उत्तराखंड हिन्दुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है, यहाँ मौजूद मंदिरों का एक अलग ही महत्व है। उत्तराखंड में आपको थोड़ी-थोड़ी दूर में कई मंदिर देखने को मिल जायंगे। आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारें में बताने जा रहे हैं। जहाँ भगवान सूर्य देव की स्तुति की जाती है। कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Surya Temple, Almora) के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर सूर्य को समर्पित भारत का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कटारमल सूर्य मंदिर की स्थापत्य कला, पौराणिक मान्यताएं और इस मंदिर से जुडी कुछ अहम जानकारी देंगे तो इस इस पोस्ट को अंत तक पढ़ें ।
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कटारमल सूर्य मंदिर, अल्मोड़ा | Katarmal Surya Temple, Almora
कटारमल सूर्य मंदिर उत्तराखंड राज्य में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार कटारमल गांव में स्थित हैं। यह सूर्येदेव को समर्पित भारत का पूर्वामुखी प्राचीन सूर्ये मंदिर है। यह मंदिर उड़ीशा में स्तिथ कोर्णाक सूर्य मंदिर के बाद दूसरा सबसे प्राचीन मंदिर है। कटारमल सूर्य मंदिर को बड़ादित्य या आदित्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
सूर्येदेव को समर्पित यह प्राचीन मंदिर एक ऊंचे वर्गाकार चबूतरे पर बनाया गया है, आज भी यह मंदिर उतना ही विशाल और सुंदर है, जैसे सदियों पहले था। यह मंदिर कुमाऊं के विशाल मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की स्थापना कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने की थी। मन्दिर के आस पास 45 छोटे-छोटे मंदिरों का समूह है जो कि कटारमल मंदिर की सौन्दर्यता को और निखारता है।
यह मंदिर शिल्प कला का अद्भुत नमूना है जो की समुंदर की तह से 2116 मी की ऊँचाई पर स्थित पर्वत पर बना है । यह मंदिर एक सुंदर चट्टान के ढाल पर स्तिथ है और मंदिर से सामने कोसी घाटी का सुंदर नजारा देखने को मिलता है। मंदिर के पूर्वामुखी होने के कारण सूर्य की सबसे पहले किरणें इस मुख्य भवन पर पड़ती हैं। कटारमल का सूर्य मंदिर लगभग 200 साल पुराना है साथ ही मंदिर में स्थापित भगवान आदित्य की मूर्ति बड़ के पेड़ की लकड़ी से निर्मित है। इस कारण इस मंदिर को बड़ादित्य के नाम से भी जाना जाता है।
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मंदिर की वास्तु कला
कटारमल मंदिर (Katarmal Surya Temple, Almora) नागर शैली में निर्मित है। यहां सूर्य देव धान मुद्रा में विराजमान हैं। इस मंदिर की संरचना त्रिरथ है जो वर्गाकार गर्भगृह के साथ शिखर वक्र रेखी है। इस मंदिर के मुख्य भवन का शिखर खंडित अवस्था में है और मंदिर की संरचना को आधार दिए खम्भों पर खूबसूरत नक्काशी की गयी है। इस मंदिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार उच्चकोटि की काष्ठ कला से निर्मित है। जिसे वर्तमान में दिल्ली स्तिथ राष्ट्रीय संग्राहलय में रखा गया है।
भगवान सूर्य के साथ यहाँ भगवान शिव , गणेश, विष्णु आदि कई देव – देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर में कई जगह की गई नक्काशी मन्दिर को और ज्यादा खूबसूरती प्रदान करती है। मंदिर के आसपास का वातावरण बहुत ही मनमोहक, प्राकृतिक और शांत है । दर्शन के साथ साथ लोग यहाँ प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव लेने भी आते है। यह मंदिर साल भर खुला रहता है। इसे भी पढ़ें – हरिद्वार के बारे में रोचक तथ्य
कटारमल मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
सूर्ये कटारमल मंदिर (Katarmal Surya Temple, Almora) के निर्माण के पीछे कई पौराणिक कथाएं है। कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण 6वीं से 9वीं शताब्दी के मध्य हुई थी। पौराणिक कथा के अनुसार एक समय में उत्तराखंड की कंदराओं में धर्मद्वेषी असुर ऋषि मुनियों पर अत्याचार किया करते थे। जिससे मुक्ति के लिए उस वक़्त द्रोणगिरि, काषय पर्वत व कंजार पर्वत के ऋषियों ने कौशिकी (जिसे अब कोसी नदी के नाम से जानते हैं) के तट आकर सूर्ये देव की तपस्या की।
सूर्य देव ऋषि मुनियों की स्तुति से अत्यंत प्रसन्न हुए। और आश्रीवाद स्वरूप अपने दिव्य तेज को यहां विशाल वटशिला में स्थापित किया। इसके बाद इसी वट शिला को कत्यूरी राज्यवंश के शासक कटारमल ने बड़ादित्य मंदिर के रूप में इस स्थान को विकसित करवाया और तब से यह मंदिर कटारमल सूर्य मंदिर के नाम से प्रसिद्ध गया।
कटारमल मंदिर से जुड़ी मान्यताएं | Beliefs About Katarmal Surya Temple, Almora
कटारमल मंदिर के मुख्य भवन का शिखर भाग खंडित है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण रातों रात किया गया, मगर जब प्रातः सूर्य निकलने लगा तो मुख्य मंदिर के शिखर का भाग छूट गया जिस कारण मुख्य मंदिर के शिखर भाग अधूरा छूट गया।
वहीँ एक अन्य मान्यता के अनुसार मंदिर के रख रखाव के अभाव के कारण शिखर भाग खंडित हो गया। वर्तमान में इस मंदिर की देखभाल भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की जा रही है।
कटारमल मंदिर कैसे पहुंचे? | How To Reach Katarmal Surya Temple, Almora
- निकटतम रेलवे स्टेशन – काठगोदाम रेलवे स्टेशन (107 किमी)
- निकटतम एयरपोर्ट – पंतनगर एयरपोर्ट (125 किमी)
कटारमल सूर्य मंदिर तक पहुँचने के कई रास्ते हैं। यदि आप बस से आते हैं तो दिल्ली से आप बस लेकर आ सकते है। दिल्ली से यह मात्र 350 किमी. दूर है। 10 से 15घंटे में यहाँ पहुँचा जा सकता है । वही यदि आप रेल यात्रा या हवाई यात्रा करते है, तो दिल्ली से वो भी उपलब्ध है । यह मंदिर अल्मोड़ा में रानीखेत के पास स्तिथ है। अल्मोड़ा से कोसी गांव सड़क मार्ग से महज 17 किमी दूर है। कोसी गांव से 1.5 किमी के पैदल मार्ग पर स्तिथ है।
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