
Golu Devta: न्याय के देवता गोलू देवता की अद्भुत गाथा
Golu Devta: उत्तराखंड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, लोक आस्था और धार्मिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। इस पावन भूमि में Golu Devta Mandir का विशेष स्थान है। गोलू देवता को न्याय का देवता माना जाता है और उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में इन्हें लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है। गोलू देवता को भक्तगण ग्वेल, गोलज्यू, गोलू राजा, बाला गोरिया और गौर भैरव जैसे कई नामों से जानते हैं।
गोलू देवता (Golu Devta) कौन हैं?
गोलू देवता को भगवान शिव और भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है। वे सत्य और न्याय के प्रतीक हैं और उनकी पूजा करने वाले श्रद्धालु अपने मनोकामना पत्र (Arji) लिखकर मंदिर में लगाते हैं। ऐसा विश्वास है कि गोलू देवता सच्चे भक्तों को अवश्य न्याय प्रदान करते हैं।
उत्तराखंड में गोलू देवता के प्रसिद्ध मंदिर
उत्तराखंड में Golu Devta Mandir के तीन प्रमुख स्थल हैं:
- चितई गोलू देवता मंदिर (अल्मोड़ा) – यह मंदिर न्याय मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है और यहाँ भक्तगण हजारों की संख्या में न्याय पत्र लगाते हैं।
- घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर (नैनीताल) – इस मंदिर की स्थापना भी न्याय के लिए की गई थी और यह घोड़ाखाल सैनिक स्कूल के पास स्थित है।
- गोलू देवता मंदिर (चंपावत) – यह गोलू देवता का मूल स्थान माना जाता है और यहाँ से ही अन्य मंदिरों की स्थापना हुई।
गोलू देवता से जुड़ी लोककथा
गोलू देवता: न्याय के देवता की अद्भुत गाथा
उत्तराखंड की पहाड़ियों में बसी एक अनोखी गाथा, जो पीढ़ियों से लोगों के दिलों में बसती आ रही है। यह कथा है न्याय के देवता गोलू देवता की, जिनकी कहानी में विश्वास, छल, संघर्ष और न्याय की अद्भुत मिसाल देखने को मिलती है।
कई सौ साल पहले, कत्यूरी वंश के राजा झालुराई न्यायप्रिय और प्रजा के प्रति दयालु थे। उनके राज्य में हर ओर समृद्धि थी, लेकिन उनके जीवन में एक कमी थी—वे संतानहीन थे। सात रानियों के बावजूद, उनके घर में किसी संतान का जन्म नहीं हुआ। यह दुःख उन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रहा था।
एक दिन एक सिद्ध संत दरबार में आए और बोले, “राजन, यदि आप संतान सुख चाहते हैं, तो भगवान भैरव की तपस्या करें।” राजा ने संत की बात मानी और कठोर तपस्या शुरू कर दी। कई महीनों बाद, भगवान भैरव प्रकट हुए और बोले—
“राजा, मैं स्वयं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा, लेकिन एक शर्त है। तुम्हें आठवीं शादी करनी होगी, क्योंकि तुम्हारी सातों रानियां मुझे गर्भ में धारण करने योग्य नहीं हैं।”
भगवान भैरव की आज्ञा मानते हुए, राजा ने पंचदेवों की बहन, कलिंगा से विवाह किया। रानी कलिंगा को जल्द ही गर्भवती होने का सौभाग्य मिला। यह सुनते ही पूरे राज्य में खुशियों की लहर दौड़ गई, लेकिन महल के भीतर सातों रानियों के मन में ईर्ष्या की आग जल उठी।
“अगर यह संतान राजा का उत्तराधिकारी बना, तो हमारा क्या होगा?” रानियों ने सोचा। और फिर शुरू हुआ एक काले षड्यंत्र का जाल।
समय बीतता गया और जब रानी कलिंगा का प्रसव का समय आया, तो षड्यंत्रकारी रानियों ने चाल चली। वे कलिंगा की देखभाल के नाम पर उसे एक अंधेरे कमरे में ले गईं और उसकी आँखों पर पट्टी बांध दी। जैसे ही बालक का जन्म हुआ, रानियों ने उसे उठाकर गायों के पैरों तले डाल दिया, ताकि वह कुचलकर मर जाए।
लेकिन यह कोई साधारण बालक नहीं था! वह दूध पीते हुए हंसने लगा। यह देख रानियां घबरा गईं और एक के बाद एक घिनौने प्रयास करने लगीं—
- बच्चे को बिच्छूघास की झाड़ियों में फेंक दिया, लेकिन बालक मुस्कुराता रहा।
- उसे नमक के ढेर में दबा दिया, लेकिन नमक शक्कर में बदल गया।
- आखिर में, बालक को एक संदूक में बंद कर काली नदी में बहा दिया।
सात रातों तक वह संदूक नदी में बहता रहा। आठवें दिन, गौरीहाट के एक मछुआरे भाना के जाल में फंस गया। जब मछुआरे ने संदूक खोला, तो अंदर एक तेजस्वी बालक मिला।
“भगवान ने मुझे संतान का वरदान दिया है!” भाना ने कहा और उसे अपने घर ले आया।
बालक बड़ा हुआ, लेकिन उसमें असाधारण शक्तियां थीं। जब उसने एक घोड़े की मांग की, तो मछुआरे ने उसे लकड़ी का घोड़ा बना दिया। लेकिन उस अद्भुत बालक ने लकड़ी के घोड़े में प्राण फूंक दिए! अब वह इस घोड़े पर सवारी करके दूर-दूर तक जाने लगा।
एक दिन वह महल के नौले (जलस्रोत) पर पहुंचा, जहां सातों रानियां पानी भर रही थीं। बालक ने कहा, “हटो, मेरा घोड़ा भी पानी पिएगा!”
रानियां हंस पड़ीं, “अरे मूर्ख! लकड़ी का घोड़ा कहीं पानी पीता है?”
बालक मुस्कुराया और बोला—
“जिस राज्य में माँ सिलबट्टा (पत्थर) को जन्म दे सकती है, वहां काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है!”
यह सुनते ही रानियों के चेहरे सफेद पड़ गए! वे तुरंत राजमहल भागीं और राजा से शिकायत करने लगीं कि यह बालक अभद्रता कर रहा है। राजा झालुराई ने उसे दरबार में बुलाया।
“बताओ बालक, यह तुमने क्या कहा?” राजा ने पूछा।
बालक ने अपने जन्म से लेकर अब तक की पूरी कहानी राजा को सुना दी। सत्य जानकर राजा का खून खौल उठा! सातों रानियों को कारागार में डाल दिया गया, लेकिन बालक के अनुरोध पर उन्हें जीवनदान दे दिया गया और दासियों के रूप में रहने दिया गया।
जब बालक बड़ा हुआ, तो उसने राजा झालुराई के बाद राजपाट संभाल लिया। वह अपने त्वरित न्याय और सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध हुआ। प्रजा उसे गोलू देवता, ग्वेलज्यू, बाला गोरिया जैसे नामों से पुकारने लगी और उसे देवता के रूप में पूजने लगी।
आज भी उत्तराखंड में गोलू देवता को न्याय का देवता माना जाता है। भक्त उनकी मूर्तियों के आगे चिठ्ठियां लिखते हैं और उनका विश्वास है कि गोलू देवता हर निर्दोष को न्याय दिलाते हैं।
गोलू देवता: न्याय का प्रतीक और अनोखी आस्था
गोलू देवता की कहानी यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि यह एक नई शुरुआत थी—न्याय, विश्वास और भक्ति की। उनके शासन में हर किसी को निष्पक्ष न्याय मिला। यही कारण था कि उनके जाने के बाद भी लोग उन्हें न्याय का देवता मानने लगे और उनकी पूजा करने लगे।
गोलू देवता का प्रसिद्ध मंदिर और चमत्कार
समय बीतने के साथ, गोलू देवता को समर्पित कई मंदिर बने, लेकिन अल्मोड़ा का चितई मंदिर सबसे प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस मंदिर में भक्त अपनी समस्याओं को लेकर आते हैं और चिठ्ठियां लिखकर गोलू देवता के चरणों में चढ़ाते हैं। जो भी सच्चे दिल से प्रार्थना करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।
मंदिर परिसर में आपको हजारों चिट्ठियां टंगी हुई दिखेंगी—कुछ कागज पर, तो कुछ स्टांप पेपर पर! जी हां, लोग कोर्ट-कचहरी से पहले गोलू देवता की अदालत में न्याय की गुहार लगाते हैं।
चमत्कारी न्याय की कहानियां
- चोर ने मांगी माफी:
एक व्यापारी का सामान चोरी हो गया। उसने गोलू देवता को एक चिट्ठी लिखी कि “अगर मेरा सामान मिल गया, तो मैं 11 घंटे का अखंड दीप जलाऊंगा।” कुछ दिनों बाद, चोर को सपने में गोलू देवता आए और उसे सच बोलने का आदेश दिया। अगले ही दिन चोर ने खुद आकर व्यापारी को उसका सामान लौटा दिया। - अदालत में जीत:
एक व्यक्ति की ज़मीन पर अवैध कब्जा हो गया। उसने गोलू देवता को चिट्ठी लिखी और मंदिर में घंटी बांधी। कुछ ही दिनों में कोर्ट का फैसला उसके पक्ष में आ गया। - भक्त की पुकार:
एक महिला का पति बिना बताए विदेश चला गया था। उसने गोलू देवता से प्रार्थना की और मंदिर में प्रसाद चढ़ाया। कुछ ही हफ्तों में उसका पति वापस लौट आया।
गोलू देवता की पूजा कैसे होती है?
गोलू देवता को सफेद कपड़े, चावल, दूध और बेलपत्र अर्पित किए जाते हैं। मान्यता है कि जो भक्त तीन गुरुवार तक मंदिर में दीप जलाता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। गोलू देवता की पूजा विशेष रूप से नवरात्रों में की जाती है। भक्तगण घंटियां, लाल वस्त्र, दूध, अक्षत और धूप-दीप चढ़ाकर इनकी आराधना करते हैं। गोलू देवता की पूजा के बाद श्रद्धालु मंदिर परिसर में पत्र (Arji) लिखकर टांगते हैं, जिसमें वे अपनी समस्याओं और न्याय की गुहार लगाते हैं।
कैसे पहुंचे Golu Devta Mandir?
- चितई गोलू देवता मंदिर (अल्मोड़ा) – अल्मोड़ा शहर से 8 किमी की दूरी पर स्थित है।
- घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर (नैनीताल) – नैनीताल से करीब 4 किमी दूर स्थित है।
- चंपावत गोलू देवता मंदिर – टनकपुर से 75 किमी और हल्द्वानी से 160 किमी दूर है।
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