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History of Uttarakhand State Movement | उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास

उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास | History of Uttarakhand State Movement

उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास | History of Uttarakhand State Movement

उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास History of Uttarakhand State Movement) उत्तराखंड ने वर्षों से संघर्ष किया फिर चाहे वो गोरखा कालखंड हो या फिर अंग्रेजो से स्वंत्रता के लिए उठी आवाज। मगर स्वंत्रता के बाद उत्तराखंड में फिर आवाज तेज हुई वो थी उत्तराखंड को पृथक राज्य बंनाने की मांग।

स्वंत्रता के बाद के इसी दौर को हम उत्तराखंड का राज्य आंदोलन (State Movement of Uttarakhand) के नाम से जानते हैं। दोस्तों इस पोस्ट में हम उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास History of Uttarakhand State Movement) और उत्तराखंड के राज्य आंदोलन के दौरान हुई प्रमुख घटनाओं के बारे में जानेगें।  🙂

उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास | History of Uttarakhand State Movement

उत्तराखंड पहले उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था, लेकिन पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में विकास नहीं हो पा रहा था। विकास नहीं होने की वजह से ग्रामीण लोगों ने उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग करने की मांग की।
मगर उस समय इस मांग को अनसुना कर दिया गया था, जिसके बाद लोग आंदोलन पर उतर आए और इस दौरान पुलिस ने आंदोलनकारियों के साथ कई बार बर्बरता की। 

भारत के आज़ाद होने से पहले ही उत्तराखंड को अलग करने की मांग जारी थी। सबसे पहले साल 1897 में उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की मांग उठी थी और धीरे-धीरे ये मांग कई बार उठती रही। उत्तराखंड को एक पृथक राज्य बनाने की मांग सर्वप्रथम 5-6 मई 1938 को कांग्रेस के श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित अधिवेशन में उठाई गयी।

उस समय इस मांग का समर्थन स्थानीय नेताओं के साथ इस समय में सभा में आये कांग्रेसी नेता जवाहर लाल नेहरू ने भी दिया। 1897 से लेकर 1994 तक यह मांग लगातार जारी रही… वहीं, साल 1994 में इस मांग ने जन आंदोलन का रूप ले लिया और आखिरकार आंदोलन रंग लाया और उत्तराखंड भारत का 27वां राज्य बना। (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
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उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने में हुए प्रमुख आंदोलन (Major movements to make Uttarakhand a separate state)

उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए स्थानियों ने कई आंदोलन किए। आंदोलनों में पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाओं से लेकर नौजवानों तक की अहम भूमिका रही हैं।आज जिस उत्तराखण्ड में हम मजे से घूमते है। वहां की खूबसूरत वादियों का लुफ़्त उठाते है, वो हमें इतनी आसानी से नहीं मिला।

उतराखंड को अलग करने में कई आंदोलनकारी शहीद हुए हैं। उत्तराखंड की महिलाओं ने अलग मांग को लेकर वन आंदोलन भी किए थे।
बता दें, आजादी के बाद भी उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा मिलने में कई साल लग गए और 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा मिला।

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साल 1938 की बात करें तो मई महीने में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन के जरिए से उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की मांग उठी थी। स्थानीय नेताओं की इस मांग को अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहें जवाहर लाल नेहरू ने समर्थन किया था।

इसके बाद साल 1938 में अलग राज्य की मांग को लेकर श्रीदेव सुमन में दिल्ली में ‘ *गढ़देश सेवा संघ’* नाम से एक संगठन बनाया। कुछ समय बाद इस संगठन का नाम बदलकर *’हिमालय सेवा संघ’* कर दिया गया। (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )

इसके अलावा सन 1946 में हल्द्वानी में बद्रीदत्त पाण्डे की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के एक सम्मेलन में उत्तरांचल के पर्वतीय भूभाग को विशेष वर्ग में रखने की मांग उठायी गयी। इस सम्मेलन में अनुसूया प्रसाद  बहुगुणा ने गढ़वाल-कुमाऊं के भू-भाग को एक अलग क्षेत्रीय भौगोलिक इकाई के रूप में गठित करने की मांग की थी।

मगर सयुंक्त प्रान्त के तत्कालीन प्रीमियर गोविन्द बल्लभ पंत ने इन मांगों को ठुकरा दिया था।
इसे भी पढ़ें – उत्तराखंड में हुए कुमाऊँ परिषद के प्रमुख अधिवेशन 




पृथक राज्य आंदोलन के दौरान बनी महत्वपूर्ण कमिटी और संगठन (Important committees and organizations formed during the separate state movement)




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पृथक राज्य आंदोलन के दौरान हुई महत्वपूर्ण घटनाएं (Important events during the separate state movement)

खटीमा गोलीकांड (Khatima firing incident)

उतराखंड ही नहीं बल्कि जो भी खटीमा गोलीकांड को याद करता है, उसकी रूह कांप जाती है। आखिरकार कांपे भी क्यों ना उस वक्त पुलिस कर्मियों ने जो जो बर्बरता दिखाई वो आसहनीय थी। 1 सितंबर, 1994 को उत्तराखंड राज्य आंदोलन का काला दिन माना जाता है, इस दिन पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थीं।
पुलिस ने बिना किसी चेतावनी दिए ही आन्दोलनकारियों के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी, जिसके कारण 7 आन्दोलनकारियों की मृत्यु हो गई। (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )

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खटीमा गोलीकांड की खबर ने उस समय लोगों को काफी परेशान किया, मगर अलग राज्य की मांग का जुनून लोगों पर सवार था। बता दें, खटीमा में हजारों की संख्या में राज्य निर्माण की मांग को लेकर भूतपूर्व सैनिक छात्रों और व्यापारियों द्वारा जुलूस निकाला जा रहा था, जिस पर खटीमा के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर डी.के. केन ने खुलेआम गोली चलाई गई थी। जिसमें मौके पर 7 आंदोलनकारी शहीद हो गए थे और सैकड़ों लोग घायल हुए थे। (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )

खटीमा गोलीकांड में शहीद (Martyred in Khatima firing incident)

• अमर शहीद स्व० भगवान सिंह सिरौला, ग्राम श्रीपुर बिछुवा, खटीमा
• अमर शहीद स्व० प्रताप सिंह, खटीमा
• अमर शहीद स्व० सलीम अहमद, खटीमा
• अमर शहीद स्व० गोपीचन्द, ग्राम रतनपुर फुलैया, खटीमा
• अमर शहीद स्व० धर्मानन्द भट्ट, ग्राम अमरकलाँ, खटीमा
• अमर शहीद स्व० परमजीत सिंह, राजीवनगर, खटीमा
• अमर शहीद स्व० रामपाल, बरेली




मसूरी गोलीकांड (Mussoorie firing incident)

खटीमा कांड में चली गोलियों की गूंज अभी तक लोगों के कान से गई तक नहीं थी, तब ही ठीक दूसरे दिन यानी कि 2 सितंबर 1994 को मसूरी में पुलिस ने एक बार फिर से अपनी वर्दी का गलत फायदा उठाकर खटीमा गोलीकांड के विरोध में मौन जुलूस निकाल रहे लोगों में से प्रशासन से बातचीत करने गईं 2 बहनों को पुलिस ने मसूरी की मालरोड झूलाघर स्थित आन्दोलनकारियों के कार्यालय में गोली मार दी।
इतना ही नहीं बल्कि नारेबाजी कर रहे आन्दोलनकारियों पर पुलिस ने लाठियां बरसाने के साथ ही गोली चलानी शुरू कर दी थी।
इस अंधाधुंध फायरिंग में लगभग 21 लोगों को गोली लगी और इसमें से 4 आन्दोलनकारियों की अस्पताल में मृत्यु हो गई।

मसूरी गोलीकांड में मारे गए शहीद (Martyrs killed in Mussoorie firing incident)

• अमर शहीद स्व० बेलमती चौहान, ग्राम खलोन, पट्टी घाट, अकोदया, टिहरी
• अमर शहीद स्व०हंसा धनई, ग्राम बंगधार, पट्टी धारमण्डल, टिहरी
• अमर शहीद स्व० बलबीर सिंह नेगी, लक्ष्मी मिष्ठान्न भण्डार, लाइब्रेरी, मसूरी
• अमर शहीद स्व० धनपत सिंह, ग्राम गंगवाड़ा, पट्टी गंगवाड़स्यूँ, टिहरी
• अमर शहीद स्व० मदन मोहन ममगाईं, ग्राम नागजली, पट्टी कुलड़ी, मसूरी
• अमर शहीद स्व० राय सिंह बंगारी, ग्राम तोडेरा, पट्टी पूर्वी भरदार, टिहरी

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रामपुर तिराहा गोलीकांड (Rampur Trisection firing Incident)

साल 1994 उतराखंड के लोगों के लिए काफी ज्यादा दर्दनाक रहा है। बता दें, मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर 1 अक्टूबर की रात और 2 अक्टूबर की सुबह तक पुलिसकर्मियों ने अमानवीयता की हदों को पार कर दिया। यह वह दौर था, जब कोदा-झंगोरा खाएंगे, अपना उत्तराखंड बनाएंगे के नारे पूरे देश में गूंज रहे थे।

उस वक्त तय हुआ था कि 2 अक्टूबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करेंगे। प्रदर्शन करने के लिए लोग अपने-अपने घरों से दिल्ली की ओर निकले थे। वहीं, राज्य आंदोलन के कई नेता पहले ही दिल्ली पहुंच चुके थे।

जब बाकी आंदोलनकारी दिल्ली की ओर आ रहे थे। निहत्थे आन्दोलनकारियों को रात के अंधेरे में चारों ओर से घेरकर गोलियां बरसाई गईं और महिलाओं के साथ दुष्कर्म तक किया गया। आपको बता दें, उस समय उत्तर प्रदेश की सत्ता में मुलायम सिंह यादव (सपा) की सरकार थी और यह पहले से ही तय कर लिया गया था कि आंदोलनकारियों को आगे नहीं जाने देना है।

जब आंदोलनकारी दिल्ली की ओर आ रहें थे तब पहले तो नारसन बार्डर पर नाकाबंदी हुई, लेकिन यहां प्रशासन की नहीं चली और प्रशासन को बेबस होकर आंदोलनकारियों को आगे जाने दिया। जब आंदोलनकारियों का काफ़िला रामपुर तिराहे पर पहुंचा। वहां, प्रशासन पूरी तैयारी के साथ मौजूद था। तब पुलिस ने गोलियां चलाकर बर्बरता दिखाई। उस समय इस गोलीकांड में राज्य के 7 आन्दोलनकारी शहीद हो गए थे।




रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर में हुए गोली कांड के बाद उत्तराखंड राज्य निर्माण राज्य निर्माण की मांग तेज हो गई थी। आंदोलनकारियों ने प्रदेशभर में अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन जारी रखा। मुजफ्फरनगर में हुई घटना के बाद राज्य आंदोलनकारियों और प्रदेश के लोगों में गुस्सा बहुत अधिक बढ़ गया था।

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रामपुर तिराहा गोलीकांड शहीद (Rampur Tiraha firing incident martyrs)

• अमर शहीद स्व० सूर्यप्रकाश थपलियाल, मुनि की रेती, ऋषिकेश
• अमर शहीद स्व० राजेश लखेड़ा, अजबपुर कलाँ, देहरादून
• अमर शहीद स्व० रवीन्द्र सिंह रावत, बी-२०, नेहरू कॉलोनी, देहरादून
• अमर शहीद स्व० राजेश नेगी, भानियावाला, देहरादून
• अमर शहीद स्व० सतेन्द्र चौहान, ग्राम हरिपुर, सेलाक़ुईं, देहरादून
• अमर शहीद स्व० गिरीश भद्री, अजबपुर ख़ुर्द, देहरादून
• अमर शहीद स्व० अशोक कुमार कैशिव, ऊखीमठ, रुद्रप्रयाग




श्रीयंत्र टापू आंदोलन (Sriyantra Island Movement)

उत्तरप्रदेश के तत्कालीन सरकार द्वारा पृथक राज्य आंदोलन के लिए उठा रही मांग को दबाने के लिए किया जा रहा उत्पीड़न यही नहीं थमा।  गढ़वाल की राजधानी कहे जाने वाले पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर में 10 नवंबर 1995 को श्रीयंत्र टापू पर शांतिप्रिय ढंग से पृथक राज्य के लिए आंदोलन चल रहा था।

उस वक्त उत्तरप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था और शासन की कमान कांग्रेस के भूतपूर्व नेता और तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा के पास शासन की कमान थी।

अचानक पुलिस द्वारा यहाँ भी बर्बरता के साथ धरना प्रदर्शन को कुचला जाता है और आन्दोलन में बैठे लोगो को अमानवीय ढंग से पीटते हुए उन्हें नीचे बहती अलकनंदा नदी में फेंक दिया जाता है। इस घटना में आंदोलन कर रहे दो व्यक्ति यशोधर बेंजवाल और राजेश रावत की मृत्यु हो गयी साथ ही 55 आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर सहरानपुर जेल ले जाया जाता है। (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )

श्री यंत्र टापू में शहीद आंदोलनकारी (Activists martyred on Sri Yantra Island)

* अमर शहीद स्व० यशोधर बेंजवाल
* अमर शहीद स्व० राजेश रावत

यूपी पुनर्गठन विधेयक 2000 (UP Reorganisation Bill 2000)

साल 1998 में केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तराखंड राज्य सम्बन्धी विधेयक उत्तर प्रदेश विधान सभा को सहमति के लिए भेजा इस विधेयक में कुल 26 संशोधन करने के बाद उ.प्र. सरकार ने पुनः केन्द्र को भेज दिया जिसे बीजेपी सरकार ने 22 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया, लेकिन सरकार के गिर जाने से पास न हो सका।

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फिर से बीजेपी के सत्ता में आने के बाद इस विधेयक को एक बार फिर से उ.प्र. सरकार को भेजा गया और उ.प्र. सरकार द्वारा इसे पास कर केन्द्र को भेजने के बाद 27 जुलाई 2000 को यूपी पुनर्गठन विधेयक 2000 के नाम से लोकसभा में प्रस्तुत किया गया।(उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )

9 नवंबर, 2000 को देश की 27 वें राज्य के रूप में (उ.प्र.) के 13 उत्तरी- प. जिलों को काटकर) उत्तरांचल राज्य का गठन किया गया और देहरादून को इसका अस्थाई राजधानी बनाया गया, उसी दिन प्रदेश के पहले अंतरिम मुख्यमंत्री श्री नित्यानंद स्वामी ने पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। वर्तमान में सरकार ने गैरसैण को अपनी ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाई है।




 बसंती बिष्ट : उत्तराखंड की प्रथम जागर गायिका | Basanti Bisht


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