देहरादून का इतिहास – देहरादून न केवल उत्तराखंड राज्य की राजधानी है, बल्कि इसका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक महत्व भी अत्यधिक है। समय के साथ इस शहर ने खुद को एक विकसित और समृद्ध शहर के रूप में स्थापित किया है, जो राज्य के विकास में अहम भूमिका निभाता है।
Table of Contents
देहरादून की स्थापना और ऐतिहासिक महत्व
उत्तराखंड राज्य की राजधानी एवं राज्य का सबसे बड़ा नगर देहरादून है। शुंग कालीन मृणमुद्रा पर इसके लिए ‘द्रोणीघाटें अंकित है। एक किवदंती के अनसार प्राचीनकाल में कुणिदों का इस क्षेत्र पर अधिकार था। कालांतर में राजा विराट का इस क्षेत्र पर नियंत्रण रहा जिसकी राजधानी ‘वैराट’ अथवा वैराठगढी के अवशेष वर्तमान कालसी के आस-पास से प्राप्य हैं। महाभारत काल में पांडवों ने भी इसी क्षेत्र में वास किया था, जिसके साक्ष्य लाखामंडल से मिलते हैं। कालसी में यमुना नदी तट से अशोक का प्रस्तर- शिलालेख भी प्राप्त है। कालांतर में रुहेला सरदार नजीबुदौला ने इस क्षेत्र पर अधिकार किया।
संस्कृत के शब्द द्रोणी से कालांतर में इस संपूर्ण क्षेत्र को दूण अथवा दून कहा जाने लगा। वर्तमान शहर की स्थापना श्री गुरू राम राय जी ने टिहरी नरेश फतेशाह से प्राप्त तीन ग्राम खुड़बुड़ा, राजपुर और चमासरी के साथ की । इन ग्रामों का अनुदान गुरू राम राय को तात्कालीन मुगल शासक औरंगजेब की संस्तुति पर गढदेश के राजा ने किया था। गुरू राम राय जी सातवें सिक्ख गुरू हर राय जी के सबसे बड़े पुत्र थे। उन्होंने धामावाला में अपना डेरा स्थापित किया था। कहा जाता है, उनके दून में डेरा स्थापित करने के बाद ही इस क्षेत्र को डेरादून एवं देहरादून कहा जाने लगा।
ब्रिटिश काल में देहरादून का इतिहास
नवंबर 1815 ई0 को यह क्षेत्र गोरखा नियंत्रण से मुक्त होकर अंग्रेजी नियंत्रण में आया और इसको सहारनपुर जिले का हिस्सा बनाया गया। 1825 ई0 में इसे कुमाऊँ प्रांत के अधीन कर दिया गया। जुलाई 1828 को कर्नल यंग ने लढ़ौरा (मसूरी) में छावनी की स्थापना की। शीघ्र ही जून 1829 को इसे यंग के अधीन स्वतंत्र जिला बना दिया गया और मेरठ डिविजन से संबद्ध कर दिया गया।
इस बीच कृषकों की गिरती स्थिति के कारण इस क्षेत्र में विद्रोह भी हुए। इनमे सबसे संगठित विद्रोह कलुआ गुजर के नेतृत्व में दून और उसके आस-पास के गूजर कृषकों ने किया। इस कार्य में कलुआ को काउर और भूरा जैसे दो मजबूत सहयोगी भी मिले। कलुआ के अधीन गूजर कृषकों ने स्वयं के लिए राजा ग्राम में किलेबंद मुख्यालय तैयार किए।
कुंजा युद्ध के आरम्भ में ही कलुआ की मृत्यु और भूरा के चोटिल हो जाने बाद अन्ततः काउर भी पकड़ा गया और इस प्रकार अंग्रेजों के विरूद्ध आरम्भ हुए संगठित कृषक आन्दोलन का अंत हो गया। कालान्तर में यह क्षेत्र अंग्रेजों को इतना भाया कि उन्होंने सितंबर 1878 में यहीं पर इम्पीरियल फॉरेस्ट स्कूल एवं इसी वर्ष सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना की। वर्ष 1932 में सैन्य अफसरों ने प्रशिक्षण के लिए भारतीय सैन्य अकादमी स्थापित की।
शिक्षा और सांस्कृतिक महत्व
शिक्षा के क्षेत्र में दयानंद एंग्लों वैदिक सोसाइटी ने 1902 ई0 में यहाँ एक संस्कृत विद्यालय स्थापित किया, जो आज डी.ए.वी. कॉलेज के नाम से शिक्षा का एक बड़ा केंद्र है। एम. के पी (1902 ई०), दून स्कूल (1935 ई०) के अतिरिक्त वर्तमान में एस.जी.आर.आर. (पी.जी.) कॉलेज, एस.जी.आर. आर.आई.टी.एस, ग्राफिक एरा, डी.आई.टी, महंत इन्द्रेश हॉस्पिटल, हिमालयन हॉस्पिटल इत्यादि महत्वपूर्ण संस्थान उच्च शिक्षा के लिए कार्यरत हैं। स्कूली शिक्षा के लिए तो यह ब्रिटिश काल में ही प्रसिद्धि पा चुका है। वर्तमान में यह उत्तराखंड राज्य की राजधानी भी है।
Q&A
“देहरादून का इतिहास (History of Dehradun) “ से संबंधित सबसे ज्यादा पूछे गए सवालों –
1. देहरादून का इतिहास क्या है?
देहरादून उत्तराखंड राज्य की राजधानी है और इसका ऐतिहासिक महत्व बहुत गहरा है। यह शहर प्राचीनकाल से ही विभिन्न साम्राज्यों के अधीन रहा है। महाभारत काल में पांडवों ने भी इस क्षेत्र में वास किया था। इसके बाद यह क्षेत्र राजा विराट, रुहेला सरदार नजीबुदौला और अंग्रेजों के नियंत्रण में रहा। देहरादून का नाम ‘द्रोणी’ से आया था, जिसे बाद में ‘दून’ और ‘देहरादून’ कहा गया।
2. देहरादून शहर की स्थापना कब हुई थी?
देहरादून शहर की स्थापना श्री गुरु राम राय जी ने 17वीं शताबदी में की थी, जब उन्हें टिहरी नरेश फतेशाह से तीन ग्राम – खुड़बुड़ा, राजपुर और चमासरी का अनुदान मिला था।
3. देहरादून का नाम कैसे पड़ा?
देहरादून का नाम ‘द्रोणी’ शब्द से लिया गया है, जो संस्कृत के शब्द ‘द्रोणी’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ होता है घाटी। इसे गुरु राम राय जी ने अपने डेरों के बाद ‘देहरादून’ नाम दिया।
4. देहरादून में किसने शासित किया था?
देहरादून क्षेत्र में पहले कुणिदों का शासन था, फिर राजा विराट ने इसे अपने अधीन किया। बाद में यह रुहेला सरदार नजीबुदौला के नियंत्रण में आ गया। अंत में, 1815 में यह अंग्रेजों के अधीन आ गया और सहारनपुर जिले का हिस्सा बना।
5. देहरादून का महत्व क्यों है?
देहरादून का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक महत्व बहुत अधिक है। यह उत्तराखंड की राजधानी है और यहाँ कई प्रमुख शैक्षिक संस्थान जैसे दून स्कूल, डी.ए.वी. कॉलेज और भारतीय सैन्य अकादमी स्थित हैं। इसके अलावा, यह पर्यटन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यहाँ के प्राकृतिक दृश्य और जलवायु पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
6. देहरादून का प्रशासनिक इतिहास क्या था?
नवंबर 1815 में गोरखा नियंत्रण से मुक्त होने के बाद, देहरादून अंग्रेजों के नियंत्रण में आया और इसे सहारनपुर जिले का हिस्सा बना दिया। 1829 में यह एक स्वतंत्र जिला बना और 1878 में यहाँ इम्पीरियल फॉरेस्ट स्कूल और सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना की गई।
7. देहरादून में किसने विद्रोह किया था?
देहरादून में सबसे संगठित विद्रोह कलुआ गुजर के नेतृत्व में हुआ था। गूजर कृषकों ने अंग्रेजों के खिलाफ संगठित विद्रोह किया था, लेकिन अंत में इस विद्रोह को दबा दिया गया।
8. देहरादून का शैक्षिक इतिहास क्या है?
देहरादून का शैक्षिक इतिहास बहुत पुराना है। 1902 में दयानंद एंग्लों वैदिक सोसाइटी ने यहाँ एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की थी, जो आज के डी.ए.वी. कॉलेज के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अलावा, देहरादून में कई अन्य प्रमुख शैक्षिक संस्थान हैं जो उच्च शिक्षा प्रदान करते हैं।
9. देहरादून में कौन सी महत्वपूर्ण जगहें हैं?
देहरादून में कई प्रसिद्ध स्थल हैं, जैसे की सहस्त्रधारा, गुरुद्वारा राम राय, टपकेश्वर मंदिर, बोटैनिकल गार्डन और मसूरी के पास स्थित विभिन्न पर्यटन स्थल।
10. देहरादून का सांस्कृतिक महत्व क्या है?
देहरादून का सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है, क्योंकि यहाँ विभिन्न समुदायों के लोग रहते हैं और यहाँ की लोक कला, संगीत और त्योहारों का एक विशेष स्थान है। देहरादून में आयोजित होने वाले विभिन्न मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम इस शहर की संस्कृति को जीवित रखते हैं।
History of Dehradun यह पोस्ट अगर आप को अच्छी लगी हो तो इसे शेयर करें साथ ही हमारे इंस्टाग्राम, फेसबुक पेज व यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें।