उत्तराखण्ड के इतिहास में ना सिर्फ इस क्षेत्र का धार्मिक व पौराणिक महत्व है बल्कि यहाँ रहने वाली वीरांगनाओं के कारण भी यह प्रदेश जाना जाता है। फिर वो चाहे तीलू रौतेली हो या फिर जिया रानी। उन्हीं में एक शामिल है एक वीरांगना जो नक कट्टी रानी (Nak katti Rani) के नाम से प्रसिद्ध हैं। उत्तराखण्ड की इस वीरांगना का नाम है गढ़वाल की रानी कर्णावती (Rani Karnavati) ।
आप ने इतिहास में मेवाड़ की रानी कर्णावती और हुमायूँ द्वारा एक रक्षा सूत्र का मान रखने के लिए बहादुर शाह पर युद्ध की घोषणा की कहानी तो सुनी होगी। मगर ये मेवाड़ की रानी कर्णावती की कहानी नहीं बल्कि गढ़वाल रानी कर्णावती (Story of Rani Karnavati) की कहानी है जिसने मुगलों को बेइज्जत करके अपनी सीमा से बाहर खदेड़ा था।
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गढ़वाल की रानी कर्णावती । Rani Karnavati
रानी कर्णावती गढ़वाल के राज महिपत शाह की पत्नी थी तथा पृथ्वी शाह की माँ थी। महिपत शाह, श्याम शाह के चाचा थे। श्याम शाह की मृत्यु के बाद उनके चाचा महिपत शाह में गढ़ राज्य की राज गद्दी संभाली। महिपत शाह एक पराक्रमी और निडर राजा थे। इन्होंने ही अपने शासनकाल में तिब्बत पर तीन बार आक्रमण किया था। इन्हें गर्वभंजन के उप नाम जाना जाता था। इनकी सेना में वीर माधो सिंह भंडारी जैसे सेनापति भी थे जिन्होंने रानी कर्णावती को भी अपनी सेवाएं दी।
महिपत शाह की ही साहसी और निडर पत्नी थी रानी कर्णावती। महिपत शाह की मृत्यु के बाद रानी कर्णावती के पुत्र पृथ्वी शाह गद्दी पर बैठे, मगर वे उस समय महज 7 साल के थे। यही कारण है उनकी अल्प आयु के कारण राज्य का संरक्षण रानी कर्णावती की देखरेख पर हुआ। रानी कर्णावती ने ना सिर्फ राज्य का शासन चलाया बल्कि अपने पुत्र पृथ्वी शाह को भी एक महान राजा बनने के सारे संस्कार दिए।
मुगलों और गढ़वाल की रानी कर्णावती के बीच संघर्ष
उत्तराखण्ड के प्रमुख इतिहासकार शिव प्रसाद डबराल ने इन्हें गढ़वाल की रानी कर्णावती को नकटीरानी संबोधित किया है। जब दिल्ली में शाहजहां के शासन के दौरान मुगलों को उत्तराखण्ड में गढ़राज्य पर एक नारी के शासन का पता चला तो उन्होंने 1635 ई० नजावत खाँ के नेतृत्व में एक बड़ी मुगल सेना गढ़वाल पर आक्रमण को भेजी।
स्टूरियो डू भोगोर के लेखक निकोलस मनु ची लिखते हैं कि मुगलों की तरफ से एक लाख पैदल सैनिक और तीस हजार घुड़सवार थे। पर किसी को अंदेशा नहीं था कि गणराज्य की ये रानी दुर्गा का साक्षात रूप है। युद्ध हुआ तो गढ़वाल के सैनिकों ने मुगल सेना के पांव उखाड़ दिए। और जो बचे उनकी गढ़राज्य पर हमला करने के दुस्साहस करने में रानी कर्णावती द्वारा इनकी नाक कटवा दी गई।
कहते हैं इस अपमान के बाद मुगल सेनापति निजावत खां ने आत्महत्या कर दी। और मुगलों ने भी इस शर्मसार करने वाली घटना को छुपा करके रखा मगर सत्य कितना भी छुपाओ उजागर हो ही जाता है। यही वजह है कि इस शर्मसार करने वाली घटना की पुष्टि मुगल दरबार के राजकीय विवरण महारल उमरा में मिलता है।
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मुगलों ने इस अपमान का बदला लेने के लिए 19 वर्ष तक किया इंतजार
रानी कर्णावती (Rani Karnavati) के हाथों शर्मसार और बेइज्जत होने का मुगलों को इस प्रकार धक्का लगा कि उन्होंने इस अपमान का बदला लेने के लिए 19 बरस तक प्रतीक्षा की। यही वजह है मुगलों ने खली तुल्ला के नेतृत्व में गढ़वाल पर आक्रमण करने को वर्ष 1655 में पुनः सेना भेजी। मगर इस बार स्थिति कुछ और थी। मुगलों ने इस बार अपनी सेना की सहायता के लिए सिरमौर और कुमाऊँ के शासकों से भी मदद माँगी।
मुगलों के साथ सिरमौर के शासक मानधाता प्रकाश तथा कुमाऊं का शासक बाज बहादुर चंद कि तीनों सेनाओं ने जब पुनः गढ़वाल पर आक्रमण किया। ओरिएंटल सीरीज के अनुसार गढ़वाल के हारने के बाद भी श्रीनगर राजधानी अविजित रही। इस भीषण युद्धों के बाद भी मुगलों ने बस दूनघाटी को जीता तथा कुछ दुर्गों पर भी आधिपत्य किया।
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रानी कर्णावती के पुत्र पृथ्वी शाह और मुगल
पृथ्वी शाह के बड़े होने पर उन्होंने गढ़राज्य की गद्दी संभाली। उस वक्त मुगल बादशाह औरंगज़ेब का राज था। औरंगजेब से दारा शिकोहा के युद्ध में जब सुलेमान शिकोह भागा तो उसने गढ़वाल नरेश पृथ्वी शाह के राज्य में शरण ली। जिसे पृथ्वी शाह ने अपना धर्म समझकर संरक्षण दिया।
औरंगजेब ने कई बार पृथ्वी शाह को युद्ध के नाम पर धमकाया मगर रानी कर्णावती और महिपत शाह के इस पुत्र ने उसका जवाब देना भी उचित नहीं समझा। जिसके बाद मुगलों द्वारा पृथ्वी शाह के पुत्र मेदनी शाह के साथ षड्यंत्र रचकर सुलेमान शिकोह को दिल्ली भेजा गया। जिसपर क्रोधित होकर पृथ्वी शाह ने अपने पुत्र मेदनी शाह का देश निकाला कर दिया। इस बात की पुष्टि ट्रैवर्नियर की किताब ट्रेवल्स इन इंडिया तथा बर्नियर की बर्नियूण बोएज टू द ईष्ट इंडिज में देखने को मिलता है।
तो ये थी उत्तराखण्ड के इतिहास में दबे गढ़वाल की एक वीरांगना रानी कर्णावती और उनके शौर्य की कहानी।
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Lol read History of shahjahan by BP Saxena he says in 1655 4,000 troops under mughal general khalillulah beat garhwalis and medini shah proffered submission on his father’s behalf
madini shah was the son of prithivi shah .. . and he give Dara sikaoh son Sulemaan sikhoha to Arungjeb.. Read every detail as possible.