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Maa Kunjapuri Devi Temple, Rishikesh Tehri Garhwal | माँ कुंजापुरी देवी

Maa Kunjapuri Devi Temple

Maa Kunjapuri Devi Temple (माँ कुंजापुरी देवी) : उत्तराखंड हमेशा अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व के लिए जाना जाता है। पौराणिक कल से ही हिमालय के इस भू-भाग को देवताओं का निवास स्थल कहते हैं। यहाँ स्थित देवी देवताओं के शक्तिपीठों की बहुत मान्यता है।  इन शक्तिपीठों के दर्शन के लिए भारत के कोने-कोने से श्रद्धालु यहाँ पहुंचते हैं। कहते हैं जो इन शक्तिपीठों के एक बार दर्शन कर ले उसकी साडी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।



उन्हीं शक्तिपीठों में शामिल है ऋषिकेश में स्तिथ माँ कुंजापुरी देवी (Maa Kunjapuri Devi) का मंदिर।  भक्त वत्सल माँ कुंजापुरी देवी (Maa Kunjapuri Devi) के जो एक बार दर्शन करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।  इस पोस्ट में आज देवी के उसी अद्भुत रूप माँ कुंजापूरी देवी (Maa Kunjapuri Devi) के बारे में आपको सम्पूर्ण जानकारी देंगे। इस पोस्ट को अंत तक पढ़े।  जय माँ कुंजापुरी देवी (Maa Kunjapuri Devi)।


कुंजापुरी देवी मंदिर | Kunjapuri Devi Temple

उत्तराखंड के टिहरी ज़िले में स्थित सिद्धपीठ माँ कुंजापुरी देवी का मंदिर है जो कि प्रसिद्ध 51 सिद्धपीठों में एक है। यह भव्य मंदिर ऋषिकेश और गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग नरेन्द्र नगर के पास स्थित है। ऋषिकेश से यह मंदिर 25 किमी की दूरी पर है। यह मंदिर समुद्र से 1,676 मीटर की ऊंचाई और टिहरी गढ़वाल ज़िले में पहाड़ों की चोटी पर स्थित है। यह मंदिर सिद्धपीठों के त्रिकोण को भी पूरा करता है सुरकण्डा देवी, कुंजापुरी देवी और चन्द्रबदनी



माँ कुंजापुरी देवी का मंदिर हिंडोलाखल रोड पर अदली नामक स्थान पर है इसकी स्थापना जगद्गुरु शंकराचार्य ने की थी। कुंजापुरी देवी मंदिर बहुत ही सुंदर रूप से निर्मित किया गया है। इस मंदिर को कुंजापुरी नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि इस स्थान पर देवी सती, भगवान शिव की अर्द्धागिनी (पत्नी) का कुंज भाग यहाँ गिरा था।

 

Maa Kunjapuri Devi Temple

| माँ कुंजापुरी देवी मंदिर की पौराणिक कथा |

पौराणिक कथानुसार देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने  एक बार बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। राजा दक्ष भगवान विष्णु के बहुत बड़े अनुयायी थे।  उन्होंने ही वैष्णव संप्रदाय का प्रचार किया था और दूसरी तरफ राजा दक्ष भगवान शिव के घोर विरोधी थे। राजा दक्ष के इस भव्य यज्ञ में उन्होंने सभी देवों को बुलाया और उनका यथोचित सम्मान कर उन्हें बैठने का स्थान दिया बस भगवान शिव और उनके अनुयायियों को बुलाना उन्होंने जरुरी नहीं समझा।



राजा दक्ष के अनुसार भगवान शिव और उनके अनुयायी अघोरी और पिसाच माथे पर भस्म मलने वाले अशिष्ट थे जो उनके आदर्श वैष्णव समाज का हिस्सा नहीं हो सकते थे।  जब इस बात पर देवी सती ने पिता से महादेव के लिए बैठने का स्थान न होने का कारण पूछा तो उन्होंने भगवान शिव और उनके अनुयायियों का अपमान किया जिसे सुनकर देवी सती अत्यंत रुष्ट हुई और यज्ञ की उस धधकती ज्वाला में कूद गयी। जब महादेव को इसकी सूचना मिली तो अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने क्रोध में दक्ष का मस्तक धड़ से अलग करके देवी सती के जले शरीर को उठा कर तांडव करने लगे। भगवान शिव के इस भयंकर तांडव से धरती कांपने लगी और प्रलय जैसे स्तिथि उत्पन्न हो गयी।



तब सभी देवों ने भगवान विष्णु से सहयता मांगी और भगवान विष्णु ने सुदर्शन से देवी सती के शरीर को 51 टुकड़ों में विभक्त कर दिया। जहां-जहां सती के ये अंग गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। ऋषिकेश  के इस स्थान पर देवी सती का कुंज (केश) भाग गिरा था, जिस कारण इस स्थान का नाम “कुंजापुरी” पड़ा और पौराणिक समय में ही इस स्थान पर मंदिर का निर्माण होने के कारण इस मंदिर का नाम “कुंजापुरी देवी मंदिर” रखा गया।
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Kunjapuri Devi Temple, Sirohi Tree

 

| माँ कुंजापुरी देवी मंदिर में अद्भुत प्रथा |

गढ़वाल में वैसे तो सभी मंदिर में पुजारी सदैव एक ब्राह्मण होते है, लेकिन इस मंदिर में भंडारी जाति के राजपूत पुजारी है। जिन्हें बहुगुणा जाति के ब्राह्मणों द्वारा शिक्षा दी जाती है। माँ कुंजापुरी  का मन्दिर वर्ष भर खुला रहता है। मंदिर के मुख्य द्वार पर माँ कुंजापुरी देवी के वाहन *सिंह* व *हाथियों* के मस्तक की मूर्तियाँ बनी हुई है। इस मंदिर की वास्तुकला आधुनिक मंदिरों की तरह ही है और कुंजापुरी देवी का मुख्य मंदिर ईंट व सीमेंट से बना हुआ है।



मंदिर के गर्भगृह में देवी की कोई मूर्ति नही है बस अन्दर एक शिलारूप पिण्डी स्थापित है। इस मंदिर में निरन्तर अखंड ज्योति जलती रहती है एवं मंदिर में मुख्य मंदिर के अलावा एक और मंदिर स्थापित है जिनमें भगवान शिव, भैरों, महाकाली तथा नरसिंह भगवान की भव्य मूर्ति स्थापित है और मंदिर परिसर में एक *सिरोही* वृक्ष है जिसपर चुन्नियाँ तथा डोरियाँ बांधकर भक्तगण देवी माँ से मन्नत मांगते है। यह मंदिर भक्तों की आस्था का प्रतीक है।  ऐसा भी कहा जाता है कि यहाँ आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है।

 

Maa Kunjapuri Devi Temple

| मंदिर में हर वर्ष लगता है मेला |

माँ कुंजापुरी देवी  के मंदिर में विशेष रूप से चैत्र और शारदीय नवरात्र पर यहां विशेष पूजा एवं मेला आयोजित होता है। इस दिन मंदिर को फूलों व लाइट से सजाया जाता है। वर्ष 1974 से यहाँ मेला आरंभ हुआ था, वैसे तो हर दिन भक्त पूजा-अर्चना के लिए आते है लेकिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर नवरात्र में यहां पहुंचते है। यहीं कारण है कि नवरात्रों के दिनों में यहाँ मेला लगता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग़ को शांति प्रदान करता है। वर्ष भर में यहाँ आस-पास के क्षेत्रों से नवविवाहित युगल मंदिर में आकर सुखी दाम्पत्य जीवन की अभिलाषा हेतु देवी माँ का आशीर्वाद लेने आते रहते है।

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| कुंजापुरी मंदिर से दिखता है खूबसूरत नजारा |

माँ कुंजापुरी देवी माँ के मंदिर परिसर से बर्फ़ से ढ़के हुए पहाड़ों का अलग ही मनोरम दृश्य लोगों को अत्यधिक आकर्षित करता है जिनमें स्वर्ग-रोहिणी, गंगोत्री, बंदरपूंछ और चौखंभा आदि धार्मिक स्थलों के दर्शन होते है, और साथ ही इस मंदिर से सूर्योदय और सूर्यास्त के बहुत ही सुंदर नज़ारा दिखाई देता है।



Maa Kunjapuri Devi Temple

कैसे पहुंचे माँ कुंजापुरी के मंदिर | How to reach Maa Kunjapuri temple

कुंजापुरी देवी  मंदिर के लिए ऋषिकेश से बस या टैक्सी में 16 किलोमीटर की दूरी तय कर नरेंद्रनगर पहुंचा जा सकता है। जहाँ  से 11 किमी दूर हिंडोलाखाल तक बस सेवा है। कुंजापुरी देवी के मंदिर परिसर तक छोटे वाहनों की आवाजाही होती है। और  शाम तक हर समय वाहन की सुविधा है। कुंजापुरी से सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन ऋषिकेश / हरिद्वार पड़ता है, जबकि हवाई सेवा देहरादून के जौलीग्रांट से  है।

 


तो ये थी माँ कुंजापुरी देवी मंदिर (Maa Kunjapuri Devi Temple)  के बारे में सम्पूर्ण जानकारी।  यदि आपको माँ कुंजापुरी देवी मंदिर (Maa Kunjapuri Devi Temple) के बारे में यह जानकारी अच्छी लगी हो  तो इसे शेयर करे साथ ही हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें।

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