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खटीमा गोली कांड | Khatima goli kand
लंबे संघर्षो व बलिदानों के बाद मिला पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड। जिसके लिये न जाने कितने लोगों ने अपने प्राणों की आहुती दी। मॉ बहने, युवा बुजुर्ग हर कोई पहाड़ी प्रदेश की मांग को लेकर सड़कों पर उतरा। पुलिस के डण्डे खाये, गोलिया खाई लेकिन पीछे नहीं हटे। और इसी का परिणाम है कि 9 नवंबर 2000 को देश के सत्ताईसवे राज्य के रूप में देवभूमि उत्तराखण्ड़ का जन्म हुआ।
लेकिन राज्य मिलने तक जो संघर्ष आंदोलनकारियों ने किया जो बलिदान आंदोलनकारियों ने दिया उसे कभी भी भूला नहीं जा सकता है। राज्य आंदोलन की इस लडाई को जनआंदोलन का स्वरूप दिया खटीमा गोली कांड ने।
उत्तराखंड के पृथक राज्य की मांग के इतिहास को देखें तो 5 व 6 मई 1938 में आजादी के संघर्ष दौरान पंडित जवाहर लाल नेहरू ने श्रीनगर गढ़वाल में कांग्रेस की विशेष राजनैतिक सम्मेलन को संम्बोधित करते हुए कहा था कि – ” इस पर्वतीय आंचल को अपनी विशेष परिस्थिति के अनुरूप स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध करने के अवसर और अधिकार मिलने चाहिए।” यही वजह है जब भारत आजाद हुआ तो पृथक राज्य की मांग उठने लगी।
इसके लिए 1955 में फजल अली कमीशन भी बैठाया गया जिसकी 1956 में आयी रिपोर्ट के आधार पर अलग राज्य के रूप में उत्तराखंड का विचार किया गया। मगर इसके बाद पृथक राज्य का सपना ठन्डे बस्ते में चला गया जब तक की 1979 में उत्तराखंड क्रांति दल का गठन नहीं हुआ।
1 सितंबर 1994 का खटीमा चौराहा
समय था 1 सितंबर 1994 का उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर सुबह से हजारों की संख्या में लोग खटीमा की सड़कों पर आ गए थे। इस दौरान ऐतिहासिक रामलीला मैदान में जनसभा भी हुई। इस जनसभा में बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक शामिल थे। आंदोलनकारी पृथक राज्य की मांग कर रहे थे।
जनसभा के बाद आंदोलनकारियों ने खटीमा चौराहे पर जुलुस निकाला। यहॉ तैनात पुलिस के जवानों ने बिना चेतावनी दिये ही आंदोलनकारियों पर फायरिंग करनी शुरू कर दी। खटीमा के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर डीके केन द्वारा आंदोलनकारियों पर खुलेआम गोली चलाई। पुलिस की इस बर्बता में 7 ओदोलनकारियों की मौत हो गई। जबकि कई लोग घायल हुए थे।
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खटीमा गोली कांड में शहीद आंदोलनकारियों के नाम
- शहीद भगवान सिंह सिरौला
- शहीद प्रताप सिंह
- शहीद सलीम अहमद
- शहीद गोपीचन्द्र
- शहीद धर्मानन्द भट्ट
- शहीद परमजीत सिंह
- शहीद रामपाल
इस घटना की जानकारी आग की तरह समूचे उत्तरप्रदेश व वर्तमान में उत्तराखण्ड़ के क्षेत्रों में फैल गई।
खटीमा गोली कांड का परिणाम
खटीमा गोलीकांड की घटना ने हर उत्तराखण्ड़ को झकझोर कर रख दिया। लोग सड़कों पर उतरने लगे। परिणामस्वरूप कई स्थानों पर लोगों ने उग्र आंदोलन किया। प्रशासन के सामने विरोध प्रदर्शन किया। लेकिन प्रशासन आंदोलनकारियों की मांग मानने या उसे सुनने के बजाय उनकी आवाज दबाने की कोशिश में जुटी रही।
जिसके बाद ही उत्तराखंड आंदोलन ने रफ़्तार पकड़ी और इसी के परिणाम स्वरुप अगले दिन यानी 2 सितम्बर को मसूरी गोली काण्ड की पुनरावृति हुई और यह आंदोलन तब एक बड़े जन आंदोलन के रूप में बदल गया।
आज उत्तराखंड राज्य बने जहॉ 21 साल होने वाले हैं। तो वहीं, राज निर्माण के लिए सबसे पहली शहादत देने वाले खटीमा गोली कांड में शहीद हुये आंदोलनकारियों की 27 वीं बरसी है। लेकिन आज भी इन आंदोलनकारियों को वो सम्मान नहीं मिल पाया है, जिसके वो हकदार थे।
खटीमा गोली कांड में शहीद हुये परमजीत सिंह के पिता नानक सिंह ने एक टिवी इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें अपने ‘‘पुत्र की शहादत पर गर्व है. लेकिन वही अफसोस है कि सरकार हर साल शहीद दिवस पर उन्हें बुलाकर फूल माला तो पहनाती है, लेकिन उनके जीवन यापन के लिए कोई प्रयास नहीं करती है।”
उत्तराखण्ड़ आंदोलन के लिये शहादत देने वाले इन शहीदों को wegarhwali की तरफ से विनम्र श्रद्वांजली।
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