बेडू पाको बारो मासा, ओ नरणी काफल पाको चैता मेरी छैला,
अल्मोड़ा की, नंदा देवी, ओ नरणी फूल चढोनो पाती,मेरी छैला,
उत्तराखंडी लोकगीत
ये महज लोकगीत की पंक्तियां नहीं है । बल्कि यह लोकगीत रचयिता (लेखक) बृजेन्द्र लाल शाह तथा मोहन उप्रेती का अपने पहाड़ में मिलने वाले फलों के प्रति सम्मान का भाव है। जोकि सर्वप्रथम 1952 राजकीय इंटर कॉलेज नैनीताल, के मंच में गाया गया| अब यह गीत उत्तराखंड ही नही दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं| जो गीत अक्सर हम गुन गुनाते है उसमें जिस बेडू का बार बार जिक्र हो रहा है वो आखिर है क्या?
बेडू (अंजीर) के फल बारे में जानकारी
उत्तराखंड राज्य में कई प्राकृतिक औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं , जो हमारी सेहत के लिए बहुत ही अधिक फायदेमंद होती हैं। बेडू मध्य हिमालयी क्षेत्र के जंगली फलों में से एक है। समुद्र के स्तर से 1,550 मीटर ऊपर स्थानों पर जंगली अंजीर के पौधे बहुत ही सामान्य होते हैं। यह गढ़वाल और कुमाऊँ के क्षेत्रों में इनका सबसे अच्छे से उपयोग किया जाता है। जैसा की उक्त गानों की पंक्तियों में आपने पढ़ा की बेडू पाको बारह मासा, इन पंक्तियों में ही इस के उपलब्धता के रहस्य छुपे हैं।
बेडू सालभर उगने वाला फल है। यदि हम उत्तराखंड के परपेक्ष्य में बात करे तो बेडू को स्थानीय भासा में “तिमला” भी कहा जाता है। हालाँकि ये तिमले से भिन्न है क्यूंकि तिमला पक कर लाल हो जाता है जबकि बेडु काला। अक्सर ये पेड़ जंगलों में बहुत कम पाए जाते हैं। गाँवों के आसपास, बंजर भूमि, खेतों आदि में उगते हैं। यह मीठा और रसदार होता है, जिसमें कुछ कसैलापन होता है, इसके समग्र फल की गुणवत्ता उत्कृष्ट है।
जानिए काफल फल के पीछे की कहानी
बेडू फल के उपयोग
बेडू फल जून जुलाई में लगता है एक पूर्ण विकसित जंगली अंजीर का पेड़ अनुकूलित मौसम में 25 किलोग्राम के आस पास फल देता है। बीज सहित संपूर्ण फल खाने योग्य होता है। बेडू के पत्ते जानवरों के लिए चारे का काम करती है यह दुधारू पशुओं के लिए काफी अच्छी मानी जाती हैं कहा जाता है कि बेडू के पत्ते दुधारू पशुओं को खिलाने से दूध में बढोतरी होती है|
बेडू एक बहुत ही स्वादिष्ट फल है। पहाड़ी क्षेत्रों में सभी के द्वारा बहुत पसंद किया जाता है। बेडू फल पकने के बाद एक रसदार फल की भाती होता है। इस फल से विभिन्न उत्पादों, जैसे स्क्वैश, जैम और जेली बनाने के काम भी आता है।
बेडू के औषधीय गुण
बेडू में मुख्य रूप से शर्करा और श्लेष्मा गुण होते हैं और कब्ज के समस्याओ में भी काफी फायदेमंद होती है । वैसे तो बेडु का सम्पूर्ण पौधा ही उपयोग में लाया जाता है जिसमें छाल, जड़, पत्तियां, फल तथा चोप औषधियों के गुणों से भरपूर होता है| हाथ पावं में चोट लगने पर इसका चोप (बेडू पौधे से निकलने वाला सफ़ेद दूध जैसा) लगाने से चोट ठीक हो जाती है| बेडु के फल सर्वाधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थ होने के साथ-साथ इसमें बेहतर एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाये जाते हैं जिसकी वजह से बेडु को कई बिमारियों जैसे – तंत्रिका तंत्र विकार तथा जिगर की बिमारियों के निवारण में भी प्रयुक्त किया जाता है।
इसका उपयोग वसंत की प्रारंभिक सब्जी के रूप में किया जाता है। उन्हें पहले उबाला जाता है और फिर निचोड़ कर पानी निकाला जाता है। फिर इनसे एक अच्छी हरी सब्जी तैयार की जाती है। यह उत्तराखण्ड के अलावा पंजाब, कश्मीर, हिमाचल, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, सोमानिया, इथीयोपिया तथा सुडान में भी पाया जाता है। विश्व में बेडु की लगभग 800 प्रजातियां पाई जाती है।
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