उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास History of Uttarakhand State Movement) उत्तराखंड ने वर्षों से संघर्ष किया फिर चाहे वो गोरखा कालखंड हो या फिर अंग्रेजो से स्वंत्रता के लिए उठी आवाज। मगर स्वंत्रता के बाद उत्तराखंड में फिर आवाज तेज हुई वो थी उत्तराखंड को पृथक राज्य बंनाने की मांग।
स्वंत्रता के बाद के इसी दौर को हम उत्तराखंड का राज्य आंदोलन (State Movement of Uttarakhand) के नाम से जानते हैं। दोस्तों इस पोस्ट में हम उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास History of Uttarakhand State Movement) और उत्तराखंड के राज्य आंदोलन के दौरान हुई प्रमुख घटनाओं के बारे में जानेगें। 🙂
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उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास | History of Uttarakhand State Movement
उत्तराखंड पहले उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था, लेकिन पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में विकास नहीं हो पा रहा था। विकास नहीं होने की वजह से ग्रामीण लोगों ने उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग करने की मांग की।
मगर उस समय इस मांग को अनसुना कर दिया गया था, जिसके बाद लोग आंदोलन पर उतर आए और इस दौरान पुलिस ने आंदोलनकारियों के साथ कई बार बर्बरता की।
भारत के आज़ाद होने से पहले ही उत्तराखंड को अलग करने की मांग जारी थी। सबसे पहले साल 1897 में उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की मांग उठी थी और धीरे-धीरे ये मांग कई बार उठती रही। उत्तराखंड को एक पृथक राज्य बनाने की मांग सर्वप्रथम 5-6 मई 1938 को कांग्रेस के श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित अधिवेशन में उठाई गयी।
उस समय इस मांग का समर्थन स्थानीय नेताओं के साथ इस समय में सभा में आये कांग्रेसी नेता जवाहर लाल नेहरू ने भी दिया। 1897 से लेकर 1994 तक यह मांग लगातार जारी रही… वहीं, साल 1994 में इस मांग ने जन आंदोलन का रूप ले लिया और आखिरकार आंदोलन रंग लाया और उत्तराखंड भारत का 27वां राज्य बना। (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
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उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने में हुए प्रमुख आंदोलन
उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए स्थानियों ने कई आंदोलन किए। आंदोलनों में पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाओं से लेकर नौजवानों तक की अहम भूमिका रही हैं।
आज जिस उत्तराखण्ड में हम मजे से घूमते है। वहां की खूबसूरत वादियों का लुफ़्त उठाते है, वो हमें इतनी आसानी से नहीं मिला। उतराखंड को अलग करने में कई आंदोलनकारी शहीद हुए हैं। उत्तराखंड की महिलाओं ने अलग मांग को लेकर वन आंदोलन भी किए थे।
बता दें, आजादी के बाद भी उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा मिलने में कई साल लग गए और 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा मिला।
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साल 1938 की बात करें तो मई महीने में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन के जरिए से उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की मांग उठी थी। स्थानीय नेताओं की इस मांग को अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहें जवाहर लाल नेहरू ने समर्थन किया था।
इसके बाद साल 1938 में अलग राज्य की मांग को लेकर श्रीदेव सुमन में दिल्ली में ‘ *गढ़देश सेवा संघ’* नाम से एक संगठन बनाया। कुछ समय बाद इस संगठन का नाम बदलकर *’हिमालय सेवा संघ’* कर दिया गया। (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
इसके अलावा सन 1946 में हल्द्वानी में बद्रीदत्त पाण्डे की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के एक सम्मेलन में उत्तरांचल के पर्वतीय भूभाग को विशेष वर्ग में रखने की मांग उठायी गयी। इस सम्मेलन में अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने गढ़वाल-कुमाऊं के भू-भाग को एक अलग क्षेत्रीय भौगोलिक इकाई के रूप में गठित करने की मांग की थी। (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
मगर सयुंक्त प्रान्त के तत्कालीन प्रीमियर गोविन्द बल्लभ पंत ने इन मांगों को ठुकरा दिया था।
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पृथक राज्य आंदोलन के दौरान बनी महत्वपूर्ण कमिटी और संगठन
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- 1938 में पृथक राज्य की मांग हेतु श्रीदेव सुमन ने दिल्ली में गढ़देश सेवा संघ के नाम से संघटन बनाया। जिसका नाम बदलकर बाद में हिमालय सेवा संघ कर दिया गया।
- 1946 में हल्द्वानी में बद्रीदत्त पाण्डे की अध्यक्षता में हुई कांग्रेस के एक सम्मेलन में उत्तरांचल के पर्वतीय भूभाग को विशेष वर्ग में रखने की मांग उठाई गई ।
- 1950 में हिमाचल व उत्तरांचल को मिलाकर एक वृहद हिमालयी राज्य बनाने के उद्देश्य से पर्वतीय विकास जनसमिति संगठन का गठन किया गया ।
- 1955 में फजल अली आयोग ने उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन की बात कही ।
- 1957 में टिहरी रियासत के नरेश मानवेन्द्र शाह ने पृथक राज्य आन्दोलन को अपने स्तर से शुरू किया ।
- 24 व 25 जून 1967 में रामनगर में एक सम्मेलन में पर्वतीय राज्य परिषद का गठन किया गया ।
- 3 अक्तूबर 1970 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पी सी जोशी ने कुमाऊं राष्ट्रीय मोर्चा का गठन किया और पृथक राज्य उत्तराखंड की मांग उठाई ।
- 1972 में नैनीताल में गठित उत्तरांचल परिषद के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में स्थित वोट क्लब पर धरना दिया वहीं उन्हें 1973 में पुन दिल्ली चलो का नारा दिया ।
- 1976 में उत्तराखण्ड युवा परिषद का गठन किया गया वहीं परिषद के सदस्यों ने व्यापक रूप से आन्दोलन को चलाया ।
- 1979 में जनता पार्टी सरकार के सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में उत्तरांचल राज्य परिषद की स्थापना की गई । और परिषद द्वारा 23 जुलाई को वोट क्लब पर्व रैली के आयोजन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को पृथक राज्य की मांग के लिए ज्ञापन दिया गया । (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
- 24-25 जुलाई 1979 को मसूरी में आयोजित पर्वतीय जन विकास सम्मेलन में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल का गठन किया गया ।
- 1984 में ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन ने पृथक राज्य की मांग को लेकर गढ़वाल में 900 किलोमीटर की साइकिल यात्रा से जन जागरुकता की ।
- 1987 में उत्तराखंड क्रांति दल का विभाजन हुआ और 23 नवम्बर को वोट क्लब दिल्ली में विशाल प्रदर्शन किया गया जिसमें राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर हरिद्वार उत्तराखंड में शामिल करने की मांग कही गई ।
- 23 अप्रैल 1987 को उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के उपाध्यक्ष त्रिवेन्द्र पंवार ने पृथक राज्य की मांग को लेकर संसद में पत्र बम फेंका।
- 1987 में भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में अल्मोड़ा के पार्टी सम्मेलन में उत्तर प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग को स्वीकार किया गया ।
- 1988 में सोबन सिंह चीमा की अध्यक्षता में उत्तरांचल उत्थान परिषद का गठन किया गया ।
- जनवरी 1990 में सभी संगठनों ने मिलकर आन्दोलन चलाने के लिए उत्तरांचल संयुक्त संघर्ष समिति का गठन किया ।
- 1990 में जसवंत सिंह बिष्ट ने उत्तराखंड क्रांति दल के विधायक के रूप में उत्तर प्रदेश विधानसभा में पृथक राज्य का पहला प्रस्ताव रखा ।
- 1991 के चुनाव में भाजपा ने पृथक राज्य की स्थापना को अपने घोषणापत्र में शामिल किया और वायदे के अनुरूप 20 अगस्त 1991 को प्रदेश की सरकार ने पृथक उत्तरांचल का प्रस्ताव केन्द्र के पास भेजा ।
- जुलाई 1992 में उत्तराखंड क्रांति दल ने पृथक राज्य के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज जारी किया तथा गैरसैंण को प्रस्तावित राज्य की राजधानी घोषित कर दिया । इस दस्तावेज को उत्तराखंड क्रांति दल का पहला ब्लूप्रिंट माना गया ।
- जनवरी 1993 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने नगर विकास मंत्री रामशंकर कौशिक की अध्यक्षता में उत्तराखण्ड राज्य की संरचना और राजधानी प्रचार करने के लिए कैबिनेट समिति का गठन किया ।
- कौशिक समिति ने मई 1994 में अपना रिपोर्ट प्रस्तुत किया रिपोर्ट में तत्कालीन पर्वतीय जिलों को मिलाकर पृथक उत्तराखण्ड राज्य और उसकी राजधानी गैरसैंण को बनाने की सिफारिश की गई।
- 21 जून 1994 को कौशिक समिति की सिफारिशों को स्वीकार करके अगस्त 1994 में 8 पहाड़ी जिलों को मिलाकर पृथक उत्तराखण्ड राज्य के गठन का प्रस्ताव विधानसभा में सर्वसम्मति से पास होने के बाद केंद्र को भेजा गया ।
- उन्हीं से चरण में में ही विनोद बड़थ्वाल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया इस समिति का उद्देश्य पृथक उत्तराखण्ड राज्य की अनिवार्यता पर सुझाव देना था । (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
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- 1994 में मुलायम सिंह यादव सरकार द्वारा लाई गई नई आरक्षण नीति के ख़िलाफ़ इन्द्रमणि बडोनी ने अपने साथ सहयोगियों के साथ आमरण अनशन शुरू कर दिया ।
- 1 सितम्बर 1994 को उधमसिंह नगर के खटीमा में पुलिस द्वारा छात्रों तथा पूर्व सैनिकों की रैली पर गोली चलाने से 25 लोग मारे गए।
- 2 सितम्बर 1994 को मसूरी में भी कुछ इस प्रकार की घटना हुई । मसूरी घटना में हंसा धनाई व बेलमती चौहान मारे गए ।
- 7 सितम्बर ने 1994 को एक सर्वदलीय बैठक में 27 प्रतिशत आरक्षण को उत्तराखंड में लागू करने पर सहमति हुई वहीं 18 सितम्बर को रामनगर में एक सम्मेलन के दौरान छात्र युवा संघर्ष समिति का गठन किया गया । (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
- 2 अक्तूबर 1994 को दिल्ली में होने वाली रैली में भाग लेने के लिए जा रहे आन्दोलनकारियों पर रामपुर तिराहा पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने अत्याचार किए ।
- 7 दिसम्बर ने 1994 को मोहनसिंह खंडूड़ी की अध्यक्षता में उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति ने दिल्ली में एक रैली का आयोजन किया ।
- 25 जनवरी 1995 को उत्तरांचल आन्दोलन संचालन समिति ने उच्चतम न्यायालय से राष्ट्रपति भवन तक संविधान बचाओ यात्रा निकाली । (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
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- 10 नवम्बर 1995 को श्रीनगर स्थित श्रीयंत्र टापू पर आमरण अनशन पर बैठे आंदोलनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज की जिसमें यशोधर बेंजवाल और राजेश रावत की मौत हो गई ।
- 15 अगस्त 1996 को लालकिले की प्राचीर से तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने उत्तरांचल राज्य का निर्माण करने की घोषणा की ।
- 1998 में केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तराखंड राज्य संबंधी विधेयक उत्तर प्रदेश विधान सभा को सहमति के लिए भेजा । लेकिन 22 दिसम्बर को लोकसभा में सरकार गिर जाने के कारण प्रस्ताव पास नहीं हो सका । (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
- 27 जुलाई 2000 को पुनः भाजपा के सत्ता में आने के कारण उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 के नाम से लोकसभा में विधेयक प्रस्तुत किया गया ।
- 1 अगस्त 2000 को विधेयक लोकसभा में व 10 अगस्त को राज्यसभा में पारित किया और 28 अगस्त को राष्ट्रपति के आर नारायणन ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को अपनी मंजूरी प्रदान की ।
- 9 नवम्बर 2000 को देश के 27 वें राज्य के रूप में उत्तर प्रदेश के 13 उत्तरी पश्चिमी जिलों को काटकर उत्तरांचल राज्य का गठन किया गया और देहरादून को इसका और अस्थायी राजधानी बनाया गया।
पृथक राज्य आंदोलन के दौरान हुई महत्वपूर्ण घटनाएं
*खटीमा गोलीकांड*
उतराखंड ही नहीं बल्कि जो भी खटीमा गोलीकांड को याद करता है, उसकी रूह कांप जाती है। आखिरकार कांपे भी क्यों ना उस वक्त पुलिस कर्मियों ने जो जो बर्बरता दिखाई वो आसहनीय थी। 1 सितंबर, 1994 को उत्तराखंड राज्य आंदोलन का काला दिन माना जाता है, इस दिन पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थीं।
पुलिस ने बिना किसी चेतावनी दिए ही आन्दोलनकारियों के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी, जिसके कारण 7 आन्दोलनकारियों की मृत्यु हो गई। (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
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खटीमा गोलीकांड की खबर ने उस समय लोगों को काफी परेशान किया, मगर अलग राज्य की मांग का जुनून लोगों पर सवार था। बता दें, खटीमा में हजारों की संख्या में राज्य निर्माण की मांग को लेकर भूतपूर्व सैनिक छात्रों और व्यापारियों द्वारा जुलूस निकाला जा रहा था, जिस पर खटीमा के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर डी.के. केन ने खुलेआम गोली चलाई गई थी। जिसमें मौके पर 7 आंदोलनकारी शहीद हो गए थे और सैकड़ों लोग घायल हुए थे। (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
खटीमा गोलीकांड में शहीद
• अमर शहीद स्व० भगवान सिंह सिरौला, ग्राम श्रीपुर बिछुवा, खटीमा
• अमर शहीद स्व० प्रताप सिंह, खटीमा
• अमर शहीद स्व० सलीम अहमद, खटीमा
• अमर शहीद स्व० गोपीचन्द, ग्राम रतनपुर फुलैया, खटीमा
• अमर शहीद स्व० धर्मानन्द भट्ट, ग्राम अमरकलाँ, खटीमा
• अमर शहीद स्व० परमजीत सिंह, राजीवनगर, खटीमा
• अमर शहीद स्व० रामपाल, बरेली
*मसूरी गोलीकांड*
खटीमा कांड में चली गोलियों की गूंज अभी तक लोगों के कान से गई तक नहीं थी, तब ही ठीक दूसरे दिन यानी कि 2 सितंबर 1994 को मसूरी में पुलिस ने एक बार फिर से अपनी वर्दी का गलत फायदा उठाकर खटीमा गोलीकांड के विरोध में मौन जुलूस निकाल रहे लोगों में से प्रशासन से बातचीत करने गईं 2 बहनों को पुलिस ने मसूरी की मालरोड झूलाघर स्थित आन्दोलनकारियों के कार्यालय में गोली मार दी।
इतना ही नहीं बल्कि नारेबाजी कर रहे आन्दोलनकारियों पर पुलिस ने लाठियां बरसाने के साथ ही गोली चलानी शुरू कर दी थी।
इस अंधाधुंध फायरिंग में लगभग 21 लोगों को गोली लगी और इसमें से 4 आन्दोलनकारियों की अस्पताल में मृत्यु हो गई।
*मसूरी गोलीकांड में मारे गए शहीद*
• अमर शहीद स्व० बेलमती चौहान, ग्राम खलोन, पट्टी घाट, अकोदया, टिहरी
• अमर शहीद स्व०हंसा धनई, ग्राम बंगधार, पट्टी धारमण्डल, टिहरी
• अमर शहीद स्व० बलबीर सिंह नेगी, लक्ष्मी मिष्ठान्न भण्डार, लाइब्रेरी, मसूरी
• अमर शहीद स्व० धनपत सिंह, ग्राम गंगवाड़ा, पट्टी गंगवाड़स्यूँ, टिहरी
• अमर शहीद स्व० मदन मोहन ममगाईं, ग्राम नागजली, पट्टी कुलड़ी, मसूरी
• अमर शहीद स्व० राय सिंह बंगारी, ग्राम तोडेरा, पट्टी पूर्वी भरदार, टिहरी
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*रामपुर तिराहा गोलीकांड*
साल 1994 उतराखंड के लोगों के लिए काफी ज्यादा दर्दनाक रहा है। बता दें, मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर 1 अक्टूबर की रात और 2 अक्टूबर की सुबह तक पुलिसकर्मियों ने अमानवीयता की हदों को पार कर दिया। यह वह दौर था, जब *कोदा-झंगोरा खाएंगे, अपना उत्तराखंड बनाएंगे* के नारे पूरे देश में गूंज रहे थे।
उस वक्त तय हुआ था कि 2 अक्टूबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करेंगे। प्रदर्शन करने के लिए लोग अपने-अपने घरों से दिल्ली की ओर निकले थे। वहीं, राज्य आंदोलन के कई नेता पहले ही दिल्ली पहुंच चुके थे।
जब बाकी आंदोलनकारी दिल्ली की ओर आ रहे थे। निहत्थे आन्दोलनकारियों को रात के अंधेरे में चारों ओर से घेरकर गोलियां बरसाई गईं और महिलाओं के साथ दुष्कर्म तक किया गया। आपको बता दें, उस समय उत्तर प्रदेश की सत्ता में मुलायम सिंह यादव (सपा) की सरकार थी और यह पहले से ही तय कर लिया गया था कि आंदोलनकारियों को आगे नहीं जाने देना है।
जब आंदोलनकारी दिल्ली की ओर आ रहें थे तब पहले तो नारसन बार्डर पर नाकाबंदी हुई, लेकिन यहां प्रशासन की नहीं चली और प्रशासन को बेबस होकर आंदोलनकारियों को आगे जाने दिया। जब आंदोलनकारियों का काफ़िला रामपुर तिराहे पर पहुंचा। वहां, प्रशासन पूरी तैयारी के साथ मौजूद था। तब पुलिस ने गोलियां चलाकर बर्बरता दिखाई। उस समय इस गोलीकांड में राज्य के 7 आन्दोलनकारी शहीद हो गए थे।
रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर में हुए गोली कांड के बाद उत्तराखंड राज्य निर्माण राज्य निर्माण की मांग तेज हो गई थी। आंदोलनकारियों ने प्रदेशभर में अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन जारी रखा। मुजफ्फरनगर में हुई घटना के बाद राज्य आंदोलनकारियों और प्रदेश के लोगों में गुस्सा बहुत अधिक बढ़ गया था।
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रामपुर तिराहा गोलीकांड शहीद
• अमर शहीद स्व० सूर्यप्रकाश थपलियाल, मुनि की रेती, ऋषिकेश
• अमर शहीद स्व० राजेश लखेड़ा, अजबपुर कलाँ, देहरादून
• अमर शहीद स्व० रवीन्द्र सिंह रावत, बी-२०, नेहरू कॉलोनी, देहरादून
• अमर शहीद स्व० राजेश नेगी, भानियावाला, देहरादून
• अमर शहीद स्व० सतेन्द्र चौहान, ग्राम हरिपुर, सेलाक़ुईं, देहरादून
• अमर शहीद स्व० गिरीश भद्री, अजबपुर ख़ुर्द, देहरादून
• अमर शहीद स्व० अशोक कुमार कैशिव, ऊखीमठ, रुद्रप्रयाग
श्रीयंत्र टापू आंदोलन (उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
उत्तरप्रदेश के तत्कालीन सरकार द्वारा पृथक राज्य आंदोलन के लिए उठा रही मांग को दबाने के लिए किया जा रहा उत्पीड़न यही नहीं थमा। गढ़वाल की राजधानी कहे जाने वाले पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर में 10 नवंबर 1995 को श्रीयंत्र टापू पर शांतिप्रिय ढंग से पृथक राज्य के लिए आंदोलन चल रहा था।
उस वक्त उत्तरप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था और शासन की कमान कांग्रेस के भूतपूर्व नेता और तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा के पास शासन की कमान थी।
अचानक पुलिस द्वारा यहाँ भी बर्बरता के साथ धरना प्रदर्शन को कुचला जाता है और आन्दोलन में बैठे लोगो को अमानवीय ढंग से पीटते हुए उन्हें नीचे बहती अलकनंदा नदी में फेंक दिया जाता है। इस घटना में आंदोलन कर रहे दो व्यक्ति यशोधर बेंजवाल और राजेश रावत की मृत्यु हो गयी साथ ही 55 आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर सहरानपुर जेल ले जाया जाता है।
श्री यंत्र टापू में शहीद आंदोलनकारी
* अमर शहीद स्व० यशोधर बेंजवाल
* अमर शहीद स्व० राजेश रावत
यूपी पुनर्गठन विधेयक 2000
साल 1998 में केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तराखंड राज्य सम्बन्धी विधेयक उत्तर प्रदेश विधान सभा को सहमति के लिए भेजा इस विधेयक में कुल 26 संशोधन करने के बाद उ.प्र. सरकार ने पुनः केन्द्र को भेज दिया जिसे बीजेपी सरकार ने 22 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया, लेकिन सरकार के गिर जाने से पास न हो सका।
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फिर से बीजेपी के सत्ता में आने के बाद इस विधेयक को एक बार फिर से उ.प्र. सरकार को भेजा गया और उ.प्र. सरकार द्वारा इसे पास कर केन्द्र को भेजने के बाद 27 जुलाई 2000 को यूपी पुनर्गठन विधेयक 2000 के नाम से लोकसभा में प्रस्तुत किया गया।(उत्तराखंड के राज्य आंदोलन का इतिहास )
9 नवंबर, 2000 को देश की 27 वें राज्य के रूप में (उ.प्र.) के 13 उत्तरी- प. जिलों को काटकर) उत्तरांचल राज्य का गठन किया गया और देहरादून को इसका अस्थाई राजधानी बनाया गया, उसी दिन प्रदेश के पहले अंतरिम मुख्यमंत्री श्री नित्यानंद स्वामी ने पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। वर्तमान में सरकार ने गैरसैण को अपनी ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाई है।
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