उत्तराखंड के इतिहास का वह सुनहरा दौर जब पहाड़ों के बीच बसे राजदरबार का उत्तराखण्ड के 52 गढ़ों पर राज था। वह दौर जिसने उत्तराखण्ड की आराध्य देवी नंदा की कैलाश यात्रा को संजों के रखा और जिसने उत्तराखंड के सांस्कृतिक विरासत को नए आयाम दिए। जिस दौर के निर्माण कार्य आज भी उत्तराखण्ड के इतिहास की आपबीति कहते हैं। उसी सुनहरे इतिहास की कहानी कहता है चमोली में आदिबद्री से 3 किमी दूर स्थित चाँदपुर गढ़ी (Chandpur garhi) का किला।
अटागाढ़ नदी के कल-कल करती जलधारा के किनारे एक टिले पर चाँदपुर गढ़ी का किला है। इतिहास और पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार भिलंग राज्य के राजा सोनपाल ने चाँदपुरगढ़ में शासन किया था। राजा सोनपाल की एक इकलौती पुत्री थी जिसका विवाह उन्होंने मालवा के राजकुमार कनकपाल से की थी। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कनकपाल गुजरात से गढ़वाल के इस क्षेत्र में आया था। कनकपाल एक कुशल राजनीतिज्ञ था। उसने अपने कुशल नेतृत्व से गढ़वाल के कई क्षेत्रों को जीता तथा उनपर अपना आधिपत्य स्थापित कर चांदपुरगढ़ी को गढ़वाल की राजधानी बनाया। उसके कार्यों ने राजा सोनपाल को प्रभावित किया और यही वजह थी कि राजा ने अपना उत्तराधिकारी कनकपाल को घोषित किया। विद्धानों का मत है कि राजा कनकपाल ने ही पंवार राजवंश की स्थापना की थी। क्लिक करें।
चांदपुर गढ़ी किले की संरचना
कनकपाल के राज के बाद पंवार वंश के कई राजाओं ने चाँदपुर गढ़ में विभिन्न कार्य किये । जिसके साक्ष्य किले के अवशेषों से प्राप्त होते हैं। किले की बनावट के बारे में बात करें तो किले की दीवारें एक से दो फिट मोटी हैं जिसकी दिवारों पर महीन नक्काशी की गयी है। वहीं खिड़कियों की रुपरेखा त्रिभुजाकार है। जो बाहर की और संकरी होती जाती है। पत्थरों पर की गयी कलात्मक नक्काशी से जान पड़ता है कि यह राज्य कला के क्षेत्र में संपन्न रहा होगा। तथा किले की दीवारों की मोटाई से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह किला बाइस से चौबीस फीट ऊंचा रहा होगा। वहीं किले के अवशेषों में पत्थरों की सीढ़ी के मिलने से इसके संभवतः दो मंजिला होने की कल्पना की जा सकती है।
किले के चारों और पत्थरों से बने पानी के निकासी द्वार हैं वहीं पत्थरों से बनी नालियाँ भी हैं । जो सारे किले के चारों और फैली है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसे किले में सफाई की उचित व्यवस्था रही होगी। इस किले के बाहरी दिवारों पर घर नुमा संरचनाएं हैं जहाँ सिपाहियों तथा तोपखानों व अस्त्र रखने के लिए बनाए गए थे। इतोहास के अनुसार इन तोपखानों व शस्त्रागारों का निर्माण प्रदीप शाह व महीपति शाह के समय पर हुआ था। वीडियो देखें।
महीपति शाह के बारे में कहते हैं कि पंवार वंश के इस राजा ने तिब्बत पर भी आक्रमण किया था।
किले के बाहरी दिवार पर एक कुंए का भी निर्माण किया गया था। वहीं इसके बायीं दिवार से सटकर दो प्रागणों में चारों कोनों पर ओखली (उर्ख्याला) हैं जहाँ संभवतः कर के रुप में वसूले गए अनाजों को पीसा जाता था। इसके अतिरिक्त किले के अंदर पंवारों की ईष्ट देवी दक्षिण महाकाली राज राजेश्वरी का मंदिर है।
इस दुर्ग (किले) की सीढ़ियाँ दो टन वजनी पत्थर की शीलाओं से निर्मित थी। जिसके बारे में लोक कथा है कि यह शिला खण्ड दुधातोली के खानों से सौंरु और भौरु नामक भड़ों (वीरों) द्धारा लाए गए थे। ये भड़ चांदपुर गढ़ी के डांडा मंज्याणी गांव के थे। आज भी कांसुआ के ऊपर घंडियालधार में इन वीरों की खंडित मूर्तियां इनकी वीरगाथा की कहानी कहते हैं।
माँ नंदा की विश्वप्रसिद्ध यात्रा में देवी की आराध्य देवी चाँदपुर गढ़ी में भी ठहरती है। जहाँ आज भी राजा के पूर्वज विधि विधान से इस यात्रा का संचालन करते हैं। सातवीं शताब्दी में गढ़वाल राजा शालिपाल ने राजधानी चांदपुर गढ़ी से श्रीनंदा को बाहरवें वर्ष में मायके से कैलाश भेजने की परंपरा शुरू की। जिसका निर्वहन आज भी राजा के वंशजों द्धारा किया जा रहा है।
चाँदपुर गढ़ी से राजधानी श्रीनगर स्थानांतरित
पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार पंवार वंश का 37वां राजा, राजा अजयपाल बड़ा शक्तिशाली था। उस समय समस्त गढ़वाल में राजनैतिक उथल-पुथल थी। उसने इस मौके का लाभ उठाकर गढ़वाल के 52 गढ़ों को जीतकर एक झंडे के अधीन कर दिया। और तबसे उसके द्धारा जीते गए ये समस्त क्षेत्र गढ़वाल कहलाया । इतिहासकारों के अनुसार राजा अजयपाल ने 1173 ई० में अपनी राजधानी चाँदपुर से श्रीनगर गढ़वाल के देवलगढ़ में स्थानांतरित कर दी। तभी से यह समृद्ध क्षेत्र तज्य हो गया।
साम्राज्य विस्तार व राजधानी के स्थानांतरण से चमोली के सीमांत खण्डों पर कुमाऊँ के राजाओं और गोरखाओं का आक्रमण होने लगा। वीडियो देखें।
चांदपुर गढ़ के स्थानीय जनों के अनुसार राजा अजयपाल का राजधानी परितज्य करने का कारण गोरखाओं का आक्रमण भी था। जिसने दुर्ग के अधिकाँश हिस्सों को क्षति पहुंचाई थी। जिसके कारण राजा को यह स्थान छोड़ना पड़ा। हालाँकि इसका कोई निश्चत परिमाण नहीं है। शायद छोड़ने के बाद गोरखाओं का आक्रमण हुआ हो। क्योंकि तब यह क्षेत्र राजा के विशाल सैन्य शक्ति से वंचित हो।
गढ़वाल के स्थानिय गाथाओं के अनुसार गोरखाओं ने तीन बार गढ़वाल पर आक्रमण किया । जिसमें तीसरी बार गढ़वाल नरेश प्रद्युमन शाह की मृत्यु हुई। उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी सुदर्शन शाह को अंग्रजों से संधि करनी पड़ी और यहीं से पंवार राजाओं के इस युग का अंत भी हुआ। वीडियो देखें।
कैसे पहुंचे चाँदपुर गढ़ी
चाँदपुर गढ़ी (Chandpur garhi) कर्णप्रयाग से 18 किमी व आदिबद्री से महज 3 किमी की दूरी पर स्थित है। आप यहाँ कुमाऊँ के रास्ते हल्द्वानी-गैरसैंण होते हुए या गढ़वाल से रुद्रप्रयाग-कर्णप्रयाग होते हुए पहुंच सकते हैं।
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