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नृसिंह मंदिर, जोशीमठ | Narsingh Mandir Josimath

 नृसिंह मंदिर

उत्तराखंड शिव की भूमि है। भोलेनाथ के बहुत से मंदिर और शिवालय हिमालय के इस छोटे से राज्य में देखने को मिलते हैं मगर उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में भगवान विष्णु का एक ऐसा धाम है जिसके दर्शन मात्र से सारी मनोइच्छा पूर्ण हो जाती है। यह मंदिर है विष्णु के पांचवे अवतार भगवान नृसिंह का। विष्णु के आधे सिंह और आधे विष्णु अवतार की कहानी विष्णु के अनन्य भक्त प्रह्लाद से जुडी है। आज इस पोस्ट के माध्यम से जोशीमठ में स्तिथ नृसिंह मंदिर (Narsingh Mandir Josimath) के बारे में आपको बताएंगे तो पोस्ट अंत तक पढियेगा।


 नृसिंह मंदिर जोशीमठ  | Narsingh Mandir Josimath 

भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार  को उनका उग्र स्वरूप माना जाता है । कष्टों व शत्रु बाधा के नाश के लिए भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार की पूजा की जाती है। उत्तराखण्ड के चमोली जनपद के  जोशीमठ क्षेत्र में भगवान विष्णु  नृसिहं अवतार में विराजित है। नृसिंह मंदिर भगवान के 108 दिव्य दशमों  में से एक है । नृसिंह अवतार, जिसमे विष्णु के शरीर का आधा भाग सिंह रूप में है और आधा मानव रूप में है ,भगवान  विष्णु के चौथे अवतार हैं। भगवान नृसिंह के साथ बद्रीनारायण, उद्धव और कुबेर के विग्रह भी स्थापित है। भगवान नृसिंह  का यह मंदिर पंच बद्री ( श्री बद्रीनाथ , श्री आदि बद्री , श्री वृद्ध बद्री , श्री भविष्य बद्री, श्री योग ध्यान बद्री , श्री नृसिंह बद्री ) में से एक है जिसे नरसिंघा बद्री या नरसिम्हा बद्री कहा जाता हैं।



भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार की वजह :

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने यह अवतार हिरण्‍यकश्‍यप के संहार और भक्‍त प्रहृलाद की रक्षा के लिए धारण क‍िया था। लेकिन उनके इस अवतार की कथा केवल इतनी नहीं है। कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहृलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। अपने पुत्र की विष्णु के प्रति आस्था देख हिरण्यकश्यप बड़ा क्रोधित हुआ। उसने प्रहृलाद को मारने के अनेक पर्यटन किये कभी प्रहृलाद को बांधकर नदी में फेंका तो कभी अपनी बहिन होलिका के साथ जलती आग में बैठाया मगर प्रहृलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। इस बात से अत्यंत क्रोधित हिरण्यकश्यप ने जब अपने हाथों प्रहृलाद का वध करना चाहा तो भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहृलाद की रक्षा के लिए  नृसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। कहते हैं कि जोशीमठ में स्तिथ नृसिंह मंदिर का सम्बन्ध ललितादित्य मुक्त पीड़ा से जुड़ा है। वही कुछ लोग इस मंदिर के निर्माण के पीछे आदिगुरु शंकराचार्य को भी मानते हैं।
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जोशीमठ में नृसिंह मंदिर की स्थापना : 

 नृसिंह मंदिर1200 हजार वर्षों से  भी पुराने नृसिंह मंदिर की स्थापना के संबंध में कई मत है । 



क्या होगा अगर नृसिंह भगवान की भुजा खंडित हो जाएगी ?

भगवान नृसिंह की मूर्ति 10 इंच की है जिसमें वे एक कमल पर विराजे है। भगवान नृसिंह की बायी भुजा हर बीते वक्त के साथ घिस रही है। भुजा की घिसने की गति को संसार में निहित पाप से भी जोड़ा जाता है । केदारखंड के सनत कुमार संहिता के अनुसार जिस दिन भुजा खंडित हो जाएगी उस दिन विष्णू प्रयाग के समीप पटमिला नामक स्थान पर नर और नारायण पर्वत जिन्हें जय और विजय पर्वत के नाम से भी जाना जाता है  ढहकर एक हो जाएंगे और बद्रीनाथ का मार्ग सदा के लिए बंद हो जायेगा। तब जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित भविष्य बदरी मंदिर में भगवान बदरीनाथ के दर्शन होंगे। केदारखंड के सनतकुमार संहिता में भी इसका उल्लेख मिलता है।

बद्रीनाथ और नृसिंह मंदिर का संबंध:

जब सर्दियों में मुख्य बद्रीनाथ मंदिर बंद हो जाता है, तो बद्रीनाथ के पुजारी नृसिंह  मंदिर में चले जाते हैं और यहां बद्रीनाथ की पूजा जारी रखते हैं। केंद्रीय नरसिम्हा मूर्ति के साथ, मंदिर में बद्रीनाथ की एक मूर्ति भी है।



 नृसिंह मंदिर नृसिंह मंदिर कैसे पहुंचे ? | How To Reach Narsingh Mandir, Josimath

जोशीमठ में स्तिथ भगवान विष्णु के नृसिंह मंदिर तक का रास्ता बहुत सरल है। आप देहरादून, ऋषिकेश या हरिद्वार से कैब लेकर जोशीमठ पहुंचकर इस मंदिर के दर्शन  हैं। इसके अलावा आप यदि रेल अथवा हवाई सफर कर पहुंचना चाहते हैं तो रेल से आप देहरादून या ऋषिकेश तक ही यात्रा कर पाएंगे वहीँ हवाई सफर देहरादून जोलीग्रांट हवाई अड्डे तक ही सिमित है। यहाँ से आपको आराम से कैब या बस सुविधा उपलब्ध हो जाएगी।

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