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टपकेश्वर महादेव मंदिर | Tapkeshwar Mahadev Temple 

टपकेश्वर महादेव मंदिर

टपकेश्वर महादेव मंदिर | Tapkeshwar Mahadev Temple 

उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून में एक स्थान ऐसा भी है जिसकी कथा महाभारत काल से जुड़ी है और कहते हैं कि कभी इस स्थान पर स्थित शिवलिंग प्राकृत रुप से दूध गिरता रहता था। जी हाँ देहरादून के इस पावन स्थान का नाम है टपकेश्वर महादेव

टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून आइ०एस०बी०टी से लगभग 8 किमी तथा देहरादून रेलवे स्टेशन से 5½ किमी की दूरी पर टौंस नदी की सहायक जलधारा देवीधारा नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। इस जगह आप छोटी गाड़ी के माध्यम से पहुंच सकते हैं। देवीधारा की जलधारा के निकट इस मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती है।

यहाँ टपकेश्वर महादेव के अतिरिक्त पार्वती, काली, गणेश, विष्णु के नर सिंह अवतार, भैरव और वैष्णो माँ के भी भव्य मंदिर स्थित हैं। जहाँ दर्शनार्थीयों का हर दिन जमावड़ा लगा रहता है। इस मंदिर में एक रुद्राक्ष शिवलिंग भी है जिसमें विभिन्न मुखों वाले 5151 रुद्राक्षों का समायोजन किया गया है।

सावन के महीने में महादेव के भक्तों की संख्या में और भी इजाफा हो जाता है और साँस लेने मात्र तक का स्थान नहीं रहता। पर आखिर क्या वजह है जो इसके भक्तों में दिनों दिन इजाफा हो रहा है? इसके लिए आपको इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा को जानना होगा। वीडियो देखें।
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  टपकेश्वर महादेव से जुड़ी पौराणिक कथा | Tapkeshwar Mahadev Temple History

टपकेश्वर महादेव के बारे में स्कंदपुराण के केदारखण्ड में जिक्र किया गया है। वहीं स्कंदपुराण में टपकेश्वर महादेव को देवेश्वर के नाम से भी जानते थे। इस जगह देवताओं ने शिव की उपासना की थी। तभी से यह स्थान देवताओं के ईश्वर देवेश्वर के नाम से विख्यात हुआ।

यहाँ मौजूद महादेव का शिवलिंग पुराणों से ही प्राकृत रुप से विद्यमान है। इस मंदिर के पास ही महाभारत काल के कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य की गुफा भी स्थित है। जिसमें वे अपनी पत्नी कृपी और पुत्र अश्वत्थामा के साथ रहते थे। कहते हैं कि अश्वत्थामा का जन्म इसी गुफा में हुआ था।

आदिकाल में गुरु द्रौण ने शिव की उपासना इसी गुफा में की थी और शिव से धुनर विद्या की कला का ज्ञान लेकर सबसे महान धनुरधारी को शिक्षित करने का गौरव भी इन्हें प्राप्त है। मगर आदिकाल में कुछ ऐसा घटा था जिसके कारण इस महान गुरु को भी असहाय होना पड़ा था। वीडियो देखें।
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जब अश्वत्थामा के कठोर तपस्या से इस गुफा से जल के स्थान पर दुग्ध टपकने लगा

यह महाभारत काल के ही उस वक्त का जिक्र है जब गुरु द्रौण धनुर्विद्या सिखाने का प्रस्ताव लेकर अपने मित्र पाँचाल नरेश के पास गए थे और उनसे गायें दान में माँगी थी। मगर इसके विपरीत पाँचाल नरेश ने भरी सभा में उनको बेइज्जत करा और उन्हें अपने राज्य सीमा से बाहर निकाल लिया। बहुत जल्द इस महान ब्राह्मण को दरिद्रता ने घेर लिया।

कहते हैं कि जब अश्वत्थामा ने अपनी माता कृपी से दुग्ध के लिए आग्रह किया तो गुरु द्रौण ने अपनी दीन स्थिति के कारण अपने पुत्र अश्वत्थामा को भगवान भोलेनाथ की तपस्या करने को कहा। तब अश्वत्थामा के ही कठोर तपस्या के बाद शिव ने प्रसन्न हो कर उसके अनुग्रह को स्वीकाराऔर शिव की इस गुफा में जल के स्थान पर दुग्ध टपकने लगा। इस कारण इसे दुग्धेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। मगर कलयुग के आते-आते पुनः इस स्थान से दूध के अलावा जल टपकने के कारण इसे टपकेश्वर के नाम से लोग जानने लगे।





वैष्णव देवी गुफा

वैष्णव देवी गुफा टपकेश्वर महादेव में

टपकेश्वर महादेव के पास ही वैष्णव माँ का मंदिर भी है। जहाँ पहुंचने के लिए एक संकरी गुफा से होते हुए गुजरना पड़ता है। जम्मू में स्थित वैष्णव माँ के मंदिर के ही स्वरुप को दर्शाते इस मंदिर के दर्शन करने हैं तो मुख्य मार्ग से ही इसका सुफल प्राप्त होता है। वहीं इस मंदिर में स्थित देवी के स्वरुप को देखकर टपकेश्वर महादेव मंदिर की शोभा और बढ़ जाती है।

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 कैसे पहुंचे टपकेश्वर महादेव मंदिर | How To Reach Tapkeshwar Temple

टपकेश्वर माहादेव पहुंचने के लिए आपको दिल्ली से देहारादून, हवाई , सड़क या रेलमार्गों से पहुंचना होगा। फिर यहाँ से गढ़ीकैण्ट पहुंचकर आप इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं। सावन के महीने इस मंदिर के दर्शनों से सुयश मिलता है। मगर उस वक्त अत्यधिक भीड़ के कारण दर्शन करना बहुत मुश्किल होता है। इसके अलवा आप वर्ष के किसी भी महीने मंदिर के दर्शनों के लिए पहुंच सकते हैं। यहाँ मंदिर के पास रोजाना भंडारे का भी प्रबंध किया जाता है। वीडियो देखें।

 

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