मैती आंदोलन | Maiti Andolan
मैती आंदोलन पर्यावरण सम्बन्धी आन्दोलन है जिसका जनक श्री कल्याण सिंह रावत को माना जाता हैं। उत्तराखंड में मैत शब्द का अर्थ होता है “मायका” और मैती शब्द का अर्थ होते है मायके वाले। मैती आंदोलन में मायके वाले अपने लड़की की शादी के समय फेरे लेने के बाद वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच पेड़ लगते है और उसे भी अपना मैती बनाते है । इस पेड़ की देख रेख मायके वाले करते है । ऐसा माना जाता है पेड़ जिस तरह फलेगा या हर भरा बना रहेगा उसी प्रकार लड़की का पारिवारिक जीवन भी समृद्ध बना रहेगा। इसी को देखते हुए मैती पूरे दिल से उस पेड़ का खयाल बेटी की तरह ही रखते है।
आंदोलन की शुरुआत :
इस पर्यावण आन्दोलन की शुरुआत 1994 में चमोली के ग्वालदम इंटर कॉलेज के जीव विज्ञान के प्रवक्ता श्री कल्याण सिंह रावत के द्वारा की गई थी । इसकी शुरुआत विद्यालय स्तर पर किया गया, फिर गांव समुचित प्रदेश को इस आंदोलन ने प्रकृति के प्रति प्रेरित किया । धीरे-धीरे यह आंदोलन इतना विशाल हो गया कि अब भारत ले 18000 से अधिक गाँव और 18 राज्य इस आंदोलन से जुड़ चुके हैं।
आंदोलन की प्रेरणा :
जब श्री कल्याण सिंह रावत जी ने देखा पेड़ लगाने की बावजूद भी कुछ ही समय के पश्चात पेड़ बिना देख रेख़ के सूख जाते है तोह उन्हें ये समझ आया जब तक मनुष्य पर्यावरण के साथ भावनात्मक रूप से संबंधित ना हो तब तक कोई भी वृक्षारोपण सफल नहीं हो सकता है। और इसी को देखते हुए उन्होंने इसे भावनात्मक रूप दिया जिसमे मैती पेड़ की देख रख अपनी पुत्री की तरह करते है ।
कल्याण सिंह रावत की जीवन यात्रा
19 अक्टूबर 1953 को जनपद चमोली के कर्णप्रयाग ब्लाॅक के बैनोली गांव में विमला देवी व त्रिलोक सिंह रावत के घर कल्याण सिंह रावत का जन्म हुआ। कल्याण सिंह रावत के पिता वन विभाग में कार्यरत थे। पेड़ों और जंगलों के प्रति लगाव उन्हें विरासत में मिला।
कल्याण सिंह रावत जी की शिक्षा गांव के प्राथमिक स्कूल बैनोली (नौटी) में हुई तो 8वीं तक की शिक्षा कल्जीखाल और 10वीं, 12 वीं की शिक्षा कर्णप्रयाग में पूरी हुई। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय गोपेश्वर से ग्रहण की।
कॉलेज के दिनों में उन्होंने सीमांत जनपद चमोली के चिपको आंदोलन में भी भाग लिया। 26 मार्च 1974 को वह 150 लड़कों को लेकर भारी बारिश में ट्रक में बैठकर गोपेश्वर से चिपको आंदोलन में शामिल होने जोशीमठ पहुंचे। पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा उन्हें चिपको आंदोलन की सफलता से मिली।
1982 में शादी के दूसरे ही दिन अपनी पत्नी मंजू रावत द्वारा दो पपीते के पेड़ लगवाए जाने के बाद ही उनके मन में ‘मैती’ का विचार आया, लेकिन उस समय वह इसे अमल में नहीं ला पाए। 1987 में उत्तरकाशी में भयकंर सूखा पड़ा। ऐसे में इनके द्वारा वृक्ष अभिषेक समारोह मेला का आयोजन किया गया।
जिसमें ग्रामस्तर पर वृक्ष अभिषेक समिति का गठन किया गया और ग्राम प्रधान को इसका अध्यक्ष बनाया गया। उनकी इस पहल की हर किसी ने सराहना की। 1994 में ग्वालदम राजकीय इंटर कॉलेज में जीव विज्ञान प्रवक्ता के पद पर रहते हुए कल्याण सिंह ने स्कूली बच्चों को मैती आंदोलन के लिए प्रेरित किया। फिर धीरे-धीरे समूचे गांव के लोगों को प्रेरित करने का कार्य किया।
अन्य देशों में मैती आंदोलन की शुरवात
मैती आंदोलन साल 1994 से अब तक लगातार उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में चल रहा है। कल्याण सिंह रावत जी के मैती आंदोलन के सकारात्मक परिणामों को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी भी मन की बात में उनकी प्रशंसा कर चुके हैं। यही नहीं साल 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा इन्हे 26 जनवरी को पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया है, नितिन गडकरी ने विश्व पार्यवरण संरक्षण दिवस पर इन्हे सम्मानित किया है। वहीँ इन्हें बेस्ट इकोलॉजिस्ट सहित बहुत सारे पुरस्कार मिले हैं। कनाडा की भूतपूर्व विदेश मंत्री फ्लोरा डोनाल्ड ने भी कल्याण सिंह रावत के इस बेहतरीन कार्य पर उनकी तारीफ की है। यही नहीं “मैती आंदोलन” की शुरुआत अब यूएस, नेपाल, यूके कनाडा और इंडोनेशिया मे भी हुई है जिसे हिमाचल प्रदेश ने भी अपनाया है।
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