
Indramani Badoni: उत्तराखंड के गांधी इन्द्रमणि बडोनी
Indramani Badoni : उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है और इस पावन भूमि ने कई महान विभूतियों को जन्म दिया है। इन्हीं में से एक थे इन्द्रमणि बडोनी, जिन्हें ‘उत्तराखंड के गांधी’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उनकी नेतृत्व क्षमता, संघर्षशीलता और सामाजिक सुधारों के कारण वे सदैव याद किए जाते रहेंगे।
इन्द्रमणि बडोनी की प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
इन्द्रमणि बडोनी का जन्म 24 दिसंबर 1925 को उत्तराखंड के टिहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में हुआ था। वे एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से थे, लेकिन बचपन से ही प्रकृति प्रेमी और विद्रोही स्वभाव के थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अखोड़ी गांव और रोडधार खास पट्टी टिहरी स्कूल में हुई। बाद में, उन्होंने प्रताप इंटर कॉलेज, टिहरी से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट उत्तीर्ण किया।
उन दिनों टिहरी रियासत में उच्च शिक्षा के लिए संसाधनों की कमी थी, इसलिए वे डीएवी कॉलेज, देहरादून गए और वहीं से स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
समाज सेवा और सांस्कृतिक योगदान
बडोनी जी शिक्षा और संस्कृति के प्रति बेहद संवेदनशील थे। उन्होंने उत्तराखंड की लोक संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने के लिए कई प्रयास किए। उन्होंने कई स्कूलों की स्थापना की, जिनमें इंटरमीडिएट कॉलेज कठूड, मैगाधार, धूतू और उच्च माध्यमिक विद्यालय बुगालीधार शामिल हैं।
वह उत्तराखंड की लोक कला और रंगमंच के भी मर्मज्ञ थे। उन्होंने माधोसिंह भंडारी की गाथा को पहली बार मंच पर प्रस्तुत किया और दिल्ली व मुंबई जैसे शहरों में उत्तराखंड की कला को पहचान दिलाई।
गणतंत्र दिवस पर उत्तराखंडी झांकी
1956 के गणतंत्र दिवस पर उन्होंने दिल्ली के राजपथ पर उत्तराखंड के पारंपरिक केदार नृत्य की झांकी प्रस्तुत की, जिसे प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भी सराहा। वे लोक वाद्य यंत्रों, जैसे हुड़का और ढोल बजाने में भी दक्ष थे।
उत्तराखंड राज्य आंदोलन में भूमिका
बडोनी जी उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के पुरोधा थे। उन्होंने उत्तराखंड राज्य का विचार जनता को दिया और जन आंदोलन की अग्रिम पंक्ति में रहकर सरकारी दमन का अहिंसक विरोध किया।
प्रमुख आंदोलन
- 1988 में 105 दिन की पदयात्रा – उन्होंने तवाघाट से देहरादून तक की यात्रा की और उत्तराखंड राज्य की मांग को गांव-गांव तक पहुंचाया।
- 1992 में गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी घोषित किया – उन्होंने मकर संक्रांति के दिन बागेश्वर में यह घोषणा की।
- 1994 का आमरण अनशन – 2 अगस्त 1994 को वे पौड़ी प्रेक्षागृह के सामने 30 दिन तक आमरण अनशन पर बैठे। इससे पूरे उत्तराखंड में आंदोलन तेज हो गया।
राजनीतिक जीवन
बडोनी जी का राजनीतिक जीवन भी संघर्ष से भरा रहा। 1961 में वे अखोड़ी ग्राम के प्रधान बने, फिर जखोली ब्लॉक प्रमुख बने। 1967 में वे देवप्रयाग से विधायक चुने गए और तीन बार इस सीट से विधानसभा पहुंचे। उन्होंने 1989 में लोकसभा चुनाव लड़ा और मात्र 10 हजार वोटों के अंतर से हारे।
उन्होंने 1979 में उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसके आजीवन सदस्य बने।
आर्थिक विकास और पर्यटन को बढ़ावा
बडोनी जी उत्तराखंड के आर्थिक विकास के लिए पर्यटन को बढ़ावा देना चाहते थे। उन्होंने कई पर्यटन स्थलों को प्रसिद्धि दिलाई, जैसे:
- सहस्त्रताल
- पंवाली-कांठा
- खतलिंग ग्लेशियर
खतलिंग महायात्रा का आयोजन हर साल सितंबर के पहले सप्ताह में किया जाता है, जिसे उन्होंने शुरू किया था।
निधन और विरासत
लगातार संघर्ष और समाज सेवा करते हुए 18 अगस्त 1999 को ऋषिकेश के विट्ठल आश्रम में उनका निधन हो गया। उनका जीवन त्याग, तपस्या और बलिदान की मिसाल है।
इन्द्रमणि बडोनी सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे। उन्होंने उत्तराखंड की अस्मिता, संस्कृति और राजनीतिक पहचान के लिए जो योगदान दिया, वह अमूल्य है। उनका नाम उत्तराखंड के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज रहेगा। आज भी उत्तराखंड राज्य निर्माण में उनकी भूमिका को याद किया जाता है और वे उत्तराखंड के गांधी के रूप में अमर हैं।
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