
Victor Mohan Joshi: विक्टर मोहन जोशी, एक विस्मृत क्रांतिकारी और पत्रकार
Victor Mohan Joshi (विक्टर मोहन जोशी): हमारे समाज में कई सारे ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हुए, जिन्हें इतिहास के पन्नों में तो जगह नहीं मिली, लेकिन स्वंतत्रता संग्राम आंदोलनों में इनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। एक ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानी थे उत्तराखंड के विक्टर मोहन जोशी जी। जो कि एक साहसी आंदोलनकारी और महान समाजसेवी भी थे। विक्टर मोहन जोशी गांधीवादी विचारधारा का अनुसरण करते थे। इन्होंने कई सारे स्वतंत्रता आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
यही कारण है कि आज विक्टर मोहन जोशी देश के महान आंदोलनकारियों में उचित स्थान रखते हैं। आइए जानते हैं विक्टर मोहन जोशी जी के संपूर्ण जीवन चरित्र और स्वंतत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान उनके संघर्षों के बारे में। जिसे जानकर आपको भी उनके जीवन से काफी प्रेरणा मिलेगी।
विक्टर मोहन जोशी (Victor Mohan Joshi)
मोहन जोशी का जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
विक्टर मोहन जोशी (Victor Mohan Joshi) का जन्म अल्मोड़ा में वर्ष 1896 में हुआ था। इनके पिता का नाम जय दत्त जोशी था। आपको बता दें कि इनके पिता भी उत्तराखंड के कई स्वतंत्रता आंदोलनों में अपना योगदान दे चुके हैं। वहीं कुमाऊं परिषद में भी देखा जा सकता है कि जब इस परिषद का पहला अधिवेशन हुआ, तो उसकी अध्यक्षता जोशी जी ने ही की थी।
जानकारी के अनुसार, जय दत्त जोशी जी ने ईसाई धर्म को अपनाया था, जिस कारण इन्होंने अपने बेटे का नाम विक्टर जोसेफ रखा था, लेकिन उनकी मां का लगाव हिंदू धर्म के प्रति ज्यादा था। तो उनके कहने पर विक्टर मोहन जोशी जी के नाम को परिवर्तित नहीं किया गया. फिर इनका पूरा नाम विक्टर मोहन जोशी रखा गया।
शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
मोहन जोशी विद्यार्थी जीवन से ही मोहन जोशी प्रखर बुद्धि के प्रतिभावन छात्र के रुप में अपनी पहचान करा चुके थे। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा रामजे स्कूल से प्राप्त की. उच्च शिक्षा के लिए वे अल्मोड़ा गए, जहां उन्होंने एम.ए. तक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद के क्रिश्चियन कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। कानून की पढ़ाई के दौरान उन्होंने जमुना मिशन स्कूल में अध्यापन भी किया। लेकिन उनका मन पढ़ाई और नौकरी में नहीं लगा, और उन्होंने खुद को पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम में झोंक दिया। स्कूल में शिक्षा पाते वक्त ही उन्होंने अल्मोड़ा में ‘क्रिश्चयन फ्रैन्ड्स एसोसिएशन’ नामक संस्था की स्थापना की।
बाद में यह क्लब ‘क्रिश्चयन यंग पीपुल सोसाइटी’ के नाम से जाना गया. हालांकि इन कल्बों में ईसामशीह के चरित्र के अलावा बौद्धिक विकास की ही चर्चा होती थी पर इन क्लबों के जरिये मोहन जोशी ने अपनी संगठन क्षमता का परिचय कराया।
इस प्रकार, मोहन जोशी उन स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया। इन्होंने अपने पिता से प्रेरणा लेकर ही देश की आजादी के लिए संघर्ष किया। मोहन जोशी ने साल 1917 में इलाहाबाद के इरविन क्रित्रियन कॉलेज से बी.ए किया था। उन्होंने ईसाई समाज को जागृत करने का फैसला किया।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
होम रूल लीग से जुड़ाव
बंग-भंग आंदोलन और स्वामी सत्यदेव के विचारों से प्रेरित होकर मोहन जोशी ने ‘होम रूल लीग’ की स्थापना की। इसमें बदरीदत्त पांडे, हीरा बल्लभ पांडे और हरगोविंद पंत जैसे बड़े नाम शामिल थे।
क्रांतिकारी पत्रकारिता
मोहन जोशी का मानना था कि पत्रकारिता स्वतंत्रता संग्राम का एक मजबूत हथियार हो सकता है। उन्होंने 1920 में प्रयाग से ‘क्रिश्चियन नेशनलिस्ट’ नामक अंग्रेजी साप्ताहिक शुरू किया। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने भारतीय ईसाइयों को स्वराज्य संग्राम से जोड़ने की अपील की। उनका यह प्रयास इतना प्रभावी रहा कि अल्मोड़ा के चर्चों से अंग्रेजों के प्रतीक ‘यूनियन जैक’ को हटाने की मांग उठी। वे प्रयाग से प्रकाशित होने वाली ‘स्वराज्य’ नामक राष्ट्रीय विचारों के साप्ताहिक से प्रभावित हुए। इससे प्रभावित होकर विक्टर मोहन जोशी ने प्रयाग से ही ‘क्रिश्चयन नेशनलिस्ट’ नामक अंग्रेजी साप्ताहिक सन् 1920 में निकालना प्रारम्भ किया। इस पत्रिका के माध्यम से विचारशील ईसाइयों को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा गया।
अल्मोड़ा अखबार और शक्ति पत्रिका
अल्मोड़ा अखबार के बंद होने के बाद उन्होंने ‘शक्ति’ के प्रकाशन में बदरीदत्त पांडे का सहयोग किया। वे अंग्रेजों की नीतियों के कट्टर आलोचक थे और अपने संपादकीय में खुलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ लिखते थे।
बेगार प्रथा के खिलाफ आंदोलन
कुमाऊं में कुली-बेगार प्रथा के खिलाफ जनआंदोलन छेड़ने में मोहन जोशी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 1921 में जब बदरीदत्त पांडे को गिरफ्तार किया गया, तो उन्होंने ‘शक्ति’ में एक ओजस्वी संपादकीय लिखा, जिससे जनता में आक्रोश फैल गया।
यह उल्लेख करना आवश्यक है कि कुमाऊँ में स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत ‘कुली बेगार’ प्रथा और जंगलात से जुड़ी समस्याओं के खिलाफ संघर्ष से हुई। इस आंदोलन में अखबारों की भूमिका महत्वपूर्ण रही। मोहन जोशी की विशेषता थी कि उन्होंने एक पत्रकार के रूप में भी स्वतंत्रता संग्राम को गतिशील बनाने में अहम योगदान दिया।
1921 में ‘बेगार प्रथा’ की समाप्ति के बाद, शक्ति के संस्थापक संपादक बदरीदत्त पांडे को गिरफ्तार कर लिया गया। इस कठिन समय में शक्ति के संपादन की जिम्मेदारी मोहन जोशी ने संभाली और लिखा—
“बदरीदत्त पांडे की दृष्टि आज कारागृह के फाटकों की ओर लगी है, क्योंकि माता को स्वाधीन करने का दूसरा मार्ग नहीं है… वीर योद्धा को रणक्षेत्र में जाने से कौन रोक सकता है?”
एक संपादक के रूप में मोहन जोशी ने ऐसे राष्ट्रवादी लेख लिखे, जिनसे विदेशी शासन को सीधी चुनौती मिली। क्रिसमस के अवसर पर उन्होंने तीखा प्रहार करते हुए लिखा—
“हिंदुस्तान का खून चूसने वाले फिरंगियों को अपने अतीत की ओर देखना चाहिए। यदि आज प्रभु यीशु मसीह भारत में होते, तो स्वार्थी नौकरशाही उन्हें भी जेल में डाल देती।”
शक्ति का संपादन करते हुए, 1 जनवरी 1922 को मोहन जोशी को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके साथ प्रख्यात भाषाविद् डॉ. हेमचंद्र जोशी समेत अन्य स्वतंत्रता सेनानी भी बंदी बनाए गए। उन्हें 11 दिनों का कारावास भुगतना पड़ा।
1921 के बागेश्वर मेले में ‘बेगार आंदोलन’ की घटनाओं से घबराए ब्रिटिश अधिकारियों ने नेताओं को मेले में जाने से रोकने की कोशिश की। लेकिन मोहन जोशी अपने साथियों के साथ वहाँ पहुंचे और गिरफ्तार कर लिए गए।
1923 में शिवरात्रि मेले के दौरान भिकियासैंण में उन्होंने धारा 144 के बावजूद स्वराज आंदोलन पर जोशीले भाषण दिए, जिससे अंग्रेजी शासन तिलमिला उठा। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उनके समर्थकों ने जुर्माना भरकर उन्हें कारावास से बचा लिया।
इसके बाद ही मोहन जोशी गांधी जी के संपर्क में आए और फिर उन्होंने साल 1930 में झंडा सत्याग्रह का नेतृत्व भी किया। इसके बाद ही उन्होंने अल्मोड़ा नगर पालिका भवन पर तिरंगा फहराने का संकल्प भी लिया था।
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भूले-बिसरे स्वतंत्रता सेनानी मोहन जोशी का एकाकी अंत
यूँ तो मोहन जोशी 1935 तक स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े रहे, लेकिन 1932 के बाद मानसिक रोग ने उन्हें जकड़ लिया। वे समय-समय पर विचलित हो जाते और ‘बिजली! बिजली!’ चिल्लाने लगते। 1935 के बाद उनका जीवन एकाकी हो गया। उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू से मिलने तक से इनकार कर दिया। महात्मा गांधी ने उनके इलाज की व्यवस्था करनी चाही, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया।
4 अक्टूबर 1940 को अकेलेपन में जी रहे मोहन जोशी का निधन हो गया। हालांकि, अपने अंतिम समय में वे अंग्रेजी में एक धार्मिक पुस्तक लिख रहे थे, लेकिन इसके पन्ने किसी के हाथ नहीं लग सके। अंग्रेज लेखक चार्ली आरनोल्ड ने इसके कुछ पृष्ठ देखकर कहा था— “मोहन जोशी की अंग्रेजी लेखन शैली अद्भुत है, उनके विचारों में गजब की शक्ति है।” मोहन जोशी ने ‘जापानी खूनी’ नामक एक पुस्तक भी लिखी, जो एक जापानी ग्रंथ का हिंदी अनुवाद थी।
कुमाऊं के स्वराज्य आंदोलन में मोहन जोशी एक जलती हुई ज्वाला की तरह प्रकट हुए। स्वतंत्रता संग्राम के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया, उनका जीवन एक महान यज्ञ की तरह रहा। जिस अमर चेतना को वे अपने साथ लाए थे, उसी को देश के लिए अर्पित कर दिया। अफसोस की बात है कि आधुनिक समाज में इस महान देशभक्त की स्मृति धुंधली पड़ गई है।
विक्टर मोहन जोशी द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्य (Important works done by Victor Mohan Joshi)
▪️ वर्ष 1921 में इन्होंने शक्ति पत्रिका का संपादन किया था। विक्टर मोहन जोशी ने ही गांधी जी के हाथों से स्वराज मंदिर का शिलान्यास कराया था। उस वक्त शक्ति के सम्पादक बदरीदत्त पाण्डे गिरफ्तार कर लिए गए थे।
▪️‘शक्ति’ संपादक के रुप में मोहन जोशी ने लिखा “बदरीदत्त पाण्डे की दृष्टि आज कारागृह के फाटकों की ओर लगी है, क्योंकि माता को स्वाधीन करने का दूसरा मार्ग नहीं है, ……. वीर योद्ध को रण क्षेत्र में जाने से कौन रोक सकता है?”
▪️ वर्ष 1925 में इनको अल्मोड़ा जिला बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया, इस दौरान इन्होंने खाद्य विभाग और काष्ठ कला विभाग की स्थापना की।
▪️ इसके बाद वर्ष 1926 में इन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और पूरी तरह स्वतंत्रता आंदोलन में लग गए।
▪️ वहीं साल 1930 में इन्होंने एक और अखबार निकाला, जिसका नाम था ‘स्वाधीन प्रजा’। अखबार के माध्यम से भारतीय लोगों को आजादी के प्रति जागरूक किया गया। बाद में इसी अखबार में छपी खबरों से अंग्रेज सरकार परेशान होने लगी थी। जिसके कारण ब्रिटिश सरकार ने इस पर 6000 रुपए की जमानत लगा दी थी। लेकिन जोशी जी ने अंग्रेजी हुकूमत को जमानत देने के बजाय अपने अखबार के प्रकाशन को ही बंद कर दिया था।
▪️साल 1930 में फिर इन्होंने झंडा सत्याग्रह का नेतृत्व किया। इसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे। इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने मोहन जोशी समेत अनेक आंदोलनकारियों पर लाठियां बरसा दी थी, जिसके बाद मोहन जोशी जी का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ गया।
▪️‘झण्डा सत्याग्रह’ पर महात्मा गाँधी ने टिप्पणी की ‘सत्याग्रह के युद्ध में मोहन जोशी ने साबित कर दिया है कि वे किस धातु के बने हैं। ’
▪️ मोहन जोशी 1935 तक संग्राम से जुड़े रहे पर सन् 1932 के बाद उन्हें मानसिक रोग ने आ घेरा। वे बीच-बीच में विकृत हो जाते और ‘बिजली ! बिजली!’ चिल्लाने लगते।
▪️ सन् 1935 के बाद आपका जीवन एकाकी हो गया। इन्होने जवाहर लाल नेहरु से तक मिलने से इंकार कर दिया। महात्मा गाँधी ने आपका उपचार कराना चाहा पर आपने अस्वीकार कर दिया।
▪️ 4 अक्टूबर 1940 को एकाकी जीवन बिता रहे विक्टर मोहन जोशी ने देह त्याग दिया।
विक्टर मोहन जोशी को मिली उपाधियां और सम्मान (Victor Mohan Joshi received titles and honors)
▪️ विक्टर मोहन जोशी जी को देशभक्त की उपाधि से नवाजा गया है।
▪️ गांधी जी द्वारा मोहन जोशी जी को असहयोग आंदोलन का श्रेष्ठ सैनिक की उपाधि दी गई थी।
▪️वहीं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें असहयोग का वीर सैनिक कहकर इन्हें सम्मान दिया।
▪️ आजादी में इनके खास योगदान को देखते हुए अल्मोड़ा के राजकीय महिला अस्पताल में 12 फरवरी 2004 को इनकी मूर्ति लगाई गई है। साथ ही उस अस्पताल का नाम विक्टर मोहन जोशी महिला चिकित्सालय रखा गया है।
▪️ इसके साथ ही बागेश्वर का राजकीय इंटर कॉलेज भी इन्हीं के नाम पर रखा गया। उसे ‘विक्टर मोहन जोशी मेमोरियल राजकीय इंटर कॉलेज’ के नाम से जाना जाता है।
▪️ अल्मोड़ा के नारायण तेवाड़ी देवाल (एन. टी. डी.) क्षेत्र में इनका समाधि स्थल बनाया गया है।
इस प्रकार, विक्टर मोहन जोशी इतिहास के उन स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं, जिन्हें वक्त के साथ ही भुला दिया गया। देश में ऐसे गिने-चुने लोग ही होंगे जिन्हें इनके साहस और बलिदान के विषय में ज्ञान होगा।
आज की सदी के लोगों को ज्ञात ही नहीं है कि हमारे स्वतंत्रता सेनानी कौन थे और उन्होंने हमारी आजादी के लिए कितनी बड़ी लड़ाईयां लड़ी। साथ ही उन्होंने बिना सोचे देश और देशवासियों की आजादी के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए। यही कारण है कि विक्टर मोहन जोशी (Victor Mohan Joshi) जी को एक प्रेरणा स्त्रोत के रूप में हमेशा याद किया जाता रहेगा।
विक्टर मोहन जोशी से जुड़े सामान्य ज्ञान प्रश्न (GK FAQs)
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विक्टर मोहन जोशी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
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1 फरवरी 1896 को नैनीताल में।
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उनके पिता का नाम क्या था और उन्होंने कौन सा धर्म अपनाया था?
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उनके पिता का नाम जयदत्त जोशी था, जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था।
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शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने कौन से संस्थान स्थापित किए?
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बचपन में ही उन्होंने ‘क्रिश्चियन फ्रेंड्स एसोसिएशन’ और ‘क्रिश्चियन यंग पीपल सोसाइटी’ की स्थापना की।
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विक्टर मोहन जोशी ने किस राजनीतिक संगठन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?
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1916 में ‘कुमाऊं परिषद’ की स्थापना में।
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उन्होंने कौन से समाचार पत्र का संपादन किया?
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1921 में ‘शक्ति’ पत्रिका का संपादन किया।
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स्वतंत्रता संग्राम में उनकी प्रमुख भूमिका क्या थी?
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उन्होंने ‘होमरूल लीग’ आंदोलन चलाया और ‘स्वराज्य मंदिर’ की स्थापना में योगदान दिया।
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उनकी मृत्यु कब हुई और उस समय वे क्या कर रहे थे?
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4 अक्टूबर 1940 को, अपने अंतिम समय में वे अंग्रेजी में एक धार्मिक पुस्तक लिख रहे थे, जिसके पन्ने उपलब्ध नहीं हो सके।
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