उत्तराखंड अपने विशिष्ट रीति-रिवाज और परंपराओं के लिए जाना जाता है। हिमालय की गोद में बसे इस अंचल में कई ऐसे त्योहार और मेले हैं जो उत्तराखंड को भारत के अन्य राज्यों से अलग करते हैं। ऐसे ही एक उत्सव है रम्माण।
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रम्माण उत्सव
रम्माण उत्तराखंड के सुदूर अंतर्राष्ट्रीय जिले चमोली के सलूर डूंगरा में मनाया जाता है। उत्तराखंड के छोटे से गांव ने इस पारंपरिक उत्सव को संरक्षित रखते हुए नई पीढ़ी तक पहुंचने में सफल हुई है। अखबारों की रिपोर्ट की माने तो यह उत्सव 500 साल पुराना है। अपनी इसी विशिष्टता के कारण वर्ष 2009 में इसे यूनेस्को की वर्ल्ड हेरीटेज लिस्ट में शामिल किया है।
रम्माण एक मोखोटा नृत्य कला है जिसे हर साल अप्रैल महीने में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में रामायाण के चरित्रों और अन्य लोक देवताओं की कहानियों का नृत्य द्वारा मंचन किया जाता है। वहीं उनसे संबंधित कहानियां का मंचन ढोल दमों की थापों पर किया जाता है।
रम्माण में रामायाण की झलक
विद्वानों की माने तो रम्माण उत्सव रामायण की कथा के कारण पड़ा है। वहीं अन्यों की माने तो भारत में हिन्दू धर्म की पुनर्स्थापना के लिए कालांतर में इन मंचनों के द्वारा ही धर्म का प्रचार प्रसार किया जाता था। जिसमें शंकराचार्य ने अहम भूमिका निभाई थी। मगर इन बातों कितना सच्चाई है इसकी पुष्टि होना अभी बाकी है।
क्योंकि रम्माण जैसे मखौटा नृत्य कला भारत के अन्य राज्यों में भी प्रचलित है। मगर इन सब के बात भी यह भारत के अन्य नृत्य विधाओं से विशिष्ट पहचान रखता है। इस उत्सव से न सिर्फ देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है बल्कि लोक देवताओं की कथा उनका मंचन, पर्यावरण और सामाजिक एकता का संदेश भी दिया जाता है।
रम्माण की विशेषता
रम्माणकी शुरुआत डूंगरा गांव के संरक्षक देवता भूमियाल देवता से होती है। बैसाखी के दिन गांव के पुजारी रम्माण महोत्सव की तारीख की घोषणा करते हैं और यह उत्सव बैसाखी के ही नौवे या 11 वे दिन आरंभ होता है। 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में ग्रामीण देवता को हरियाली (अंकुरित जौ) चढ़ाए जाते हैं ताकि गांव में समृद्धि और कृषि वन संपदा की उन्नति होती रहे। इस उत्सव में भूमियाल देवता जो लोक देवता है, वह पूरे गांव का चक्कर लगाते हैं।
वहीं 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में रामायण के चित्रों का मंचन खूबी से किया जाता है। विभिन्न हिस्सों का चित्रण किया जाता है जिसमें शामिल है प्रभु श्री राम का जन्म उनका वन गमन माता सीता का हरण और लंका दहन आदि दृश्य शामिल हैं। इस दौरान 18 मुखौटा पहने कलाकार 18 पुराणों का जश्न मनाते हुए 18 ताल पर नृत्य करते हैं।
रम्माण में अन्य अनुष्ठान
रम्माण की शुरुआत भगवान गणेश की वंदना से शुरु होती है। और धीरे-धीरे कार्यक्रम बढ़ने पर भैंस चराने वालों की परेशानियों से संबंधित म्वार-म्वारिन का नृत्य, व्यापारी दंपति का बनिया-बनियान का नृत्य व श्री कृष्ण और राधिका का नृत्य भी इसमें सम्मलित है।
उत्सव की समाप्ति पर भूमियाल देवता गाँव के किसी एक परिवार के घर पर विराजमान होते हैं। इस परिवार का चयन गाँव की पंचायत करती है। देवता अगले रम्माण तक वहीं विश्राम करते हैं।
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सलूर-डुंग्रा (रम्माण महोत्सव) कैसे पहुँचें?
1. हवाई मार्ग से:
सलूर-डुंग्रा का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून है, जो गाँव से लगभग 292 किमी दूर है। एयरपोर्ट से टैक्सी या बस लेकर आप सलूर-डुंग्रा पहुँच सकते हैं।
2. रेल मार्ग से:
निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है, जो लगभग 272 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ से सलूर-डुंग्रा तक पहुँचने के लिए स्थानीय बसें या टैक्सी उपलब्ध हैं।
3. सड़क मार्ग से:
सलूर-डुंग्रा सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
देहरादून से यह लगभग 300 किमी की दूरी पर है और यहाँ तक आप NH 7 के माध्यम से पहुँच सकते हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार और देहरादून जैसे प्रमुख शहरों से चमोली तक नियमित बसें और टैक्सियाँ उपलब्ध हैं। चमोली से आप स्थानीय वाहन लेकर सलूर-डुंग्रा जा सकते हैं।
4. स्थानीय परिवहन से:
चमोली पहुँचने के बाद, साझा जीप और स्थानीय बसें नियमित रूप से सलूर-डुंग्रा के लिए चलती हैं। हालाँकि, इनकी आवृत्ति शाम को कम हो जाती है, इसलिए सुबह जल्दी यात्रा शुरू करना बेहतर है।
यात्रा टिप:
रम्माण महोत्सव (अप्रैल या मई) के दौरान यात्रा की योजना बनाएं ताकि आप इस उत्सव की जीवंतता का अनुभव कर सकें। ध्यान रखें कि गाँव में सीमित ठहरने की सुविधा है, इसलिए पहले से बुकिंग कर लें।
Q&A on Rammman Festival
Q1: रम्माण उत्सव क्या है?
Ans: रम्माण एक पारंपरिक गढ़वाली त्योहार है, जो उत्तराखंड के सलूर डुंग्रा गाँव में मनाया जाता है। यह त्योहार रामायण की कहानियों, मुखौटा नृत्य और संगीत के माध्यम से धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को जीवंत करता है।
Q2: रम्माण कब और कहाँ मनाया जाता है?
Ans: रम्माण त्योहार उत्तराखंड के चमोली जिले के सलूर डुंग्रा गाँव में बैसाखी के नौवें या ग्यारहवें दिन शुरू होता है और दस दिनों तक चलता है।
Q3: रम्माण का मुख्य आकर्षण क्या है?
Ans: रम्माण का मुख्य आकर्षण रामायण के प्रसंगों पर आधारित मुखौटा नृत्य, ‘जागर’ का गायन, और ‘माल नृत्य’ जैसे पारंपरिक नृत्य हैं।
Q4: भूमियाल देवता कौन हैं?
Ans: भूमियाल देवता सलूर डुंग्रा गाँव के संरक्षक देवता हैं, जो त्योहार के दौरान गाँव के हर घर में जाकर समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
Q5: रम्माण का धार्मिक और सामाजिक महत्व क्या है?
Ans: यह त्योहार धर्म और समाज का अद्भुत संगम है, जहाँ जाति, पंथ, और वर्ग के भेदभाव के बिना लोग एकजुट होकर भाग लेते हैं और परंपराओं का पालन करते हैं।
Q6: रम्माण में कौन-कौन से नृत्य होते हैं?
Ans: रम्माण में कई नृत्य होते हैं, जैसे गणेश-पार्वती नृत्य, सूर्य देव का नृत्य, म्वार-म्वारीन नृत्य, बनिया-बनियान नृत्य, और कूरजोगी समारोह।
Q7: रम्माण की शुरुआत कैसे होती है?
Ans: रम्माण उत्सव की शुरुआत भगवान गणेश की वंदना और उनके नृत्य से होती है।
Q8: क्या रम्माण यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त है?
Ans: हां, रम्माण त्योहार को यूनेस्को द्वारा Intangible Cultural Heritage की सूची में शामिल किया गया है।
Q9: रम्माण में ‘जागर’ का क्या महत्व है?
Ans: ‘जागर’ स्थानीय किंवदंतियों और धार्मिक कथाओं का संगीतमय प्रस्तुतीकरण है, जो पूरे त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
Q10: रम्माण उत्सव के दौरान गाँव के लोग क्या करते हैं?
Ans: गाँव के लोग भूमियाल देवता की पूजा करते हैं, हरियाली चढ़ाते हैं, और रामायण की कहानियों का मंचन करते हैं। इसके अलावा, सामूहिक नृत्य और खेलों में भाग लेते हैं।
देहरादून का इतिहास | History of Dehradun
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