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हेमकुंड साहिब यात्रा: सिक्खों का प्रमुख तीर्थ स्थल | Hemkund Sahib Yatra

धर्म हमें ईश्वर और आस्था से जोड़ता है और धार्मिक स्थल पर जाकर हमें ईश्वर से प्रत्यक्ष रूप से भले ही मूर्ति या स्थल के माध्यम से अपने सुख दुख और भक्ति करने का अवसर प्राप्त होता है। ‌ भारत में अनेकों धर्म के तीर्थ स्थल मौजूद है और आज हम सिखों के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हेमकुंड

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साहिब (Hemkund Sahib Yatra)से संबंधित सभी जानकारी प्राप्त करने वाले हैं।

हेमकुंड साहिब | Hemkund Sahib

 हेमकुंड साहिब सिखों का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है जो उत्तराखंड के चमोली में स्थित है। यह हिमालय से करीब 15200 फीट की ऊंचाई पर बर्फीली झील के किनारे एवं 7 विशाल चट्टानों वाली पहाड़ के बीच में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इन पहाड़ों पर निशांत साहब झूलते हैं। यदि हम हेमकुंड का अर्थ समझना चाहेंगे तो इसका तात्पर्य है कि हेम यानी बर्फ और कुंड यानी कटोरा। हेमकुंड साहिब स्थल पर मुख्य रूप से 2 भाषाएं हिंदी और पंजाबी बोली जाती है।

उत्तराखंड की धरती पर सुन्दर पुष्पवती पहाड़ियों की तलहटी पर स्तिथ हेमकुंड साहिब की सुंदरता, मंत्रमुग्ध कर देती है। वही इस गुरूद्वारे के नजदीक स्तिथ भगवान श्री राम व लक्ष्मण जी के मंदिर इस पवित्र स्थल पर हिन्दुओं को भी अपनी ओर खींचता है। ये हिन्दू और सिक्ख धर्म को एक सूत्र में बांधने का ही प्रयास था जिसका जिक्र गुरु गोविन्द सिंह द्वारा लिखित दसम ग्रंथ में  देखने को मिलता है।



ऋषिकेश-बद्रीनाथ यात्रा मार्ग पर जोशीमठ से 24 किमी दूर पांडुकेश्वर के समीप अलकनंदा के समीप गोविन्द घाट से हेमकुंड की पैदल चढाई प्राम्भ होती है। गोविंदघाट से 10 किमी की दूरी पर भ्यूंडार गांव तथा उसके 4 किमी आगे घांघरिया है। घांघरिया पर ही यात्रियों के विश्राम की सुविधा है यहां से एक मार्ग २.50 किमी दूर विश्वप्रसिद्ध फूलों की घाटी को जाता है जबकि दूसरा मार्ग 5.50 किमी की दूरी पर स्तिथ हेमकुंड की और पहुँचता है।
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हेमकुंड साहिब  क्यों प्रसिद्ध है?

 हेमकुंड साहिब सिखों के लिए बहुत महत्व रखता है और ज्यादातर सिख धर्म के भाई बहन यहां पर दर्शन करने की मान्यता रखते हैं। दरअसल हेमकुंड साहिब सिखों के बीच किस लिए प्रसिद्ध है क्योंकि हेमकुंड साहिब का वर्णन सिक्खों के गुरु गोबिंद सिंह द्वारा लिखित दसम ग्रंथ में किया गया है एवं जो सिर्फ व्यक्ति दसम ग्रंथ में मान्यता रखते हैं वह हेमकुंड साहिब के  तीर्थ स्थल को भी बहुत महत्व देते हैं। दसम ग्रन्थ सिक्खों का एक पवित्र ग्रन्थ है जिसे सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द  की वाणी एवं रचनाओं को संग्रहित किया गया है।

हालाँकि दसम ग्रन्थ उनमें लिखे सनातनी टीकों और अर्थों के कारण कुछ लोग इस ग्रन्थ में मिलावट को मानते हैं ऐसे लोगों को अकाल तख़्त ने सिक्ख धर्म से बाहर कर दिया है। गुरु गोविंद के दसम ग्रन्थ में संकलित विचित्र नाटक में इस तपस्थली का जिक्र मिलता है। इस ग्रन्थ में अंकित है –

हेमकुंड पर्वत है जहाँ सप्त श्रृंग सोहत है वहाँ,
तहाँ हम अधिक तपस्या साधी, महाकाल का अपराधी।

हेमकुंड का प्रचीन नाम लोकपाल भी है जहाँ चमोली जनपद के सीमांत गांव के मार्छा जनजाति के लोग ग्रीष्म ऋतू में परम्परागत पूजा अर्चना करने और मनौती मांगने आते हैं।

हेमकुंड साहिब का इतिहास

 यदि हेमकुंड साहिब के इतिहास की बात की जाए तो हेमकुंड साहिब स्थल पर प्राचीन समय में एक मंदिर हुआ करता था जिसे भगवान राम और लक्ष्मण ने मिलकर बनाया था। इसके बाद सिखों के सबसे बड़े गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने यहां पर कई सालों तक तपस्या और पूजा की थी एवं गुरु गोविंद सिंह ने इसे एक गुरुद्वारे के रूप में परिवर्तित कर दिया था।

हेमकुंड की खोज 1930 से प्राम्भ हुई थी, जिसके बाद 1935 -36 में यहां पर एक छोटे से गुरूद्वारे का निर्माण किया गया। तब से ही हर साल हेमकुंड साहिब स्थल पर सिखों की भीड़ लगती है और सभी हेमकुंड साहिब के दर्शन के लिए आतुर रहते हैं।

इसके अलावा हेमकुंड साहिब का इतिहास में गुरु गोविन्द सिंह से जुड़े कई रोचक हिस्सों को भी जानने की आवश्यकता है जो शायद ही किन्ही को मालूम हो। उसे जानने के लिए उत्तराखंड के  राजवंश के इतिहास को जानना होगा।

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गुरु गोविंद एवं गढ़वाल के राजा फतेशाह के बीच भैंगणी युद्ध

 

आपमें से कई लोगों को यह जानकार हैरानी होगी की इतिहास में सिक्खों के 10वे गुरु – गुरु गोविन्द सिंह और उस समय गढ़वाल की पवांर राजवंश की गद्दी पर बैठे प्रतापी राजा फतेहशाह का युद्ध भी इतिहास में देखने को मिलता है। गढ़वाल के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की बात करें तो राहुल सांस्कृत्यायन के अनुसार फतेशाह की विजय वाहनी सेना ने तिब्बत तक को आक्रांत किया। वर्ष 1662 में फतेशाह की यह विजय दुंदुभि सिरमौर की स्थली तक भी बज उठी। उन्होंने पौंटा (वर्तमान हिमाचल ) और जौनसार के विशाल क्षेत्र पर  अधिकार कर लिया।

ठाकुर देशराज द्वारा लिखित “सिक्ख इतिहास” में यह विवरण मिलता है कि सिरमौर का शासक फतेशाह से इतना भयभीत हुआ कि उसने अपनी रक्षा हेतु गुरु गोविन्द सिंह का आवाहन किया। ठाकुर देशराज के अनुसार गुरु गोविन्द सिंह एवं गढ़नरेश फतेशाह में अच्छे सम्बन्ध थे, इसका परिणाम इस बात से लगाया जा सकता है कि फतेशाह ने देहरादून के निकट कई जमीन सिक्ख गुरुओं को दान में दे दी थी। इसके बावजूद सिरमौर के राजा की मित्रता स्वीकार करने से दोनों के रिश्तों में कड़वाहट फ़ैल गयी।



फतेशाह और गुरु के रिश्तों में कड़वाहट का कारण देशराज ने फतेहशाह और बिलासपुर के राजा भीमचंद को माना जिसके पुत्र से फतेशाह की  कन्या का विवाह हुआ था। भीमचंद गुरु गोविन्द  सिंह से शत्रुता का भाव रखते थे। इसके पीछे धर्मिक कारण वजह थी जिसका जिक्र आप अगर सुन्ना चाहे तो कमेंट बॉक्स में इच्छा जाहिर कर सकते हैं। सम्भवतः भीमचंद ने फतेहशाह को गुरु गोविन्द से मिले उपहार को न स्वीकार करने की बात कही वरना उनकी नवविवाहित पुत्री को पितृगृह में छोड़ने की बात कही। यही वजह है गुरु और फतेहशाह में भीषण युद्ध हुआ।

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विचत्रनाटक में लिखी अपनी आत्मकथा में गुरु गोविन्द सिंह ने इस युद्ध का जिक्र किया है। इस ग्रन्थ का आदिरूप आज भी ठा० शूरवीर सिंह के संग्रह में उपलब्ध है।  इस  संग्रह का रूपांतरण शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने हिंदी में किया है। यह युद्ध का एक निर्णायक युद्ध नहीं था न ही इस युद्ध में गुरु द्वारा किसी स्थल के विजिट करने की बात कही गयी है। सम्भवतः यह युद्ध शांति वार्ता से खत्म हुआ। मगर विचित्र नाटक के लिखे लेख में गुरु ने फतेशाह के झुकने की बात कही मगर किसी क्षेत्र को विजिट करने का उल्लेख नहीं है।

भैंगणी युद्ध का जिक्र फौजा सिंह ने जो सिक्ख रिव्यू में माना है वह यह है कि सिरमौर के राजा द्वारा गुरु को पौंटा साहिब में ठहराया गया। जहाँ गुरु ने सिंहों का संहार करना शुरू किया। पौंटा साहिब जो फतेशाह की सीमा रेखा के नजदीक था सम्भवतः गुरु को फतेशाह ने राज्य के आक्रांत समझ गुरु से युद्ध किया होगा।



हेमकुंड साहिब जाने का रास्ता

 हेमकुंड साहिब स्थल पर यदि आप जाने की इच्छा रखते हैं तो आप हवाई एवं रेल दोनों मार्ग का चुनाव कर सकते हैं लेकिन आपको हेमकुंड साहिब स्थल तक पहुंचने के लिए सभी यातायात सुविधाएं केवल गोविंदघाट तक ही उपलब्ध होंगी क्योंकि एवं कुंड स्थल तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग गोविंदघाट से प्रारंभ होता है और यहां से आपको पैदल यात्रा हेमकुंड स्थल तक करनी पड़ती है।

  • रेल मार्ग से हेमकुंड साहिब का रास्ता

 यदि आप रेल मार्ग द्वारा हेमकुंड साहिब तक पहुंचना चाहते हैं तो ऋषिकेश स्टेशन से आप बस या टैक्सी द्वारा श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, चमोली, जोशीमठ आदि स्थानों से होते हुए गोविंदघाट पहुंच सकते हैं।

 

हेमकुंड साहिब यात्रा का समय

 

हेमकुंड एक बर्फीली झील के किनारे सात विशाल चट्टानों जैसे पहाड़ों के बीच स्थित है और यहां पर साल के साथ 8 महीने भारी बर्फबारी को देखा जाता है। यहां का तापमान यात्रा पर काफी असर डालता है इसीलिए उत्तराखंड सरकार द्वारा मई और अक्टूबर के बीच ही यात्रा के लिए आदेश दिया जाता हैं जिससे तीर्थ यात्रियों को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना ना करना पड़ सकें। वैसे तो पूरे साल हेमकुंड साहिब बर्फ की ज्यादा से ढका रहता है परंतु मई और अक्टूबर के बीच यहां पर यात्रा के लिए मार्ग बनाया जाता है और तापमान यात्रा के अनुकूल रहता है। यात्रियों को हेमकुंड साहिब आने से पहले सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का ध्यान जरूर रखना चाहिए।




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Deepak Bisht

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