
Kumaoni Baithki Holi and Khadi Holi
Kumaoni Baithki Holi and Khadi Holi: कुमाऊँनी बैठकी होली और खड़ी होली: होली सिर्फ़ रंगों का त्यौहार नहीं है, बल्कि यह संगीत, परंपरा और सामुदायिक एकता का उत्सव भी है। उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में होली के दो प्रमुख रूप प्रचलित हैं – बैठकी होली और खड़ी होली। बैठकी होली एक शास्त्रीय संगीत से भरपूर, भक्तिमय सभा होती है, जबकि खड़ी होली एक उत्साही जुलूस की तरह मनाई जाती है, जिसमें लोग पारंपरिक गीत गाते और नृत्य करते हुए गलियों में घूमते हैं।
चंद वंश के समय से चली आ रही यह परंपरा समय के साथ विकसित हुई है और इसमें ध्रुपद, धमार और ठुमरी जैसे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के तत्व शामिल किए गए हैं। अल्मोड़ा के राजदरबारों से लेकर आज के होली क्लबों तक, बैठकी और खड़ी होली ने कुमाऊँ की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखा है।
बैठकी होली और खड़ी होली (Baithki Holi and Khadi Holi): कुमाऊँ की ऐतिहासिक संगीत परंपरा
बैठकी होली कुमाऊँ की संगीतमय विरासत का अभिन्न हिस्सा है। यह चंद वंश के समय से चली आ रही एक विशेष परंपरा है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया गया है। यह होली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि संगीत और काव्यात्मक अभिव्यक्ति का संगम है, जिसमें आध्यात्मिकता, लोककथाएं और ऐतिहासिक घटनाएं समाहित होती हैं।
बैठकी होली की उत्पत्ति (Origin of Baithaki Holi)
बैठकी होली की जड़ें 10वीं से 18वीं शताब्दी तक शासन करने वाले चंद वंश में मिलती हैं। यह सबसे पहले राजदरबारों में शुरू हुई, जहां इसे शाही संरक्षण प्राप्त था। कुछ प्राचीन धमार गीतों में इसकी झलक मिलती है, जैसे:
“तुम राजा महाराज प्रद्युम्न शाह, मेरी करो प्रतिपाल, लाल होली खेल रहे हैं।”
यह पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि राजा प्रद्युम्न शाह (1779-1786) इस कला के संरक्षक थे और इसे बढ़ावा दिया। (Kumaoni Baithki Holi and Khadi Holi)
मुगल और ब्रिटिश काल का प्रभाव (Influence of Mughal and British period)
बैठकी होली केवल कुमाऊँ के राजाओं तक सीमित नहीं रही। मुगल और ब्रिटिश काल में भी यह परंपरा फली-फूली। इसके गीतों में भी इसका प्रभाव दिखता है, जैसे:
“केसर बाग लगाया, मज़ा बादशाह ने पाया।”
या फिर,
“इतने में आ गई पुरवियों की पलटन, गोरे ने बिगुल बजाया।”
इससे यह स्पष्ट होता है कि बैठकी होली औपनिवेशिक दौर में भी अपनी पहचान बनाए हुए थी।
महान संगीतज्ञों की भूमिका
बैठकी होली के विकास में कई महान संगीतज्ञों और कवियों का योगदान रहा है। मियां तानसेन ने भी होली पर रचनाएँ कीं, जैसे:
“मियां तानसेन आज खेलें होली तुम्हारे दरबार।”
इसी प्रकार, गुमानीलाल (आदि कवि) ने होली गीतों के माध्यम से इस परंपरा को लोक-प्रिय बनाया।
बैठकी होली का अल्मोड़ा में विकास (Baithaki Holi in Almora)
बैठकी होली का संस्कृतिकेंद्र अल्मोड़ा को माना जाता है। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में अल्मोड़ा के मल्ली बाजार स्थित हनुमान मंदिर में यह परंपरा औपचारिक रूप से शुरू हुई। यहाँ गंगीलाल वर्मा, मोहनलाल साह, चंद्रसिंह दयाल और शिवलाल वर्मा जैसे प्रसिद्ध कलाकारों ने इसे लोकप्रिय बनाया।
बैठकी होली में संगीत और वाद्ययंत्रों की भूमिका (Role of music and instruments in Baithaki Holi)
बैठकी होली में विभिन्न शास्त्रीय और लोक संगीत शैलियों का संगम देखने को मिलता है। प्रमुख वाद्ययंत्रों में शामिल हैं: (Kumaoni Baithki Holi and Khadi Holi)
- तबला – उस्ताद ग़फ़्फ़ार और राम सिंह जैसे उस्तादों द्वारा बजाया गया।
- सितार – ईश्वरलाल साह द्वारा प्रसिद्ध किया गया।
- वायलिन – वेद प्रकाश बंसल और गोबिंद सिंह द्वारा प्रस्तुत।
- मंजीरा – लयबद्ध धुनों के लिए प्रयुक्त।
बैठकी होली का विकास और प्रसिद्धि
शाही दरबारों से शुरू हुई बैठकी होली अब कुमाऊँ के घरों और होली क्लबों का प्रमुख हिस्सा बन चुकी है। इस परंपरा को हुक्का क्लब जैसे समूह 80-85 वर्षों से संजोए हुए हैं।
आज, सोशल मीडिया और सांस्कृतिक संगठनों की बदौलत बैठकी होली को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिल रही है।
खड़ी होली: लोकसंस्कृति का उत्सव (Khadi Holi, Celebration of folk culture)
खड़ी होली क्या है?
खड़ी होली बैठकी होली से अलग एक सड़क पर मनाया जाने वाला होली पर्व है, जिसमें पारंपरिक धमार गीत, नृत्य और ढोल-दमाऊं की ध्वनि होती है। इसे होली के दौरान गांवों और कस्बों की गलियों में घूमते हुए मनाया जाता है।
खड़ी होली की विशेषताएँ
- सफेद कुर्ता-पायजामा और पारंपरिक पगड़ी पहनकर लोग समूह में गीत गाते हैं।
- पारंपरिक “होलीयार” लोग गांवों में जाकर होली के गीत गाते और नाचते हैं।
- ढोल, नगाड़ा और मंजीरा खड़ी होली में मुख्य वाद्ययंत्र होते हैं।
- यह आयोजन वसंत पंचमी से लेकर रंग पंचमी तक चलता है।
खड़ी होली का महत्व (Importance of Khadi Holi)
खड़ी होली समुदाय की एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह उत्सव हर घर तक पहुँचता है और समाज को एक साथ लाता है।
बैठकी होली और खड़ी होली: एक सांस्कृतिक धरोहर
बैठकी और खड़ी होली केवल त्यौहार नहीं, बल्कि कुमाऊँ की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतिबिंब हैं। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं और हमारे समृद्ध लोकगीतों और संगीत को संरक्षित रखती हैं।
यदि आप कुमाऊँ की प्रामाणिक होली का अनुभव करना चाहते हैं, तो अल्मोड़ा, नैनीताल और पिथौरागढ़ जैसे स्थानों की यात्रा अवश्य करें। यहाँ हर साल यह पारंपरिक उत्सव पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
FAQ: बैठकी और खड़ी होली से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न
1. बैठकी होली क्या है?
बैठकी होली कुमाऊँ की एक अनूठी संगीतमय होली है, जो मंदिरों, घरों और सामुदायिक हॉल में ध्रुपद, धमार और ठुमरी के साथ गाई जाती है।
2. बैठकी होली और खड़ी होली में क्या अंतर है?
बैठकी होली बैठकर गाई जाने वाली शास्त्रीय होली है, जबकि खड़ी होली सड़क पर समूह में घूमते हुए गाई जाती है।
3. बैठकी होली कहाँ सबसे अधिक प्रसिद्ध है?
अल्मोड़ा, नैनीताल, और पिथौरागढ़ इसके प्रमुख केंद्र हैं।
4. होली के गीत किस शैली में गाए जाते हैं?
ध्रुपद, धमार और ठुमरी शैली में गाए जाते हैं।
5. बैठकी होली का भविष्य कैसा है?
आज, सोशल मीडिया और सांस्कृतिक संगठनों के कारण यह परंपरा तेजी से फैल रही है और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पहचान प्राप्त कर रही है।
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