
Uttarakhand Kranti Dal: उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) का इतिहास
Uttarakhand Kranti Dal (उत्तराखंड क्रांति दल (UKD): उत्तराखंड का निर्माण सिर्फ एक राजनीतिक फैसला नहीं था, बल्कि यह संघर्ष, बलिदान और जनशक्ति की कहानी है। आजादी के बाद से ही इस क्षेत्र के लोग अपनी अलग पहचान और विकास के लिए संघर्ष कर रहे थे। पहाड़ी इलाकों की अनदेखी, संसाधनों की लूट और प्रशासनिक उपेक्षा के कारण 1950 के दशक से अलग राज्य की मांग उठने लगी।
1979 में उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) के गठन ने इस आंदोलन को नई दिशा दी। 1980 और 1990 के दशकों में बड़े विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें मुजफ्फरनगर कांड जैसी दुखद घटनाएँ भी शामिल रहीं। इंद्रमणि बडोनी, काशी सिंह ऐरी, और अन्य नेताओं ने इस आंदोलन को मजबूत किया। अंततः 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड भारत का 27वां राज्य बना।
यह लेख आपको उत्तराखंड राज्य निर्माण की इस ऐतिहासिक यात्रा से रूबरू कराएगा—संघर्ष की कहानियाँ, आंदोलन के महत्वपूर्ण पड़ाव, और उन वीर नायकों का जिक्र जो इस राज्य के लिए लड़े। पूरा पढ़ें और जानें उत्तराखंड राज्य बनने की पूरी गाथा!
उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) (Uttarakhand Kranti Dal)
स्वतंत्रता के बाद उत्तराखंड राज्य की मांग (Demand for Uttarakhand state after independence)
उत्तराखंड में आजादी से पूर्व ही पृथ्क राज्य की माँग उठ रही थी। जिसकी प्रतिध्वनि जवाहर लाल नेहरू के श्रीनगर यात्रा और सन 1946 में बद्रीदत्त पांडे के अभिभाषणों से भी उजागर हुई। मगर इसके बावजूद इन आवाजों को पुरजोर तरीके से नहीं उठाया गया या राजनैतिक अनइच्छा के कारण दबाया गया। जब राष्ट्रीय दलों के कारण भी राज्य की पृथ्क माँग का हित साधता नहीं दिखा तो राष्ट्रीय पार्टी के इतर एक स्थानिय मंच की आवश्यकता महसूस की गई।
15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली, लेकिन इसके बाद भी कई राज्यों के पुनर्गठन और नए राज्यों के गठन की आवश्यकता महसूस की गई। उत्तराखंड क्षेत्र, जो पहले उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों और उपेक्षित विकास के कारण 1950 से ही अलग राज्य की मांग करने लगा। हालांकि, इस मांग को तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा विशेष महत्व नहीं दिया गया।
उत्तराखंड में भौगोलिक असमानताओं और प्रशासनिक कठिनाइयों के कारण स्थानीय लोग लंबे समय तक विकास से वंचित रहे। इस क्षेत्र की कठिन जलवायु और दुर्गम पहाड़ी मार्गों के चलते बुनियादी सुविधाएँ जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवहन यहां पर उपयुक्त रूप से विकसित नहीं हो सकीं। यही कारण था कि उत्तराखंडवासियों को लगा कि उन्हें अलग राज्य की जरूरत है, ताकि उनके विशिष्ट मुद्दों का समाधान किया जा सके।
इस योजना की पूर्ति के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मंच की स्थापना की योजना बनी। इस योजना का क्रियान्वयन जुलाई 1979 में मसूरी में आयोजित सम्मेलन में किया गया। इसी के अंतर्गत उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) नामक क्षेत्रीय राजनैतिक दल की स्थापना की गई। जिसकी अध्यक्षता कुमाऊँ विश्विद्यालय के भूतपूर्व कुलपति डा० देवी दत्त पंत ने की।
UKD के निर्माण से पहले प्रारंभिक प्रयास और नेतृत्व (Initial efforts and leadership prior to creation of UKD)
1971 में टिहरी के तत्कालीन सांसद स्वर्गीय प्रताप सिंह नेगी ने अलग राज्य की जोरदार वकालत की। उनकी प्रेरणा से छात्र संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए, लेकिन यह आंदोलन व्यापक जनांदोलन का रूप नहीं ले सका। हालांकि, अलग राज्य की अवधारणा लगातार हमारे जनप्रतिनिधियों के दिल में बनी रही।
स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी, जो 1967 में देवप्रयाग से उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचे थे, ने पहाड़ी क्षेत्रों की उपेक्षा को देखते हुए अलग राज्य की आवश्यकता को महसूस किया। 1977 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतने के बाद, उन्होंने विधानसभा में पृथक राज्य की मांग को मजबूत किया।
बडोनी जी के नेतृत्व में उत्तराखंड की जनता को यह विश्वास हुआ कि उनका सपना हकीकत में बदला जा सकता है। उन्होंने उत्तराखंड की संस्कृति, भाषा, और पारंपरिक मूल्यों को आगे बढ़ाने का कार्य भी किया। उन्होंने विभिन्न मंचों पर यह सवाल उठाया कि क्या विशाल उत्तर प्रदेश के प्रशासनिक केंद्र से पहाड़ी क्षेत्र की सही देखरेख संभव है? क्या यहां के लोगों के विकास के लिए अलग राज्य एकमात्र समाधान नहीं है?
उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) का गठन (Formation of Uttarakhand Kranti Dal (UKD))
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की उपेक्षा के कारण, 24 और 25 जुलाई 1979 को मसूरी में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में श्रद्धेय श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस को ध्यान में रखते हुए, 25 जुलाई 1979 को ‘उत्तराखंड क्रांति दल’ (UKD) का गठन किया गया। कुमाऊं विश्वविद्यालय के उप-कुलपति स्वर्गीय डॉ. डी.डी. पंत को दल का केंद्रीय अध्यक्ष चुना गया। इस अवसर पर विभिन्न वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता उपस्थित थे, जिनमें दिवाकर भट्ट, कृपाल सिंह रावत, द्वारिका प्रसाद उनियाल, हुकम सिंह पंवार, मदन मोहन नौटियाल आदि प्रमुख थे।
इस दल के गठन के बाद उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में अलग राज्य की मांग जोर पकड़ने लगी। छोटे-छोटे गाँवों और कस्बों से लेकर शहरों तक, उत्तराखंड की जनता अपनी मांगों को लेकर एकजुट होती चली गई।
जन समर्थन और राजनीतिक लड़ाई (Public support and political battles)
उत्तराखंड क्रांति दल ने उत्तराखंड राज्य निर्माण को लेकर कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। 1980 के दशक में पार्टी ने जन समर्थन जुटाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में यात्राएं कीं। इसी दौरान, पार्टी ने गढ़वाल और कुमाऊं में बड़े जनांदोलन किए।
महत्वपूर्ण घटनाएँ:
- 10 नवंबर 1986: गढ़वाल कमिश्नरी, पौड़ी में विशाल रैली।
- 9 मार्च 1987: कुमाऊं कमिश्नरी, नैनीताल में लाखों लोगों की भागीदारी।
- 23 अप्रैल 1987: दिल्ली में विशाल रैली, जिसमें संसद भवन में “आज दो, अभी दो, उत्तराखंड राज्य दो” का नारा गूंजा।
- 23 नवंबर 1987: दिल्ली में फिर एक बड़ी रैली, जिसमें त्रिवेंद्र सिंह पंवार पुलिस झड़प में घायल हुए।
इन घटनाओं ने उत्तराखंड राज्य निर्माण की मांग को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। अब यह केवल उत्तराखंड क्रांति दल का आंदोलन नहीं रहा, बल्कि आम जनता का संघर्ष बन गया।
उत्तराखंड क्रांति दल की ऐतिहासिक जीत (Historical victory of Uttarakhand Kranti Dal)
उत्तराखंड क्रांति दल की लोकप्रियता इस कदर बढ़ी कि 1989 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों को कड़ी टक्कर दी। टिहरी से इंद्रमणि बडोनी और अल्मोड़ा से काशीसिंह ऐरी केवल कुछ हजार वोटों के अंतर से हारे। हालांकि, विधानसभा चुनावों में पार्टी ने दो महत्वपूर्ण सीटों पर जीत दर्ज की:
- डीडीहाट: काशीसिंह ऐरी विजयी रहे।
- रानीखेत: जसवंत सिंह बिष्ट ने जीत दर्ज की, जो उत्तराखंड क्रांति दल के पहले विधायक बने।
यह जीत उत्तराखंड राज्य की मांग को मजबूती देने वाली थी। इससे यह साफ हो गया कि उत्तराखंड की जनता अब समझ चुकी थी कि उनका भविष्य केवल अलग राज्य में ही सुरक्षित है।
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उत्तराखंड राज्य आंदोलन का उग्र रूप (Uttarakhand state movement takes a violent turn)
1990 के दशक में उत्तराखंड राज्य आंदोलन और अधिक तीव्र हो गया।
- 2 अक्टूबर 1994: मुजफ्फरनगर कांड में कई आंदोलनकारियों की शहादत ने आंदोलन को नया मोड़ दिया। उत्तराखंड आंदोलनकारियों पर पुलिस द्वारा की गई बर्बरता ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
- 1996: केंद्र में सरकार बदलने के साथ ही राज्य निर्माण को लेकर चर्चाएँ तेज हुईं। प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा और उनके बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उत्तराखंड राज्य के गठन को लेकर गंभीर विचार-विमर्श शुरू किया।
उत्तराखंड राज्य का गठन (Formation of Uttarakhand state)
इस दल का एकमात्र उद्देश्य उत्तराखंड में जन समस्याओं का निराकरण करते हुए पृथ्क राज्य का निर्माण करना था। उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना को एक सही दिश में सही कदम के रूप में देखा जा सकता है। इस दल ने स्थानीय मुद्दे और पृथ्क राज्य की मांग को पुरजोर तरीके से उठाया। यही नहीं उत्तराखंड के ग्रामीण जन-जन तक पृथ्क राज्य की आवश्यकता और औचित्य को जनता तक पहुंचाया। समय-समय पर धरना व रैलियाँ की गई। बंद एंव चक्का जाम किया गया। इन सभी वजहों से पृथ्क राज्य की माँग राष्ट्रीय स्तर पर पहुंची । अंततः, लंबे संघर्ष और बलिदानों के बाद, 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग कर भारत का 27वां राज्य बनाया गया।
उत्तराखंड का राज्य बनना केवल प्रशासनिक बदलाव नहीं था, बल्कि यह लाखों उत्तराखंडवासियों की मेहनत और संघर्ष का परिणाम था। आज यह राज्य अपनी पहचान को सुदृढ़ कर रहा है और तेजी से प्रगति की ओर बढ़ रहा है। लेकिन हमें उन संघर्षों और बलिदानों को कभी नहीं भूलना चाहिए, जिनकी वजह से यह सपना साकार हुआ। यह राज्य केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि उत्तराखंडवासियों की आत्मा और पहचान का प्रतीक है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह राज्य आगे भी विकास के पथ पर अग्रसर रहे और यहां के लोग अपने हक और अधिकारों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहें।
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