राम सिंह धौनी | Ram Singh Dhoni : आपने विभिन्न स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में सुना और पढ़ा अवश्य होगा, जो देश को आज़ाद कराने के लिए कई बार जेल गए और उन्होंने कई अत्याचार भी सहे। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे व्यक्तित्व के बारे में बताने जा रहे हैं, जो कभी जेल नहीं गए, लेकिन स्वतन्त्रता संग्राम में अपनी कुशलता व वाकपटुता से अतुलनीय योगदान दिया। इस व्यक्ति का नाम है राम सिंह धौनी।आइये जानते हैं राम सिंह धौनी (Ram singh Dhoni) के बारे में –
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राम सिंह धौनी | Ram Singh Dhoni
कुछ लोग समाज में बिना किसी स्वार्थ के अपने दायित्वों का निर्वहन करते रहते हैं। सच्चा समाज सेवक और देशप्रेमी वही है जो कार्यक्षेत्र बड़ा है या छोटा यह भूल कर, बिना कोई लम्बा भाषण दिए चुपचाप परहित की चिंता में अपना योगदान देता है। उत्तराखंड के जन्मे राम सिंह धौनी भी एक ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे। इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र से लेकर स्वंतत्रता संग्राम के क्षेत्र तक अतुलनीय कार्य किए और देश के युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बने।
राम सिंह धौनी का जन्म एवं शिक्षा
राम सिंह धौनी का जन्म सन् 24 फरवरी 1893 में गांव तल्ला बिनौला सालम, तहसील जैंती, अल्मोड़ा में हुआ था। इनके पिता का नाम हिम्मत सिंह धौनी था, जो पेशे से एक कृषक थे। जन्म के समय जब राम सिंह धौनी की कुंडली देखी गयी तो ब्राह्मणों ने घोषणा की, बालक कुलदीपक, यशस्वी व वीर होगा। हुआ भी कुछ ऐसा ही, राम सिंह धौनी कुशाग्र बुद्धि के बालक थे वह बचपन से ही कक्षा में विशेष रूचि लेते थे। Ram Singh Dhoni
जब प्राथमिक कक्षा के बाद उन्होंने जैंती लोअर स्कूल में दाखिला लिया तो उस समय 60 विद्यार्थियो को शिक्षक मोतीराम अकेले ही पढ़ाते थे। राम सिंह धौनी उस वक्त छोटी कक्षाओं को पढ़ाकर गुरु की सहायता किया करते थे। कक्षा में प्रथम श्रेणी से पास होने पर राम सिंह धौनी को 2 रूपये छात्रवृति भी मिला करती थी।
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18 मई 1908 को बेसिक की कक्षा समाप्त करने के बाद उन्होंने जूनियर हाईस्कूल की पढ़ाई के लिए अल्मोड़ा टाउन स्कूल में दाखिला लिया और इसी बीच उनकी शादी भी हो गयी। हिंदी हाईस्कूल में भी प्रथम श्रेणी से पास होने के बाद उन्हें 5 रूपये छात्रवृति और एक घडी भी उपहार स्वरूप दी गयी। राम सिंह धौनी का मातृभूमि से अगाध प्रेम था और उसे परतंत्र की बेड़ियों में जकड़े नहीं देख सकते थे।
यही वजह है हाईस्कूल में रहते हुए उन्होंने आपने सहपाठियों के साथ एक छात्र सम्मेलन सभा की स्थापना की। सम्मेलन का मुख्य विषय देशप्रेम व राष्ट्रभाषा हिंदी का उत्थान हुआ करता था।
जब राम सिंह धौनी ने तहसीलदार का पद ठुकराया
राम सिंह धौनी जब हाईस्कूल में थे तो उस समय उनकी भेंट 1916 में अमेरिका से वापस लौटे स्वामी सत्यदेव से हुई। वे स्वामी जी से इतने प्रभावित हुए कि वे स्वामी सत्यदेव द्वारा स्थापित “शुद्ध साहित्य समिति” और समर स्कूल के सदस्य बन गए। आगे चल कर स्वामी सत्यदेव द्वारा स्थापित शुद्ध साहित्य समिति ने उत्तराखंड की जनता में राष्ट्रीय चेतना जगाने में अहम योगदान दिया। Ram Singh Dhoni
राम सिंह धौनी ने हाईस्कूल की शिक्षा के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी०ए० की डिग्री सन् 1919 में प्राप्त की थी। उस समय तत्कालीन कुमाऊँ कमिश्नर पी. विढ़म ने उन्हें तहसीलदार की नौकरी का प्रस्ताव भी दिया था, लेकिन राम सिंह ने उनका यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। शिक्षा पूरी करने के बाद जब धौनी अपने निजी क्षेत्र (सालम) लौटे तो वहां निवासियों व उनके प्रियजनों ने उनका स्वागत बड़ी धूम-धाम से किया।
राम सिंह धौनी अपने क्षेत्र के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने स्नातक तक की शिक्षा पूरी की, इसलिए उनके क्षेत्रवासियों ने उनके स्वागत में ढ़ोल-नगाड़ों का प्रबन्ध किया व उन्हें अल्मोड़ा से उनके गांव तक पालकी पर उठाकर ले गए।
राष्ट्रसेवा में राम सिंह धौनी का योगदान
राम सिंह धौनी जब स्कूली शिक्षा व स्नातक की शिक्षा में अध्यनरत थे तो उन्होंने उस दौरान कई विद्यार्थियों को देशभक्ति की भावना से प्रेरित किया था। वे अंग्रेजी शासन द्वारा प्रतिबंधित भारतीय किताबों को पढ़ते थे तथा अपने दोस्तों को सुनाकर उनके मन भी देशसेवा की अलख जगाते थे। इन सब का परिणाम यह हुआ कि विद्यार्थियों ने शिक्षा समाप्त करने के बाद देशसेवा में अपना अमूल्य योगदान दिया था।
राम सिंह धौनी पहले तो होमरूल लीग के सदस्य बने। उसके बाद वह सीधे स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। राम सिंह धौनी का उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से लोगों के मन में राष्ट्रप्रेम की भावना का संचार करना था। इसके लिए इन्होंने सन् 1920 में राजस्थान के सूरतगढ़ नामक शहर के एक स्कूल में अध्यापन का कार्य शुरू किया। उन्होंने वहाँ पढ़ रहे राजकुमारों को भी स्वंत्रता की भावना जगाई।
इसके बाद वह सूरतगढ़ से फतेहपुर गए और वहां एक स्कूल के प्रधानाध्यापक बन गए। फतेहपुर में सन् 1921 में धौनी जी ने कांग्रेस कमेटी का गठन करना चाहते थे मगर सियासत ने यह कार्य संभव नहीं होने दिया।
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इन्होंने फतेहपुर में शुद्ध साहित्य समिति की स्थापना की जहाँ लोग जुड़कर साहित्य के माध्यम से अपने विचार रखा करते थे। धौनी जी की भी गद्य में विशेष रूचि थी वे ‘बन्धु’ नाम के एक साप्ताहिक पत्र के माध्यम से अपने विचार रखते थे। उन्होंने फतेहपुर में युवक सभा की भी स्थापना की जिसकी बैठक प्रत्येक रविवार को रखी जाती थी। इसके कुछ समय के बाद राम सिंह जी नेपाल की रियासत बजांग राज्य में चले गए।
वहां उन्होंने राजकुमारों को शिक्षा प्रदान की, इनकी शिक्षा से प्रभावित होकर ही वहां के राजकुमारों का लगाव हिंदी भाषा से हो गया और उन्हें हिंदी भाषा में और जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा होने लगी। बजांग राज्य द्वारा राम सिंह धौनी को एक तलवार भी भेंट की गयी जो आज भी उनके घर में सुसज्जित है।
अल्मोड़ा वापसी
रियासतों में स्वतंत्रता की अलख जगाने व हिंदी के प्रचार प्रसार करने के बाद राम सिंह जी की अल्मोड़ा वापसी हुई। यहां रहकर उन्होंने निशुल्क शिक्षा व विद्यालयों की स्थापना में अपना अहम योगदान दिया। यही नहीं उन्होंने विक्टर मोहन जोशी की अनुपस्थिति में वर्ष 1924 में शक्ति पत्रिका का भी सम्पादन किया। परन्तु स्वस्थ खराब रहने के कारण वर्ष 1926 में उन्होंने सम्पादन का कार्य छोड़ दिया। मगर इसके बावजूद उन्होंने राष्ट्रीय कल्याण के लिए अपने प्रयत्न जारी रखे।
बम्बई में रहकर राष्ट्र आंदोलन की करी मदद
सन 1928 में धौनी जी ने स्वास्थ्य खराब होने के कारण भी मुंबई के लिए प्रस्थान किया। जहां उन्होंने ‘हिमालय पर्वतीय संघ’ की स्थापना की। यहाँ रहकर उन्होंने धन एकत्र किया व अल्मोड़ा के राष्ट्रीय आंदोलन को सफलतापूर्वक चलाने के लिए भेजा। राम सिंह धौनी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कभी जेल नहीं गए, लेकिन समाज को जागरूक करने व स्वाधीनता संग्राम इत्यादि में सहयोग करने के लिए राम सिंह जी ने अतुलनीय सहयोग किया। Ram Singh Dhoni
राम सिंह धौनी सन् 1930 में चेचक रोग से ग्रस्त हुए लाख जतन करने के बाद भी उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ और अंत में उत्तराखंड का यह सच्चा सपूत परमात्मा में विलीन हो गई। स्वतंत्रता सेनानी राम सिंह धौनी की मृत्यु के उपरांत सन् 1935 में उनके क्षेत्र सालम (जैंती) में उनके नाम पर एक आश्रम की स्थापना की गई। यह आश्रम स्वतन्त्रता आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र भी रहा।
लेकिन हम इस समय इस आश्रम (राम सिंह धौनी आश्रम) की बात करें तो संरक्षण इत्यादि के अभाव में यह आश्रम अत्यंत जर्जर स्थिति में हैं। दुःख की बात रही कि स्वतंत्रता के बाद भी तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा छपी पुस्तक में उत्तराखंड के सेनानियों में भी उनका जिक्र नहीं था।
राम सिंह धौनी पहले ऐसे देशभक्त थे जिन्होंने सन् 1921 में पहली बार ‘जय हिंद’ का उद्घोष किया था। इन्हें तत्कालीन भारतीय रियासतों में राजनीति के जन्मदाता के रूप में भी जाना जाता है। वे ‘जय हिंद’ नारे का प्रयोग अभिवादन के रूप में किया करते और पत्र व्यवहार इत्यादि में भी ‘जय हिंद’ का प्रयोग किया करते थे।
राम सिंह धौनी द्वारा लिखी कविता
हालाँकि राम सिंह धौनी को वर्तमान समाज भूलता जा रहा हो मगर उनके देशप्रेम की अभिव्यक्ति उनकी डायरी में लिखी कविता से साफ़ देखने को मिलती है।
भारत! मैं तुझको श्रद्धा से प्रणाम करता हूं,
अपने ह्रदय के भावों को चरणों में धरता हूँ ।
तू ही तीस कोटि भारतीयों की माता है,
प्राचीन यश जिसका वेदव्यास गाता है।
तू धन्य है, तो धन्य है, तू धन्य है, माता ॥
वह नीच से भी नीच है जो तुझको भुलाता,
है वह उच्च, सबसे श्रेष्ठ, जो है सेवा तेरी करता।
सागर ने तेरे चरणों में माथा नवाया,
अरु शुभ्र हिमालय ने मुकुट को सजाया है ।
चाहते हैं ईश सब भारतीयों की ध्वजा सजे,
अरु सभ्य जातियों में इसकी दुन्दुभी बजे ।हरगिज़ किसी से मत डरो, भाइयों बढे चलो,
अरु देश के हित के कार्य में सबसे गले मिलो ।सौ बार अगर जन्म हो, तो भी यही धर्म हो,
मारेंगे, मर मिटेंगे, हिन्दुस्तान के खातिर ॥
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