
Rampur Tiraha Kand: रामपुर तिराहा कांड 1994, उत्तराखंड राज्य आंदोलन का लहूलुहान अध्याय
Rampur Tiraha Kand: रामपुर तिराहा कांड या मुजफ्फरनगर कांड, जिसे 1994 के उत्तराखंड राज्य आंदोलन में घटित एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है, उत्तराखंड की जनता के संघर्ष और पुलिस प्रशासन की बर्बरता को उजागर करता है। इस कांड में जो हुआ, वह न केवल लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ाने वाली घटना थी, बल्कि भारतीय पुलिस और प्रशासन के अमानवीय कार्यों का भी एक गंभीर उदाहरण प्रस्तुत करता है।
रामपुर तिराहा कांड (Rampur Tiraha Kand)
उत्तराखंड आंदोलन संचालन समिति ने 2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली कूच का निर्णय लिया था, जो कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर हिमालय की जन-भावना का अहसास कराने के लिए था। इस आंदोलन में शामिल होने के लिए पर्वतीय क्षेत्रों से भारी संख्या में लोग दिल्ली पहुँचने लगे। कुमाऊँ मण्डल से दिल्ली जाने वाली बसों को कोई विशेष विरोध का सामना नहीं हुआ, लेकिन गढ़वाल मण्डल से निकली बसों को प्रशासन ने रोकने की पूरी कोशिश की।
प्रशासन ने पहले गणेशपुर, सहारनपुर, फिर बाहदराबाद और पेरूपुर चौकी पर आंदोलनकारियों को रोकने का प्रयास किया। जब आंदोलनकारियों ने इन अवरोधों को तोड़ा, तो गुरूकुल नारसन में पुलिस ने बसों पर हमला बोल दिया और लाठियाँ बरसाईं। पुलिस ने महिलाओं से दुर्व्यवहार करने की कोशिश की, जिसके बाद आंदोलनकारियों ने पथराव किया और पुलिस को पीछे हटना पड़ा। फिर कुछ अजनबी लोगों ने पुलिस के वाहन और स्थानीय दुकानों को आग के हवाले कर दिया।
रामपुर तिराहा पर हिंसा का तांडव (violence at Rampur Tiraha)
रात्रि के अंधेरे में पुलिस ने आंदोलनकारियों के साथ बर्बरता की और गोलीबारी शुरू कर दी। इस गोलीबारी में कई निर्दोष लोग शहीद हो गए, जिनमें राजेश लखेडा, सतेन्द्र चौहान, रविन्द्र रावत, और गिरीश भद्री जैसे प्रमुख लोग शामिल थे। पुलिस ने न केवल गोलियाँ चलाईं, बल्कि महिलाओं के साथ भी घृणित व्यवहार किया, जो लोकतंत्र के लिए एक शर्मनाक घटना थी। इस हिंसा के बाद रामपुर तिराहे पर शहीदों की याद में शहीद स्मारक की स्थापना की गई, लेकिन इस घटना के पीछे के अनछुए सवाल आज भी निरुत्तर हैं।
रामपुर तिराहे कांड के बाद की प्रतिक्रिया
रामपुर तिराहे पर हुई बर्बरता एवं दुर्व्यवहार की खबर आग की तरह पूरे पहाड़ में फैल गई। अंधाधुंध फायरिंग एवं महिला व्यभिचार की घटना के विरोध में 3 अक्टूबर 1994 से हिंसा का तांड़व शुरू हो गया। बेगुनाहों की मौत एवं महिलाओं के सम्मान से खिलवाड़ करने वाली सरकार के खिलाफ पहाड़ की जनता ने जिस तरह अपने गुस्से का इजहार किया उस प्रकार के बगावती तेवर पृथक राज्य निर्माण आंदोलन में पहले कभी देखने को नहीं मिले।
सम्पूर्ण पहाड़ में स्कूल, कॉलेज, व्यापारिक प्रतिष्ठान एवं सरकारी कार्यालय बंद हो गए। बच्चे, बूढे एवं जवान स्त्री-पुरुष सभी सड़कों पर उतर आए। जनता ने प्रशासन के खिलाफ उग्र प्रदर्शन करते हुए बड़ी संख्या में सरकारी वाहन एवं भवनों को क्षतिग्रस्त किया। उत्तरकाशी में जिलाधिकारी कार्यालय में तोड़-फोड़ हुई। देहरादून में तीन पुलिस चौकियों सहित 14 सरकारी कार्यालयों को आग के हवाले कर दिया गया।
अभूतपूर्व हिंसा के कारण देहरादून, ऋषिकेश, पौड़ी, श्रीनगर व कोटद्वार में कर्फ्यू लगा दिया गया। उत्तराखंड के दर्जनों शहर उग्र प्रदर्शन एवं पुलिस फायरिंग के धमाकों से गूंजने लगे। सम्पूर्ण उत्तराखंड युद्ध-भूमि में बदल गया।
उत्तराखंड का हर जिले में दिखा आक्रोश
रामपुर तिराहा कांड में शहीद रविन्द्र रावत की शवयात्रा पर पुलिस लाठीचार्ज से देहरादून शहर की स्थिति और भी खराब हो गई। टिहरी जिले के प्रमुख नगरों में पुलिस बलों पर पथराव किया गया। जनता एवं प्रशासन के मध्य गुरिल्ला युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई।
यही आगराखाल में जनता के भय से पुलिसकर्मी चौकी छोड़कर ही भाग गए। पौड़ी जनपद भी अभूतपूर्व हिंसा की चपेट में रहा। अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल, हल्द्वानी, रामनगर, रानीखेत में भी कमोवेश यही स्थिति थी। हरिद्वार में उग्रभीड़ ने सपा नेता अम्बरीश के कपड़े तक फाड़ डाले एवं उन्हें बचाने आए नगर अध्यक्ष का सिर फोड़ दिया गया।
रुड़की में अस्पताल के इमरजंसी में भर्ती एक घायल फौजी ने परगनाधिकारी को अपनी बेल्ट से पीटकर लहुलुहान कर दिया। पुलिस के खिलाफ जनता का आक्रोश बढ़ता ही जा रहा था। गोपेश्वर, ऊखीमठ व कर्णप्रयाग में भी कर्फ्यू लगाना पड़ा।
नौगाँव में क्रोधित भीड़ ने पुलिस की राईफलें जला दी। हुण्डा पुलिस चौकी व धरासु थानों को भी आग के हवाले कर दिया गया। कर्णप्रयाग का पुलिस क्लब जला दिया गया। पीपलकोटी के पुलिस जवानों को जानबचाने के लिए जंगलों की शरण लेनी पड़ी, रामनगर में युवको ने रोडवेज की बसों एवं लोक निर्माण विभाग कार्यालय में भी आग लगा दी। नैनीताल में कई सरकारी वाहनों, दफ्तरों एवं पुलिस चौकी में आग लगाई गई। हल्द्वानी, टनकपुर में व्यापक उग्र प्रदर्शन हुआ।
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रामपुर तिराहे में शहीदों का स्मरण
रामपुर तिराहे की घटना में मारे गए लोगों को हर वर्ष शहीद मेला के रूप में याद किया जाता है। 1995 में एक शहीद स्मारक का निर्माण भी हुआ था। इस कांड के बाद के घटनाक्रमों ने उत्तराखंड के जनमानस को एकजुट किया और राज्य के निर्माण की दिशा में एक निर्णायक कदम था।
उत्तराखंड आंदोलन और लोकतंत्र पर सवाल
मुजफ्फरनगर कांड ने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए। क्या हमारा लोकतंत्र इतना कमजोर है कि जब जनता अपनी आवाज उठाती है, तो उसे पुलिस की बर्बरता का सामना करना पड़ता है? क्या स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी जनता को अपनी बात रखने का अधिकार नहीं है? यह घटना न केवल उत्तराखंड के इतिहास का काला अध्याय है, बल्कि पूरे देश के लोकतांत्रिक मूल्य और अधिकारों पर भी एक गंभीर प्रश्नचिन्ह है।
मुजफ्फरनगर कांड के बाद उत्तराखंड में हिंसा का तांड़व जब थमा, तो उसने एक नई राजनीतिक चेतना को जन्म दिया। हालांकि इस घटना के बाद भी कुछ सवाल बने हुए हैं, लेकिन इसने उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया। आज, जबकि उत्तराखंड एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में है, हमें यह याद रखना चाहिए कि इस राज्य की नींव कितने संघर्षों और बलिदानों पर आधारित है।
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रामपुर तिराहा कांड पर Q&A (Q&A Related Rampur Tiraha Kand)
1. रामपुर तिराहा कांड 994 क्या था?
उत्तर: रामपुर तिराहा कांड 1994 एक शांतिपूर्ण उत्तराखंड आंदोलन पर हुई बर्बर कार्रवाई थी। 2 अक्टूबर 1994 को उत्तराखंड के कार्यकर्ता दिल्ली मार्च के लिए निकले थे, लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें कई चेकपॉइंट्स पर रोक दिया। इसके बाद पुलिस ने कार्यकर्ताओं पर गोलीबारी की, सार्वजनिक रूप से उन्हें अपमानित किया और महिलाओं के साथ हिंसा की। इस कांड में कई लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए।
2. 1994 में उत्तराखंड आंदोलन में उभार क्यों आया?
उत्तर: उत्तराखंड आंदोलन में 1994 में उभार इसलिए आया क्योंकि सरकार ने क्षेत्र की समस्याओं की अनदेखी की थी, जबकि लोग लंबे समय से अलग राज्य की मांग कर रहे थे। 2 अक्टूबर 1994 को आंदोलनकारियों ने दिल्ली तक मार्च करने का निर्णय लिया, लेकिन पुलिस और प्रशासन ने उन्हें रोकने के लिए हिंसक कार्रवाई की, जिससे मुजफ्फरनगर कांड हुआ।
3. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा क्यों की?
उत्तर: पुलिस ने हिंसा की क्योंकि राज्य सरकार ने आदेश दिया था कि किसी भी हालत में प्रदर्शनकारियों को दिल्ली जाने से रोका जाए। शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने के बावजूद पुलिस ने बल प्रयोग किया, बसों के शीशे तोड़े, छात्रों और कार्यकर्ताओं को पीटा और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया। सरकार का उद्देश्य उत्तराखंड राज्य की मांग को दबाना था।
4. मुजफ्फरनगर कांड के शिकार कौन थे?
उत्तर: मुजफ्फरनगर कांड के शिकार मुख्य रूप से उत्तराखंड के शांतिपूर्ण आंदोलनकारी थे, जिनमें छात्र, महिलाएं और बुजुर्ग शामिल थे। प्रमुख शहीदों में राजेश लखेड़ा, सत्येन्द्र चौहान, रविंद्र रावत और गिरीश भद्री शामिल हैं, जो पुलिस की गोलीबारी में मारे गए थे। महिलाओं और बुजुर्गों को भी चोटें आईं।
5. मुजफ्फरनगर कांड पर जनता की प्रतिक्रिया क्या थी?
उत्तर: मुजफ्फरनगर कांड के बाद जनता में गुस्सा और आक्रोश फैल गया। घटना की खबरों ने उत्तराखंड में आग की तरह फैलने के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। स्कूलों, कॉलेजों, सरकारी दफ्तरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों ने हड़ताल की। हिंसक प्रदर्शन हुए, पुलिस स्टेशन जलाए गए, और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। पूरे उत्तराखंड में जबरदस्त विरोध हुआ।
6. मुजफ्फरनगर कांड के बाद क्या हुआ?
उत्तर: इस कांड के बाद उत्तराखंड के लोगों में राज्य बनने की ओर और भी ज्यादा समर्पण और उत्साह बढ़ा। सरकार को इस बर्बरता के लिए जिम्मेदार ठहराया गया, और घटना की कड़ी निंदा की गई। यह घटना राज्य के गठन की ओर महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, और अंत में 2000 में उत्तराखंड को एक अलग राज्य के रूप में स्थापित किया गया। शहीदों की याद में हर साल शहीद मेला आयोजित किया जाता है।
7. मुजफ्फरनगर कांड ने राज्य आंदोलन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर:मुजफ्फरनगर कांड ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। आंदोलनकारियों पर पुलिस की बर्बरता, खासकर शहीदों की मौत ने राज्यhood की मांग को और ज्यादा मजबूती दी। यह घटना राज्य को बनाने की दिशा में एक निर्णायक मोड़ बनी और इसके बाद आंदोलन में तेजी आई, जो अंततः 2000 में उत्तराखंड राज्य की स्थापना पर समाप्त हुआ।
8. क्या मुजफ्फरनगर कांड के शहीदों के लिए कोई स्मारक है?
उत्तर: हां, मुजफ्फरनगर कांड के शहीदों की याद में रामपुर तिराहे पर एक स्मारक बनाया गया है, जहां यह दुखद घटना घटित हुई थी। यह स्मारक उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है और हर साल शहीद मेला आयोजित किया जाता है।
9. मुजफ्फरनगर कांड के लिए जिम्मेदार कौन था?
उत्तर: मुजफ्फरनगर कांड के लिए मुख्य रूप से पुलिस अधिकारी जिम्मेदार थे, जिन्होंने अत्यधिक बल प्रयोग किया। मेरठ के तत्कालीन पुलिस उप महानिरीक्षक को इस हिंसा के लिए दोषी ठहराया गया था। हालांकि, घटना के बाद कुछ सवाल उठे, जैसे कि जिन अज्ञात व्यक्तियों ने सार्वजनिक संपत्ति को आग लगा दी, उनके बारे में भी कुछ नहीं कहा गया।
10. महात्मा गांधी की शिक्षाओं का मुजफ्फरनगर कांड से क्या संबंध था?
उत्तर: मुजफ्फरनगर कांड 2 अक्टूबर, महात्मा गांधी की जयंती पर हुआ था, जो अहिंसा के प्रतीक थे। यह विरोधाभास दर्शाता है कि गांधीवादी मूल्यों को छोड़ते हुए, सरकार ने हिंसा का सहारा लिया। यह घटना लोगों में गांधीवादी विचारों के खिलाफ गुस्से को और ज्यादा बढ़ावा देने वाली साबित हुई और राज्यhood आंदोलन में मजबूती आई।
11. मुजफ्फरनगर कांड उत्तराखंड राज्य आंदोलन के संदर्भ में कितना महत्वपूर्ण था?
उत्तर: मुजफ्फरनगर कांड उत्तराखंड राज्य आंदोलन में अत्यधिक महत्वपूर्ण था। पुलिस की बर्बरता और उसके बाद उठे जनाक्रोश ने राज्यhood की मांग को जोरदार तरीके से राष्ट्रीय स्तर पर रखा। यह घटना उत्तराखंड के लोगों की एकजुटता का प्रतीक बन गई और इससे राज्य के गठन में तेजी आई।
12. सरकार ने मुजफ्फरनगर कांड के बाद क्या प्रतिक्रिया दी थी?
उत्तर: सरकार ने पहले तो घटना की गंभीरता को नकारा और इसे दबाने की कोशिश की। हालांकि, जब जनता के विरोध के बाद घटना का व्यापक रूप से विरोध हुआ, तो सरकार ने कुछ कार्यवाही की, लेकिन उस समय तक आंदोलनकारियों की मांग पूरी हो चुकी थी, और उत्तराखंड राज्य का गठन एक अनिवार्य कदम बन चुका था।
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