कार्तिक स्वामी मंदिर (Kartik Swami Mandir) की ख़ास बात यह है कि क्रोंच पर्वत की छोटी पर स्तिथ यह राज्य का एकमात्र कार्तिकेय का मंदिर है। इसी वजह से साल के बारह महीने यहाँ भक्तों का आना लगा रहता है। यह मंदिर बारह महीने श्रद्धालुओं के लिये खुला रहता है।
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कार्तिक स्वामी मंदिर | Kartik Swami Mandir
उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है क्यूंकि माना जाता है की यहाँ कण कण में भगवान विराजते हैं। देवों की इस पावन भूमि में भगवान शिव का विशेष स्थान है। शिव जो भूमि के लगभग सभी जिलों सभी गावों में विराजमान हैं वहीँ शक्ति के रूप में माता पार्वती को वभिन्न रूपों को इस भूमि की ईस्ट देवी माना जाता है। पर यहाँ हम भगवान शिव या माता पार्वती की बात नहीं करेंगे बल्कि उनके सबसे बड़े पुत्र कार्तिकेय की बारे में बताएंगे जो उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में क्रोंच पर्वत पर विराजमान हैं। इससे मंदिर के शिखर से ना सिर्फ हिमालय की अनगिनत श्रेणियों के दर्शन होते हैं बल्कि प्रकृति की एक विहंगम छटा का भी आनंद मिलता है। इस छोटी से लगता है मानों बदल और करीब आ गए हों और आसमान बस कुछ हाथ दूर हो।
कार्तिक स्वामी मंदिर कहाँ है | Where is Kartik Swami Mandir
कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में लगभग 38.8 किलो मीटर दूर कनक चौरी से 3 किमी दूर क्रोंच पर्वत के शिखर पर स्थित है। यह उत्तराखंड में कार्तिकेय का एक मात्र मंदिर है। यह मंदिर समुद्र की सतह से 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर में लटकाए सैकड़ों घंटी से एक निरंतर नि वहां से करीब 800 मीटर की दूरी तक सुनी जा सकती है। यह मंदिर बारह महीने श्रद्धालुओं के लिये खुला रहता है। इस मंदिर के प्रांगण से चौखम्बा, त्रिशूल आदि पर्वत श्रॄंखलाओं के खूबसूरत दर्शन होते हैं।
क्या है कार्तिक स्वामी मंदिर के पीछे की कहानी | What is the story behind Kartik Swami Mandir
कार्तिक स्वामी मंदिर के पीछे की कहानी के अनुसार यह कहा जाता है की एक बार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सभी देवताओं में एक प्रतियोगिता हुई जिसमें यह कहा गया की जो भी देवता पूरी सृष्टि का चक्कर लगा कर भगवान शिव के पास आएगा वो देवता भगवान शिव का प्रिय होगा और उसे प्रथम पूजनीय का अधिकार प्राप्त होगा। बस क्या था सभी देवताओं में दौड़ लग गयी। सभी अपने वाहनों पर सवार हो गए कार्तिकेय अपने मोर पर, इंद्र अपने हाथी पर और गणेश अपने मूसक पर।
सभी देवता सृष्टि का चककर लगाने निकल पड़े परन्तु उन सब से विपरीत गणेश गंगा स्नान करने गए और वापस आकर अपने माता-पिता (शिव और पार्वती ) की परिक्रमा करने लग गए जब उनसे पूछा गया वो ऐसा क्यों कर रहे हैं तो उन्होंने कहा की मेरे लिए तो आप ही मेरे संसार हो सृष्टि हो। इस बात से सभी देवता बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें प्रथम पूजनीय का आश्रीवाद प्राप्त हुआ। इधर कार्तिकेय जब संसार की परिक्रमा करके वापस लौटे तो उन्हें देवऋषि नारद से यह समाचार प्राप्त हुआ। तो वे इससे आहत होकर कैलाश पहुंचकर माता पार्वती को अपने शरीर का मांस और पिता शिव को अपने शरीर की हड्डियां समर्पित कर क्रोंच पर्वत पर ध्यान में बैठ गए और निर्वाण को प्राप्त हुए। तभी से इस जगह का नाम भवन कार्तिकेय के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
कार्तिक स्वामी मंदिर के बारे में अनकही बातें | Untold Things About Kartik Swami Mandir
रुद्रप्रयाग में स्थित भगवान कार्तिकेय का मंदिर, जहाँ भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र और देवताओं के सेनापति ने समाधि ली थी। उनके शरीर के कंकाल आज भी इस मंदिर में उपस्थित हैं। कहते हैं कि भगवान कार्तिकेय आज भी इस मंदिर में विराजमान है। यही कारण है कि क्रोंच पर्वत की चोटी पर स्थित इस मंदिर को श्रद्धालु ठंडी हो या गर्मी, बरसात हो या बसंत चारों ऋतुओं में दूर दूर से दर्शन करने आते हैं।
कैसे पहुंचे कार्तिक स्वामी मंदिर | How to reach Kartik Swami Mandir
कार्तिक स्वामी मंदिर पहुंचने के लिए पहले आपको रुद्रप्रयाग जिले में आना होगा वहां से पोखरी होते हुए कनक चौरी पहुंचना होगा। रुद्रप्रयाग से कनक चौरी तक सड़क से करीब 39 किमी का रास्ता है। वहीँ आप रुद्रप्रयाग पहुंचने के लिए आप देहरादून के जोलीग्रांट हवाई अड्डे पर हवाई मार्ग से फिर देहरादून से सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं।
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