श्रीनगर गढ़वाल का इतिहास – उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रखने वाला श्रीनगर नगर, प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक अपनी मंदिरों, कला, साहित्य और शिक्षा के योगदान के लिए प्रसिद्ध है। जानें श्रीनगर के इतिहास, धार्मिक स्थल, और सांस्कृतिक धरोहर के बारे में।
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श्रीनगर गढ़वाल
उत्तराखंड का श्रीनगर एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह नगर न केवल गढ़वाल के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का केंद्र रहा है, बल्कि यहां की वास्तुकला, प्राचीन मंदिर, और ऐतिहासिक स्मारक भी इसकी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हैं। श्रीनगर गढ़वाल का इतिहास सदियों पुराना है, और यह नगर गढ़वाल राज्य के विभिन्न राजवंशों के उत्थान और पतन का साक्षी रहा है। इस लेख में हम श्रीनगर गढ़वाल के इतिहास की यात्रा करेंगे और जानेंगे कि किस तरह यह नगर न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है।
श्रीनगर का ऐतिहासिक महत्व
श्रीनगर उत्तराखंड के आद्य ऐतिहासिक नगरों में से एक है, जो गढ़वाल के देवलगढ़ पट्टी कठ्लस्यूँ में स्थित है। यह नगर अलकनंदा नदी के बाएं तट पर स्थित है, और इसकी समुद्रतल से ऊँचाई 526 मीटर है। महाभारत काल में श्रीनगर का उल्लेख कुलिन्दधिपति सुबाहु की राजधानी के रूप में मिलता है। पांडवों ने गंधमादन पर्वत से कैलाश की तीर्थयात्रा के दौरान सुबाहुपुर में अतिथ्य लिया था, जिससे इस नगर का महत्व और बढ़ जाता है।
राजवंशों का इतिहास
श्रीनगर गढ़वाल का इतिहास राजवंशों के उत्थान और पतन का गवाह रहा है। पंवार राजवंश के समय यह नगर उनकी राजधानी था। राजा अजयपाल ने इस नगर को पंवार वंश की राजधानी के रूप में स्थापित किया था। अजयपाल से लेकर प्रद्युम्नशाह तक यह नगर पंवार नरेशों का मुख्यालय रहा। इसके बाद 1804 में गोरखा सेना ने इस पर अधिकार कर लिया। 1815 में अंग्रेजों ने इसे महाराजा सुदर्शन शाह से हस्तगत कर लिया और इसे ब्रिटिश गढ़वाल का मुख्यालय बना दिया।
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प्राकृतिक आपदाएं और पुनर्निर्माण
श्रीनगर नगर ने समय-समय पर कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया, जिनमें बाढ़ और भूकंप प्रमुख हैं। 1803 में आए भूकंप और 1894 में आई विनाशकारी बाढ़ ने इस नगर को भारी नुकसान पहुँचाया। 1894 की बाढ़ ने पुराने श्रीनगर को पूरी तरह बहा दिया, और इसका कोई भी ऐतिहासिक अवशेष बचा नहीं। इस बाढ़ के बाद, अंग्रेजों ने नए श्रीनगर की स्थापना की, जो पुराने नगर के उत्तर-पूर्व में स्थित कोदड़ के समतल मैदान में बनाई गई थी।
पुरानी धरोहरें और मंदिर
श्रीनगर गढ़वाल में पंवारकालीन कई धार्मिक स्मारक और मंदिर हैं, जिनमें कमलेश्वर मंदिर, लक्ष्मीनारायण समूह, वैरागणा के पांच मंदिर, भक्तयाणा में गोरखनाथ गुफा मंदिर और केशवरायमठ प्रमुख हैं। ये मंदिर आज भी जर्जर अवस्था में हैं, लेकिन वे इस नगर की प्राचीन धार्मिक धरोहर का प्रतीक हैं। केशवरायमठ को आचार्य केशवराय (दास) ने 1625 ई. में बनवाया था और इस मठ का महत्व आज भी बरकरार है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
श्रीनगर का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। यहाँ स्थित कमलेश्वर मंदिर गढ़वाल के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में प्रत्येक वर्ष बैकुंठ चतुर्दशी के दिन विशाल मेला लगता है, जो इस नगर को धार्मिक रूप से और अधिक महत्वपूर्ण बनाता है। इस दिन यहाँ निःसंतान दंपत्तियों द्वारा संतान प्राप्ति हेतु खड दीपक पूजा की जाती है, जो इस मंदिर के महत्व को और बढ़ा देती है।
श्रीनगर का सांस्कृतिक धरोहर
श्रीनगर गढ़वाल न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। यह नगर मूर्तिकला, चित्रकला, और साहित्य का प्रमुख केंद्र रहा है। पंवार राजाओं ने गढ़वाल चित्रशैली के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। चित्रकार श्यामदास तुवर को दिल्ली से बुलाकर राज्य का चित्रकार नियुक्त किया गया था, और गढ़वाल चित्रशैली को लोकप्रिय बनाने में मौलाराम का योगदान रहा।
इसके अलावा, श्रीनगर में संस्कृत और हिंदी साहित्य के कई विद्वान रहे, जिनमें मतिराम, भूषण और रतन कवि प्रमुख थे। इस नगर ने साहित्य और ललित कलाओं के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया।
गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना
श्रीनगर गढ़वाल का सांस्कृतिक विकास आज भी जारी है। 1973 में यहाँ गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना की गई, जिससे इस क्षेत्र में शिक्षा के स्तर में सुधार हुआ। विश्वविद्यालय के विस्तार ने इस क्षेत्र को न केवल ऐतिहासिक, बल्कि शैक्षिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बना दिया।
श्रीनगर गढ़वाल का इतिहास एक समृद्ध और विविधतापूर्ण धरोहर को समेटे हुए है। यह नगर न केवल गढ़वाल राज्य के उत्थान और पतन का गवाह है, बल्कि यहाँ के धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल आज भी भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। प्राचीन मंदिर, ऐतिहासिक किले, और शिलालेख इस नगर के समृद्ध इतिहास को दर्शाते हैं। श्रीनगर गढ़वाल का इतिहास हमें यह सिखाता है कि समय के साथ-साथ नगरों और संस्कृतियों का उत्थान और पतन होता है, लेकिन उनकी सांस्कृतिक धरोहर हमेशा जीवित रहती है।
श्रीनगर गढ़वाल: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1: श्रीनगर, गढ़वाल कहाँ स्थित है?
A1: श्रीनगर, गढ़वाल उत्तराखंड राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। यह अलकनंदा नदी के बाएं तट पर स्थित है और समुद्रतल से इसकी ऊँचाई 526 मीटर है।
Q2: श्रीनगर, गढ़वाल का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
A2: श्रीनगर का ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है। यह नगर महाभारत काल से लेकर ब्रिटिश काल तक विभिन्न राजवंशों की राजधानी रह चुका है। यहाँ के पंवार राजवंश और उनके द्वारा बनाए गए मंदिर, संस्कृति और कला की धरोहर आज भी यहाँ की शान हैं।
Q3: श्रीनगर में कौन-कौन से प्रमुख धार्मिक स्थल हैं?
A3: श्रीनगर में कई प्राचीन धार्मिक स्थल हैं। इनमें कमलेश्वर मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, वैरागणा के पाँच मन्दिर, और गोरखनाथ गुफा मंदिर प्रमुख हैं। इसके अलावा, गंगा तट पर स्थित पच्चायतन केशवरायमठ भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
Q4: श्रीनगर में हर साल कौन सा प्रमुख मेला लगता है?
A4: श्रीनगर में हर साल बैकुंठ चतुर्दशी के दिन एक विशाल मेला लगता है। इस दिन कमलेश्वर मंदिर में निःसंतान दम्पत्ति द्वारा संतान प्राप्ति हेतु खड दीपक पूजा की जाती है, जो मंदिर का महत्व और बढ़ा देती है।
Q5: श्रीनगर में क्यों आई विनाशकारी बाढ़?
A5: 1894 में अलकनंदा नदी में आयी विनाशकारी बाढ़ ने पुराने श्रीनगर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। इस बाढ़ के कारण पंवारकालीन कई मंदिरों और भवनों के अवशेष बचे थे।
Q6: श्रीनगर में कौन सी मूर्तिकला की प्रसिद्ध शैली है?
A6: श्रीनगर में गढ़वाल चित्रशैली की प्रसिद्धि है, जिसे पंवार राजवंश ने प्रोत्साहित किया था। श्यामदास तुवर और मौलाराम जैसे प्रसिद्ध चित्रकारों ने इस शैली को विकसित किया।
Q7: श्रीनगर में शिक्षा का क्या महत्व है?
A7: श्रीनगर का शिक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1973 में यहाँ गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना हुई और आज भी यहाँ शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
Q8: श्रीनगर के पास और कौन से पर्यटन स्थल हैं?
A8: श्रीनगर के पास कई प्रमुख पर्यटन स्थल हैं जैसे कि श्रीकोट गंगानाली, राणी हार गाँव और गंगा पार चौरास, जो ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं।
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