समान नागरिक संहिता | Uniform Civil Code
उत्तराखंड में अब जल्द ही समान नागरिक संहिता लग्गू होने वाली है। इसके लिए राज्य सरकार ने वर्ष 2022 में जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जिसका कार्यकाल कई बार बढ़ाया गया। इस दौरान ने ऑनलाइन और ऑफलाइन लोगों से सुझाव भी मांगे गए। मगर ड्राफ्ट के तैयार होने के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि यूसीसी फरवरी में ही पुरे राज्य में लागू हो जायेगा। करीब 76 साल पहले संविधान निर्माण के समय UCC के लिए मंत्रणा की गयी और संविधानवेत्ताओं द्वारा इसे तत्कालीन परिस्थियों को देखते हुए इसे भविष्य में लागू करने के उद्देश्य से इसे संविधान के नीति निदेशक तत्वों में शामिल किया।
समान नागरिक संहिता क्या है?
- समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है। – अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि ‘‘राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।’’ UCC का कुछ लोगों द्वारा राष्ट्रीय अखंडता और लैंगिक न्याय को बढ़ावा देने के एक तरीके के रूप में समर्थन किया जाता है तो कुछ लोगों द्वारा इसे धार्मिक स्वतंत्रता और विविधता के लिये खतरा बताकर इसका विरोध किया जाता है।
- भारत में गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है। वर्ष 1961 में पुर्तगाली शासन से स्वतंत्रता के बाद गोवा ने अपने सामान्य पारिवारिक कानून को बनाये रखा, जिसे गोवा नागरिक संहिता (Goa Civil Code) के रूप में जाना जाता है।
- समान नागरिक संहिता सभी नागरिकों के बीच एक समान पहचान और अपनेपन की भावना पैदा करके राष्ट्रीय एकता एवं धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देगी।इससे विभिन्न पर्सनल लॉ के कारण उत्पन्न होने वाले सांप्रदायिक और पंथ-संबंधी विवादों में भी कमी आएगी। यह सभी के लिये समानता, बंधुता और गरिमा के संवैधानिक मूल्यों को भी संपुष्ट करेगी।
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- समान नागरिक संहिता विभिन्न पर्सनल लॉ के अंतर्गत महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और उत्पीड़न को दूर करके लैंगिक न्याय एवं समानता सुनिश्चित करेगी। यह विवाह, तलाक़, उत्तराधिकार, गोद लेने, भरण-पोषण आदि मामलों में महिलाओं को समान अधिकार और दर्जा प्रदान करेगी।
- समान नागरिक संहिता विभिन्न पर्सनल लॉज़ की जटिलताओं और विरोधाभासों को दूर करके कानूनी प्रणाली को सरल और युक्तिसंगत बनाएगी।यह विभिन्न पर्सनल लॉज़ के कारण उत्पन्न होने वाली विसंगतियों और खामियों को दूर करके नागरिक और आपराधिक कानूनों में सामंजस्य स्थापित करेगी।
- समान नागरिक संहिता कुछ पर्सनल लॉज़ में प्रचलित पुरानी एवं प्रतिगामी प्रथाओं का आधुनिकीकरण और इसमें सुधार करेगी। यह उन प्रथाओं को समाप्त कर देगी जो भारत के संविधान में निहित मानव अधिकारों और मूल्यों के विरुद्ध हैं, जैसे तीन तलाक़, बहुविवाह, बाल विवाह, आदि।
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