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उत्तराखंड की प्रसिद्ध मिठाइयाँ | Famous sweets of Uttarakhand in Hindi

उत्तराखंड की प्रसिद्ध मिठाइयाँ(Famous sweets of Uttarakhand): हिमालयी राज्य उत्तराखंड में मिठाइयों का अपना ही महत्व है। यहां हर खुशी के मौके पर, फिर वो चाहे शादी समारोह हो या कोई तीज त्यौहार, हर आयोजन में कुछ विशेष मिठाइयाँ बनाई जाती है।बिना मिठाइयों के हर आयोजन का जायका थोड़ा फीका लगने लगता है।
कुछ मिठाइयां तो उत्तराखंड के रीती रिवाजों को भी संजों के रखती हैं। फिर चाहे बेटी का मायके से ससुराल जाना हो या नई फसल पर कुछ विशेष पकवान बनाना।

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ये बात सुनकर आपको ताज्जुब होगा कि उत्तरखंड की मिठाइयाँ से ही स्थानीय लोग उसके पीछे की बात समझ जाते हैं। जी हाँ, उत्तरखंड के सभी जिलों में अपनी-अपनी तरह की मिठाइयां मिलती हैं। जिनका महत्व भी विशेष है।
हम आपको इस पोस्ट में उत्तराखंड में बनाई जाने वाली उन्हीं प्रसिद्ध मिठाइयों का जिक्र करंगे।
तो इस पोस्ट को अंत तक पढ़ें और अपनी जीभ को इन मिठाइयों का डिजिटली स्वाद लेने से न रोकें। 🙂

उत्तराखंड की प्रसिद्ध मिठाइयाँ | Famous sweets of Uttarakhand in Hindi

हम भारतीयों को मिठाई इतनी पसंद होती है कि हम हमेशा मिठाई खाने के बहाने ढूंढते रहते हैं। त्योहार हो या जन्मदिन, रोजगार मिलने की खुशी हो या शादी का उत्सव, हमारा हर त्योहार “कुछ मीठा हो जाए” कहे बिना, आम जिंदगी थोड़ी अधूरी सी लगती है।
यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हमारे देश में हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की अपनी विशेष मिठाई है। उसी मिठास की चासनी में डूबे देश में नाम आता है अपना प्यारा उत्तराखंड का।

उत्तराखंड की प्रसिद्ध मिठाइयों की सूची

  • बाल मिठाई
  • सिंगोरी
  • झंगौर की खीर/चाचचेरी
  • रोटी / मीठी रोटी / रोट
  • अरसा
  • रोटाना या खजूर
  • गुलगुला
  • गुजिया
  • पहाड़ी हलवा (आटा/सूजी का)
  • सिंघल मिठाई
  • खेंचुवा मिठाई

उच्च हिमालय की ऊँची नीची पगडंडियों में बसा उत्तराखंड राज्य जिसे देवभूमि कहा जाता है, एक प्राकृतिक रूप से धन्य स्थान है और कई गुप्त और प्रसिद्ध मिठाइयों और व्यंजनों का घर है।
उत्तराखंड की प्रसिद्ध मिठाइयाँ केवल क्षेत्र के लोगों द्वारा और पारंपरिक रूप से वहां पाए जाने वाले पौष्टिक अनाज और बाहरी सामग्री का बहुत कम उपयोग करके बनाई जाती हैं।

उत्तराखंड की प्रसिद्ध मिठाइयों को खोया, मांडवा, आटा, गुड़, चावल के आटे आदि से सजाया जाता है।उत्तराखंड की कुछ आम मिठाइयों में अल्मोड़ा की प्रसिद्ध बाल-मिठाई, टिहरी की सिंगोरी, अरसा, रोटाना, झंगोरी खीर आदि शामिल हैं।
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उत्तराखंड की प्रसिद्ध मिठाइयाँ

आइए उत्तराखंड की प्रसिद्ध मिठाइयों को विस्तृत रूप में जनता हैं-

हम सभी उत्तराखंड की प्रसिद्ध स्वादिष्ट और पारंपरिक मिठाइयों का स्वाद लेना चाहते हैं। उत्तराखंड के बहुत से लोग अपने गांव से दूर रहते हैं, स्वाभाविक है कि उन्हें अपना गांव और वहां का खाना याद होगा।
अगर आप बाजारों की महंगी और मिलावटी मिठाइयों से ऊब चुके हैं और उत्तराखंड की संस्कृति और सालों से चली आ रही परंपरा का स्वाद चखना चाहते हैं, तो अक्सर ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाई जाने वाली मिठाइयां।





उत्तराखंड की मशहूर मिठाइयां हम अपने घरों में भी आसानी से बना सकते हैं। हमारी कोशिश है कि आने वाले समय में उत्तराखंड की इन पहाड़ी मिठाइयों को आप उत्तराखंड से लौटते समय अपने रिश्तेदारों या दोस्तों को खिलाएंगे,  जिससे इन मिठाइयों को स्थानीय बाजार मिलेगा और रोजगार की संभावना भी बढ़ेगी।

बाल मिठाई

हैदराबाद की बिरयानी और लखनऊ के टुंडे कबाब की तरह ही उनकी पहचान बन गई है. इसी तरह उत्तराखंड की “बाल मिठाई” भी इसकी पहचान बन चुकी है।
यही कारण है कि आज उत्तराखंड की प्रसिद्ध मिठाइयों का सबसे पहला नाम अल्मोड़ा की “बाल मिठाई” से आता है। चॉकलेट जैसी दिखने वाली बच्चे जैसी मिठाई खाने के बाद लोग सालों तक चॉकलेट का स्वाद नहीं भूलते।

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बाल मिठाई को उत्तराखंड की चॉकलेट भी कहा जाता है। चॉकलेट कोकोआ बीन्स से नहीं, खोये से बनती है। बाल मिठाई की खासियत यह है कि यह खाने में कुरकुरे लगते हैं। इस मिठाई का स्वाद इतना लाजवाब होता है कि यह यहां के पर्यटकों और लोगों की पसंदीदा मिठाई बन गई है।

झंगौर की खीर/चाचचेरी

उत्तराखंड में विभिन्न प्रकार के अनाज पाए जाते हैं। झंगोरा इन्हीं मोटे अनाजों में से एक है, जिसकी खीर बहुत लोकप्रिय है। झंगौर खीर एक ऐसी मिठाई है जिसका दीवाना हर उत्तराखंडी होता है। झनोर की खीर में भरपूर कैलोरी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और अन्य पोषक तत्व होते हैं। यह हृदय रोग और शुगर की बीमारी में लाभकारी है।
सफेद अनाज वाले झांगोरे को हिंदी में “सावन” के नाम से भी जाना जाता है। झंगौर खीर एक स्वादिष्ट पहाड़ी मिठाई है, जिसे उत्तराखंड के पहाड़ों में बड़े चाव से खाया जाता है।

रोट/मोती मीठी रोटी/रवाट

उत्तराखंड में, यह मोटी रोटी अक्सर पूजा पाठ में बनाई जाती है। गांव के सभी लोग एक साथ गेहूं का आटा, दूध और गुड़ इकट्ठा करते हैं और फिर मिश्रण तैयार करते हैं और एक बड़े तवे पर एक छोटी रोटी बनाते हैं, जिसे “रोट” या “रवात” भी कहा जाता है।
उसमें घी मिलाकर प्रसाद के रूप में बनाया जाता है। रोट मुख्यतः धार्मिक आयोजनों के अवसर पर ही बनते हैं और सबसे पहले भगवान को भोग लगाने के बाद ही इसे बाँटा जाता है।




अरसा

अरसा मिठाई उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र की एक प्रसिद्ध मिठाई है। जो हर शुभ समारोह या शादी समारोह में मेहमानों को रिटर्न गिफ्ट के तौर पर दिया जाता है। इसे बनाने के लिए चावल को रात भर भिगो कर बनाया जाता है और फिर इसे पीस कर गुड़ के साथ मिला देते हैं।
पहले तो चावल को ओखली / उर्ख्याली में कूठकर आते के समान महीन कर दिया जाता था।
मगर जबसे मिक्सर आया है। गृहणियों का काम इससे और आसान हो गया है।
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गुलगुला

अक्सर आपने पहाड़ी लोगों की इस डिश का नाम नहीं सुना होगा. अगर आप उत्तराखंड के खान-पान से परिचित हैं तो यह नाम अक्सर लोगों ने सुना होगा। रोटा जैसे शुभ अवसरों पर गुलगुला भी बनाया जाता है।
इसे बनाने के लिए आटे और गुड़ के मिश्रण का उपयोग करके तेल में पकाया जाता है। गुलगुला रेसिपी सिर्फ उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में बनाई जाती है।

रोटाना या खजूर या रुटना

रोटाना उत्तराखंड की प्रसिद्ध कुकीज है। उन्हें स्थानीय बोली में रोटना / रुटना या खजूर भी कहा जाता है। इसे आप लंबे समय तक घर में रख सकते हैं, जो जल्दी खराब नहीं होता और ताजा रहता है।
पहले के समय में जब लोग रोजगार के सिलसिले में या यात्रा के सिलसिले में अपने घरों से दूर जाते थे तो रोटाना अपने साथ रखते थे।
उन्होंने कहीं भी और कभी भी इस स्वादिष्ट व्यंजन का आनंद लिया। यह एक तली हुई कुकी है जिसमें गेहूं का आटा, दूध, सूजी, सौंफ और गुड़ होता है।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों और समारोहों में रोटाना परोसा जाता है। खजूर को “मकर संक्रांति और होली” त्योहारों के दौरान भी तैयार किया जाता है। इसके अलावा जब लड़की मायके से ससुराल को जाती है तो मायके वाले ससुराल पक्ष को मिठाई या स्थानीय भाषा में कल्यो के तौर पर भेजते हैं। पहाड़ों में अरसा के साथ रोटना हर वैवाहिक आयोजन का भी ट्रेड मार्क बन चुका है।

गुझिया/गुजिया

होली के त्यौहार पर घर पर गुझिया नहीं बनाई जा सकती. आखिर होली खेलने आए मेहमान भी इस मिठाई को खाने का इंतजार कर रहे हैं. गुजिया कई तरह से बनाई जाती है जैसे मावा भरी गुझिया और सूजी भरवां गुजिया।
आटे से कुरकुरी बाहरी परत तैयार की जाती है और मावा के साथ सूखे मेवे मिलाकर इसका सूखापन तैयार किया जाता है. गुजिया उत्तराखंड में भी बनाई जाती है और पूरे भारतीय राज्य में भी इसे अक्सर होली के त्योहार के दौरान बनाया जाता है।

पहाड़ी हलवा/ गुलथ्या 

“हलवा” शब्द सुनकर आपको सूजी वाले हलवे की याद आ गयी होगी मगर उत्तरखंड में इस हलवे को सूजी से ना बना कर आटे से बनाया जाता है। सूजी का हलवा आप बहुत कम समय में बहुत ही आसानी से बना सकते हैं, लेकिन “आटे का हलवा” उत्तराखंड के पहाड़ों की विशेष भगौलिक पहचान को छुपाए रखता है।
यह बहुत ही पौष्टिक होता है अक्सर इस हलवे को प्रसूता को बना कर खिलाया जाता है ताकि डिलीवरी के बाद शरीर में होने वाली कमजोरी को ये दूर करा जा सके।

ऐसा “हलवा” भारत से लेकर विदेशों में भी बनाया जाता है, लेकिन फर्क सिर्फ परंपरा और रेसिपी का है और स्वाद भी अलग है।
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सिंघल मिठाई

सिंघल मिठाई यह बहुत लोकप्रिय पारंपरिक उत्तराखंड का एक नरम, स्पंजी, मीठा, सुगंधित कुमाऊँनी मीठा व्यंजन है। वैसे, गढ़वाल, नेपाल और देश के अन्य हिस्सों में भी इसे थोड़े संशोधित रूप में बनाया जाता है। कहीं इसे “शेल (स्वेल)” कहा जाता है, यह नेपाल में “सेल रोटी (सेल रोटि)” के नाम से एक सड़क के नाम पर लोकप्रिय स्ट्रीट फूड के रूप में पाया जा सकता है।
यह कुमाऊं में त्योहारों और सभी विशेष पर तैयार किया जाता है। अवसर। एक बार पकने के बाद इसे लगभग एक हफ्ते तक खाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर कोई त्यौहार है

खेंचुवा मिठाई

अब आप में से कुछ लोग सोच रहे होंगे कि हमने “बाल मिठाई” का नाम सुना है, लेकिन यह खेंचुवा मिठाई कहां से आई? पिथौरागढ़ जिले के डीडीहाट शहर की पहचान खेंचुवां मिठाई के रूप में की जाती है।
इसे कुमाऊं का शानदार तोहफा भी कहा जा सकता है। स्थानीय भाषा के आधार पर यह नाम से ही स्पष्ट है।
खांचुवा का अर्थ है खिंचाव और एक बार जब इसका स्वाद जीभ पर घुल जाता है, तो यह दिल और दिमाग में बस जाता है।

खेंचुवा एक प्रकार की मिठाई है जो केवल डीडीहाट में ही बनाई जाती है। देवीधुरा के नेगी परिवारों ने 80 के दशक में दीदीहाट में खेंचुवा बनाना शुरू किया था। इस दौरान दूध की कमी के कारण सीमित मात्रा में खेंचुवा बनाया जाता था। धीरे-धीरे इसकी विशेषता के कारण इसकी मांग बढ़ने लगी।
मांग के साथ, खेंचुवा अधिक बनने लगा। दूध को ज्यादा देर तक उबाल कर उसमें चीनी मिलाकर दूध तैयार किया जाता है। इस विशेष प्रकार की मिठास के लिए दूध की मांग को देखते हुए गांवों में ग्रामीण दूध उत्पादन बढ़ने लगा।

शिंगोरी

खेँचुआ मिठाई के बाद टिहरी की प्रसिद्ध शिंगोरी मिठाई को कौन भूल सकता है। इस मिठाई की खासियत है कि इसे मालू के पत्तों में लपेट कर कोन आकर में सजाया जाता है। ये मिठाई आपको उत्तराखंड के हर स्थानीय बाजारों में तो नहीं मिलेगी मगर टिहरी, अल्मोड़ा जैसे शहर इसके लिए खूब प्रसिद्ध हैं।

 


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Deepak Bisht

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