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kedarnath mandir ka itihas | केदारनाथ मंदिर का इतिहास और पुराणों में वर्णन

kedarnath mandir ka itihas

दोस्तों अगर आप केदारनाथ मंदिर का इतिहास  (kedarnath mandir ka itihas)और पुराणों में केदारनाथ का वर्णन जानना चाहते हैं और साथ ही केदारनाथ से जुडी पौराणिक मान्यताओं व् कथा की संक्षिप्त जानकारी चाहते हैं तो ये पोस्ट आपके लिए है।  पोस्ट पढ़ने से पहले ये बात जान ले की इस केदारनाथ मंदिर के इतिहास और पुराणों से इसके सम्बन्ध से जुडी सारी जानकारी हमने स्कन्द पुराण, लिंग पुराण, वामन पुराण, पद्मम पुराण, कूर्म पुराण, गरुड़ पुराण, सौर पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, शिव पुराण, स्कन्द पुराण से पुराणों में केदारनाथ के वर्णन और मान्यताओं के आधार पर इक्क्ठा की है। ये जानकारी बहुत ही संक्षिप्त है। अब आप केदारनाथ मंदिर का इतिहास  (kedarnath mandir ka itihas)और पुराणों में केदारनाथ का वर्णन के बारे में पढ़िए। 


केदारनाथ |  Kedarnath

 

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्तिथ केदारनाथ मंदिर का इतिहास बताता है कि श्री केदारनाथ का मन्दिर पांडवों का बनाया हुआ प्राचीन मन्दिर है । जो द्वादश ज्योतिलिंगों में एक है । समस्त धार्मिक लोग सर्वप्रथम केदारेश्वर ज्योतिलिंग के दर्शन करने के पश्चात् ही बद्रीनाथ के दर्शन करने जाते हैं । श्री केदारनाथ मन्दिर बहुत ही भव्य और सुन्दर बना हुआ है । पौराणिक कथा के आधार पर केदार महिष ( भैसा ) रूप का पिछला भाग है । द्वितीय केदार मद्महेश्वर में नाभि , तुङ्गनाथ में बाहु और मुख रुद्रनाथ में तथा कल्पेश्वर में जटा है । यही पंचकेदार कहे जाते हैं ।

केदारनाथ मन्दिर के बाहरी प्रासाद में पार्वती , पांडव , लक्ष्मी आदि की मूर्तियाँ हैं । मन्दिर के समीप हँसकुण्ड है जहां पितरों की मुक्ति हेतु श्राद्ध – तर्पण आदि किया जाता है । मंदिर के पीछे अमृत कुण्ड है तथा कुछ दूर रेतस कुण्ड है । पुरी के दक्षिणभाग में छोटी पहाड़ो पर मुकुण्डा भैरव हैं जहां से हिमालय का मनोहर दृश्य अत्यन्त नजदीक दिखाई पड़ता है । पास ही में बर्फानी जल की झील है , वहीं से मंदाकिनी नदी का उद्गम होता है । केदारनाथ मंदिर के पास ही उद्दककुण्ड है जिसको महिमा विशेष बताई जाती है । केदारनाथ जी के मुख्य मन्दिर में पूजा करके पिण्ड का आलिंगन करते हैं ।


 

केदारनाथ मंदिर का इतिहास  | History of kedarnath mandir 

व्यास स्मृति ( चौथा अध्याय ) केदार तीर्थ करने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।

 

प्राचीन पुराणों में क्या लिखा है ? | Mention of Kedarnath in Puranas

 

 पौराणिक कथा में  केदारनाथ मंदिर का जिक्र | Mythology behind of Kedarnath temple

 

 

केदारनाथ की महिमा | Glory of kedarnath

 

केदारनाथ मंदिर का इतिहास (kedarnath mandir ka itihas) और पुराणों में केदारनाथ का वर्णन करते हुए कहा गया है कि केदारनाथ की भूमि में प्रविष्ट होते ही आनन्द और आश्चर्य की सीमा नहीं रहती । समुद्र की सतह से वारह तेरह हजार फुट की ऊँचाई पर इस मंजुल तीर्थ पर पहुंचते ही शीत , क्षुधा , पिपासा आदि कितने ही विघ्नों के होते हुए भी किसी भी धार्मिक व्यक्ति का मन भाव समाधि में लीन हो जाता है । धवल – धवल पर्वत पंक्तियों के बीच खड़ा मनुष्य ईश्वर की अखण्ड विभूति को देख – देख कर के ठगा – सा रह जाता है । प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य को निहार कर इस रमणीय भूमि में स्वयं ही सत्व भाव उमड़ आता है । और जब मन में श्रद्धा की उष्णता उमड़ने लगे तो भला मन्दाकिनी का जल शीतल कैसे लगे ? शुद्ध तथा सात्विक श्रद्धा ही बड़े पुण्य का फल है । पापी लोगों के मन में श्रद्धा का उदय नहीं होता । मनुष्य संसार में जिस दिन जन्म लेता है उसी दिन से मृत्यु को अपने सिर पर लिए आता है किन्तु वह बड़ा होकर ये भूल जाता है । इस तरह से जिसके पास पापों का ढेर लग गया हो उसे पारलौकिक पुण्य क्रियाओं और आत्म शुद्धि की बुद्धि उत्पन्न नहीं होती । लेकिन जो व्यक्ति नगरों में रहते हुए गंगा के जल को छूते तक नहीं , देव मन्दिरों को झाँकते तक नहीं वह भी केदारनाथ की सत्व पृथ्वी पर आकर मंदाकिनी की अति शीतल जलधारा में बड़ी श्रद्धा से स्नान करके ‘ केदारनाथ की जय ‘ की पुण्य ध्वनि के साथ और ‘ हर – हर महादेव ‘ के जयघोष से मन्दिरों में प्रवेश करते हैं । अहो ! यहां कितनो विचित्र महिमा है भगवान शंकर की । वह सभी जीवों के प्रति समान प्रेम और स्नेह रखते हैं तभी तो यहाँ आकर प्रत्येक के मन में चित्त को पिघला देने वाला अनुराग पैदा जाता है । केदारनाथ मंदिर का इतिहास (kedarnath mandir ka itihas) और पुराणों में केदारनाथ का वर्णन बताता है कि ईश्वर के चरणों में अनु राग एवं शुद्ध भक्ति पैदा होने से ही मनुष्य जन्म कृतार्थ होता है।

इसे भी पढ़े – रुद्रप्रयाग का पौराणिक इतिहास


 

केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला | Architecture of Kedarnath Temple

 

केदारपुरी उत्तर छोर पर श्री केदारनाथ जी का मन्दिर है , मन्दिर के ऊपर बीस द्वार की चट्टी है सबसे ऊपर सुनहरा कलश है । मन्दिर के ठीक मध्य में श्री केदारनाथ जो की स्वयंभू मूर्ति है, उसी में भसे के पिछले धड़ की भी आकृति है , यात्रीगण धी केदारनाथ का स्पर्श करते हैं , मन्दिर के आगे पत्थर का जग ( ६७ ) गोहन बना हुआ है , जगमोहन के चारों ओर द्रोपदो सहित पांचों पांडवों की मूर्तियाँ हैं इसके मध्य में पीतल का छोटा नन्दी और वाहर दक्षिण की ओर वड़ा नन्दो तथा छोटे बड़े कई प्रकार के घन्टे लगे हैं , द्वार के दोनों ओर दो द्वारपाल हैं , दस – पन्द्रह अन्य देव मूर्तियाँ हैं , श्री केदारनाथ जो की शृगार मूर्तियाँ पंचमुखी हैं ,यह हर समय वस्त्र तथा आभूषणों से सुसज्जित रहती हैं । मन्दिर के पीछे दो तीन हाथ लम्बा अमृत कुण्ड है जिसमें दो शिवलिंग स्थित हैं , पूर्वोत्तर भाग में हंसकुण्ड तथा रेतस हैं , रेतस कुण्ड में जंघा टेक कर तीन आचमन बायें हाथ से लिए जाते हैं , यहीं पर ईशानेश्वर महादेव हैं । पश्चिम में एक सुबलक कुण्ड है , केदार मन्दिर के सामने एक छोटे अन्य मन्दिर में लम्बा उदक कुण्ड है इसमें भी रेतस कुण्ड की तरह आचमन किया जाता है , इस मन्दिर के पीछे मीठे पानी का एक और कुण्ड है । इसका भो पानी पिया जाता है।


 

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