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नायक समाज सुधार आंदोलन
उत्तराखंड की सामाजिक कुप्रथाओं और व्यवस्थाओं को बदलने के लिए कई आंदोलन हुए हैं जैसे डोला पालकी आंदोलन, अछूतोद्वार आंदोलन। इन आंदोलनों से समाज द्वारा बनाए गए निम्न व उच्च तबके की व्यवस्थाओं पर आघात किया गया बल्कि उन्हें मुख्य धारा से भी जोड़ने का प्रयास किया गया। उन्हीं समाजिक आंदोलनों में से एक है नायक समाज सुधार आंदोलन।
नायक 20वीं सदी के प्रारंभिक दशक में उत्तराखंड में निवास करने वाली एक जाति थी। इस जाति में कन्याओं को वैश्यावृति में धकेला जाता था। नायक समाज की बरसों से परम्परा थी कि इस समाज में कन्याओं का विवाह नहीं किया जाता था। वेश्यावृति ही इस समाज के आर्थिकी का एक अहम जरिया था।
नायक जाति के लोग उत्तराखंड के विभन्न हिस्सों में निवास करते थे – नैनीताल, अल्मोड़ा एवं गढ़वाल के जिलों में रामगढ, कटारमल, नैनी, सिनचौड़, गंगोल, वल्दिया, कालीकाट, लंगूट एवं उदयपुर तल्ला आदि। नायक जाति समाज द्वारा बहिष्कृत समाज था जिनकी संताने अवैध संबंधों से जन्मी थी।
बीसवीं संदी में जब देश में कई समाजिक सुधार आंदोलन जन्म लेने लगे तो उत्तराखंड के माथे पर कलंक के रूप में देखे गए नायक समाज की कुप्रथाओं को दूर करने का प्रयास भी शुरू हुआ। इस समाज के उत्थान के लिए सबसे पहला कदम दयानन्द सरस्वती के आर्य समाज ने उठाया। उसके बाद कुमाऊं परिषद, प्रयाग सेवा समिति, सर्वेन्ट ऑफ़ इण्डिया सोसइटी ने भी नायक समाज सुधार आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और समाजिक और सरकारी तंत्र की मदद से इस समाज की कुप्रथाओं को दूर किया गया।
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कैसे हुई नायक जाति की उत्त्पत्ति ?
नायक जाति के उत्त्पत्ति के सम्बन्ध में कई मत उत्तराखंड में प्रचलित हैं। सबसे पहले नायक का उल्लेख चंद वंश के राजा भारतीचंद (1437 ई* – 1450 ई* ) के समय में मिलता है। प्रमुख ब्रिटिश इतिहासकार एटकिंस का मत है कि नायक जाति की उत्त्पत्ति भारतीचंद के डोटी पर (नेपाल) 12 वर्षीय युद्ध के परिणाम स्वरूप हुआ।
इस लम्बे युद्ध के दौरान चंद के सैनिकों ने डोटी स्त्रियों से अवैध समबन्ध स्थापित किये जिसके कारण नायक जाति की उत्त्पत्ति हुई। खश परिवार विधि (khas family law) के लेखक लक्ष्मी दत्त जोशी के अनुसार नायक खश थे।
युद्ध के दौरान ऐसी घटनायें देखने को भी मिलती हैं। जहाँ सैनिकों द्वारा शत्रु देश की स्त्रियों से अवैध सम्बन्ध बनाये जाते हैं जैसे चीन – जापान युद्ध। जहाँ जापानी सैनिकों ने चीनी महिलाओं से अवैध सम्बन्ध बनाये।
ये संभव है कि एटकिंस का मत सही हो और अवैध सन्तानो को तत्कालीन रूढ़िवादी समाज ने नहीं अपनाया हो और वे स्वतंत्र जाति के रूप में बहिष्कृत जीवन बिताने को मजबूर हुए हों। बद्रीदत्त पांडे की किताब कुमाऊं का इतिहास के अनुसार रामगढ के नायक अपने को चंद राजाओं के समय में देवदासियों से उत्पन्न संताने मानते थे।
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नायक जाति उत्थान में योगदान
20वीं सदी में नायक जाति में फैली कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए नायक समाज सुधार आंदोलन की शुरुवात हुई। इस आंदोलन का मुख्य कारण नायक समाज फैले कुप्रथा का उन्मूलन, निम्न जाति के अन्य समाजों को वैश्यावृति जैसे कुप्रथा से दूर करना और देवभूमि उत्तराखंड के मान को धूमिल होने से बचाना था।
नायक समाज के उत्थान के लिए सर्वप्रथम प्रयास आर्य समाज द्वारा किया गया। उसके पश्चात कुमाऊं परिषद, प्रयाग सेवा समिति एवं सर्वेंट ऑफ इण्डिया सोसाइटी आदि ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस क्रम में नायक सुधार समिति की स्थापना वर्ष 1919 में हुई।
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इन व्यक्तियों ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
इन संस्थाओं से जुड़े व्यक्तियों हृदयनाथ कुंजरूप, गोविन्द बल्लभ पंत, बद्रीदत्त पांडे, मुकुन्दीलाल, कृष्णकांत उप्रेती, डॉ० मसाल सिंह, रामप्रसाद मुख्तार, तत्कालीन नायक समाज के देवी सिंह, उदय सिंह, चतुर सिंह, दीवान सिंह, किशन सिंह, जंग बहादुर, इंदरसिंह, प्रेमलता देवी, सुभद्रा देवी, हीरा देवी, लाखन सिंह इत्यादि ने भी इस समाज के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कार्य किये।
इसके अलावा अल्मोड़ा अखबार एवं शक्ति जैसे समाचार पत्रों ने भी नायक समाज सुधार आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नायकों के गांव में जाकर उन्हें जागृति का प्रचार-प्रसार किया। स्कूल खोले गए, नायक बालिकाओं को शिक्षा के लिए प्रेरित किया गया। ताकी वे वैश्यावृति जैसे कुप्रथा से बाहर निकल सकें।
नायक बालिका रक्षा कानून
नायक जाति की कुप्रथा को रोकने के लिए रायबहादुर, डॉ० मशाल सिंह द्वारा प्रांतीय काउंसिल में प्रस्ताव पेश करके कानून बनाने की मांग की गयी। इस प्रस्ताव का संज्ञान लेते हुए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने नवम्बर 1924 में एक समिति का गठन किया। इस समिति के सदस्यों में मशाल सिंह, गोविन्द बल्लभ पंत, मुकुन्दी लाल, बृजनंदन प्रसाद, चामू सिंह, चतुर सिंह, जंग बहादुर सिंह थे।
इस समिति द्वारा रखी गयी रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 1929 में सरकार द्वारा “नायक बालिका रक्षा कानून” पारित किया गया। इस कानून के अनुसार 18 वर्ष से छोटी कन्याओं से वैश्यावृति करवाना निषेध किया गया। परन्तु यह कानून पूर्णतः पर्याप्त नहीं था, ना ही इस कानून से नायक समाज में फैली वैश्यावृति का अंत था।
अतः एक लंबे सामाजिक प्रयास के बाद नायक जाति में वैश्यावृति का अंत हुआ और उन्हें मुख्य धारा से जोड़ा गया।
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