आदिबद्री मंदिर (Adi Badri Temple), भगवान विष्णु का वह निवास स्थान जो बद्रीनाथ से पहले पूजनीय है। जहाँ बैठकर महर्षि वेदव्यास ने गीता लिखी। वह मंदिर जो त्रेतायुग, द्धापर युग और सत युग में भगवान विष्णु का निवास स्थान था। आखिर क्या वजह है कि कल युग में बद्रीनाथ, आदिबद्री से ज्यादा पूजनीय स्थल हो गया? और कल युग के समाप्त होते ही श्री नारायण कहाँ पूजे जाएंगे? ये सारी जानकारी आदिबद्री मंदिर से जुड़ी इस पोस्ट में मिलेगी। यदि आप आदिबद्री मंदिर और इसके पौराणिक महत्व के बारे में जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक पढ़ें।
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आदिबद्री मंदिर | Adi Badri Temple
कर्णप्रयाग से 17 किलोमीटर तथा चांदपुर गढ़ी से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर भगवान विष्णु का एक भव्य मंदिर है। जहाँ नारायण “आदिबद्री” के नाम से जाने जाते हैं। यह मंदिर विष्णु को समर्पित है। आदिबद्री में जागेश्वर मंदिर समूहों के जैसे 16 मंदिरों का समूह हुआ करता था। जो मौजूदा वक्त में 14 रह गए हैं। युगों – युगों से यह मंदिर भक्तों का कल्याण करता आ रहा है।
वक्त के कई दौर देखने के बाद भी यह मंदिर आज भी ज्यों का त्यूं खड़ा है। आदिबद्री मंदिर (Adi Badri Temple) के अंदर भगवान विष्णु की 3 फुट ऊंची मूर्ति है। जिसकी शोभा देखते ही बनती है। इस मंदिर के पुजारी थपलियाल परिवार के हैं जो पीढ़ियों से इस मंदिर की देखरेख व पूजा अर्चना कर रहे हैं। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया। जिससे ना मंदिर को सुरक्षित रखा गया बल्कि उन्होंने यह भी बताया कि यह मंदिर पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं की अहम कड़ी है। वीडियो देखें।
आदिबद्री मंदिर संरचना
आदिबद्री में अभी 14 मंदिरों का समूह है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के अनुसार इनकी संख्या पहले 16 हुआ करती थी। आदिबद्री मंदिर की वास्तुकला की बात करे तो यह मंदिर पिरामिड शंकु आकर के हैं। जो कहीं हद तक गढ़वाल के अन्य मंदिरों से संरचना में भिन्न दिखाई देते हैं। मुख्य मंदिर काफी बड़ा है जहाँ भगवान विष्णु की छवि काली शिला पर है। वे दर्शन मुद्रा में खड़े हैं।
वहीं मुख्य मंदिर के ठीक सामने उनके वाहन गरुड़ का मंदिर है जो एक छोटा शंकुवाकार मंदिर के अंदर विराजमान हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ भगवान सत्यनारायण, लक्ष्मी नारायण, भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, माँ गौरी, माँ काली, माँ अन्नपूर्णा, चक्रभान, भगवान भोलेनाथ और कुबेर के मंदिर भी स्थित हैं। हलाँकि कुबेर का मंदिर मूर्ति विहीन है ।
आदिबद्री मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा व मान्यताएँ
कहते हैं कि इन मंदिरों की नींव 8वीं सदि में शंकराचार्य ने रखी थी। ताकि चारों दिशाओं में हिन्दू तीर्थाटन के लिए जा सके। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 8वीं से 11वीं सदी के बीच कत्यूरी राजाओं द्धारा कराया गया था। आदिबद्री मंदिर के बारे में यह बताया जाता है कि यहाँ भगवान विष्णु तीन युगों (सत युग, द्धापर और त्रेता युग ) में भगवान विष्णु बद्रीनाथ के रुप में रहते थे। और कलयुग में वे बद्रीनाथ धाम में चले गए।
वर्तमान में उत्तराखंड में पंचबद्री (आदिबद्री, ध्यान बद्री, योग बद्री, बद्रीनाथ, भविष्य बद्री ) भगवान विष्णु को समर्पित हैं। किवदंतियों के अनुसार जब कलयुग का अंत होगा तो भगवान बद्रीनाथ से भविष्य बद्री में अंतर्ध्यान हो जाएंगे। कहते हैं महर्षि वेदव्यास द्वारा यहां गीता लिखी गयी थी। हालाँकि इसका कोई ठोस प्रमाण देखने को नहीं मिलता है।
मंदिर के कपाट सालभर भक्तों के लिए खुले रहते हैं। लेकिन पूस महीने की 14 तारीक से जनवरी में मकरसंक्राति तक मंदिर के कपाट एक माह के लिए बंद किये जाते हैं। आदिबद्री मंदिर में भी पूजा का विधान बद्रीनाथ मंदिर के जैसा है। यहाँ प्रातः भगवान विष्णु का स्नान और साज सज्जा के बाद कपाट खोले जाते हैं और आरती की जाती है। वहीं संध्या में भी भगवान की आरती के बाद मंदिर के द्धार बंद कर दिये जाते हैं।
भगवान बद्रीनाथ से मंदिर के दर्शनों से पहले आदिबद्री मंदिर के दर्शन की मान्यता है। कहते हैं कि जो आदिबद्री मंदिर के दर्शन के बाद तुलसी से बना चरणामीर्त ग्रहण करता है। भगवान विष्णु की सदैव उसपर कृपा दृष्टि रहती है। वीडियो देखें।
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आदिबद्री में कुबेर की मूर्ति को चुरा ले गए चोर
कई वर्षों पहले आदिबद्री में कुबेर के मंदिर में कुबेर की मूर्ति हुआ करती थी। कुबेर धन के स्वामी हैं। लेकिन वर्ष 1995 में उनकी मूर्ति को चोरों द्धारा चुराया गया। चोरों ने उस वक्त मंदिर की सुरक्षा कर्मी पर जानलेवा हमला किया और इस घटना को अंजाम दिया। सुरक्षा कर्मी को तो बचा लिया गया। मगर कुबेर का मंदिर मूर्ति विहीन हो गया। वर्षों से आजतक कुबेर की उस मूर्ति का पता नहीं चल पाया है। वीडियो देखें।
कैंसे पहुंचे आदिबद्री | How To Reach Adi Badri Mandir
आदिबद्री मंदिर (Adi Badri Temple) कर्णप्रयाग से 17 किमी दूर सड़क मार्ग के नजदीक ही है। यहाँ आप मोटरमार्ग द्धारा गढ़वाल (देहरादून-रुद्रप्रयाग) होते हुए या कुमाऊँ (काठगोदाम -हल्द्वानी- गैरसैण ) होते हुए पहुंच सकते हैं।
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