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उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त – ब्रिटिश काल से टिहरी रियासत तक

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त

दोस्तों हमने अब तक आपको उत्तराखंड के इतिहास इसके प्रागैतिहासिक काल और उत्तराखंड पृथक राज्य आन्दोलंन के बारे में विभन्न पोस्टों के माध्यम से सम्पूर्ण जानकारी दी है जिसे आप इस वेबसाइट में पढ़ सकते हैं। इस पोस्ट में हम उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त जो ब्रिटिश काल से लेकर टिहरी रियासत तक हुए हैं सबके बारे में सक्षिप्त जानकारी देंगे। तो पोस्ट तक अंत तक पढ़ें –

 

उत्तराखंड में भूमि बंदोबस्त

अगर उत्तराखंड में अब तक हुए सारे भूमि बंदोबस्त की बात करें तो वह  कुमाऊँ के चंद शासन काल के इतिहास और गढ़वाल के पंवार शासनकाल में भी देखने को मिले हैं मगर सामान्यतः हम इसके बारे में अंग्रेजो के शासनकाल से ही भूमि बंदोबस्त की आधुनिक व्यवस्था के बारे में पढते हैं। जाहिर सी बात है ये सवाल आपके मन में भी उठेगा ऐसा क्यों है,  तो इसको आसान भाषा में समझाऊं तो भूमि बंदोबस्त अग्रेजों द्वारा मिट्टी उसके  उपजाउपन और फसलों के आधार पर इसे बाँटा था। जिसके आधार पर जनता या किसानों से कर लिया जाता था।

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अग्रेजों के भारत में शासन के दौरान पूरे भारत में बहुत से बंदोबस्त किये हैं जिनमे स्थायी बंदोबस्त, रैय्यतवड़ी बंदोबस्त और मालगुजारी के बारे में आपने अवश्य सुना होगा। इन्हीं बंदोबस्त के आधार पर छोटे छोटे प्रांतो में भी भू व्यस्वस्था का प्रशासनिक ढांचा बनाया गया। ताकि अपने ऐसो आराम की जिंदगी के लिए लूट अच्छे से हो। कुछ लोग अंग्रेजों की प्रशासनिक व्यवस्था की सराहना करते नहीं थकते उनके लिए एक उदहारण है की जनता को प्रताड़ित करने और अपनी जेबें भरने के लिए उन्होंने जो व्यवस्था की थी उसे भारत ने आजादी के बाद जमींदारी कानून से जहाँ दूर कर दिया वहीँ हमसे अलग हुआ पाकिस्तान अभी भी उसी व्यवस्था से चल रहा है और जमींदारी ही खेत का असली मालिक  बना हुआ है। यही वजह है कि भारत खाद्यान में आत्मनिर्भर है तो वहीँ पाकिस्तान पंजाब के एक बहुत उपजाऊ क्षेत्र मिलने के बाद भी खाद्यान में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है।
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खैर उत्तराखंड में इन गंदे लोगों ने  जो भूमि बंदोबस्त की थी उसकी बात करते हैं –

 

उत्तराखंड में ब्रिटिश काल के दौरान हुआ भूमि बंदोबस्त

 




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टिहरी रियासत में हुए भूमि बंदोबस्त

1815 में ब्रिटिशर्स के उत्तराखंड में आगमन से उन्होंने चालाकी से सुदर्शन शाह से सम्पूर्ण कुमाऊं और गढ़वाल का कुछ भाग अपने नियंत्रण में लिया और गढ़वाल पर राज करने वाले पंवार वंश को टिहरी का एक छोटा सा भू-भाग दिया। हालाँकि 1815 टिहरी भी पूर्ण स्वंतंत्र नहीं था पंवार वंश की बागडोर में कही न कहीं कुमाऊं कमिशनर का दखल भी दिखाई देता है।

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हालाँकि फिर भी प्रशानिक नियंत्रण आभासी रूप से पंवार वंश के हाथ में था जिन्होंने पहले राजधानी टिहरी और फिर नरेंद्रनगर भी स्थान्तरित की इस दौरान उन्होंने भूमि बंदोबस्त और वनों के लिए भी अलग से वन कानून और वन विभाग की भी स्थापना की जिसकी समरूपता ब्रिटिश राज से मिलती थी।

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टिहरी रियासत में बंदोबस्त

 





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