बुरांश (Buransh): हिमालयी राज्य साल भर प्रकृति की अद्भुत सुंदरता से सजे रहते हैं, लेकिन वसंत ऋतु का आगमन इन्हें और भी आकर्षक बना देता है। जनवरी, फरवरी, मार्च और अप्रैल के महीनों में पहाड़ों में विभिन्न मौसमी फूल और फल खिलते हैं। इन्हीं में से एक है शानदार “बुरांश” (Rhododendron arboreum), जिसकी गहरी लाल और गुलाबी छटा पहाड़ों को एक नया जीवन देती है।
बुरांश (Buransh) क्या है?
बुरांश (Buransh), जिसे अंग्रेज़ी में Rhododendron और संस्कृत में “कुर्वक” कहा जाता है, उत्तराखंड का राज्य वृक्ष और हिमाचल प्रदेश व नागालैंड का राज्य पुष्प है। इसका वनस्पतिक नाम Rhododendron arboreum SM है। “Rhododendron” शब्द ग्रीक भाषा के “Rhod” (गुलाबी-लाल रंग) और “Dendron” (वृक्ष) से बना है, जो इसकी विशिष्टता को दर्शाता है।
यह सदाबहार वृक्ष 1,500 से 3,600 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है और 20 मीटर तक बढ़ सकता है। इसकी छाल गुलाबी-भूरी और पत्तियाँ भाले के आकार की होती हैं। इसके फूल गुच्छों में खिलते हैं और बड़े, घंटी जैसे लाल या गुलाबी रंग के होते हैं।
बुरांश का भौगोलिक विस्तार
बुरांश भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है और यह मुख्य रूप से हिमालयी क्षेत्रों में उगता है। यह नेपाल, भूटान, चीन, पाकिस्तान, थाईलैंड और श्रीलंका जैसे देशों में भी पाया जाता है।
बुरांश का आर्थिक महत्व
बुरांश का आर्थिक दृष्टि से भी विशेष महत्व है:
- लकड़ी और ईंधन: इसकी लकड़ी से कोयला, औज़ारों के हैंडल, बॉक्स, खंभे और प्लाईवुड बनाए जाते हैं।
- पारंपरिक खान-पान: उत्तराखंड में बुरांश की पंखुड़ियों का उपयोग पारंपरिक व्यंजनों में किया जाता है और यह धार्मिक अनुष्ठानों में देवताओं को अर्पित की जाती हैं।
- वातावरण शुद्धिकरण: अरुणाचल प्रदेश में, बुरांश की पत्तियों को देवदार और चीड़ के साथ जलाकर वायु को शुद्ध किया जाता है।
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बुरांश के पोषण और औषधीय उपयोग
बुरांश हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में प्रयोग किया जाता है:
- बुरांश जूस (स्क्वैश): उत्तराखंड और हिमाचल में बुरांश का जूस गर्मियों में ठंडा और तरोताज़ा करने वाला पेय माना जाता है। इसका स्वाद हल्का खट्टा-मीठा होता है।
- अचार, जैम और चटनी: इसकी पंखुड़ियों से अचार, जैम और चटनी बनाई जाती है, जो स्वादिष्ट और सेहत के लिए लाभकारी होती हैं।
- स्वास्थ्य लाभ: बुरांश के फूल और छाल सिरदर्द, बुखार, पाचन संबंधी विकारों और श्वसन रोगों के उपचार में सहायक माने जाते हैं। इसकी नरम पत्तियों को सिरदर्द में माथे पर लगाया जाता है।
बुरांश और कोविड-19: एक वैज्ञानिक खोज
हाल ही में, आईआईटी मंडी (IIT Mandi) और इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (ICGEB) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि बुरांश (Buransh) की पंखुड़ियों में मौजूद फाइटोकेमिकल्स में कोविड-19 वायरस को रोकने की क्षमता है।
डॉ. रंजन नंदा (ICGEB) के अनुसार, बुरांश में मौजूद यौगिक दो तरीकों से वायरस के प्रभाव को कम कर सकते हैं:
- वायरस के प्रसार को रोकना: इसके फाइटोकेमिकल्स वायरस की प्रतिकृति बनने वाले एंजाइम को बाधित करते हैं।
- मानव कोशिकाओं में प्रवेश रोकना: यह यौगिक एसीई-2 (ACE-2) एंजाइम से जुड़ते हैं, जिससे वायरस का प्रवेश रुकता है।
यह शोध बताता है कि बुरांश भविष्य में एंटीवायरल दवाओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
जलवायु परिवर्तन का बुरांश पर प्रभाव
जलवायु परिवर्तन के कारण बुरांश के फूलने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। बढ़ते वैश्विक तापमान और अनियमित वर्षा के कारण इसके खिलने का समय बदल रहा है, जिससे परागण और बीज बनने की प्रक्रिया बाधित हो रही है।
आमतौर पर, बुरांश की कलियाँ सर्दियों में बंद रहती हैं और जब तापमान 20-25°C तक पहुँचता है, तब खिलती हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इस प्राकृतिक चक्र में बाधा आ रही है, जिससे इसकी संख्या घट रही है। IUCN रेड लिस्ट ऑफ रोडोडेंड्रन्स ने इसके संरक्षण पर जोर दिया है क्योंकि यह हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र में मृदा स्थिरता और जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
बुरांश केवल एक खूबसूरत मौसमी फूल ही नहीं, बल्कि हिमालयी संस्कृति और पारिस्थितिकी तंत्र का अभिन्न हिस्सा है। यह आर्थिक, औषधीय और पर्यावरणीय दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण इसका अस्तित्व खतरे में है। इसके संरक्षण और वैज्ञानिक अनुसंधान से हम इस अद्भुत वृक्ष को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचा सकते हैं।
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