उत्तराखंड जिसे शिव की भूमि भी कहा जाता है यहाँ शिव के कई सिद्ध पीठ मौजूद हैं जिसमे पंचकेदारों में आराध्य श्री केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मद्महेश्वर, कल्पेश्वर हैं वहीँ 5 शैवपीठ ताड़केश्वर, एकेश्वर, बिंदेश्वर, कंकालेश्वर या क्यूंकालेश्वर और किलकिलेश्वर महादेव प्रमुख हैं। हम आपको इस पोस्ट में क्यूंकालेश्वर या कंकालेश्वर मंदिर (Kyunkaleshwar Temple) की महिमा व पौराणिक गाथाओं के बारे में बताएंगे। साथ ही क्यूंकालेश्वर मंदिर से जुड़ी भ्रांतियों से भी आपको रुबरु कराएंगे। अतः क्यूंकालेश्वर मंदिर से जुड़े इस पोस्ट को अंत तक पढ़ें।
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क्यूंकालेश्वर मंदिर | Kyunkaleshwar Temple
पौड़ी गढ़वाल में मुख्य बाजार से लगभग 2.5 किमी दूर शिव का एक पौराणिक मंदिर क्यूंकालेश्वर महादेव स्तिथ है। चीड़ व देवदार से आच्छादित क्यूंकालेश्वर मंदिर समुद्रतल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्तिथ है। इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य ने अपनी गढ़वाल यात्रा के दौरान की थी। स्कंदपुराण के केदारखंड के अनुसार यह कीनाश पर्वत पर सुशोभित है। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का नाम कंकालेश्वर या किंकालेश्वर है। यह मंदिर मंदिर भगवान शिव, देवी पार्वती, गणपति, कार्तिकेय, भगवान राम, देवी सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों को दर्शाता है।
इस स्थान पर यम ने शिव की कठोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए तथा भविष्य में भक्तों को भक्ति व मुक्ति का आशीष दिया। क्यूंकालेश्वर मंदिर से पौड़ी शहर का सुंदर नजारा देखने को मिलता है। वहीं हिमाछादित पर्वतमालाओं का खूबसूरत दृश्य भी मिलता है। इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर रांसी स्टेडियम मौजूद है जो एशिया में सबसे ऊंचाई पर स्तिथ मैदान है। क्यूंकालेश्वर मंदिर में शिवरात्रि के दिन भक्तों की भीड़ लगी रहती है। वीडियो देखें।
क्यूंकालेश्वर मंदिर का इतिहास व मान्यताऐं | History & Beliefs of Kyunkaleshwar Temple
कहते हैं कि आदिकाल में जब देवी सती ने अपने पिता राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपना देह त्याग किया तो उस दो घटनाएं हुई भगवान शिव जिन्होंने ने क्रोध में आकर दक्ष का गला काटा व तांडव करने लगे। जिसके बाद भगवान विष्णु ने उनका क्रोध शांत किया व शिव को दक्ष को जीवनदान देने को कहा। भगवान दक्ष के धड़ पर बकरे का सर लगा दिया तबसे ही कनखल हरिद्वार में दक्ष महादेव मंदिर हुई। इस घटना के भगवान शिव कठोर तपस्या में लीन हो गए।
जब एक तरफ ये घटनाएं हो रही थी तब दैत्यों का राजा ताड़कासुर ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या में बैठा था। ताड़कासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्मा से उससे वरदान मांगने को कहा तो ताड़कासुर जानता था अमरत्व का वरदान देवता मांगने नहीं देंगे वहीँ वो माता सती व भगवान शिव से जुडी घटनाओं से भली भांति परचित। था। इसलिए उन्होंने ब्रह्मा से शिव के पुत्र द्वारा वध का वरदान माँगा।
वरदान मिलने के बाद ताड़कासुर ने देवताओं पर चढ़ाई कर दी कई वर्षो के भीषण युद्व के बाद ताड़कासुर ने त्रिलोक विजय किया। जब व तीनो लोक जीत गया तो उसने मृत्यु के देव यम पर चढ़ाई कर दी। भगवान शिव यम के आराध्य थे। कहते हैं यम के साथ ताड़कासुर का युद्ध होने के बाद जब यम पराजय की स्तिथि में पहुँच गए तो वे कीनाश पर्वत, जहाँ आज क्यूंकालेश्वर मंदिर स्तिथ है, वहां शिव की तपस्या में बैठ गए। तब देवी भगवती ने पार्वती के रूप में जन्म ले लिया था। कई वर्षों की कठोर तपस्या के बाद जब का शरीर कंकाल हो गया तो भगवान शिव ने यम की तपस्या से प्रसन्न होकर अपनी समाधि छोड़ी व उन्हें वरदान दिया। पहला वरदान उन्होंने ताड़कासुर वध से सम्बन्धित दिया जबकि उन्होंने दूसरा वरदान यम की तपस्या से खुश होकर आदिकाल में इस स्थान में कंकालेश्वर के रूप में अपने भक्तों को मुक्ति देने का दिया।
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क्यूंकालेश्वर मंदिर से जुड़े कुछ अन्य तर्क | Some other arguments related to Kyunkaleshwar temple
क्यूंकालेश्वर मंदिर (Kyunkaleshwar Temple) से जुड़ी दो मान्यताएं प्रचलित हैं जिसके कारण इसकी स्थापना में द्वन्द दिखाई देता है।
- पहली मान्यता के अनुसार इस मंदिर आदि गुरु शंकराचार्य ने इसकी स्थापना अपनी केदारखंड की यात्रा के दौरान की थी। क्यूंकि इसकी वास्तुकला केदारनाथ मंदिर से मिलती है। हालाँकि केदारखंड की उनकी यात्रा वर्षो पुरानी है।
- वहीं अन्य तर्क है कि इस मंदिर की नींव नेपाल से इस स्थान पर तपस्या करने आये दो मुनि मित्र शर्मा व मुनि शर्मा ने रखी। उनकी कुटिया मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्तिथ थी तथा वे पानी लेन के दौरान इस स्थान पर विश्राम करते थे। कहते हैं कि एक दिन उन्होंने अपने स्वपन में देखा कि इस स्थान पर यम ने शिव की तपस्या की थी। तभी उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया। उस समय यह क्षेत्र ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत आता था अतः उन्होंने भी इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया यही कारण है इस मंदिर के प्रांगण में स्तिथ एक बैठने के चूबतरे पर लार्ड पंचम का नाम लिखा है।
- दूसरी और इस मंदिर का नाम भगवान शिव के नाम कंकालेश्वर के नाम पर रखा गया था जबकि शब्दों के अपभ्रंश होने के कारण यह क्यूंकालेश्वर से जाना जाने लगा। वहीं उत्तराखंड के पर्यटन विभाग ने भी इस मंदिर का नाम क्यूंकालेश्वर बताया है उसी नाम का हम भी प्रयोग कर रहे हैं । कंकालेश्वर के नाम से एक और मंदिर महाराष्ट्र के बीड में भी है। वीडियो देखें।
कैसे आए क्यूंकालेश्वर मंदिर | How To Reach Kyunkaleshwar Temple?
- दिल्ली – देहरादून जोलीग्रांट (हवाई मार्ग )
- दिल्ली – देहरादून / ऋषिकेश हरिद्वार (रेल मार्ग )
- देहरादून/ ऋषिकेश/ हरिद्वार – पौड़ी गढ़वाल (सड़क मार्ग)
क्यूंकालेश्वर मंदिर (Kyunkaleshwar Temple) उत्तराखंड के पौड़ी जिले में मुख्य बाजार से लगभग ३ किमी की दूरी पर स्तिथ है। इस मंदिर में कंडोलिया से होते हुए रांसी स्टेडियम के सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। वहीँ आप रेल मार्ग से हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून व् हवाई मार्ग से देहरादून के जोलीग्रांट के हवाईअड्डे पर पहुँच सकते हैं। जहां से पौड़ी तक की यात्रा आप सड़क मार्ग से करेंगे।
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तो ये थी उत्तराखंड में भगवान शिव के क्यूंकालेश्वर मंदिर (Kyunkaleshwar Temple) के बारे में यदि आपको क्यूंकालेश्वर मंदिर (Kyunkaleshwar Temple) से जुडी जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे शेयर करें साथ ही हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें।
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