उत्तराखंड में आयोजित UKSSSC और UKPSC की परीक्षाओं में आने वाले उत्तराखंड के सामान्य ज्ञान की तैयारी के लिए हम आपके लिए उत्तराखंड 300+ सामान्य ज्ञान सवाल (Uttarakhand 300+ One Liner GK Hindi) लेकर आए हैं। ये सवाल आगामी परीक्षाओं में आपके लिए बहुत मददगार साबित होंगे। इसके अलावा, हम समय-समय पर उत्तराखंड के इतिहास, भूगोल और योजनाओं से संबंधित जानकारी भी डालते रहते हैं ताकि आपकी तैयारी में कोई कमी न रहे।
उत्तराखंड सामान्य ज्ञान (Uttarakhand GK), उत्तराखंड की सभी सरकारी परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और हर बार UKSSSC/UKPSC में उत्तराखंड से जुड़े सवालों की कठिनाई बढ़ रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए नीचे हम Uttarakhand 300+ One Liner GK Hindi लाए हैं, जो आपकी तैयारी में महत्वपूर्ण योगदान देगा। हमें उम्मीद है कि हमारी यह कोशिश आपकी परीक्षा में सफलता दिलाने में सहायक होगी।
इन्हें भी पढ़िए –
- उत्तराखंड में कत्यूरी शासन/ कार्तिकेय पुर राजवंश का इतिहास
- गढ़वाल पर राज करने वाले पंवार (परमार) वंश का इतिहास
- कुमाऊं में राज करने वाले चंद वंश का सम्पूर्ण इतिहास
- उत्तराखंड में गोरखा शासन
- उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां
- उत्तराखंड में स्तिथ प्रमुख बुग्याल
- उत्तराखंड में मौजूद मंदिरों की स्थापत्य कला शैली
Uttarakhand 300+ One Liner GK
1. इसका कुल क्षेत्रफल 53484 वर्ग किमी है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का 1.6वाँ भाग है।
2. 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या की दृष्टि से इसका 20वाँ स्थान है।
3. प्रदेश के नरेन्द्रनगर क्षेत्र में सर्वाधिक वर्षा होती है, जिस कारण यह क्षेत्र उत्तराखंड का चेरापूंजी के नाम से भी जाना जाता है।
4. उत्तराखंड प्रथम भारतीय राज्य है, जिसने पृथक आपदा प्रबन्धन मंत्रालय का गठन किया है। इस मंत्रालय का मॉडल ऑस्ट्रेलिया मॉडल पर आधारित है।
5. इस क्षेत्र में कई जीवन रक्षक बूटियाँ उपलब्ध है। इनमें किलमोड़ा से पीलिया, मधुमेह का उपचार हो रहा है। कैंसर के ईलाज में प्रयुक्त “टैक्साल” की कई गुना प्रभावी मात्रा यहाँ उपलब्ध थूनेर प्रजाति के वृक्ष के छाल से प्राप्त होती है।
6. एशिया का सबसे पहला राष्ट्रीय पार्क हेली नेशनल पार्क’ वर्ष 1936 में इस क्षेत्र में ही स्थापित किया गया, जो वर्तमान में ‘कार्बेट नेशनल पार्क के नाम से प्रसिद्ध है ।
7. राज्य में वर्तमान समय से 6 राष्ट्रीय उद्यान और 6 वन्य जीव विहार हैं।
8. राज्य का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय जौनसारी है।
9. हिमालय की हिमाच्छादित उतुंग पर्वत श्रेणियों पर पाया जाने वाला पक्षी मोनाल (Lophophorw Impejanaus) राज्य पक्षी है।
10. ऊँचे पर्वतों की कठोर चट्टानों एवं दुर्गम क्षेत्रों पर उगने वाले बारहमासी पौधे ‘ब्रहाकमल’ (Saussurea Abvallata) का पुष्प राज्य का पुष्प है।
11. महोगेनी प्रजाति के वृक्षों के साथ उगने वाला बुरांश (Rhododendron Arbrreum) राज्य का राजकीय वृक्ष है।
12. स्कन्दपुराण में नन्दा पर्वत को केदारखण्ड (गढ़वाल क्षेत्र) और मानस खण्ड (कुमाऊँ क्षेत्र) का विभाजक बताया है।
13. हर्षवर्धन के शासनकाल में ही चीनी यात्री हवेनसांग उत्तराखंड राज्य की यात्रा पर आया था,
14. हवेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में हरिद्वार को ‘मो-यू-लो’ और हिमालय को “पो-लि-हि-मो-यू-लो” कहा है।
15. 1968 ई० में सुयाल नदी के बाएँ तट (अल्मोडा) पर स्थित लखु उड्यार से राज्य में प्रागैतिहासिक चित्रित शैलाश्रयों की पहली खोज हुई।
16. बाड़वाला (देहरादून) से इष्टिका (ईट) के प्रयोग के साक्ष्य अश्वमेघ यज्ञकुण्डों से मिलता है।
17. गोपेश्वर तथा बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) से कत्युरी काल के त्रिशूल पर अभिलेख उत्कीर्ण मिलता है।
18. कातिकेयपुर (जोशीमठ) से प्राचीनतम् ताम्रपत्र प्राप्त हुआ है।
19. उत्तराखंड राज्य का प्राचीनतम उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है।
20. मलारी ग्राम (चमोली) से 5.2 किलोग्राम का सोने का मुखौटा मिला है।
21. हुडली (उत्तरकाशी) से नीले रंग के शैलचित्र प्राप्त हुए हैं।
22. पश्चिमी रामगंगा घाटी में महरू-उड्यार से भी चित्रित शैलाश्रय प्राप्त हुए।
23. पिण्डर घाटी में किमनी नामक स्थल से भी चित्रित शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं।
24. डुगरी स्थित ग्वरख्या-उड़यार के शैलचित्रों का मुख्य विषय पशुचारक संस्कृति है।
25. “आगरी” जाति के लोग यहाँ चिरकाल से खनन कार्य करते आ रहे हैं।
26. सानणा-बसेड़ी से चित्रित धूसर मृदभाण्डों (PWG) से मिलते-जुलते मिट्टी के पात्र मिलते हैं।
27. उत्तराखंड की चित्रित धूसर संस्कृति का काल 1000 ई०पू० के आस-पास है।
28. उत्तराखंड नाम का उल्लेख सर्वप्रथम ऋग्वेद में मिलता है।
29. ऐतरेय ब्राह्मण में उत्तराखंड को उत्तर कुरूओं का निवास स्थल कहा गया है।
30. हरिद्वार को ‘गेरूए रंग की संस्कृति-सभ्यता का नगर कहा गया है।
31. देवप्रयाग की पट्टी सितोन्स्यू में सीताजी के पृथ्वी के गर्भ में समाने की मान्यता के कारण प्रतिवर्ष मनसार मेला लगता है।
32. राजा विराट की राजधानी बैराठगढी के अवशेष जौनसार से अमी भी मिल जाते हैं।
33. कोटद्वार गढ़वाल स्थित कण्वाश्रम (मालिनी नदी तट पर) शकुन्तला एवं दुष्यंत की प्रणयकथा के लिए विख्यात है।
34. सर्वप्रसिद्ध नाग मन्दिर बेरीनाग (पिथौरागढ़) में स्थित है।
35. श्रीनगर महाभारत काल में कुणिद नरेश सुबाहु की राजधानी थी।
36. कैप्टन हार्डविक ने स्वयं 1796 ई0 में श्रीनगर के मध्य जीर्ण-शीर्ण अजयपाल के राजप्रसाद को देखा था।
37. युवान च्वाड़ ने तो किउ-पि-स्वङ्-न’ नाम से गोविषाण का विस्तृत वर्णन दिया है।
38. सर्वप्रथम पुरातत्वविद कर्निघम ने गोविषाण का सर्वेक्षण किया।
39. अमलावा नदी के बाएँ तट अवस्थित कालसी का प्राचीन नाम कालकूट था।
40. कालसी नगर से प्राप्त महत्वपूर्ण पुरातात्विक सामग्री में महान मौर्य सम्राट अशोक द्वारा यमुना-टौस संगम पर स्थापित शिलालेख है, जो कि पाली भाषा में है।
41. कालसी शिला प्रज्ञापनों का पता वर्ष 1860 ई० में लगा।
42. श्रीरघुनाथ मन्दिर देव प्रयाग में है, जहाँ से ब्राह्मी लिपि में चालीस से अधिक यात्री लेख मिले हैं।
43. श्रीरघुनाथ मन्दिर से प्राप्त वामनगुहा लेख भी महत्वपूर्ण है।
44. अभिलेखों में उल्लेखित ‘गोथला’ ग्राम ही प्राचीन गोपेश्वर है।
45. ‘बाड़ाहाट’ वर्तमान उत्तरकाशी का प्राचीन नाम है।
46. केदारखण्ड में सौम्यकाशी एवं उत्तरकाशी नाम से ‘बाड़ाहाट’ का वर्णन मिलता है।
47. कुमाऊँ में गोमती नदी की घाटी में कत्यूर अवस्थित है।
48. अजयपाल पंवार वंश का महानतम शासक था।
49. देवलगढ अजयपाल की राजधानी थी।
50. देवलगढ़ में अजयपाल ने एक राजप्रसाद एवं अपनी कुलदेवी राज राजेश्वरी’ का मन्दिर बनवाया।
51. प्रो० अजय सिंह रावत ने अजयपाल की तुलना महान मौर्य सम्राट अशोक से की है।
52. तांत्रिक विधा की पुस्तक ‘सांवरी ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति में अजयपाल को ‘आदिनाथ कहकर सम्बोधित किया गया है।
53. सहजपाल मुगल सम्राट अकबर का समकालीन था।
54. गढ नरेशों द्वारा “शाह’ उपाधि लगाने की परम्परा का प्रचलन राजा बलभद्र ने किया।
55. देव प्रयाग के क्षेत्रफल मन्दिर के द्वार पर रघुनाथ मन्दिर से प्राप्त शिलालेख मानशाह द्वारा उत्कीर्ण माने जाते हैं।
56. गढ़वाल के राजकवि भरत की कृति मानोदय’ है ।
57. सी० वैसल्स कृत “अर्ली जैसूइट ट्रेवल्स इन सैन्ट्रल एशिया” में प्रकाशित एनड्राडे महोदय के विवरण में महीपतशाह के तिब्बत अभियान का विस्तृत वर्णन है।
58. एनड्राडे ने 11 अप्रैल 1626 ई० में ‘शापराँग’ नामक स्थल पर एक चर्च की स्थापना की।
59. महीपतशाह की रानी कर्णावती गढ़वाल के इतिहास में ‘नाक कटी रानी’ के नाम से प्रसिद्ध है।
60. स्टोरियो डू मोगोर के लेखक के में मुगलों की अनुसार शाहजहाँ के शासनकाल एक लाख पदाति एवं तीस हजार घुडसवारों की सेना को गढराज्य पर आक्रमण के लिए सेनापति नजावत खाँ’ के नेतृत्व में भेजा गया।
61. वर्ष 1655 ई० में खल्ली तुल्ला के नेतृत्व में गढराज्य पर पुनः मुगल आक्रमण हुआ।
62. ‘ट्रैवल्स इन इंडिया के अनुसार मुगल आक्रमणों के द्वारा गढ़राज्य को भयभीत करने का प्रयास किया गया किन्तु गढ़वाल की सेना ने हर बार मुगल सेना को अपार क्षति पहुँचाई।
63. गुरू गाविन्द सिंह की आत्मकथा विचित्रनाटक में वर्णित है कि पाँवटा से 6 मील की दूरी पर स्थित भैगणी नामक स्थल पर गढ़नरेश ओर सिक्ख केसरी के मध्य युद्ध हुआ था।
64. फतेशाह का दरबार भी नवरत्नों से सुशोभित था। इन नवरत्नों में शामिल थे, सुरेशानन्द बर्थवाल, खेतराम धस्माना, रूद्रीदत्त किमोठी.
65. हरिदत्त नौटियाल, वासवानन्द बहुगुणा शशिधर गवाल, सहदेव चन्दोला, कीर्तिराम कनठौला, हरिदत्त थपलियाल।
66. फतेशाह के काल में जयशंकर द्वारा रचित फतेहशाह कर्ण ना आज भी देवप्रयाग के पंडित चक्रधर शास्त्री की पुस्तकालय में रखा है एवं श्री रतन कवि का हस्तलिखित ग्रन्ध फतेहशाह ठा० शूरवीर सिंह के संग्रहालय में उपलब्ध है।
67. कविराज सुखदेव के ग्रन्थ वृत विचार में भी फतेशाह का यशोगान है।
68. हिन्दी जगत के कवि मतिराम की रचना वृत कौमुदी में फतेहशाह की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है और उसकी तुलना छत्रपति शिवाजी से की है।
69. फतेहशाह ने सिक्खों के गुरूराम राय द्वारा देहरादून में गुरुद्वारे के निर्माण का न केवल स्वागत किया अपितु इसकी आय हेतु खुडबुड़ा, बाजपुर एवं चमासारी ग्राम दान में दिए।
70. कालान्तर में फतेशाह के पौत्र प्रदीपशाह ने छायावाला, भजनवाला, पंडितवारी तथा घाटावाला ग्राम गुरू रामराय जी को प्रदान किए।
71. प्रदीपशाह के समय गढ़राज्य से भावर एवं दून घाटी रोहिल्ला सेनापति ने हस्तगत की थी।
72. मौलाराम ने अपनी रचनाओं में पराक्रमशाह को विलासी, दुराचारी एवं चरित्रहीन राजकुमार कहा है।
73. गोरखों का गढ़वाल पर प्रथम आक्रमण 1791 ई० में हुआ।
74. गोरखों ने 1790 ई० में कुमाऊँ राज्य हस्तगत कर लिया था। . 1803 ई० में गोरखों ने गढ़राज्य पर पुनः आक्रमण किया।
75. ‘बाराहाट’ (उत्तरकाशी) में प्रद्युम्नशाह गोरखों से दुबारा पराजित हुए।
75. चमुआ’ (चम्बा) नामक स्थान पर पुनः गढसेना गोरखों से परास्त हुई।
76. गढनरेश एवं गोरखों के मध्य अंतिम और निर्णायक युद्ध खुडबुडा (देहरादून) नामक स्थल पर हुआ। इसमें प्रद्युम्नशाह वीरगति को प्राप्त हुए।
77. गोरखों ने प्रद्युम्नशाह की अत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ हरिद्वार में की।
78. सेरा-खड़कोट एवं मझेड़ा ताम्रपत्र से चन्दों के बम शासकों से सम्बन्धों की जानकारी प्राप्त होती है।
79. चंद वंश की प्रारम्भिक राजधानी चंपावती नदी तट पर बसी चंपावत नगरी थी।
80. बालू कल्याण चंद के काल में ‘अल्मोड़ा’ को पूर्णतः चदों की राजधानी बनाया गया।
81. गणेश सिंह वेदी की पुस्तक ‘शशिवंश विनोद’ है।
82. कुर्मांचल में चंद वंश की स्थापना बाहर से आए एक राजकुमार सोमचेद ने की।
83. आत्मचंद ने मैदानी क्षेत्र से पट्टवायों (रेशम बुनकरो) की श्रेणियों को बुलवाया और रेशम व्यापार के लिए चीन से दौत्य सम्बंध स्थापित किए।
84. ज्ञानचंद पहला चंद राजा था जो स्वयं दिल्ली फिरोजशाह तुगलक के दरबार में नजराना देने गया था। फिरोज ने प्रसन्न होकर उसे ‘गरूड़’ की उपाधि प्रदान की
85. विजयबम के मझेड़ा ताम्रपत्र में ज्ञानचंद को ‘श्री राजा विजय ब्रह्मा’ उद्बोधित किया गया है।
86. रूद्रचंद ने ‘थल’ में एक शिवमन्दिर बनवाया।
87. मुगल सम्राट अकबर का समकालीन कूर्मांचल नरेश रूद्रचंद था।
88. रूद्रचंद ने कुमाऊँ में भी चौथानी ब्राह्मणों की एक मंडली बनाई।
89. रूद्रचंद नेघरों में सेवा कार्य के लिए ‘छयोड़’ तथा छयोड़ियों का प्रवाधान किया गया।
90. लक्ष्मीचंद ने न्याय के क्षेत्र में न्योवली एवं ‘बिष्टाली’ नामक कचहरी बनाई। न्योवली न्यायालय दीवानी मामले एवं बिष्टाली न्यायालय फौजदारी मुकदमें सुना करती थी
91. लक्ष्मीचंद ने अनेकों बाग-बगीचे लगवाएँ जैसे नरसिंह बाड़ी, पांडेखोला, कबीना तथा लक्ष्मीश्वर आदि। उसने 1602 में बागेश्वर के बैद्यनाथ मन्दिर का जीर्णोद्वार करवाया।
92. बाज बहादुर को गढ़वाल के अभियान में मुगलों का साथ देने के लिए ‘बहादुर’ और ‘जमीदार’ की उपाधि भी दी।
93. बाज बहादुर चंद ने कैलाश मान सरोवर जाने वाली तीर्थ यात्रियों के लिए 1673 ई0 में गूंठ भूमि दी थी।
94. तीलु रौतेली नामक वीरांगना ने बाज बहादुर चंद के गढराज्य आक्रमण का सफल विरोध किया।
95. बाज बहादुर चंद का समकालीन डोटी शासक देवपाल था।
96. थल (विधौरागढ़ जनपद) से प्राप्त एकहथिया नौला का बाज बहादुर चंद ने निर्माण करवाया था।
97. हथिया देवाल की बनावट एलीहा राष्ट्रकेटर से मिलती-जुलती है।
98. उद्योतचंद ने त्रिपुरा सुन्दरीत का निर्माण भी करवाया।
99. ज्ञानचंद ने बधानगढ़ी को लूटा और वहीं से नंदादेवी की सवर्ण प्रतिमा अपने साथ ले गया और उसे अल्मोड़ा के नंदादेवी मन्दिर में पुर्नस्थापित करवाया।
100. जगतचंद ने श्रीनगर के भीषण युद्ध में गढनरेश फतेहाह को परास्त किया।
101. देवीसिंह को कुछ विद्वान कुमाऊँ के मुहमद तुगलक की संज्ञा देते हैं।
102. प्रदीपशाह ने अपनी पारम्परिक शत्रुता को भुलाकर कल्याण चंद की संरक्षण प्रदान किया।
103. शिवदेव जोशी ने काशीपुर एवं रुद्रपुर में किलों का निर्माण करवाया।
104. शिवदेव जोशी ने विन्सर ग्राम को ग्रीष्मकालीन पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया और यहाँ विन्सर महादेव का मन्दिर बनवाया।
105. शवदेव जोशी ने चार हजार कुमाऊँनी सैनिक बीरबल नेगी के नेतृत्व में पानीपत के मैदान में मुगल सेना की सहायता हेतु भेजे।
106. चंद वंश के शासकों ने अधिकांश शासनादेश नेपाली मिश्रित कुमाऊँनी भाषा में जारी किए हैं।
107. कटार की गूंठ चंद वंश का राजकीय चिन्ह रहा।
108. ताम्रपत्र के लेखक जोईसी कहलाते थे।
109. राजा द्वारा प्रदत्त भूमिदान को रौत कहा जाता था।
110. ग्राम के प्रशासन को ‘सयाना अथवा बुढा चलाते थे। सयाना / बूढ़ा अपने क्षेत्र में न्यायधीश का कार्य भी करते थे एवं जिस स्थल पर इनकी पंचायत होती थी. उसे बूढाचौरा कहते थे।
111. फांसी: ऊँचे पहाड़ों पर दी जाती थी, जिसके लिए शूली का डांडा शब्द प्रयुक्त मिलता है।
112. दंड देने वाले अधिकारी को उई कहते थे।
113. पहाड़ी क्षेत्रों में एक प्रकार के भूदास केनी कहलाते थे।
114. राजा रीत. गूढ, विष्णुप्रीति में जिसे भूमिप्रदान करता था. यह चातवान कहत्ाता था।
115. अधाली तौल की इकाई थी जोकि 15 किलोग्राम के बराबर थी।
116. चंदकाल में 36 प्रकार के राजकर लगाए गये थे, जिन्हें ‘छतीसी’ कहा जाता था।
117. युद्ध के अवसर पर लिया जाने वाला अतिरिक्त कर मांगा था।
118. मिझारी नामक कर कामगारों पर लगता था।
119. बूनकरों पर लगाए जाने वाले कर को तान/टांड कहते थे।
120. उत्कीर्णक का कार्य सुनार एवं टमटा करते थे।
121. पिथौरागढ़ का प्राचीन नाम ‘सोर’ नाम भी ‘सोर नामक नाग’ जाति के आधार पर ही पड़ा।
122. चंद राजा स्वयं शैव सम्प्रदाय के उपासक थे।
123. त्रिमंलचंद ने जागेश्वर के मन्दिर बनवाए, जो कि आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान (ASI) द्वारा संरक्षित हैं।
124. हस्तिदल चौतरिया, जगजीत पांडे, अमरसिंह थापा एवं शूरवीर थापा के नेतृत्व में गोरखा सेना ने वर्ष 1790 के प्रारम्भ में कुमाऊँ अभियान के लिए प्रस्थान किया
125. हर्षदेव जोशी ने कुमाऊँ अभियान में गोरखाओं का समर्थन किया।
126. गैंतोड़ा ग्राम के युद्ध में अमर सिंह थापा ने लाल सिंह की सेना को शिकस्त दी।
127. नेपाल नरेश का प्रतिनिधि जो कुमाऊँ प्रांत का शासनभार देखता था, उसे सुब्बा कहते थे।
128. कुमाऊँ का प्रथम सुब्बा जोगा मल्ला शाह था।
129. 1791 ई0 में हर्षदेव की मदद से गोरखों ने गढ़वाल राज्य पर प्रथम आक्रमण किया।
130. लंगूरगढ की सन्धि के तहत प्रद्युम्नशाह ने नेपाली दरबार को वार्षिक कर देना स्वीकार कर लिया।
131. 1795 ई० में अमरसिंह थापा को कुमाऊँ का नया प्रशासक नियुक्त कर अल्मोड़ा भेजा गया।
132. चौतरिया, बमशाह चौतरिया इत्यादि के नेतृत्व में गोरखा सेना ने लंगूरगढ़ी अपमान को धोने के लिए जनपद चमोली से गढ़राज्य में प्रवेश किया।
133. खुड़बुड़ युद्ध से पूर्व प्रद्युम्नशाह ने लण्ढ़ोरा रियासत वर्तमान सहानपुर में जाकर शरण ली।
134. 14 मई, 1804 ई0 को प्रसिद्ध खुड़बुड़ा का युद्ध हुआ, जिसमें प्रद्युम्नशाह वीरगति को प्राप्त हुआ और उसके छोटे भाई प्रीतमशाह को गोरखे बन्दी बनाकर नेपाल ले गये।
135. पराक्रमशाह भागकर हिन्दूर गया अथवा कांगड़ा रियासत के संसारचंद की शरण में गया था।
136. प्रद्युम्नशाह का अल्पव्यस्क पुत्र सुदर्शनशाह हरिद्वार के समीप स्थित ज्वालापुर में ब्रिटिश संरक्षण में लम्बे समय तक रहा।
137. हर्षदेव जोशी 1797 ई० में गढ़नरेश के वकील के रूप में ब्रिटिश रेजीडेण्ट के पास बनारस भी गया।
138. जोगा मल्ला ने कुमाऊँ में सर्वप्रथम भू-प्रबन्ध व्यवस्था का शुभारम्भ किया।
139. पाली. सोर और ब्रहामण्डल में बसे नगरकोट से आए लोग, जो पूर्वकाल से ही भाड़े पर कार्य करने के लिए इस क्षेत्र में आते थे जिनमें से कुछ ने स्थानीय कन्याओ से विवाह किया और वे यहाँ बस गए। इनकी स्वामिभक्ति को संदेहास्पद मानकर काजी नरशाही ने एक मंगलवार की रात्रि सबकी हत्या करवा दी। आज भी लोग इस कुत्सित घटना को मंगल की रात और नरशाही का पाला के रूप में याद कर सिहर उठते हैं।
140. गुरुरामराय दरबार के तात्कालीन महन्त हर सेवक दास जी ने लोगों को दून घाटी में पुनःस्थापित करने का अथक प्रयास किया।
141. गोरखा प्रशासन विशुद्ध सैन्य प्रशासन था।
142. फ्रेजर महोदय ने अनुमान लगाया है कि अपने पूरे शासनकाल में गोरखों ने लगभग दो लाख से अधिक स्त्री-पुरूष एवं बच्चों का विक्रय किया।
143. कत्यूरी एवं चंद काल के मन्दिरों को प्रदत्त भूमि ‘विश्नुप्रीत’ कहलाती थी। गोरखों में वे इसको ‘गूठ’ कहते थे।’
144. प्रत्यक्षदर्शी कैप्टन रैपर के अनुसार- प्रतिवर्ष हरिद्वार स्थित गोरखा चौकी में दास-दासियों की बिक्री होती थी।’
145. सुवांगी दस्तूर एक प्रकार का भू-कर था।
146. गोला दीप एक प्रकार की अग्नि परीक्षा थी।
147. गोरखों के दण्ड विधान का विस्तृत वर्णन ट्रेल महोदय ने दिया है।
148. गोरखे मूलतः हिन्दू एवं मंगोलाइट नस्ल का मिश्रित रूप थे।
149. प्रधान अधिकारी पद पर रहते हुए वे जागिरिया कहलाते थे. एवं पेशनयाप्ता होने पर ‘ठाकुरिया कहलाते थे।
150. गोरखा काल में कार्यरत सैनिकों को ‘जागचा एवं सेवामुक्त सैनिकों को ‘ढाकचा कहा जाता था।
उत्तराखंड सामान्य ज्ञान 2022 (Uttarakhand 200 One Liner GK Hindi )
151. गोरखा सेना का मुख्य अस्त्र खुकरी होता था।
152. ‘खुकरी’ निर्माण का प्रमुख केन्द्र डोटी का ‘गढ़ी’ नामक नगर था।
153. गढी नगर के नेवार जाति के लुहार मुख्य रूप से खुकरियां बनाकर गोरखा सेना को उपलब्ध कराते थे।
154. 1815-16 में अंग्रेजों द्वारा स्थापित देहरादून स्थित खंलगा स्मृति स्तम्भ गोरखा वीरों की बहादुरी एवं उनके सही व्यक्तित्व को अंग्रेजी सलामी है।
155. गोरखों का प्रिय त्यौहार ‘दशाई’ अथवा दशहरा है। इस दिन गोरखे अपने अस्त्र-शस्त्रों की पूजा करते हैं।
156. नेपाल का अधिकांश साहित्य नेवारी भाषा में मिलता है।
157. गोरखाली की उत्पति संस्कृत से मानी जाती है।
158. 1787 ई0 में भीमसेन थापा ने जब गोरखपुर के करीब 200 से अधिक गांवों का अधिग्रहण किया, तो ईस्ट इंडिया कम्पनी की चुप्पी टूट गई।
159. अप्रैल 1814 ई० को गर्वनर जनरल लार्ड हेस्टिग्स ने अपनी सेना को गोरखों द्वारा अधिग्रहित ब्रिटिश क्षेत्र को वापस लेने का आदेश दे दिया।
160. मेजर ब्रेदशॉ को गोरखों से समझौता करने हेतु नियुक्त किया गया। • गवर्नर लार्ड मायरा ने दृढ निश्चय करते हुए नवम्बर 1814 को नेपाल के विरूद्ध युद्ध की औपचारिक घोषणा कर दी।
161. मेजर जनरल मार्ले को एक हजार सैनिकों के साथ राजधानी काठमाण्डू पर, आक्रमण हेतु तैनात कर दिया गया।
162. मेजर जनरल जे०एस०वुड को चार हजार सैनिकों के साथ गोरखपुर पर आक्रमण हेतु तैनात कर दिया गया।
163. मेजर जनरल जिलेस्पी को साढ़े तीन हजार सैनिकों के साथ देहरादून पर, आक्रमण हेतु तैनात कर दिया गया।
164. मेजर जनरल ऑक्टरलोनी को साढे छः हजार सैनिकों की कमान के साथ गोरखा साम्राज्य के एकदम पश्चिमी भाग में तैनात कर दिया गया।
165. गोरखाली भाषा में ‘खलंगा का शाब्दिक अर्थ सैन्य शिविर से होता है।
166. इस युद्ध में गोरखों के शौर्य एवं वीरता का सम्मान करते हुए अंग्रेजों ने खंलगा (नालापानी क्षेत्र) में रिस्पना नदी के बांई ओर दो स्मारक स्थापित किए। इनमें से एक जनरल रोलो गिलेस्पी और उसके मृत सैनिकों की स्मृति में तथा द्वितीय बलभद्र सिंह थापा एवं उसके वीर सैनिकों के सम्मान में स्थापित किया।
167 मलाऊ किले की विजय अंग्रेजों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थी. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जनरल आकटरलोमी ने यही पर पहली गोरखा राइफल की स्थापना की. जो कि लोनी भी भारतीय सेना में मलाऊं राईफलस के नाम से प्रसिद्ध है।
168. उत्तराखंड में अंग्रेजों ने सर्वप्रथम काशीपुर में एक मांग की फैक्टरी स्थापित की।
169. 1802 ई0 में लार्ड वेलीजेली ने गॉट महोदय को कुमाऊँ की जलवायु, जंगल एवं परिस्थितियों का संकलन करने के लिए भेजा।
170. मारकिसस ऑफ हेस्टिंग्स लार्ड मायरा काशीपुर होते हुए कुमाऊँ भ्रमण पर आये थे और उन्होंने ही सर्वप्रथम इस सुन्दर प्रदेश को ब्रिटिश नियंत्रण में देखने का स्वप्न देखा था।
171. मार्च 1816 को पुष्ट हुई सिंगौली की सन्धि के पश्चात् अंग्रेजों का उत्तराखंड पर राजनीतिज्ञ अधिकार हो गया।
172. ब्रिटिश कुमाऊँ को एक गैर-विनियमित क्षेत्र के रूप में प्रशासित किया गया।
173. उत्तराखंड राज्य की राजस्व पुलिस व्यवस्था अंग्रजों की विशिष्ट देन है। वर्तमान में भी उत्तराखंड भारत वर्ष का एकमात्र राज्य है, जो पटवारी व्यवस्था द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों को संचालित करता है।
174. गार्डनर को 1815 ई० में कुमाऊँ का पहला कमिश्नर नियुक्त किया गया।
175. ट्रेल महोदय को कुमाऊँ बंदोबस्त के लिए जाना जाता है।
176. विलियम ट्रेल कुमाऊँ, गढ़वाल के द्वितीय आयुक्त थे।
177. ट्रेल महोदय ने कुमाऊँ, गढ़वाल में 20 वर्ष सेवा दी, जिसमें लगभग 19 वर्ष तक वे यहाँ के आयुक्त रहे। उन्हें कुमाऊँ का प्रथम वास्तविक आयुक्त भी माना जा सकता है।
178. ट्रेल महोदय ने गोरखा राजस्व व्यवस्था के स्थान पर स्थानीय परिस्थितियों एवं पूर्व परम्पराओं के अनुसार कुमाऊँ प्रान्त का 26 परगनों में विभाजन किया और अस्सी के बंदोबस्त के रूप में राजकीय अभिलेखों में राजस्व का ग्रामवार अंकन कराया।
179. ट्रेल ने अपने कार्यकाल में कुल 7 बंदोबस्ती चक्र पूर्ण किए।
180. सन् 1826 ई० में देहरादून व चंडी क्षेत्र को कुमाऊँ में शामिल किया गया।
181. कुमाऊँ को रेगुलेशन प्रान्तों की भाँति एक नियमित प्रांत बनाने के लिए अधिनियम- 10 (Act-10) अप्रैल 1838 ई० में प्राख्यापित हुआ।
182. नियमित प्रांत बनाने के लिए अधिनियम- 10 (Act-10) व्यवस्था के तहत प्रथम कमिश्नर जार्ज लुशिंगटन बने।
183. जार्ज लुशिंगटन ने नैनीताल शहर की स्थापना की।
184. बड़े की अनुशंसा पर तराई भावर में द्वैध शासन व्यवस्था लगी।
185. लुशिंगटन महोदय ने कुमाऊँ में असम रूल्स को स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप बनाने का प्रयास किया। इसके कारण ही सदर की दीवानी एवं निजामत अदालतों ने उसके सुझावों के माध्यम से संशोधित नियमों की श्रृंखला जारी, की, जिन्हें बाद में ‘कुमाऊँ प्रिंटेड रूल्स’ कहा गया।
186. कवि गुमानी पंत ने लुशिंगटन की प्रशंसा में कुद छंदों की रचना की।
187. बैटन ने सन् 1852-53 में चाय की खेती को प्रोत्साहित किया।
188. हेनरी रामजे ने ब्रिटिश कुमाऊँ में विभिन्न पदों पर कुल 44 वर्षों तक कार्य किया।
189. रामजे मूलतः स्काटलैंड के निवासी और लार्ड डलहौली के चचेरे भाई थे।
190.अंग्रेज लेखकों ने तो हेनरी रामजे को ‘कुमाऊँ का राजा’ की संज्ञा से भी विभूषित किया है।
191. 1857 के सैनिक विद्रोह के अवसर पर उत्तराखंड रामजे के अधीन था।
192. रामजे ने बैकेट महोदय को बंदोबस्त का कार्य सौंपा।
193. बैकेट द्वारा किया गया बंदोबस्त गढ़वाल-कुमाऊँ के एक ही अधिकारी द्वारा किया गया अन्तिम बंदोबस्त था।
194. रामजे ब्रिटिश कुमाऊँ के पहले वन संरक्षक ळाह थे।
195. राजस्व पटवारियों की पुलिस शक्तियों के सम्बन्ध में नियम मार्च 1916 में बने।
196. ब्रिटिश गढ़वाल का मुख्यालय ‘श्रीनगर’ गढ़वाल था, जिसे 1840 ई0 में पौड़ी स्थानान्तरित कर दिया गया।
197. 1890 ई० में अल्मोड़ा जनपद को दो जनपद नैनीताल एवं अल्मोड़ा में विभक्त कर दिया गया।
198. 1904 ई0 के नैनीताल गजेत्यिर में इस क्षेत्र के लिए ‘हिल स्टेट’ शब्द का प्रयोग हुआ है।
199. मुगल इतिहासकारों ने संपूर्ण उत्तराखंड के पर्वतीय राज्य के लिए कुमाऊँ पर्वत नाम का ही प्रयोग किया है।
200. विकेट महोदय ने राजस्व निर्धारण का जो तरीका निर्धारित किया वह बंदोबस्त सन अस्सी के बंदोबस्त के नाम से प्रसिद्ध है।
201. कुमाऊँ में जंगलात विभाग बनाने पर प्रथम पहल ट्रेल महोदय ने 1826 में की।
202. वर्ष 1865 से जंगल संरक्षित किए जाने लगे।
203. ट्रेल महोदय ने स्वयं स्वीकार किया है कि इस प्रांत में अपराधों की संख्या कम होने से फौजदारी पुलिस की कोई आवश्यकता नहीं है। कत्ल को यहाँ कोई जानता नहीं। चोरी व डकैती बहुत कम होती है।’
204. पहाड़ों में अल्मोड़ा का थाना सबसे प्राचीन है, जो 1837 ई० में स्थापित हुआ।
205. सर्वप्रथम अंग्रेजों ने एक स्कूल श्रीनगर गढ़वाल में 1840 ई0 में शुरू किया।
206. वर्ष 1871 ई० में प० बुद्धिबल्लभ पंत शिक्षा इन्सपेक्टर बने।
207. खांई क्षेत्र टिहरी रियासत को वर्ष 1824 में दिया गया।
208. वर्ष 1942 से कुमाऊँ कमिश्नर को ही टिहरी रियासत में राजनैतिक प्रतिनिधित्व सौंप दिया गया।
209. सुदर्शनशाह ने भागीरथी एवं भिलंगना नदी के संगम स्थल पर गणेश प्रयाग (त्रिहरि) नामक स्थल पर अपनी राजधानी की स्थापना करवाई। इससे पूर्व इस स्थल पर मछुआरों की कुछ झोपड़ियां थी और इसे टिपरी नाम से पुकारा जाता था।
210. सुदर्शनशाह ने टिहरी में एक राज प्रासाद बनवाया जो पुराना दरबार नाम से प्रसिद्ध था।
211. 1857 ई0 के विद्रोह के दौरान सुदर्शनशाह ने अंग्रेजों की हर संभव मदद की।
212. प्रतापशाह ने नई राजधानी प्रतापनगर की स्थापना अपने नाम से की। इसके साथ ही अपने नाम से शहर स्थापित करने की प्रथा का शुभारम्भ करने का श्रेय भी प्रतापशाह को ही जाता है।
213. ब्रिटिश सरकार ने प्रतापशाह को ‘कम्पेनियन ऑफ इण्डिया एवं नाइट कमाण्डर जैसी उपाधियों से विभूषित किया। वर्ष 1900 ई० में वे इग्लैण्ड की यात्रा पर गए जहाँ उन्हें ग्यारह तोपों की सलामी दी गई।
214. प्रतापशाह ने टिहरी शहर में प्रताप हाईस्कूल एवं हीवेट संस्कृत पाठशाला की स्थापना की।
215. कीर्तिशाह को अपनी रियासत के लोगों का विद्युत से परिचय कराने का श्रेय जाता है।
216. कीर्तिशाह ने उत्तरकाशी में कोड के रोगियों की चिकित्सार्थ कोडी खाना की स्थापना की।
217. कीर्तिशाह ने रियासत के कृषकों की सहायता के लिए कृषि बैंक स्थापना की।
218. आधुनिक छापाखाने की नींव भी कीर्तिशाह के समय ही पड़ी।
219. कीर्तिशाह ने टिहरी शहर में एक आधुनिक वैधशाला का निर्माण कराया।
220. कीर्तिशाह ने रामतीर्थ के विचारों को प्रोत्साहन दिया एवं जापान में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय धर्म सम्मेलन में भाग लेने भी स्वामी जी को भेजा था।
221. कीर्तिशाह ने अलकनन्दा नदी के दाएँ तट पर कीर्तिनगर की स्थापना की।
222. नरेन्द्रशाह ने प्रताप हाई स्कूल टिहरी को उच्चीकृत कर प्रताप इण्टरमीडिएट कॉलेज में तबदील किया।
223. नरेन्द्रशाह ने वर्ष 1933 ई० में अपने पिता की स्मृति में एक लाख रूपये की एकमुश्त रकम एवं छः हजार रूपये की सालाना राशि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को सहायता के रूप में प्रदान की। इसी रकम से स्थापित ‘महाराजा कीर्तिशाह चैम्बर ऑफ केमस्ट्री वर्तमान में भी प्रतिवर्ष यह छात्रवृति प्रदान करता है।
224. 1921 में नरेन्द्रशाह ने अपने नाम पर नरेन्द्रनगर की स्थापना की।
225.अंग्रेजी सरकार ने नरेन्द्रशाह को अठारहवीं गढ़वाल राईफल रेजीमेण्ट का मानद लैपिटीनैण्ट एवं के०सी०एम०आई०’ की उपाधियों से भी अलंकृत किया।
226. बनारस विश्वविद्यालय ने भी नरेन्द्रशाह को वर्ष 1937 ई० में एल०एल०डी० उपाधि प्रदान की।
227. नरेन्द्रशाह के समय वर्ष 1930 में यमुना नदी तट पर स्थित तिलाड़ी मैदान की घटना है. जिसे रखांई कांड के नाम से जाना जाता है।
228. नरेन्द्रशाह के समय दूसरी घटना टिहरी कारागार में बन्दी श्रीदेव सुमन द्वारा चौरासी दिनों तक की भूख हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु थी।
229. 1 अगस्त 1949 को टिहरी राज्य का विलय भारत संघ में कर, इसे तात्कालीन संयुक्त प्रांत का 50वां जनपद बना दिया गया।
230. कीर्तिशाह ने टिहरी में ही मुहमद मदरसा और वे भनि हाउस बनवाया।
231. प्रतापशाह ने वर्ष 1876 में टिहरी रियासत में पहला खेरताती शफाखाना स्थापित करवाया।
232. सर्वप्रथम आधुनिक चिकित्सालय की स्थापना 1923 ई० में नरेन्द्रशाह ने की।
233. रेडक्रॉस सोसाइटी की स्थापना राज्य में वर्ष 1934 ई० में हुई। • न्याय व्यवस्था के आधुनिकीकरण की पहल नरेन्द्रशाह ने की।
234. नरेन्द्रशाह ने परम्परागत एवं प्रथागत नियमों को संहिताबद्ध करवाया
235. जिन्हें नरेन्द्र हिन्दू लों के नाम से जाना जाता है।
236. वर्ष 1938 ई० में नरेन्द्रशाह ने राज्य में एक हाईकोर्ट की स्थापना की।
237. भूमिकर का 7/8 भाग नकद लिया जाता था, जिसे रकम कहते थे।
238. सुदर्शनशाह ने वादी से शुल्क लेने की प्रथा आरम्भ की।
239. सकलाना क्षेत्र के कमीण, सयाणा एवं प्रजा का 1935 ई० का संगठित आन्दोलन टिहरी रियासत का प्रथम जन आन्दोलन था।
240. अठूरवासियों के विद्रोह का नेतृत्व बद्रीसिंह असवाल ने किया।
241. राजा भवानीशाह के शासनकाल में भी रवाई की प्रजा ने विद्रोह किया।
242. टिहरी रियासत में 1882 ई० में लछमू कठैत के नेतृत्व में बासर
243. ढंढक हुआ। 1903-04 में टिहरी रियासत के कजरवेटर केश्वानन्द रतूड़ी द्वारा
244. दैण और पुच्छी नामक कर लगाने पर विप्लव हुआ। • टिहरी रियासत में ‘बरा-बेगार की कुप्रथा के विरूद्ध स्थानीय व्यक्ति रूपसिंह ने आवाज बुलन्द की।
245. 30 मई 1930 को टिहरी रियासत की सेना ने यमुना नदी तट पर स्थित तिलाड़ी के मैदान में एकत्रित रवाई क्षेत्र जनता पर गोलियों की बरसात कर दी।
246. इसी कारण इस रक्तरंजित घटना को टिहरी रियासत के इतिहास में टिहरी का जलियावाला काण्ड भी कहा जाता है।
247. जन आन्दोलन के कारण टिहरी रियासत में ‘आजाद पंचायत लोकप्रिय होने लगी।
248. रवाई आंदोलन का नेतृत्व कर रहे नागणा के हीरा सिंह, कसरू के दयाराम एवं खमुण्डी के बैजराम और लाला राम प्रसाद सहभी साधारण कृषक थे।
249. रवाई हत्याकाण्ड के वक्त राजा नरेन्द्रशाह यूरोप की यात्रा पर थे।
250. 1935 ई० में सकलाना पट्टी के उनियाल गाँव में सत्यप्रसाद रही द्वारा बाल सभा की स्थापना की।
251. बाल सभा का उद्देश्य छात्र-छात्राओं में राष्ट्रीयता का प्रचार-प्रसार करना था।
252. 1936 ई० दिल्ली में गढ़देश सेवा संघ की स्थापना की गई।
253. मार्च 1938 ई० को दिल्ली में अखिल पर्वतीय सम्मेलन हुआ, जिसमें स्वयं बद्रीदत पाण्डे व श्रीदेव सुमन ने भाग लिया।
254. 1938 में श्रीनगर गढ़वाल में एक राजनैतिक सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसकी अध्यक्षता प० जवाहरलाल नेहरू ने की जिसमें सम्मेलन में श्रीदेव सुमनजी ने टिहरी राज्य की प्रजा के कष्टों से सम्बन्धित एक प्रस्ताव भी पारित करवाया था।
255. जून 1938 ई० में मानवेन्द्र नाथ की अध्यक्षता में ऋषिकेश के सम्मेलन में टिहरी राज्य की जनता की समस्याओं पर मंथन हुआ
256. टिहरी राज्य प्रजामण्डल की स्थापना देहरादून में श्याम चन्द्र नेगी के आवास पर हुई थी।
257. श्रीदेव सुमनजी ने जेल में 3 मई 1944 से भूख हड़ताल शुरू कर दी, जोकि 25 जुलाई को उनकी मृत्यु पर ही समाप्त हुई।
258. श्रीदेव सुमनजी ने लगभग 209 दिन कारावास में बिताए, जिसमें से अन्तिम 84 दिन भूख हड़ताल पर रहने के बाद अपने प्राण त्याग दिए।
259. इतिहासविद् शेखर पाठक ने उनकी भूख हड़ताल को ऐतिहासिक अनशन की संज्ञा दी।
260. आजाद हिन्द फौज के सैनिक टिहरी जन आन्दोलन के समर्थन में वर्ष 1946 ई० में यहाँ जाए और उनके प्रयासों से 26 जुलाई 1946 ई० को प्रथम बार सुमन दिवस मनाया गया।
261. 12 अगस्त 1948 को व्यस्क मताधिकार के आधार पर टिहरी विधानसभा का पृथक चुनाव हुआ, जिसमें 24 स्थान प्रजामण्डल, 5 प्रजा हितैषणी सभा और 2 स्वतंत्र प्रत्याशियों को प्राप्त हुए।
262. यद्यपि इस उपेक्षा और समस्याओं से घिरे लोगों में पृथक राजनैतिक सांस्कृतिक पहचान की दिशा में स्वतन्त्रता से पूर्व ही सुगबुगाहट शुरू हो चुकी थी। सर्वप्रथम 1897 ई० में महारानी को भेजे बधाई संदेश में इस सन्दर्भ में बात रखी गई थी। वर्ष 1923 ई० में पर्वतीय क्षेत्र को सयुंक्त प्रान्त से पृथक् करने का ज्ञापन राज्यपाल को सौंपा गया।
263. उत्तराखंड पर्वतीय राज्य की मांग को 1928 के काँग्रेस अधिवेशन में उठाया गया।
264.1938 में श्रीनगर गढ़वाल के कॉंग्रेस अधिवेशन में स्वयं जवाहरलाल नेहरू ने इसकी वकालत की।
265. वर्ष 1952 में सी०पी०आई० के महासचिव पी०सी० जोशी ने केन्द्र सरकार को पृथक् उत्तराखंड राज्य के संबंध में ज्ञापन दिया।
266. वर्ष 1972 में क्षेत्रीय समस्याओं के लिए संघर्ष करने हेतु नैनीताल में उत्तरांचल परिषद् का गठन हुआ।
267. वर्ष 1978 को उत्तराखंड युवा मोर्चा ने पृथक् राज्य के नारे के साथ बद्रीनाथ से दिल्ली तक पद यात्रा की।
268. वर्ष 1978 में जनता पार्टी की सरकार के ही सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में उत्तरांचल राज्य परिषद् का गठन कर वोट क्लब पर प्रदर्शन किया गया।
269. वर्ष 1979 में मसूरी में आयोजित पर्वतीय जन विकास सम्मेलन में पृथक् राज्य की मांग उठाने के लिए एक राजनैतिक संगठन उत्तराखंड क्रान्ति दल का गठन किया गया।
270. उत्तराखंड क्रान्ति दल के प्रथम अध्यक्ष कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति डा० देवीदत्त पन्त बने।
271. भाजपा ने अपने विजयवाड़ा अधिवेशन में इस पर्वतीय क्षेत्र के लिए ‘उत्तरांचल’ नाम अंगीकृत किया।
272. मुलायम सिंह यादव ने 1994 में पृथक् उत्तराखंड गठन हेतु कौशिक समिति का गठन किया, जिसके अध्यक्ष रमाशंकर कौशिक थे।
273. 2 अगस्त 1994 ई० को उत्तराखंड क्रान्ति दल ने पौड़ी गढ़वाल प्रेक्षागृह के बाहर आमरण अनशन शुरू कर पृथक राज्य निर्माण आंदोलन को व्यापकता प्रदान की। इसे उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के इतिहास की अगस्त क्रान्ति कहा जाता है।
274. 1 सितम्बर 1994 के दिन खटीमा में आंदोलन समर्थकों ने शांतिपूर्वक जुलूस में पुलिस ने बिना चेतावनी के अश्रुगैस व गोलियाँ दागी. जिसे खटीमा कांड के नाम से जाना जाता है।
275. मसूरी के निकट बाटाघाट का घटनाक्रम 15 सितम्बर, 1994 का है।
276. श्रीयंत्र टापू पर आवश्यक सामग्री एकत्रित करने के पश्चात् 8. अक्टूबर, 1995 को प्रातः तिरंगा व उक्रांद ध्वज लहराकर उत्तराखंड क्रान्ति दल ने क्रमिक अनशन प्रारम्भ किया।
277. जिला टिहरी में भागीरथी व भिलंगना नदी के उत्तर स्थित पौराणिक पर्वत “खैट” लगभग दस हजार फीट की ऊँचाई वाला पर्वत है।
278. पौराणिक पर्वत ‘खैट” आच्छारियों (परियों) की किवदंती के लिए मशहूर है।
279. पौराणिक पर्वत “खैट” की चोटी पर शक्ति रूपी का दुर्गा मंदिर है।
280. उत्तराखंड क्रांति दल के फील्ड मार्शल दिवाकर ने पौराणिक पर्वत “खैट” जितना दुर्गम स्थल सोच समझकर चुना। इसी पर्वत पर हुए अनशन के परिणामस्वरूप उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के मुद्दे पर सकारात्मक सरकारी पहल की शुरूआत हुई।
281. सर्वप्रथम मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में सन 1557 में पुर्तगाली मिशनरी द्वारा पहला प्रिटिंग प्रेस गोवा में स्थापित किया गया।
282. 29 जनवरी 1780 को भारत में मुद्रित पहला समाचार पत्र ‘द बंगाल गजट’ अथवा ‘द कलकता जेनरल एडवटाइजर’ के नाम से प्रकाशित हुआ।
283. वर्ष 1624 में अन्तोनियो दे अनद्रादे नामक पहला ईसाई था, जो श्रीनगर पहुँचा।
284. सन् 1853 में मंसूरी में अन्दरिया नामक एक कबीर पंथी साधू देवभूमि के नाम से जानी जाने वाली उत्तराखंड की भूमि पर ईसाई धर्म की दीक्षा लेने वाला पहला व्यक्ति था।
285. उत्तराखंड की भूमि पर ईसाई धर्म की दीक्षा लेने वाला पहला गढ़वाली ‘ख्याली ओड’ था, जो पेशे से एक राज मिस्त्री था। उसने सन् 1867 में ईसाई धर्म की दीक्षा ली।
286. सन् 1870 में अल्मोड़ा में पहली बार सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक समस्याओं के समाधान हेतु ‘डिबेटिंग क्लब नामक एक छोटी सी संस्था अस्तित्व में आई।
287. सन् 1871 में अल्मोड़ा से ही देश का पहला हिन्दी भाषी आंचलिक समाचार पत्र ‘अल्मोड़ा अखबार’ प्रकाशित हुआ।
288. सन् 1868 में ‘समय विनोद’ नाम से एक हिन्दी समाचार-पत्र नैनीताल से जय दत्त जोशी नामक वकील के सम्पादन में प्रकाशित हुआ था।
289. सन् 1842 में जॉन मेकिनन नाम के ईसाई पादरी ने ‘द हिल्स’ नाम से उत्तराखंड का पहला आंग्ल भाषी समाचार पत्र प्रकाशित किया।
290. समय विनोद उत्तराखंड से प्रकाशित होने वाला हिन्दी का पहला समाचार-पत्र था।
291. 1871 में बुद्धिबल्लभ पंत के सम्पादन में ‘अल्मोड़ा अखबार’ का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
292. विश्म्भरदत्त चन्दोला के द्वारा ‘गढ़वाली का प्रकाशन 1905 में किया गया।
293. 18 अक्टूबर 1918 को विजयदशमी के अवसर पर बद्रीदत पाण्डे के सम्पादन में ‘शक्ति’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ।
294. समाचार पत्र ‘कुमाँऊ कुमुद’ का प्रकाशन सन् 1922 में बसन्त कुमार जोशी द्वारा अल्मोड़ा से किया गया। स्वामी विचारानन्द सरस्वती देहरादून में अभय नामक एक प्रिन्टिंग प्रेस चलाते थे।
295. गिरिजा दत नैथाणी ने 1902 में लैन्सडौन से ‘गढ़वाल समाचार नाम से एक मासिक का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
296. कृपाराम मिश्र ‘मनहर सम्पादन में अप्रैल 1929 ई० में गढदेश का पहला अंक प्रकाशित हुआ।
297. मुंशी हरिप्रसाद टम्टा ने सदियों से उपेक्षित व दबे-कुचले इस वर्ग को समाज में उचित अधिकार दिलाने के उद्देश्य से अल्मोड़ा से सन् 1934 में समता नामक साप्ताहिक हिन्दी समाचार-पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
298. भगवती प्रसाद पांथरी के सम्पादन में 15 अगस्त 1947 को देहरादून से युगवाणी नामक समाचार पत्र का पहला अंक प्रकाशित हुआ।
299. कुजां ताल्लुका रुड़की के विजय सिंह के नेतृत्व में 1824 ई0 में विद्रोह हुआ, जिसको अंग्रेजी सेना ने बड़ी बर्बरता से दबा दिया।
300. गढ़वाल के प्रसिद्ध चित्रकार मोलाराम की कृतियों से भी स्पष्ट होता है कि अंग्रेजी शासन भी पूर्ववती गोरखाराज के समान स्वेच्छाचारी, व्यभिचारी कृत्यों से परिपूर्ण था। उन्होंने तो इसे गोरखा आततयी शासन के पुनरावृति की संज्ञा दी है।
301. 1901 में देहरादून में “गढ़वाल यूनियन” की स्थापना हुई, जिसके प्रयासों से बेगार सम्बन्धी प्रश्न प्रान्तीय कौन्सिल और गर्वनर जनरल की कौन्सिल में प्रथमतः उठाए गए।
302. 1883 ई० में अल्मोड़ा में इलबर्ट बिल के समर्थन में आयोजित सभा की अध्यक्षता बुद्धिबल्लभ पंत ने की थी।
303. वर्ष 1897 ई0 में दयानन्द सरस्वती ने हरिद्वार कुम्भ में पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराई।
304. अन्ततः 1916 ई० में कुमाऊँ कमिश्नरी को एक नामजद मेम्बर मिला।
305. तारादत्त गैरोला को सरकार द्वारा प्रथम कौंसिल सदस्य नामजद किया गया।
306. धनीराम वर्मा ने 1907 में कोटद्वार नगर में गोरक्षणी सभा की स्थापना की।
307. 1907 में मथुरा प्रसाद नैथानी के प्रयासो से लखनऊ में गढ़वाल भृात्र मण्डल की स्थापना की गई, जिसका प्रथम सम्मेलन कुलानन्द बड़थ्वाल की अध्यक्षता में 1908 ई० में कोटद्वार में हुआ।
308. कुमाऊँ क्षेत्र में काग्रेस की स्थापना वर्ष 1912 ई0 में हुई।
309. कुमाऊँ क्षेत्र में मोहन जोशी, चिरंजीलाल, बदरीदत्त पाण्डे इत्यादि ने इस क्षेत्र में होमरुल की स्थापना कर राष्ट्रीय आन्दोलन में सहयोग किया।
310. 1916 ई० में गोविन्दबल्लभ पंत, प्रेमल्लभ इत्यादि ने मिलकर
311. “कुमाऊँ परिषद” की स्थापना की। इसका प्रथम अधिवेशन 1917 ई० में अल्मोड़ा में हुआ, जिसकी अध्यक्षता जयदत जोशी ने की।
312. वर्ष 1923 में कुमाऊँ परिषद का विलय कांग्रेस में कर दिया गया।
313. तारादत गैरोला ने 19 अगस्त सन् 1901 ई० को ‘गढ़वाल यूनियन’ अथवा ‘गढ़वाल-हितकारिणी सभा’ की स्थापना की।
314. 1903 में लैसडौन में श्री गिरिजादत नैथानी ने ‘गढ़वाल समाचार नामक पत्र का प्रकाशन किया। जिसका उद्देश्य गढ़वाल में सामाजिक व राजनैतिक चेतना जागृत करना था।
315. कुंजणी पट्टी में किसानों के असंतोष का नेतृत्व नेता अमर सिंह ने किया और नई वन व्यवस्था और बढ़े हुए करों के खिलाफ आवाज उठाई।
316. खास पट्टी आन्दोलन का नेतृत्व विख्यात महिला नेता बलवंती देवी, भगवान सिंह बिष्ट, भरोसा राम आदि स्थानीय नेताओं ने किया।
317. 5 मई 1887 को अल्मोड़ा में गढ़वाल बटालियन का जन्म हुआ।
318. 10 मार्च 1915 को न्यू चैपल (फ्रांस) की लड़ाई में गढ़वाली सैनिकों ने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया।
319. कुमाऊँ परिषद का तृतीय सम्मेलन वर्ष 1919 ई0 के कोटद्वार में बद्रीदत जोशी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।
320. कुमाऊँ परिषद का चौथा अधिवेशन 1920 में काशीपुर में गोविन्द पंत की अध्यक्षता में हुआ। जिसमें तय हुआ कि बद्रीदत पाण्डे के नेतृत्व में एक शिष्ट मंडल नागपुर कांग्रेस में भाग लेगा, जो महात्मा गांधी को राज्य आने का आमंत्रण देगा।
321. मुकुन्दीलाल और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने तो गढ़वाल में रौलेट एक्ट का भी विरोध किया ।
322. 1919 में अमृतसर में जो अखिल भारतीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ उसमें मुकुन्दीलाल और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा दोनों ने भाग लिया और उत्तराखंड का नेतृत्व किया।
323. 1919 ई0 के अन्तिम दिनों में गढ़वाल में कांग्रेस कमेटी की स्थापना हुई।
324. टिहरी गढ़वाल में श्री गोपाल सिंह राणा ने असहयोग आंदोलन के दौरान वन आन्दोलन का नेतृत्व किया था।
325. गोपाल सिंह राणा को टिहरी गढ़वाल में “आधुनिक किसान आन्दोलन का जन्मदाता” कहा जाता है।
326. 1917 में मदन मोहन मालवीय गढ़वाल आए।
327. कमिश्नर ट्रेल ने ढोला-पालकी समस्या का हल निकालने के लिए वर्ष 1922 ई0 से खच्चर सेना के विकास का प्रयास आरम्भ किया।
328. 1923 में इस बेगार प्रथा को बंद कर दिया गया।
329. सन् 1921 में सरयु नदी तट पर कुली-बेगार न करने का संकल्प लिया गया।
330. कुमाऊँ के सल्ट में जब बेगार लेने का फैसला किया, तो हरगोविन्द सल्ट पहुँच गए। विभिन्न स्थानों पर सभाएं हुई और जनता ने कुली और बेगार न देने का संकल्प दोहराया।
331. खुमाड़ को केन्द्र बनाकर क्षेत्र में कुली और बेगार न देने के आंदोलन को संचालित किया गया, जिसका नेतृत्व प्राईमरी स्कूल के हेडमास्टर पुरुषोत्तम उपाध्याय ने किया।
332. 1927 में गांधीजी के प्रेम विद्यालय ताड़ीखेत में आगमन पर सल्टवासी भी उनका स्वागत करने पहुँचे थे।
333. 1917 के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में पुरुषोत्तम के नेतृत्व में सल्ट के कार्यकर्ताओं ने भी भाग लिया।
334. 1928 में नायक सुधार अधिनियम पारित हुआ, जिसके द्वारा अव्यस्क लड़कियों के द्वारा वेश्यावृति की कुप्रथा बंद हुई।
335. व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन में गढ़वाल में जगमोहन सिंह नेगी प्रथम सत्याग्रही थे।
336. डोला-पालकी की समस्या के कारण गांधीजी ने 25 जनवरी 1941 को गढ़वाल के व्यक्तिगत सत्याग्रह पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
337. 1929 में कांग्रेस का लाहौर में जो अधिवेशन हुआ उसमें गढ़वाल के प्रताप सिंह नेगी, राम प्रसाद नौटियाल, देवकी नन्दन ध्यानी, कृपा राम मिश्र, जगमोहन नेगी आदि नेताओं ने भाग लिया था।
338. 1930 में दुगड्डा में राजनीतिक सम्मेलन की अध्यक्षता प्रताप सिंह नेगी ने की।
339. 1930 में कोट सितोनस्यूं (पौड़ी गढ़वाल) में कांग्रेस का एक राजनीतिक सम्मेलन हुआ, जिसकी अध्यक्षता हरगोविन्द पन्त ने की।
340. प्रताप सिंह नेगी के नेतृत्व में कोटद्वार, दुगड्डा में सत्याग्रहियों ने शराब बन्दी का अभियान शुरू किया।
341. जहरीखाल में झंडा सत्याग्रह का बलदेव सिंह आर्य ने नेतृत्व किया।
342. 13 जून, 1930 ई0 को चन्द्र सिंह गढ़वाली को पेशावर काण्ड का नायक ठहराते हुए आजन्म कारावास की सजा दी और ‘काला पानी सजा दी गई।
343. गांधीजी के डांडी मार्च के सहयोगियों में कुमाऊँ से जयोतिराम कांडपाल और भैरवदत्त जोशी भी शामिल थे।
344. सन् 1931 में गढ़वाल और कुमाऊँ जनपद के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का सम्मेलन नैनीताल में आयोजित किया गया।
345. 1940 को डाडामंडी में यक्तिगत सत्याग्रह को सुव्यवस्थित चलाने हेतु कांग्रेस कार्यकर्ताओं का एक राजनैतिक सम्मेलन आयोजित किया गया।
346. चमोली में व्यक्तिगत सत्याग्रह का संचालन अनुसूया प्रसाद बहुगुणा कर रहे थे।
347. दक्षिण गढ़वाल के एक ग्रामीण इलाके गुजडू में कांग्रेस को संगठित किया जाता था तथा आन्दोलन में भाग लेने वाले स्वयं सेवकों की भर्ती की जाती थी।
348. गुजडू ‘गढ़वाल की बारदोली’ के रूप में भी विख्यात था।
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