी पंत और विपिन त्रिपाठी ने गैरसैंण को प्रस्तावित राजधानी के रूप में शामिल किया। राज्य आन्दोलन के दौरान गैरसैंण की बढ़ती मांग।
1991 अपर शिक्षा निदेशालय एवं डायट का उद्घाटन। गैरसैंण में शैक्षणिक संस्थानों का विकास।
1992 उक्रांद ने गैरसैंण को औपचारिक राजधानी घोषित किया। स्थानीय राजनीतिक आंदोलन में जोरदार मंशा।
1994 157 दिन का क्रमिक अनशन। गैरसैंण की राजधानी बनने की मांग को लेकर लोगों का सक्रिय समर्थन।
2000 उत्तराखण्ड राज्य का गठन, गैरसैंण की राजधानी की मांग उठी। राज्य स्तर पर गैरसैंण की मांग और अधिक मुखर हुई।
2008 दीक्षित आयोग की रिपोर्ट, जिसमें गैरसैंण को राजधानी के लिए अनुपयुक्त बताया गया। भौगोलिक और भूकंपीय कारणों का आधार पर निर्णय।
2012 मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने गैरसैंण में कैबिनेट बैठक आयोजित की। शासन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम।
2014 विधानसभा भवन का उद्घाटन। गैरसैंण में विधायिका का स्थानांतरण।
2020 भराड़ीसैंण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया। गैरसैंण के विकास में एक नई शुरुआत।




गैरसैंण को राजधानी के रूप में स्थापित करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। 1994 में, 157 दिनों का क्रमिक अनशन यह दर्शाता है कि स्थानीय लोग इस मुद्दे को लेकर कितने गंभीर थे। इसके बाद, 2000 में उत्तराखण्ड राज्य के गठन के बाद गैरसैंण की राजधानी बनाने की मांग और भी ज्यादा तेज हो गई। वर्ष 2014 में विधानसभा भवन का उद्घाटन और 2013 में भूमि पूजन कार्यक्रम ने यह सुनिश्चित किया कि गैरसैंण का विकास एक सतत प्रक्रिया है। मगर अब भी इसे स्थायी राजधानी के रूप में बनाने के लिए संघर्ष जारी है।

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भूगोल और परिवेश (Geography and surroundings)

गैरसैंण समुद्र सतह से लगभग 5750 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह समूचे उत्तराखंड के बीचों-बीच तथा सुविधा सम्पन्न क्षेत्र माना जाता है। उत्तराखंड राज्य के मध्य में होने के कारण इसे वर्षों से स्थाई राजधानी के रूप में स्वीकार किया गया है।

गैरसैंण का भूगोल इसे और भी खास बनाता है। यहां के पास के गांव जैसे भिकियासैंण, चिन्यालीसैंण, थैलीसैंण, और भराड़ीसैंण ने इसे एक सांस्कृतिक केंद्र बना दिया है। इस क्षेत्र के आसपास का ग्रामीण परिवेश, जैसे गैड़, भी इस नामकरण में एक संदर्भ के रूप में जुड़ता है, हालांकि यह संदर्भ पूरी तरह से सही नहीं माना जाता।




गैरसैण की जनसांख्यिकी (Demographics of Gairsain)

2011 की जनगणना के अनुसार, गैरसैंण नगर की कुल जनसंख्या 7,138 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 3,582 और महिलाओं की संख्या 3,556 है। कुल जनसंख्या में से 87.27 प्रतिशत लोग साक्षर हैं।

 

सभ्यता/ संस्कृति और बोली/भाषा (Civilization/ Culture and Language)

गैरसैंण (Gairsain) हिमालय क्षेत्र की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत, ठेठ कुमांऊनी-गढ़वाली संस्कृति, पर्वतीय जीवन शैली तथा अलौकिक प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। गैरसैंण क्षेत्र में गढ़वाली तथा कुमांऊनी बोलियां पाई जाती हैं। सरकारी कामकाज में अधिकतर हिन्दी का प्रयोग होता है, परंतु अंग्रेजी का भी प्रयोग किया जाता है।

 

आधुनिक विकास (Modern developments)

गैरसैंण (Gairsain)  में अब विकास की नई लहरें चल रही हैं। लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोने के साथ-साथ यहां के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व इसे एक आकर्षक पर्यटन स्थल बनाते हैं।

गैरसैंण सिर्फ एक भौगोलिक नाम नहीं है, बल्कि यह गढ़वाल की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक है। इसका इतिहास, भूगोल, और सांस्कृतिक विविधता इसे एक विशेष पहचान देते हैं। हमें इसे जानने और समझने की जरूरत है ताकि हम अपनी धरोहर को संरक्षित रख सकें और अगली पीढ़ियों को इसके महत्व से अवगत करवा सकें।




आवागमन के मार्ग (routes of transport)

वायु मार्ग

गैरसैंण पहुँचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है, जो लगभग 200 किलोमीटर दूर है। जॉलीग्राण्ट एअरपोर्ट भी एक विकल्प है, जो देहरादून में स्थित है।

रेल मार्ग

फिलहाल भारतीय रेल द्वारा गैरसैंण पहुँचने के लिए दो रेलवे स्टेशन मौजूद हैं: काठगोदाम (175 किलोमीटर) और रामनगर (150 किलोमीटर)।

सड़क मार्ग

दिल्ली के आनन्द विहार ISBT से गैरसैंण के लिए उत्तराखंड परिवहन की बसें नियमित रूप से उपलब्ध हैं, और विभिन्न राज्यों से भी बस सेवाएँ उपलब्ध हैं।

 

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