उत्तराखण्ड के वे देवता और त्यौहार जिनका मूल नेपाल है
उत्तराखण्ड में यूं तो कई तीज त्यौहार मनाए जाते हैं। जिनका हमारी संस्कृति और बरसों से समेटी गई विरासत से गहरा संबंध है। मगर क्या आप जानते हैं कि हमारी गढ़वाली-कुमाऊंनी संस्कृति में कई ऐसे प्रसिद्ध त्यौहार, परंपराएं और देवी देवता भी हैं जिनका मूल नेपाल है? है ना ये बात हैरान करने वाली!
उत्तराखण्ड के इतिहास को अगर हम देखें तो उत्तराखण्ड पर राज करने वाले गढ़ राजाओं और कुमाऊँ के चंद राजाओं का गोरखा यानि नेपाल देश से संघर्ष की कहानी सुनने को मिलेगी। हालाँकि गोरखा कभी सफल नहीं हो पाए मगर जब चंद राज्य कमजोर पड़ा तो इसका फायदा उठाने से भी गोरखा नहीं चूके। 1890 गोरखाओं ने कुमाऊँ जीता और फिर गढ़वाल को जीतने के लिए भी संघर्ष किया। जो वर्ष 1904 में प्रद्युम्न शाह की मृत्यु के बाद समाप्त हुआ।
परिणाम यह हुआ कि प्रद्युम्न शाह खुड़बुड़ा के युद्ध में मारे गए और समस्त उत्तराखण्ड पर गोरखाओं ने एक छत्र राज किया। जो वर्ष 1915 तक चलता रहा। इस बात से आपको लगेगा कि यही कारण है कि गोरखाओं की संस्कृति हमारी संस्कृति में रच बस गई है। मगर महज यही कारण नहीं है। इसके लिए आपको राजवंशों की शादियों को देखना होगा।
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जी! राजवंशी परंपरा के अनुसार राजा का पुत्र ही राजा बनता है और राजा की बहू भी अन्य राजा की ही पुत्री बनती है। यही पारिवारिक संबंध गढ़वाल के नरेशों, कुमाऊँ के वीरों का गोरखाओं के मध्य था। सुनने में ये बहुत अजीब लगेगा कि जिस राजा से हमारी राजनैतिक दुश्मनी है उसी से अपनी बेटी का विवाह। खैर ये राजनीतिक दुश्मनी तो थी मगर सिर्फ विस्तारवाद पर आधारित। इसका पारिवारिक संबंधों से कोई लेना देना नहीं था।
यही वजह है जब कुमाऊँ को गढ़राज्य ने विजित किया तो कुमाऊँ का राजा भागकर गोरखाओं के पास चला गया। यही नहीं जब कुमाऊँ का शासन कमजोर हुआ तो उन्होंने ने गोरखाओं को राज करने के लिए आमंत्रित किया। कुल मिलाकर चंदों यानि कुमाऊँ शासकों का गोरखाओं से पारिवारिक संबंध था। इसी वजह से कुमाऊंनी संस्कृति में नेपाल संस्कृति की छाया साफ देखने को मिलती है।
कुमाऊँ में आज भी कई ऐसे तीज त्यौहार मनाए जाते हैं जिनका संबंध नेपाल से है। जैसे हिलजात्रा, देवजात्रा, आठं, पुषूड़िया (मकर सक्रांति पर्व), घुरुड़िया, घी त्यौहार, हरेला ओलगा आदि। ये सब नेपाली रीति रिवाज, पर्व एंव उत्सव हैं।
कुमाऊँ में पूजे जाने वाले पवित्र गोरिल देवता (गोलू देवता) का मूल भी नेपाल में है। वहीं सीरा में प्रचलित ‘रौंत देवता’ का भी। इसके अलावा छुरमल, कटारमल, कलसिन, भूमियां, ऐड़ी सैन आदि देवताओं का मूल भी नेपाल है।
कुमाऊंनी रीति रिवाजों को अगर बात करें तो कपाल में नाक के सिरे से पिठां (रोली) लगाना, घास के लिए डोके की प्रथा, पीठ में बोझ रखना व मुर्दे को बांधकर जल्दी-जल्दी भागने की प्रथा भी नेपाल से कुमाऊंनी संस्कृति में घुली मिली है।
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आप भी अगर इन रीति रिवाजों के बारे में जानते थे मगर इनके मूल से परिचित नहीं थे तो उम्मीद करते हैं इस पोस्ट के द्वारा आपको अहम जानकारी मिली होगी। यह पोस्ट अगर आप को अच्छी लगी हो तो इसे शेयर करें साथ ही हमारे इंस्टाग्राम, फेसबुक पेज व यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें।
नमस्कार दीपक जी आपने उत्तराखंड और नेपाल के मित्रता अपने इस लेख के द्वारा और भी आगे बढाया है मैं नेपाल से हूँ और आपका इस साईट पर आकर कुछ न कुछ नै जानकारी हासिल करते रहता हूँ आपका दिल से धन्यवाद देता हूँ इसी प्रकार और भी छिपे हुए बात और उत्तराखंड की संस्कृति पर्यटन स्थल आदि के बारे में बताते रहे
धन्यवाद सागर जी। आपके इन प्रोत्साहना से भरे शब्दों को पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई। अपने इस ब्लॉग के माध्यम से हम आपको उत्तराखंड की संस्कृति, समाज, पर्यटन और इतिहास से जुड़े रोचक तथ्य देते रहेंगे। :)))
Hi Bahut Achha Laga Apki ye Blog Padhke , Me Nepal se hu or Mujhe ye Devi Devta ke bare me jankari Achhi lagti he. Ho sake to Or Bhi Jankari dete rehna Nepal ke Bare me or India ke Devi Devta ke Bare me. Jay Hind Jay Nepal